बुंदेली झलक के उद्देश्य

किसी भी देश-प्रदेश की पहचान उसकी लोककला और संस्कृति होती है। बुन्देली झलक का उद्देश्य  बुन्देलखण्ड की विलुप्त होती लोक कला, संस्कृति एवं लोकाचारों को पुनर्स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना एवं पुनर्स्थापित करने में जनमानस का सहयोग करना। अपनी बोली अपनी भाषा से विमुख होते लोगों को अपनी बोली के प्रति प्रोत्साहित करना एवं संरक्षण और संवर्धन करना। 

बुन्देली झलक बुन्देलखण्ड के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, कला और संस्कृति की झांकी है ।  प्रत्येक  देश की कला और सांस्कृति उसकी पहचान होती है। भारत के हर प्रदेश में कला और संस्कृति की अपनी एक विशेष शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप है जो ग्रामीण जीवन में प्रचलित है। इसे जनजातीय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

भारत की लोक और जनजातीय कलाएं बहुत ही पारम्परिक और साधारण होने पर भी इतनी अधिक सजीव और प्रभावशाली हैं  कि आसानी से जन-मानस को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसमे स्थिति और अवस्था के साथ- साथ अनेको प्रयोग होते रहते है जिसके परिणाम स्वरूप समय-समय पर कला और  संस्कृति पर हल्के फुल्के बदलाव आते रहते है पर वे  कभी अपनी जडें नही छोड़ते ।

प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारी अनेक पारम्परिक कला, संस्कृति और परम्पराएं विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है। बुन्देली झलक इन्ही विलुप्त होती कला, संस्कृति और परंपराओं को बचाने और समस्त जन मानस तक पहुचाने  का एक प्रयास है ताकि कला और संस्कृति से जुडे बुनियादी, सांस्कृतिक और सौंदर्यपरक मूल्यों तथा अवधारणाओं को जनमानस में जीवंत रखा जा सके।

बुन्देलखण्ड भोगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं का संगम है। बुन्दलेखण्ड में जो एकता और समरसता है  उसके कारण यह क्षेत्र विशेष माना जाता है। अनेक शासकों के शासन का इतिहास होने के बावजूद भी बुंदेलखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत आज भी जीवित है।

इतिहास, संस्कृति और भाषा से बुन्देलखण्ड एक विस्तृत और व्यापक प्रदेश है। बुन्देलखण्ड मे  त्यौहारों  की  अनुपम छटा  है। सर्दी, गर्मी, बरसात किसी भी मौसम में यहां अनेकों त्यौहार होते हैं और जन-मानस हर्षोल्लास के साथ इन त्योहारों को मनाता है। सचमुच यहां कण- कण मे भगवान है और हर गली मे पूजा धाम है।

अतीत में बुन्देलखण्ड शबर, कोल, किरात, पुलिंद और विषादों का प्रदेश था। वैदिक काल से बुंदेलों के शासनकाल तक दो हजार वर्षो में इस प्रदेश पर अनेक जातियों और राजवंशों ने शासन किया है और अपनी सामाजिक सांस्कृतिक चेतना से यहाँ के मूल  संस्कारों  को  प्रभावित  किया  है। लेकिन बुंदेलखंड आज भी तटस्थ है।

किसी भी देश-प्रदेश की पहचान उसकी लोककला, संस्कृति और परम्पराएं  होती है और उस लोककला, संस्कृति और परम्पराओं  को संरक्षण देना और उसे समृद्ध बनाने में समाज का हाथ होता है।

बुन्देलखंड की बहुत सी ऐसी लोक कलायें हैं जो समय और आधुनिकता के कारण कुछ विलुप्त हो चुकीं हैं और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है उन लोक कलाओं को बचाने के लिए और उन्हें सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए उन कलाओं का फिल्मांकन करके उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है और कुछ ऐसी लोक कलायें हैं जो विलुप्त हो चुकी है उन्हें पुनः जीवंत करने के लिए कुछ ऐसे तरीके अपनाए जाएं ताकि उन्हें पुनः प्राण प्रतिष्ठित किया जा सके।

बुंदेली लोक कलाओं का उद्भव और विकास की प्रक्रिया ने कैसे-कैसे विस्तार किया। किन-किन पड़ाओं से गुजरते हुए किन -किन प्रयोगों से होते हुए आज बुंदेली का यह स्वरूप जो हमारे सामने है। इसे कैसे सुरक्षित किया गया जाय ताकि हमारी पहचान युगों-युगों तक बनी रहे।

स्थिति और अवस्था के साथ- साथ अनेको प्रयोग होते रहते है जिसके परिणाम स्वरूप समय-समय पर कला और संस्कृति पर हल्के फुल्के बदलाव आते रहते है पर वे  कभी अपनी जडें नही छोडते। किंतु प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारी अनेक पारम्परिक लोककला और संस्कृति विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है।

“बुंदेली झलक” इन्ही विलुप्त होती कला और संस्कृति को बचाने और समस्त जन मानस तक पहुचाने  का एक प्रयास है ताकि  लोककला, संस्कृति, साहित्य एवं परंपराओं से जुडे बुनियादी, सांस्कृतिक और सौंदर्यपरक मूल्यों तथा अवधारणाओं को जन-मानस में जीवंत रखा जा सके।

1 – अनिवार्य पाठ्यक्रम
लोक संस्कृति, लोक कला, लोक कवि , लोक साहित्यकार , स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संत । 

कक्षा 1 से 5 का पाठ्यक्रम
कक्षा 6 से 8  का पाठ्यक्रम
कक्षा 8 से 10 का पाठ्यक्रम
कक्षा 10 से 12 का पाठ्यक्रम

2 – खेलपरक लोकोत्सव
(ग्राम स्तर पर ग्राम प्रधान की देख रेख में समितियाँ बनाना एवं प्रोत्साहित करना )

मामुलिया
नौरता -झिंझिया
टेसू
दिवारी


3 – स्वास्थपरक लोकोत्सव
(ग्राम स्तर पर ग्राम प्रधान की देख रेख में समितियाँ बनाना एवं प्रोत्साहित करना )

कार्तिक स्नान

 4 – स्वस्थ मनोरंजन

  • सबसे पहले लोक गीतों एवं लोक नृत्यों में फूहड़ता , द्विअर्थी शब्दों को ठीक करना ।
  • विलुप्त होते लोक कलाओं को पुनर्स्थापित करना के लिए प्रोत्साहित करना ।
  • भारत सरकार से अनुरोध करना कि महाराष्ट्र सरकार की तरह खेलपरक उत्सवों के प्रतिभागियों को सरकारी नौकरी में वरीयता प्रदान करना।
  • लोक कला के क्षेत्र में कार्य करने वाले साथियों के लिए लोक कलाकार योजना के तहत मदद ताकि वे अपनी संस्कृति को अपनी आने वाली पीढ़ी को प्रदान कर सकें ।


5  – लोक संस्कृति और विरासत के संस्कृति प्रेमियों/ प्रवर्तकों Promoters/ संरक्षकों/ लेखकों/ संगीतकारों को संस्कृति और विरासत को बचाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को एक मंच प्रदान करना।

6 – लोक संस्कृति और विरासत के लिए अनुसंधान उन्मुख परियोजनाओं, कार्यशालाओं, प्रकाशन, एवं शोध का प्रचार प्रसार के लिए कार्य करना।

7 – लोक संस्कृति और विरासत के लिए समाज में जागरूकता, एकता एवं सद्भाव पैदा करना।

8 – सांस्कृतिक विरासत को सामाजिक, शैक्षिक एवं स्मारकीय स्तर पर सुधार के प्रयास करना।

9 – समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक जागरूकता लाने के लिए। सांस्कृतिक क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देना और भाईचारा पैदा करना।

10 – खेलपरक लोकोत्सव , स्वास्थपरक लोकोत्सव , लोक भोजन उत्सव और लोक धार्मिक उत्सव का आयोजन करना।

11 – ग्रामीण पर्यटन के द्वारा पारंपरिक शिल्प का निर्यात करना ।

12 – भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए योग-ध्यान, प्राकृतिक चिकित्सा, आध्यात्मिक केंद्र की स्थापना करना।

13 – एक जैविक भोजन, कृषि-पर्यटन, पारंपरिक शिल्प केंद्र की स्थापना करना।

14 – राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम आयोजित करना।

15 – नृत्य, कविता पाठ, गायन, लेखन प्रतियोगिता आदि का आयोजन करना।

16 – बुंदेलखंड के परंपरागत लोक गीत, लोक नृत्य एवं खान-पान, रहन-सहन पर आधारित कार्यक्रमों का प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर पर करवाना ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस संस्कृति से परिचित हो सकें ।

17 – किसी भी लोक परम्परा, त्योहार, गंवई खेल, लोक प्रथा के पीछे धार्मिक आधार, वैज्ञानिक आधार, मनोवैज्ञानिक आधार के साथ-साथ सामाजिक समरसता का एक ठोस कारण होता है। इन सभी आधारों की विवेचना और व्याख्या को आम जनमानस के समक्ष तर्कसंगत दृष्टि से रखा जाना।

18 – कला और कलाकारों को आर्थिक, सामाजिक और सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिले।

19 – Legend Personalities Interview – (Biopic of legend personality) परम्परिक कला से जुडे महान विभूतियों के जीवन पर आधारित फीचर फिल्म, टेली फिल्म, डेक्यूमेंट्री फिल्म (वृत्तचित्र) का निर्माण करना एवं पुस्तकों का संस्करण करना।

20 – बुन्देलखंड की विलुप्त होती कला एवं संस्कृति के Film, Documentary, Short Film, Tele Film बनाकर इन्हे संग्रहित करना और अनेक माध्यम से इनका प्रचार-प्रसार करना।

21 – समय-समय पर लोक कलाकारों को क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय मंच प्रदान करने की कोशिश करना तकि देश के अन्य शहरों एवं लोगों से कला और कलाकार रूबरू हो सकें।

22 – ज़िला और मंडल स्तर से लेकर राज्य स्तर पर होने वाले महोत्सव/ लोकोत्सव मे लोक कलाकारों की सहभागिता अधिक हो साथ ही अन्य प्रदेशों के लोक कलाकारों को आमंत्रित किया जाय ताकि सामाजिक समरसता मे बृद्धि हो।

23 – लोक वाद्यों, लोक वेशभूषा एवं आभूषणों का संरक्षण करना।

24 – बुंदेली बोली और भाषा के उन्नयन हेतु वार्ता, सम्मेलन, पत्रिका प्रकाशन, बुंदेली डायरेक्टरी निर्माण आदि की गतिविधियों का व्यापक स्तर पर आयोजन करना।

25 – सोशल मीडिया के माध्यम से गतिविधियों की जानकारी, खबरें आदि शेयर करना।

26 – राष्ट्रीय,  अंतरराष्ट्रीय अथवा गैर सरकारी संस्थाओं से उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किसी भी प्रकार की चल अचल संपत्ति दानदाताओं द्वारा उपहार में प्राप्त करना।  

27 – उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किसी भी प्रकार की इमारत, जमीन का टुकड़ा खरीदना अथवा लीज पर लेना।

28  – यह संस्था विशुद्ध रूप से गैर-लाभकारी संगठन होगा। उद्देश्य केवल संस्कृति और विरासत से संबंधित समाज सेवा है।

29  – बुंदेली झलक हेरिटेज विलेज (विरासत गांव)
विरासत…लोककला, संस्कृति और परम्परायें
जो हमें अपने पूर्वजों से और अपने अतीत से विरासत में मिला है। भारत विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का देश है । हमारे देश में कई जातियों, धर्मों और पंथों के लोग रहते हैं। हमारे देश में प्रत्येक जातीय समूह की अपनी मूल कहानी और अनूठी परंपराओं और संस्कृति का अपना ताना-बाना है। हमारी विरासत और संस्कृति बहुत विशाल है।


हर समुदाय के अपने रीति-रिवाज और परंपरायें है, जो समय-समय पर अपनी युवा पीढ़ी को सौंपते हैं। युवा पीढ़ी में अपनी विरासत के प्रति प्रेम को जागृत करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए। यह शुरू से ही किया जाना चाहिए तभी हम अपनी समृद्ध विरासत को संरक्षित कर सकते हैं।

यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसमे ऐसा गांव जहां बुंदेली लोककला,संस्कृति और परम्पराओं की पौराणिक और ऐतिहासिक झलक दिखाई दे। जिसे नई पीढ़ी देखकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें कि हमारे पूर्वजों की संस्कृति कितनी समृद्धि थी।

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