Surajmal Se Ladai – Kathanak सूरजमल से लड़ाई – कथानक

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सूरजमल करिया राय का बड़ा भाई था। Surajmal Se Ladai – Kathanak का मुख्य कारण अनूपी की मैत था।  जैसे ही सूरजमल को अनूपी के मरने का समाचार मिला, वह तुरंत अपनी सेना सजाकर युद्ध के मैदान में जा पहुँचा। उसने महोबा के वीरों को ललकारा। ऊदल तो तैयार ही थे। सूरजमल ने पूछा, “महोबा के वीर कहाँ हैं, जिन्होंने मेरे अनुज अनूपी को मार दिया। टोडरमल को बाँधने वाला वह वीर कहाँ है?” तब तक ऊदल उसके सामने पहुँच गया।

ऊदल बोला, “जो आप कर सकते हो, कर लो।”

ऊदल की बात सुनकर सूरजमल ने तोपों को गोले दागने का आदेश कर दिया। महोबे की तोपें भी आग उगलने लगीं। तोपों के बाद बंदूकें चलीं और फिर सेनाएँ आमने-सामने आ गई। महोबे के वीर दोनों हाथों से तलवार चला रहे थे। वीरों की लाशें मैदान में बिछ गई। स्वयं सूरजमल की फौज में भगदड़ मच गई।

सूरजमल ने कहा, “इन सैनिकों को क्यों मरवाते हो। आओ हम-तुम ही आपस में निपट लें।” ऊदल ने कहा, “तो करो वार। हम पहले वार कभी नहीं करते। तुम अपने मन की भड़ास निकाल लो।” सूरजमल ने तीर चलाया। तीर बचकर निकल गया। फिर तलवार का वार किया तो घोड़ा फुरती से हट गया। वार खाली गया। ऊदल ने कहा, “हमारा नौलखा हार, हाथी गजशावत और पपीहा घोड़ा दे दो और करिया राय का शीश काटकर दे दो तो हम महोबा लौट जाएँगे। हाँ, साथ में विजया रानी का डोला भी चाहिए।”

यह सुनकर सूरजमल क्रोध से काँपने लगा और कसकर तलवार का वार किया, परंतु तलवार की मूठ हाथ में रह गई। तलवार टूटकर नीचे जा गिरी। सूरजमल को अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई देने लगी। ऊदल ने उसे सुनाकर कहा, “तुम्हारा वार हमने सह लिया। अब तुम मेरा वार सँभालो।

ऊदल ने नारायण को स्मरण करके और हनुमानजी महाराज का नाम लेकर तलवार का जोरदार वार किया। ढाल तो सूरजमल ने अड़ाई, परंतु ढाल कट गई। सूरजमल भी समर में शहीद हो गया। ऊदल के सामने सूरज के गिरते ही उसकी सेना मैदान छोड़कर भाग गई। ऊदल ने कहा, “हम भागते लोगों पर वार नहीं करते। यह वीरों की परंपरा है।”

करिया राय से युद्ध अनूपी और सूरज के समर में शहीद हो जाने पर धामन (पत्रवाहक) ने करिया राय को जाकर सूचना दी कि सूरजमल अब संसार में नहीं है। महोबावालों ने ववुरी वन काट दिया है। सूचना पाकर करिया राय ने तुरंत अपनी सेना को तैयार किया और नगाड़ा बजाते हुए युद्ध के मैदान में जा पहुँचा।

वह पंचशावद हाथी पर सवार था। इधर ऊदल तो तैयार ही था। करिया को देखकर बोला, “अब हम पिता की मृत्यु का बदला लेकर ही जाएँगे। पंचशावद हाथी और पपीहा घोड़ा भी लेंगे। नौलखा हार, लाखा पातुर को भी महोबा ले जाएँगे। इन सबके साथ तुम्हारी विजया का डोला भी हमारे साथ जाएगा।

करिया राय ने भारी लड़ाई शुरू कर दी। सैनिकों को वह बार-बार उत्साहित कर रहा था। उसकी सेना में भी तोपों के साथ कई प्रकार के हाथी और घोड़े युद्ध कर रहे थे। भयंकर युद्ध हुआ। जबानी जंग में भी करिया और ऊदल परस्पर बढ़-बढ़कर बोल रहे थे। इतने में ऊदल ने भारी मारकाट मचा दी। करिया की सेना भागने लगी।

तब करिया ने हाथी के सिर में जोर से अंकुश मारा तो हाथी विचर गया। उस हाथी ने जंजीर को सूंड से पकड़कर जोर से घुमाया। जंजीर के सामने जो आ गया, वह चोट खाकर गिरता ही चला गया। ऊदल की भी जंजीर की चोट हुई। उनका घोड़ा घायल होकर बाहर की ओर भागा। ऊदल के गिरते ही भारी हाहाकार मच गया। सेना में भगदड़ मच गई।

हरकारे ने जाकर डेरे में आल्हा को सूचना दी। आल्हा ने ताल्हन सैयद को तुरंत और सेना ले जाने का आदेश दिया। मलखान और माता दिवला को सूचना दी, साथ में कहा कि ऊदल को अकेले रण में भेजना ठीक नहीं था। मलखान ने पूरी फौज साथ ली और युद्धभूमि की ओर चला। माता दिवला भी तैयार हुई और रणभूमि में आ पहुँची। उन्होंने पंचशावद हाथी को पुचकारा और उसे दस्सराज की दुहाई दी। राजा परिमाल का वास्ता दिया। अपने द्वारा की गई सेवा की याद दिलाई तो हाथी पंचशावद ने जंजीर नीचे गिरा दी।

करिया राय भी मूर्च्छित था। वह जागा तो ऊदल को अपने पास पड़ा देखकर बहुत खुश हुआ। इतने में वीर मलखान वहाँ आ गया। मलखान ने करिया राय को ललकारा। करिया राय ने उसे महोबा लौट जाने की सलाह दी। मलखान ने कहा, “अपने चाचाओं का बदला लेकर, गजशावद और पपीहा घोड़े, लाखा पातुर और नौलखा तो वापस लेकर ही जाएँगे, साथ में तुम्हारी बहन विजया का डोला भी लेकर जाएँगे।”

करिया राय ने सांग उठाकर मारी। घोड़ी कबूतरी फुर्ती से दाएँ हो गई। सांग धरती पर गिर पड़ी। मलखान बाल-बाल बच गया। तब करिया ने तलवार से वार किया। मलखान ने वार ढाल से बचा लिया। फिर मलखान ने कबूतरी घोड़ी में एड़ लगाई तो करिया के हौदे में दोनों पाँव जमा दिए। हौदा आधा टटकर गिर गया। हाथी घबराकर भमि पर बैठ गया।

इतने में मलखान ऊदल के पास पहुंच गए। बंधन खोल दिया। रूपन तब तक वैदुल घोड़े को ले आया। ऊदल अपने घोड़े पर सवार हो गया। जब तक मलखान और ऊदल सवार हुए, तब तक महोबा की सेना भी वहाँ पहुँच गई। करिया राय को पंचशावद हाथी की बदली हुई नीयत को देखकर आश्चर्य हुआ।

उसने पपीहा घोड़ा मँगवाया। फिर उस पर चढ़कर युद्ध करने लगा। इधर रानी दिवला ने पंचशावद की आरती उतारी, तिलक किया और आल्हा से कहा कि तुम्हारे पिता का हाथी है। इस पर तुम सवार हो जाओ। आल्हा तुरंत हाथी पंचशावद पर बैठ गया। रानी दिवला ने हाथी से कहा, “मैं इन लड़कों को तुम्हारी देखभाल में छोड़े जा रही हूँ। जीतकर इन्हें साथ लाना। मैं तुम पर भरोसा करके जा रही हूँ।” हाथी पर सवार होकर आल्हा ने कहा, “आप सब चंदेलों की लाज रखना। हाथी पंचशावद की माता दिवला के वचन मानकर महोबा की लाज रखेगा।”

फिर तो महोबा के सैनिक दोनों हाथों से तलवार चलाने लगे। ऊदल अपने वैदुल घोड़े पर सवार होकर सभी मोर्चों को सँभाल कर रहा था। फिर करिया राय के सामने जा पहुंचा। करिया राय को ऊदल ने ललकारा एक बार और चोट करके अपने अरमान निकाल लो।

करिया के पास ही रंगा घुड़सवार था। करिया राय ने कहा कि ऊदल तुम्हारे जोड़ का है। इसे तो तुम ही मार सकते हैं। रंगा ने तुरंत ऊदल को ललकारा। रंगा ने तलवार का जोरदार वार किया। ऊदल ने गैंडे की खालवाली ढाल से रोक लिया। लगातार रंगा ने तीन वार किए, परंतु ऊदल ने पैंतरा बदलकर सब बचा दिए।

फिर ऊदल ने ललकारते हुए अपनी तलवार से रंगा पर वार किया, रंगा धरती पर गिर गया। तभी उसका भाई बंगा सामने से ललकारने लगा। उसके चोट करने से पहले वहाँ ढेवा (देवपाल) पहुँच गया। बंगा ने ढेवा पर तलवार का वार किया। सिरोही की मूठ हाथ में रह गई और शेष टूटकर गिर गई। ढेवा ने उसे सावधान करते हुए तलवार खींचकर मारी। बंगा ने ढाल तो अड़ाई, परंतु तलवार उसे फाड़ती और कवच को भी चीरती हुई बंगा की छाती पर जा लगी। बंगा भी धरती पर जा गिरा।

करिया ने देखा कि रंगा-बंगा दोनों युद्ध में मारे गए। अतः करिया ढेवा से जूझने जा पहुँचा। उसने गुर्ज उठाकर ढेवा पर फेंका। ढेवा ने फुर्ती से घोड़ा तीन कदम पीछे हटा लिया। गुर्ज धरती पर जा गिरा। तब तक ऊदल ने अपना घोड़ा आगे बढ़ा दिया। ऊदल ने बढ़कर करिया राय पर वार किया। करिया ने फर्ती से दाई ओर हटकर चोट बचा ली। फिर उसने गुर्ज उठाकर ऊदल पर फेंका। ऊदल भी बाएँ हटकर बच गया और गुर्ज धरती पर जा गिरा। ऊदल ने तब मलखान से कहा कि करिया को मारने में इतनी देर क्यों लगा रहे हो?

तब करिया राय ने अपनी कमान से तीर खींचकर मारा। वीर मलखान की घोड़ी कबूतरी हट गई और वार खाली गया। बिना देरी किए करिया ने सांग उठाकर मलखान पर फेंकी, पर कबूतरी (घोड़ी) तो फुर्ती से फिर हट गई। सांग जमीन पर जा पड़ी। तुरंत ही करिया ने तलवार का वार कर दिया तो कबूतरी उछलकर उड़ गई। मलखान फिर भी बच गया। तब मलखान ने ललकार कर कहा, “तुम्हारे सब हथियार झूठे पड़ गए हैं, अब तुम्हारा काल सामने आ गया है।”

करिया ने कहा, “अभिमान मत करो, अब जल्दी ही तुम्हारा काल पहुंच रहा है।” तब मलखान बोला, “तुम्हारे वश में मुझे मारना है ही नहीं। मेरा जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ है। गुरु बृहस्पति मेरी कुंडली में बारहवें स्थान पर हैं। मुझे मारने को काल भी नहीं आ सकता।” करिया राय ने तुरंत बंदूक उठा ली और गोली चला दी। मलखान गोली का वार झेल गया। फिर ललकारा, “अब तुम मरने को तैयार हो जाओ।”

उसने नारायण को याद करके बजरंगबली की जय बोलकर, मनिया देव को शीश नवाकर जो तलवार की चोट की तो करिया राय धरती पर गिर गया। ऊदल ने घोड़े से उतरकर करिया राय का कटा हुआ सिर उठा लिया। सिर ले जाकर ऊदल ने आल्हा को दिखाया और कहा, “माता मल्हना की व्यग्रता दूर करने के लिए करिया राय का यह शीश महोबा भिजवा दीजिए। वे बेसब्री से युद्ध का परिणाम जानने की प्रतीक्षा कर रही होंगी।

आल्हा ने तुरंत रूपन को बुलाया और महोबा जाने को कहा, “करिया राय का कटा शीश महोबा पहुँचा दो। उनको धीरज देकर तुरंत लौटकर महोबा के हाल हमें भी बताओ।” रूपन ने तुरंत करिया के कटे सिर को लिया और महोबे को चल दिया। इधर महोबे में रानी मल्हना और तिलका मांडौगढ़ से कोई समाचार न मिल पाने से दुःखी थीं।

तब वहाँ माहिल पहुँच गया। उसने मल्हना बहन से हाल-चाल पूछा, मल्हना ने राजकुमारों के न लौटने की चिंता जताई तो माहिल ने कहा, “बहन! अब लड़के तो लौटकर नहीं आएँगे। मांडौगढ़ से एक हरकारा आया था। उसने समाचार दिया कि सारे लड़के युद्ध में मारे गए।” मल्हना इतना सुनते ही गिरकर मूर्च्छित हो गई। तिलका भी यह सुनकर विलाप करने लगी। जब राजा परिमाल ने यह समाचार सुना तो उन सभी का रो-रोकर बुरा हाल हो गया। सारे महल में हाहाकार मच गया।

अगले ही दिन रूपन राजा परिमाल के दरबार में जा पहुँचा। उसने जैसे ही सलाम किया तो राजा ने कुमारों की कुशलक्षेम पूछी। रूपन ने कहा, “सब राजकुमार और माता दिवला बिल्कुल ठीक हैं। करिया राय को मारकर पिता का बदला ले लिया है और उस पापी का सिर दिखाने को मुझे महोबा भेजा है। तब रूपन ने सिर दिखाया।

करिया राय का चेहरा पहचान कर परिमाल बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने रूपन से कहा, “जल्दी जाकर रनिवास में यह समाचार दो। देर हुई तो अनर्थ हो जाएगा।” रूपन ने पालकी रनिवास की ओर मोड़ दी। रानी मल्हना पालकी देखकर ही घबरा गई। रूपन ने जाकर प्रणाम किया और शुभ समाचार दिया कि सब कुमार सही-सलामत हैं। बदला ले लिया गया है और करिया राय का सिर सबूत के लिए महोबा भेजा है।

मल्हना और तिलका की खुशी का ठिकाना न रहा। बोली, “चुगलखोर माहिल ने झूठी खबर देकर हमें परेशान कर दिया था। तुम आ गए तो बहुत अच्छा किया। चलो अब खाना खा लो।” रूपन बोला, “खाना खाने का समय नहीं। मैं अभी वापस जाऊँगा। वहाँ भी मेरी प्रतीक्षा हो रही होगी।” और रूपन उल्टे पाँव मांडौगढ़ के लिए चल पड़ा। महोबा में जश्न मनाया जाने लगा।

मांडौगढ़ में जब राजा जंबै को पता चला कि उनके चारों पुत्र शहीद हो गए, वंश ही समाप्त हो गया तो राजा बहुत दुःखी हुआ। वह रानी कुशला को इस दुःखद समाचार को सुनाने स्वयं रनिवास गया। रानी कुशला और राजा जंबै दोनों ने बहुत विलाप किया और सोचा कि अब क्या करना चाहिए? अब उन्हें अपने कपूत के कुकर्मों पर पछतावा हो रहा था। यदि उन्होंने गड्ढा न खोदा होता तो आज उनके लिए कुआँ भी न खुदा होता। बुरे काम का तो बुरा परिणाम होना ही था, परंतु अब क्या किया जाए।

उनकी पुत्री विजया ने माता-पिता को बहुत दुःखी देखा तो उन्हें धीरज बँधाया। कहा, “ऊदल का ही भारी खटका है तो मैं इस खटके को मिटा देती हूँ।” विजया ने जादू की पुडिया ले ली और पुरुष-वेश में युद्ध के मैदान में जा पहुँची। उसने एक पुडिया वीर आल्हा पर फेंकी तो उसे दिखाई देना बंद हो गया

फिर जादू की एक पुडिया मलखान पर डाली तो उसकी याददाश्त ही समाप्त हो गई। ढेवा की भी नजर बंद कर दी, फिर पूरे लश्कर में अँधेरा कर दिया। ऊदल पर तो जादू फेंककर उसे मेढ़ा बना दिया और झिलमिला नाम के साधु के मठ में ले जाकर बाँध दिया।

राजकुमारी विजया के रंगमहल में लौटते ही लश्कर का जादू हट गया। आल्हा और मलखान को होश आया तो ऊदल को खोजने लगे। वह कहीं दिखाई नहीं दिया तो ढेवा को ज्योतिष से खोज करने को कहा गया। ढेवा ने पता लगाया कि विजया ने ऊदल को मेढ़ा बनाकर झिलमिल गुरु के मठ में बाँध दिया है।

तब मलखान और ढेवा साधु का वेश बनाकर खोजने चले। झिलमिल गुरु के मठ पर पहुँचकर अलख जगाई। परिचय पूछने पर गोरखपुर में कुटी और बाबा गोरखनाथ के शिष्य बताया। झिलमिल गुरु ने खेल दिखाने को कहा तो राग-रागनी सुनाई। फिर मलखान ने नाच भी दिखाया। बाबा ने कुछ भी माँगने को कहा, तो इन लोगों ने वही मेढ़ा माँग लिया और कहा कि इसे आदमी बना दो, ताकि ले जाने में आसानी रहे। बाबा ने थोड़ी आना-कानी के बाद मेढ़ा बने ऊदल को दे दिया। तीनों आल्हा के पास पहुँचे।

आल्हा ने कहा कि जंबै को शांति संदेश भेजो। बिना लड़े ही मान जाए तो अच्छा है। जंबै माननेवाले कहाँ थे। फौज फिर लड़ने को खड़ी हो गई। महोबे की फौज लोहागढ़ का द्वार नहीं तोड़ पाई। तब ऊदल ने ववुरी वन के झाड़-झंखाड़ और कटी लकड़ियाँ खंदक में भरवाकर आग लगवा दी। लोहागढ़ की दीवारें टूट-टूटकर बिखर गई।

जंबै राजा ने भयंकर युद्ध करना शुरू कर दिया। जंबै और आल्हा आमने-सामने होकर लड़ने लगे। जंबै ने आल्हा से वार करने को कहा तो आल्हा ने अपना क्षत्रियोचित उत्तर दिया, “हम कभी पहले वार वार नहीं करते, भागते हुए पर वार नहीं करते। निहत्थे और घायल पर वार नहीं करते।”

इतनी सुनकर जंबै ने तरकश से निकालकर तीर चलाया। आल्हा ने फुरती से स्वयं को बचा लिया। वार खाली गया। फिर जंबै ने सांग उठाकर फेंकी। आल्हा ने हाथी पीछे हटा लिया। फिर दोनों ने तलवार निकाल ली। जंबै ने तीन जोरदार वार किए। फिर तलवार टूटकर गिर गई। आल्हा ने ढाल उठाई और महावत को गिरा दिया।

अब तो हौदा से हौदा भिड़ गया। जंबै ने कटार निकाल ली। दोनों बहुत देर तक आपस में कटार के वार करते रहे। तब आल्हा ने हाथी पंचशावद से कहा, “शत्रु सामने है, इसे जंजीर से बाँध लो।” पंचशावद ने तुरंत जंबै के हौदे में जंजीर अटकाकर उसका हौदा गिरा दिया। आल्हा ने अवसर पाते ही जंबै को बाँध लिया।

फिर सब जंबै के खजाने के पास जा पहुंचे। आल्हा ने छकड़ों पर माल-खजाना लदवाया और महोबे भेंट भेजना शुरू कर दिया। हरकारे के द्वारा माता दिवला को बुलवाया। रानी दिवला के पहुंचने पर रानी कुशला को भी बुलवाया गया। ऊदल ने कुशला रानी से कहा, आप पर कोई हथियार नहीं चलाएगा। हमें तो करिया से बदला लेना था, सो ले लिया। अब हमारे पिता और चाचा की पगड़ी और कलगी भी दे दो। उनकी खोपडियाँ वापस कर दो, नौलखा हार और लाखा पातुर वापस करो तथा विजया का डोला दे दो। हम महोबे लौट जाएँगे।

फिर तो बरगद से ऊदल ने स्वयं खोपड़ियाँ उतारी और सोने के थाल में सजा दीं। राजा जंबै को उसी कोल्हू में पिलवा दिया। जंबै की छाया ने कहा, “अब हमारे वंश में पानी देने वाला भी कोई नहीं है। इसलिए तुम मेरी खोपड़ी भी साथ ले जाओ। गंगा में हमारी खोपड़ी भी बहा देना। ऊदल ने कहा, “जैसा किया था, वैसा तो भोगना ही पड़ता है। हमारी कोई गलती नहीं। हमने तो वही किया, जो करिया राय ने हमारे साथ किया था। अब हमें मांडौगढ़ से कुछ लेना-देना नहीं। तुम सुख से राज करो। कभी जरूरत पड़े तो सहायता देने को हम फिर आ सकते हैं।”

ऊदल ने वचन दिया था, अतः विजया का डोला मँगवा लिया, परंतु आल्हा ने कहा कि विजया जादूगरनी है। उससे ब्याह करके महोबा ले जाना ठीक नहीं है। वह कभी भी बदला ले सकती है। अतः उसे अभी खत्म कर दो। मलखान ने आल्हा के आदेश का पालन करने के लिए तलवार खींच ली। विजया घायल होकर गिर पड़ी। वह ऊदल से विवाह करना चाहती थी, परंतु राजनीति शत्रु को घर ले जाने की अनुमति नहीं देती।

विजया ने मरने से पहले शाप दिया, “ऊदल, जैसे मैं धोखे से मारी गई, तुम भी धोखे से मारे जाओगे।” उदयसिंह राय ने पूछा, “अब तो बिछुड़ गए, फिर जाने कब मिलेंगे?” विजया बोली, “अब मेरा जन्म नरवरगढ़ की राजकुमारी के रूप में होगा। मेरा नाम फुलवा होगा। जब घोड़े लेने के लिए काबुल जाओगे, तब हमारी भेंट होगी।” इतना कहकर विजया के प्राण निकल गए।

महोबा के सब वीर वापस लौट अपने डेरे पर आए, जहाँ राजकमार ब्रह्मानंद विराजमान थे। आल्हा ने वहाँ पहुँचकर वीरों को शाल-दुशाले वितरित किए। सोने के कड़े तथा धन पुरस्कार में दिए। फिर महोबे की ओर चल दिए। रानी मल्हना ने फौज आती देखी तो पहले घबराई कि किसी राजा की फौज चढ़ाई करने आ रही है। सामना करने को कोई लड़का यहाँ नहीं है, परंतु फिर पंचशावद हाथी पहचान में आ गया तो अपने ही पुत्र वापस आ रहे हैं, यह जानकर प्रसन्नता से फूली नहीं समाई।

रानी मल्हना ने सबकी आरती उतारी और तिलक किया। सबने माता के चरण छुए। जब राजा-रानी दोनों ने सुना कि जंबै राजा को कोल्हू में पिलवा दिया, उनके वंश को ही समाप्त कर दिया, तब बहुत प्रसन्न हो गए। सारे महोबा को सजाया गया। सारी प्रजा ने आनंद मनाया। गरीबों को धन-दान दिया गया। मलखान और ऊदल गया तीर्थ चले गए थे। उनके लौटने पर सभी प्रसन्न एवं संतुष्ट हो गए। इस प्रकार मांडौगढ़ पर विजय प्राप्त करके आल्हा-ऊदल, मलखान, ब्रह्मा, ढेवा की प्रशंसा और कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य) 

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