बुन्देली झलक

किसी भी देश-प्रदेश की पहचान उसकी लोककला और संस्कृति होती है। उसका अपना लोक जीवन होता है उसकी अपनी मान्यताएं एवं परम्पराएं होती हैं जो एक बेहतर समाज का निर्माण करती हैं। Bundeli Jhalak बुन्देलखण्ड की कला संस्कृति और साहित्य को समर्पित है और  बुन्देलखण्ड के लोकजीवन, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, लोककला, संस्कृति और साहित्य को जन मानस तक पहुचाने का एक प्रयास है।

बुन्देली झलक की कोशिश है कि बुन्देलखण्ड  की लोक कला ,संस्कृति ,परम्पराओं एवं साहित्य की सम्पूर्ण जानकारी और बुन्देलखण्ड के लोक कलाकार (गायक, वादक) , साहित्यकार, बुद्धजीवी, सामाजसुधारक, संस्कृतिकर्मी आदि  का जीवन परिचय एवं उनके उत्कृष्ट कार्यों को वेबसाईट के माध्यम से आम जानमानस तक पहुचाना ।

बुन्देली झलक की स्थापना नवंबर 2018 में हुई । बुन्देली झलक के संस्थापक गौरीशंकर रंजन ने कीर्तिशेष परम आदरणीय श्री गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’ और आदरणीय श्री सुरेश द्विवेदी ‘पराग’ के मार्गदर्शन मे शुरू किया । बुन्देलखण्ड के अनेक साहित्यकारों, विद्वानों नें भरपूर सहयोग किया

बुन्देलखण्ड की संस्कृति, परम्पराएं, लोक जीवन एवं  बुन्देलखण्ड के लोक पर्व त्योहारों, बुन्देली किस्सा -कहानियों, बुन्देलखण्ड का साहित्य, लोक कथाएं , लोक गाथाएं , बुन्देलखण्ड के लोक देवता आदि  की विस्तृत जानकारी वेबसाईट मे उपलब्ध है ।

बुन्देली झलक बुन्देलखण्ड के वरिष्ठ लोक कलाकार (गायक, वादक) , साहित्यकार , बुद्धजीवी , सामाजसुधारक, संस्कृतिकर्मी आदि को पद्म पुरस्कार और अन्य राजकीय एवं राष्ट्रीय पुरस्कार हेतु  Nominate (मनोनीत) करना । 

बुन्देलखंड की लोक संस्कृति का परिचय

“Bundeli jhalak” मतलब झांकी रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, कला और संस्कृति की झांकी। भारत के हर प्रदेश में कला और सांस्कृति की अपनी एक विशेष शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप है जो गांव देहात के लोगों में प्रचलित है। इसे जनजातीय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

भारत की लोक और जनजातीय कलाएं बहुत ही पारम्परिक और साधारण होने पर भी इतनी अधिक सजीव और प्रभावशाली हैं  कि आसानी से जन मानस को अपनी ओर आकर्षित करती है।इसमे स्थिति और अवस्था के साथ- साथ अनेको प्रयोग होते रहते है जिसके परिणाम स्वरूप समय समय पर कला और  संस्कृति पर हल्के फुल्के बदलाव आते रहते है पर वे  कभी अपनी जडें नही छोडते।

प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारी अनेक पारम्परिक कला और संस्कृति विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है। Bundeli Jhalak इन्ही विलुप्त होती बुन्देलखण्ड की कला और संस्कृति को बचाने और समस्त जन मानस तक पहुचाने  का एक प्रयास है ताकि  कला और संस्कृति से जुडे बुनियादी, सांस्कृतिक और सौंदर्यपरक मूल्यों तथा अवधारणाओं को जनमानस में जीवंत रखा जा सके।

बुन्देलखण्ड भोगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं का संगम स्थल है। बुन्दलेखण्ड में जो  एकता और समरसता है  उसके कारण यह क्षेत्र विशेष माना जाता है। अनेक शासकों के शासन का इतिहास होने के बावजूद भी बुंदेलखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत अपने आप मे अनोखी है।

इतिहास, संस्कृति और भाषा से बुन्देलखण्ड एक विस्तृत और व्यापक प्रदेश है। बुन्देलखण्ड मे  त्यौहारों  की  अनुपम छटा  है। सर्दी, गर्मी, बरसात किसी भी मौसम में यहां अनेकों त्यौहार होते हैं और जनमानस हर्षोल्लास के साथ इन त्योहारों को मनाता है। सचमुच यहां कण- कण मे भगवान है और हर गली मे पूजा धाम है। बुन्देलखण्ड के त्योहारों की विस्तृत जानकारी वेबसाईट मे उपलब्ध है 

अतीत में Bundelkhand शबर, कोल, किरात, पुलिंद और विषादों का प्रदेश था। आर्यो के मध्यप्रदेश में आने पर जनजातियों ने प्रतिरोध किया था। वैदिक काल से बुंदेलों के शासनकाल तक दो हजार वर्षो में इस प्रदेश पर अनेक जातियों और राजवंशों ने शासन किया है और अपनी सामाजिक सांस्कृतिक चेतना से इन जातियों के मूल  संस्कारों  को  प्रभावित  किया  है। लेकिन बुंदेलखंड की वह बुंदेली झलक आज भी तटस्थ है।

किसी भी देश-प्रदेश की पहचान उसकी लोककला और संस्कृति होती है और उस कला और संस्कृति को संरक्षण देना और उसे समृद्ध बनाने में समाज का हाथ होता है। समाज ही समृद्ध परंपराओं का विकास कर एक सुसंकृत समाज का निर्माण करता है । 

बुन्देलखंड की बहुत सी ऐसी लोक कलायें हैं जो समय और आधुनिकता के कारण कुछ विलुप्त हो चुकीं हैं और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है उन लोक कलाओं को बचाने के लिए और उन्हें सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए उन कलाओं का फिल्मांकन करके उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है और कुछ ऐसी लोक कलायें हैं जो विलुप्त हो चुकी है उन्हें पुनः जीवंत करने के लिए कुछ ऐसे तरीके अपनाए जाएं ताकि उन्हें पुनः प्राण प्रतिष्ठित किया जा सके।

बुंदेली लोक कलाओं का उद्भव और विकास की प्रक्रिया ने कैसे-कैसे विस्तार किया। किन-किन पड़ाओं से गुजरते हुए किन -किन प्रयोगों से होते हुए आज बुंदेली का यह स्वरूप जो हमारे सामने है। इसे कैसे सुरक्षित किया जाय ताकि हमारी पहचान युगों-युगों तक बनी रहे।

Jhalak Heritage Village
बुंदेली झलक हेरिटेज विलेज ( विरासत गांव)

विरासत…लोककला, संस्कृति और परम्परायें जो हमें अपने पूर्वजों से और अपने अतीत से विरासत में मिला है। भारत विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का देश है । हमारे देश में कई जातियों, धर्मों और पंथों के लोग रहते हैं। हमारे देश में प्रत्येक जातीय समूह की अपनी मूल कहानी और अनूठी परंपराओं और संस्कृति का अपना ताना-बाना है। हमारी विरासत और संस्कृति बहुत विशाल है।

हर समुदाय के अपने रीति-रिवाज और परंपरायें है, जो समय-समय पर अपनी युवा पीढ़ी को सौंपते हैं। युवा पीढ़ी में अपनी विरासत के प्रति प्रेम को जागृत करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए। यह शुरू से ही किया जाना चाहिए तभी हम अपनी समृद्ध विरासत को संरक्षित कर सकते हैं।

ऐसा गांव जहां बुंदेली लोककला, संस्कृति और परम्पराओं की पौराणिक और ऐतिहासिक झलक दिखाई दे। जिसे नई पीढ़ी देखकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें कि हमारे पूर्वजों की संस्कृति कितनी समृद्धि थी।

बुंदेलखंड के परंपरागत लोक गीत, लोक नृत्य एवं खान-पान, रहन-सहन पर आधारित कार्यक्रमों का प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर पर करवाना ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस संस्कृति से रूबरू हो सकें ।

किसी भी लोक परम्परा, त्योहार, गंवई खेल, लोक प्रथा के पीछे धार्मिक आधार, वैज्ञानिक आधार, मनोवैज्ञानिक आधार के साथ-साथ सामाजिक समरसता का एक ठोस कारण  होता है। इन सभी आधारों की विवेचना और व्याख्या को आम जनमानस के समक्ष  तर्कसंगत दृष्टि से रखा जाना।

 कला और कलाकारों को आर्थिक, सामाजिक और सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिले।

Legend Personality Interview – (Biopic of legend personality)
परम्परिक कला से जुडे महान विभूतियों के जीवन पर आधारित वृत्तचित्र एवं पुस्तकों का संस्करण करना।

सोशल मीडिया के माध्यम से गतिविधियों की जानकारी, खबरें आदि शेयर करना।

Documentary,  Short Film, Tele Film बनाकर इन्हे संग्रहित करना और अनेक माध्यम से इनका प्रचार-प्रसार करना।

समय-समय पर लोक कलाकारों को क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय मंच प्रदान करने की कोशिश करना तकि देश के अन्य शहरों एवं लोगों से कला और कलाकार रूबरू हो सकें।

ज़िला और मंडल स्तर से लेकर राज्य स्तर पर होने वाले महोत्सव/ लोकोत्सव मे लोक कलाकारों की सहभागिता अधिक हो साथ ही अन्य प्रदेशों के लोक कलाकारों को आमंत्रित किया जाय ताकि सामाजिक समरसता मे बृद्धि हो।

लोक वाद्यों, लोक वेशभूषा एव आभूषणों का संरक्षण करना।

बुंदेली बोली और भाषा के उन्नयन हेतु वार्ता, सम्मेलन, पत्रिका प्रकाशन, बुंदेली डायरेक्टरी निर्माण आदि की गतिविधियों का व्यापक स्तर पर आयोजन करना।

error: Content is protected !!