Bela ka gauna- Kathanak  बेला का गौना-कथानक

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By admin

पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला का विवाह परिमाल के पुत्र ब्रह्मानंद से भारी युद्ध के पश्चात् हुआ था, परंतु माँ अगमा ने डोला गौने में विदा करने को कहा था। एक दिन बेला ने ही ऊदल के नाम संदेश भेजा कि अब गौना कराकर ले जाओ। ऊदल तैयार हो गया, परंतु माहिल ने ब्रह्मा को उकसा दिया और ब्रह्मा अकेले जाने को तैयार हो गया। Bela ka gauna होने से पहले अकेले आये ब्रह्मा को घेर लिया और युद्ध के लिये ललकारा

दिल्ली की सेना से भारी युद्ध हुआ। जब दिल्ली की सेना भागने लगी तो राजकुमार ताहर आगे आया। ब्रह्मा ने वार बचा लिया। ब्रह्मा के वार से ताहर का घोड़ा मोरचे से भाग गया। गोपी राजा और टोडरमल को ब्रह्मानंद ने मार गिराया। अब चौंडा और ताहर ने धोखा किया। चौंडा पंडित ने महिला का वेश बनाया और चूँघट करके पालकी में बैठा। ब्रह्मा को बेला का डोला बताकर भेज दिया।

ब्रह्मानंद ने ज्योंही बेला जानकर घूघट खोला, चौंडा ने जहर भरी छुरी छाती में मार दी। तभी ताहर का तीर आर-पार हो गया। ब्रह्मानंद को साथी सैनिक तंबू में ले गए। उसने भी जान लिया कि अब मैं बचूँगा नहीं। अत: महोबे को मृत्यु की सूचना भेज दी। दिल्ली में तो शोर मच ही गया। बेला और रानी अगमा रोने लगीं। युद्ध रुक गया। गौना नहीं हुआ।

बेला ने ऊदल को फिर से पत्र लिखा। इसके लिए भी खूब ताना दिया कि तुम लोगों ने मेरे स्वामी को अकेले भेज दिया। आप अपने घर में आराम से लेटे रहे और दिल्ली के जल्लादों ने उन्हें मार दिया। पत्र पढ़कर आल्हाऊदल बहुत दुःखी हुए। अब वे परिमाल राजा से अनुमति लेकर गौना करवाने दिल्ली जाने को तैयार हो गए। अपने साथ लाखन, ढेवा, जगनिक, इंदल, धनुआ तेली, लला तमोली, मन्ना गूजर आदि वीरों को लेकर दिल्ली जा पहुँचे। बाहर बगिया में ही ठहर गए। चौंडा राय ने पूछा, “किसका लश्कर है, कहाँ जा रहे हैं?”

ऊदल और ढेवा ने अपना वेश बदल रखा था। चौंडा के पूछने पर उन्होंने बताया कि हम झांझर के राजा हीर सिंह और वीर सिंह के लश्कर में थे। नौकरी करने दिल्ली में आए हैं। चौंडा ने कहा, “चलो, मैं तुम्हें राजा से मिलाता हूँ।” चौंडा राय ऊदल, ढेवा दोनों को राजा के पास ले गए, वह भी बदले रूप में पहचान नहीं सके। दोनों को महल की सुरक्षा का जिम्मा देने को तैयार हो गए। दोनों बेला के महल के द्वार पर बैठकर पासे खेलने लगे। ऊदल जब भी दाव लगाता, बेला का नाम लेकर लगाता। बेला ने बाँदी को भेजकर उनसे परिचय पुछवाया।

उन्होंने सही परिचय नहीं दिया, पर बेला ने ऊदल के नाम संदेश भिजवाने की बात कही तो ऊदल ने अपना, लाखन तथा ढेवा का परिचय दे दिया। बेला ने गौना करवाकर घायल स्वामी से मिलवाने की योजना बनाई। ऊदल और लाखन डोला लेकर चले तो हल्ला मच गया। चौंडा और ताहर को भेजा गया। जमकर युद्ध हुआ। बेला का डोला कभी दिल्ली के हाथ आया तो कभी महोबेवालों ने अपने कब्जे में लिया। अंत में लाखन और ऊदल ब्रह्मानंद के तंबू में ले जाने में सफल हो गए।

बेला ने प्रेम भरा स्पर्श किया और पंखा झला तो ब्रह्मानंद ने आँखें खोली। उसने पूछा, यह स्त्री कौन है? ऊदल के पहले ही बेला ने स्वयं अपना परिचय दिया तो ब्रह्मानंद ने मुँह फेर लिया। बेला ने कहा कि मुझे सेवा करने का अवसर दे दो। ब्रह्मा ने शर्त लगाई। ताहर का सिर काटकर लाओ, तभी मझे शांति मिलेगी। बेला ने कहा, एक बार महोबे जाकर अपनी सासूजी के दर्शन कर आऊँ, फिर आपकी शर्त पूरी करूँगी।

बेला का डोला सैकड़ों बाधाओं को पार करके भी महोबे पहुँच गया। माता मल्हना, माता दिवला तथा अन्य सभी ने उनका भारी स्वागत किया। माता ने ब्रह्मानंद का महल दिखाया, मठ दिखाया, बाग आदि सब दिखाए। बेला को सबकुछ बहुत अच्छा लगा, परंतु पति के बिना रहने की बात सोचकर वह दुःखी हुई। जल्दी ही वह लौट गई। उसने ताहर का सिर काटने का वायदा किया था। ऊदल ने उसे ब्रह्मानंद की बैंगनी पगड़ी पहनाई। उसी का हरनागर घोड़ा दिया और पाँचों हथियार लेकर महोबे की सेना का नेतृत्व करते हुए दिल्ली पर आक्रमण करने पहुंची। कोई नहीं

जान पाया कि यह बेला है, ऊदल को उसने ब्रह्मानंद के पास उसकी सुरक्षा के लिए छोड़ दिया। पृथ्वीराज को पत्र लिखा कि गौने के साथ जो देने योग्य सामान है, वह भेज दो। ताहर ने चुपचाप लौटने को कहा, परंतु बेला डटी रही। बेला की सेना ने दिल्ली की सेना के छक्के छुड़ा दिए। दिल्ली के सिपाही युद्ध से भागते दिखाई पड़े। ताहर ने यह देखकर अपना घोड़ा आगे बढ़ाया और तलवार का वार किया। बेला ने अपनी ढाल अड़ाई तो उसकी आस्तीन के ऊपर चढ़ जाने से चूडियाँ दिखाई पड़ गई।

चौंडा ने ताहर को आवाज देकर कहा, यह स्वयं बेला है, इस पर हाथ मत उठाना। ताहर का ध्यान बँट गया। तभी बेला ने तलवार से ताहर का शीश काट लिया। वह तुरंत ब्रह्मानंद के डेरे की ओर चली गई। चौंडा ने जाकर दिल्ली दरबार में बेला के युद्ध का और ताहर के मारे जाने का समाचार सुनाया। महलों में समाचार पहुँचा तो अगमा रानी ने भारी विलाप शुरू कर दिया। रानी ही नहीं, दिल्ली की जनता भी रोने लगी। सब कह रहे थे कि इसी दिन को बेला पैदा हुई थी, जो इसने अपने ही भाई का गला काट दिया।

बेला ब्रह्मानंद के तंबू में आकर कहने लगी कि अब तो आँख खोल दो स्वामी। कई बार पुकारने पर ब्रह्मानंद ने आँखें खोलीं, ‘कौन है?’ कहा। बेला ने कहा, “स्वामी! मैं आपकी धर्मपत्नी बेला हूँ। आपकी आज्ञा से ताहर का शीश काटकर लाई हूँ।” ब्रह्मानंद ने शीश को देखकर कहा, “बेला! अब मेरा बदला पूरा हो गया। मैं संतुष्ट हूँ। मेरी आत्मा अब भटकेगी नहीं। हरे कृष्ण! हरे राम!” कहते हुए ब्रह्मानंद ने प्राण त्याग दिए।

अब तो बेला का रुदन शुरू हुआ। वह दुर्भाग्य पर रोने लगी, “जो मैं यह जानती तो ताहर को मारने की न ठानती। मैंने पीहर और ससुराल दोनों को खो दिया। हाय! मैं कहीं की न रही।” ऊदल ने कहा, “आप महोबे जाकर राज करो। वहाँ किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है।” इस पर बेला ने कहा, “नहीं, अब मैं न राज करूँगी, न जीवित रहूँगी। मैं पति के साथ सती हो जाऊँगी।” लाखन और ऊदल समझाकर हार गए, बेला का सती होने का निर्णय नहीं बदला।

बेला बोली, “सती होने के लिए दिल्ली की चंदन बगिया काटकर चंदन ले आओ।” दोनों ने कहा कि चंदन हम कन्नौज से ला देते हैं, पर बेला अडिग रही। बोली, प्रतीक्षा करने का समय नहीं है। दोनों अपनी फौज सहित दिल्ली पहुँच गए। चंदन बगिया से पेड़ कटवाकर छकड़ों में भर लिये। किसी ने पृथ्वीराज को सूचना दे दी। चौहान ने अपने सेनापति भेजे। चौंडा राय और धाँधू ने छकड़ा रोक लिया। लाखन ने वीर सिंह को भेजा, उधर से बीकानेर का विजय सिंह पहुँचा। हीर सिंह, वीर सिंह और विजय सिंह सब मारे गए। हीरामन भी मारा गया।

भारी मार-काट के बाद ऊदल चंदन का छकड़ा लेकर बेला के पास पहुँचे तो वह बोली, “यह तो चंदन गीला है। आग ही नहीं पकड़ेगा। सूखा चंदन चाहिए।” ऊदल ने फिर आग्रह किया कि सती होने का विचार त्यागकर महोबा चलो। लाखन ने कहा, “मैं कन्नौज जाकर चंदन लाता हूँ।” बेला ने बताया, “दिल्ली दरबार में ही चंदन के बने बारह खंभे लगे हैं, उन्हें उखाड़ लाओ।” ऊदल और लाखन दोनों को लगा कि अब मृत्यु सिर पर मँडरा रही है। दोनों दिल्ली दरबार में पहुंचे। चंदन के खंभे उखाडना आसान नहीं था। कछ उखाडने लगे तो कछ र खंभे भी बेला तक पहुँचा ही दिए।

लाखन और ऊदल ने हाथ जोड़कर फिर प्रार्थना की, पर विधिना की लिखी कौन मेट सकता है। सती ने शाप दिया, “मैं अकेली विधवा नहीं हो रही हूँ। दिल्ली से महोबे तक सब राजपूत सुहागिन बीस दिन में विधवा हो जाएँगी। कहीं भी बिछुए और पायल की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ेगी। बीस दिन में दिल्ली पर गाज गिर जाएगी।” दोनों पक्ष ने इस लड़ाई में अनेक वीरों को खो दिया। हाथी-घोड़े सूंड तथा गरदन कटे पड़े थे। खून की नदियाँ बह रही थीं। इधर बेला सती होने को खड़ी थी।

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