Angar Baith Lev Kachhu Kane ऐंगंर बैठ लेव कछु कानें
महाकवि ‘ईसुरी’ का नाम सुनते ही हमारे मन मस्तिष्क में उनकी फागों की विभिन्न छबियाँ मंडराने लगती हैं । लेकिन ‘फाग’ शब्द आते ही हमें... Read more
The Cultural Archive Of Bundelkhand
बुंदेली के विख्यात महाकवि ईश्वरी ने फाग विधा में चौकड़िया फाग की रचना कर बुंदेली साहित्य को एक नई दिशा दी तीसरी का जीवन दर्शन और अध्यात्म ही उनका परिचय है।
महाकवि ‘ईसुरी’ का नाम सुनते ही हमारे मन मस्तिष्क में उनकी फागों की विभिन्न छबियाँ मंडराने लगती हैं । लेकिन ‘फाग’ शब्द आते ही हमें... Read more
सबसे बोलें मीठी बानी, थोड़ी है ज़िदगानी। येई बानी हाथी चढ़बावै, येई उतारै पानी। येई बानी सुरलोक पठावै, येई नरक निशानी। येई बानी सें तरैं... Read more
महाकवि ईसुरी कर्म योगी थे अपना कर्म उन्हे पता था । अन्तिम समय तक वे अपने रचना कर्म में लगे रहे। लैलो सीताराम हमारी, चलती... Read more
साहित्यिक समृद्धि से परिपूर्ण ईसुरी का सारा जीवन साहित्यिक उधेड़ बुन में लगा रहा। वे सच्चाई पर चलने वाले, ईमान का पालन करने वाले निश्छल,... Read more
कदाचित यह उनकी अन्तिम रचना है, जिसके अन्तिम शब्दों के साथ उनके बोल थक गए थे। मोरी सब खां राधावर की, भई तैयारी घर की।... Read more
मानुस कबै-कबै फिर होने, रजऊ बोल लो नौनें। चलती बैरां प्रान छोड़ दए, की के संगे कौनें। जियत-जियत को सबकोउ, सबको मरे घरी भर रौनें... Read more
महाकवि ईसुरी अपनी द्विअर्थी फागों के माध्यम से नायिका की आड़ लेकर इस संसार को उपदेशित करते हुए कहते हैं। बाहर रेजा पैर कड़े गए,... Read more
बखरी रैयत है भारे की, र्दइ पिया प्यारे की। कच्ची भीत उठी माटी की, छबी फूस चारे की। बे बन्देज बड़ी बेबाड़ा जेई, में दस... Read more
तोरो मन पापी तन नौनों, एक भांत में दोनों। मन से रात अन्देश सबई कोउ, तन को मचो दिखोनों मत माटी की मोल कदर कर,तन... Read more
तन तन दोऊ जने गम खावें करो फैसला चायें। नायं बगोरा को मेडो है बड़े गांव को मायें। माझ पारिया पै झगड़ा है तूदा फिरत... Read more