Bundelkhand बुन्देलखण्ड एक परिचय

Bundelkhand बुन्देलखण्ड

बुन्देलखण्ड भारत का हृदय है। Bundelkhand heart of India. आजकल जिसे बुन्देलखण्ड कहते हैं, परंतु पूर्व में इसे दशार्ण, जेजाभुक्ति और  जुझौति कहते थे। यहाँ पर बहुत समय तक  बुंदेला ठाकुरों का राज्य रहा है। जब से बुन्देला क्षत्रियों ने राज्य स्थापित किया उस समय से यह Bundelkhand कहलाने लगा।

बुन्देलखंड एक परिचय 

दशार्ण (बुंदेलखंड) विश्व की प्राचीनतम भाषा एवं संस्कृति (World’s oldest language and culture)। दशार्ण का अर्थ है- ‘दस’ (या अनेक) नदियों वाला क्षेत्र। धसान,

दशार्ण का ही अपभ्रंश है। आधुनिक बुंदेलखंड जिसका पूर्व में नाम था दशार्ण यानी 10 नदियों का संगम ।

1- जमुना  2- धसान  3- सिंध  4- बेतवा  5- पहूज

6- नर्मदा  7- सुनार  8- केन  9- चम्बल  10 – टोंस

चन्देलों का राज्य रहा चिरकाल जहाँ पर,
हुए वीर नप गण्ड, मदन, परमाल जहाँ पर,
बढ़ा विपुल बल-विभव, बनें गढ़ दुर्गम-दुर्जय,
मन्दिर-महल मनोज्ञ, सरोवर अनुपम-अक्षय,
वही शक्ति-सम्पत्तिमयी कमनीय भूमि है।
यह भारत का हृदय, रुचिर-रमणीय भूमि है ।।          
(राजकवि प्रेम बिहारी
मुंशी अजमेरी’)

बुन्देलखण्ड के इस भू-भाग को जैजाकभुक्ति Jaijakbhukti, विन्ध्य जुझौति युद्धभूमि कहा जाता था। शिशुपाल चेदि के युग में साहित्य का विकास हुआ। इसके उपर भगवान कृष्ण का युग इस भूभाग में शासक के रूप में आया जिन्होने गीता महाकाव्य की रचना की। इस भूभाग में कृष्ण द्वैपायन ने पुराणो की रचना की।

वेद व्यास (ved Vyas), वाल्मीकि (Balmiki), भक्त प्रहलाद (Prahlad), आल्हा ऊदल( Alha- Udal) आदि ने इसी भूभाग में जन्म लेकर इस भूखड को गौरवान्वित किया है।बुन्देलखण्ड यह वह भूभाग है जिसे जिसे अनेक विश्व यात्रियों ने सर्व श्रेष्ठ कहकर पुकारा है। यहाँ के वीरों की वीरता से प्रभावित होकर ही अकबर ने बुन्देला वीरों को अपनी सेना में महत्वपूर्ण स्थान दिया और उससे इतिहास लिखा गया।

बुन्देलखण्ड का इतिहास History of Bundelkhand अत्यन्त प्राचीन है और प्रचीनकाल में महाभारत के गुरू द्रोणाचार्य Guru Dronacharya of Mahabharata का जन्म बुन्देलखण्ड के क्षेत्र झाँसी के पूर्व में बाघाट (वाकाट) नामक ग्राम में हुआ था। बाघाट ग्राम में एक ऊंची पहाड़ी गुफाओं से सुसज्जित है और इनमें से एक गुफा में प्राचीन चित्रकारी चित्रित की गई है जो प्राचीन चित्रकला का प्रतीक है।

इसके अतिरिक्त बुन्देलखण्ड में तुलसी दास Tulasi Das, सूर दास की तपो भूमि, भगवान श्री राम का वनवास Lord Rama’s exile, भगवान श्री कृष्ण की नारायणी सेना, केशव की कवि भूमि, तथा त्रिवेणी कवियों की कला भूमि रहा है। भारत में जो हाथी पकड़े जाते थे, वे यहाँ के ही जंगल से पकड़े जाते थे।

प्राचीन भारतीय इतिहास एवं साहित्य (Ancient Indian History and Literature) में विन्ध्याचल पर्वत का अत्यधिक महत्व है। इतिहास में बुन्देलखण्ड के विन्ध्याचल पर्वत के अनेक उल्लेख तथा रोचक वृत्तान्त मिलते हैं।

बुन्देलखण्ड के शौर्य 

आल्हा-ऊदल-सदश वीर जिसने उपजाये,
जिनके साके देश-विदेशों ने भी गाये,
वहीजझौती जिसे बुंदेलों ने अपनाया,
इससे नाम बुन्देलखण्ड फिर जिसने पाया,
पुरावृत्त से पूर्ण, परम प्रख्यात भूमि है।
यह इतिहास-प्रसिद्ध, शौर्य-संघात भूमि है ।।
(राजकवि प्रेम बिहारी
मुंशी अजमेरी’)        

बुन्देलखण्ड शौर्य और पराक्रम की गाथाओं का देश रहा है और इस भू-भाग का सहयोग भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के लिए अमूल्य रहा है। इस वसुन्धरा पर रानी लक्ष्मीबाई तथा झलकारीबाई आदि वीरांगनाओं ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाये और अपने देश की रक्षा के लिए वे बलिदान हो गई। उन्होंने संसार में वीरांगना शब्द को शुशोभित किया। इतिहास इस बात का साक्षी है।

इसी वीर भूमि ने रण बांकुरे आल्हा-ऊदल, विराटा की पद्यिनी, वीरसिंह जूदेव , महाराजा छत्रसाल , हरदौल , दुर्गावती , महारानी लक्ष्मी बाई , मर्दनसिंह आदि अनेकों वीर नक्षत्रों को जन्म दिया है जिनके रक्त से इस धरती का कण कण सना हुआ है और जिन्होंने अपने शौर्य और पराक्रम से शत्रुओं का मान मर्दित कर bundekhand को गौरवशाली बनाने में सहयोग दिया है।        

भारत-प्राण बुन्देलखण्ड ने विदेशी शासक अंग्रेजों के विरुद्ध एक होकर आवाज बुलन्द की और यह बुन्देलखण्ड स्वातन्त्र्य युद्ध का प्रथम केन्द्र बना जहाँ महारानी लक्ष्मीबाई, बानपुर के राजा मर्दन सिंह, बाँदा के नवाब, दीवान नाहर सिंह, राजा खलक सिंह, दोवान जवाहर सिंह, दीवान शत्रुघन सिंह, बाबा पृथ्वीसिंह, पं० परमानन्द, चन्द्रशेखर आजाद, घासी राम व्यास, भगवानदास माहौर, विश्वनाथ गंगाधर, वैशम्पायन, मास्टर रुद्र नारायण सिंह सक्सेना तथा सदाशिव राव मलकापुर आदि ने अपनी अलौकिक भूमिका निभाई है।

आजादी के युद्ध में बुन्देलखण्ड ने हजारों योद्धाओं  का बलिदान देकर अपना अमूल्य सहयोग प्रदान कर अपनी अलौकिक विभुतियों का बलिदान देकर राष्ट्रीय एकता के लिए सर्व प्रथम अपना सर्वस्य समर्पण कर अपने त्याग और बलिदान का परिचय दिया है।

बुन्देलखण्ड के महान साहित्यकार

तुलसी, केशव, लाल, बिहारी, श्रीपति, गिरधर,
रसनिधि, राय प्रवीन, पजन, ठाकुर, पद्माकर,
कविता-मन्दिर-कलश सुकवि इतने उपजाये,
कोन गिनायें नाम जायं किससे गुण गाये?
यह कमनीय काव्य कला की नित्य भूमि है।
सदा सरस देलखण्ड साहित्य भूमि है।।

राजकवि प्रेम बिहारीमुंशी अजमेरी’         

बुन्देलखण्ड का इतिहास जितना प्रेरक और रोमांचकारी है उतना विश्व में किसी अन्य क्षेत्र का नहीं। बुन्देलखण्ड शैक्षाणिक, सांस्कृतिक, कलात्मक, प्राकृतिक, धार्मिक तथा पर दृष्टियों से भी बुन्देलखण्ड बड़ा सौभाग्यशाली रहा है। पुराणिक काल से बुन्देली और खड़ी बोली के अनेक ग्रन्थों का निर्माण यहाँ पर हुआ।

युगों-युगों से संस्कृत और हिन्दी के अनेक महान कवियों और लेखकों ने अपनी साधना द्वारा इस वसुन्धरा का गौरव बढ़ाया है। बुन्देलखण्ड के संस्कार और सभ्यता उन्नति के शिखर पर रही है। प्राचीनकाल में पांचाल पर इतिहास को छोड़कर भारत के किसी अन्य प्रदेश का इतिहास जेजाकभुक्ति (बुन्देलखण्ड) के साथ होड़ नहीं लगा सकता ।

इस कमनीय वसुन्धरा पर वाल्मीकि , वेद व्यास, भवभूति, जगनिक, तुलसी, केशव, बिहारी मतिराम. पद्माकर, राय प्रवीण, ईसुरी, मुंशी अजमेरी, सुभद्रा कुमारी चौहान, राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त, सियाराम शरण गुप्त, डा. रामकुमार वर्मा, वियोगी हरि, डा.रामविलास शर्मा, डा.वृन्दावन लाल वर्मा, सेठ गोविन्द दास, घासीराम व्यास, कवीन्द्र नाथूराम माहौर, घनश्याम दास पांडेय, नरोत्तम पांडेय, गुणसागर शर्मा “सत्यार्थी“, नर्मदा प्रसाद गुप्त,राम चरण हयारण “मित्र”, मोती लाल त्रिपाठी ‘अशांत”, डा.बलभद्र तिवारी, जनकवि नाथूराम साहू कक्काजू‘, बहादुर सिंह परमार, मदनमोहन वैद्य, “लोकभूषण” पन्नालाल असर आदि साहित्य देवताओं ने साहित्य सुमन की वर्षा कर इसे अधिक सुवासित तथा गौरवान्वित बनाया।

बुन्देलखण्ड का अतीत

यहाँ ओरछा, राम अयोध्या से बस आये,
और उनाव प्रसिद्ध, जहाँ बालाजी धाये,
वह खजुराहो तथा देवगा अति विचित है,
त्यों सोनागिरि तीर्थ जैनियों का पवित्र है।
तीर्थमयी यह मुखद साधना साध्य भूमि है।
अति आस्तिक बुंदेलखण्ड आराध्य भूमि है।
चिवकट गिरि यहां, जहाँ प्रकृति-प्रभुताद्भुत,
वनवासी श्रीराम रहे सीता-लक्ष्मण युत,
हुआ जनकजा-स्नान-नीर से जो अति पावन,
जिसे लक्ष्य कर रचा गया-धाराधर धावन,
यह प्रभ-पद-रजमयी पुनीत प्रणम्य भूमि है।

राजकवि प्रेम बिहारीमुंशी अजमेरी’         

बुन्देलखण्ड का अतीत उज्ज्वल तथा गौरवशाली था। आज हम अतीत का स्मरण करते ही भाव विभोर हो जाते हैं और हमारी धमनियों में एक अलौकिक उत्साह भर जाता है। इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में अतीत अंकित है और हमें प्रगति की प्रेरणा देता है। यह वही बुन्देल वसुन्धरा है जिसने समय समय पर वीरों, कवियों चित्रकारों, कलाकारों तथा गायकों को उत्पन्न कर अपनी विशालता का परिचय दिया है।

यहाँ साहित्य, संगीत तथा कला की अनुपम धारायें प्रवाहित होती थी। यह बुन्देल भूमि की रज कण का ही प्रभाव है कि संगीत सम्राट तानसेन, बैजू, मृदंगाचार्य कुदऊ, रागिनी विशेषज्ञ आदिलखाँ, पंडित गोपाराव, मास्टर पूरन्दरे आदि कलाकारों ने अपनी रागनियों द्वारा इसके वैभव को बढ़ाया है। विश्व विजयी गामा, इमाम बख्श, हाकी जादूगर मेजर ध्यान चन्द, यशस्वी खिलाड़ी रूप सिंह, और चित्रकार काली चरण तथा मूर्तिकार मास्टर रुद्र नारायण जैसे रस सिद्ध कलाबन्त इसी वैभवपूर्ण बुन्देलखण्ड की देन है।

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नमामि नर्मदे – चिरकुंवारी नर्मदा

बुन्देलखण्ड का लोक जीवन
Bundelkhand कला केन्द्र रहा है जहाँ के मन्दिरों की मूर्तिकला विश्व को आशचर्यचकित कर देती है। आज भी दुर्ग, प्रासाद, मन्दिर के भग्नावशेष मौन साधक की तरह अपने चरमोत्कर्ष की यशोगाथा का वर्णन गुन गुनाते हैं । इसी पवित्र वसुन्धरा पर खजुराहो, देवगढ़, अजयगढ़, चन्देरी  तथा ग्वालियर  आदि पुरातत्व तथा स्थापत्य केन्द्रों और चित्रकूट, ओरछा, कालिंजर, सोनागिरि, सूर्य मन्दिर उन्नाव (बालाजी) आदि तीर्थो का सम्मिलन हुआ है जो समस्त विश्व के पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र  है।        

बुन्देलखण्ड इतिहास, संस्कृति, भाषा, आदि सभी दृष्टियों से एक इकाई रहा है। यहाँ लाखों एकड़ उर्वरा भमि, श्रम साधु खेतिहर, महुआ जीवी मजदूर के लिए बेतवा, केन, धसान, चम्बल, नर्मदा, सिन्ध, पहूज आदि अनेक जल धाराओ का वरदान भी इसी भूमि को प्राप्त है। यह भारत के गौरव का विषय है कि भारत के हृदय बुन्देलखण्ड की विन्ध्य श्रंखलाओं में पन्ना को हीरा खदान, भेड़ाघाट को संगमरमर, भगर्भ में सोना, चाँदी मेगनीज, जस्ता, ताँबा, लोहा, अभ्रक, और गौरा की अपार खनिज सम्पत्ति के भंडार सुरक्षित हैं।

बुन्देलखण्ड ने वास्तव में भारत के उत्थान में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है। यहाँ का अतीत अत्यन्त गौरवपूर्ण है। इसी भूखण्ड में पग पग पर एक विचित्र इतिहास छिपा है और यहाँ के असंख्य दुर्गों प्रासादों एवं मन्दिरों के भग्नावशेष अपनी मूक वाणी में यहाँ के यश की गाथायें निरन्तर गा रहे हैं।         

आज बुन्देलखण्ड सभी प्रदेशों में एक पिछड़ा हुआ प्रदेश है। ऐसे गौरवाशाली बुन्देलखण्ड का वर्तमान बहुत अच्छा नहीं है। यहाँ की ग्रामीण जनता में निर्धनता, अशिक्षा और अन्ध विश्वास के पैर जमे हुए हैं। यहाँ उद्योगों का अभाव है और इस प्रदेश के विकास में सरकार गतिशील नहीं है और सदैव ही उपेक्षा करती रही है।

जन जागरण चेतना और उद्योगों के विकास के लिए सरकार को बुन्देलखण्ड के लिये कुछ कदम उठाना चाहिए, तभी यह प्रदेश भी भारत की प्रगति में अपने कदम मिलाकर अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान कर सकेगा। बुन्देलखण्ड प्रदेश का निर्माण बुन्देलखण्ड की जनता के विकास की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक है और यह विकसित प्रदेश भारत के विकास में भी अधिक सहायक होगा।         

बुन्देलखण्ड की भूली बिसरी परम्पराओं को जागृति करने के लिए एवं विश्व पटल पर लाने के लिये वेबसाईट के माध्यम की आवश्यकता थी जिसमें बुन्देलखण्ड की समस्त लोककलाओं, संस्कृति और परम्पराओं का विवेचन हो। बुंदेली झलक”  bundeliijhalak.Com मे बुन्देलखण्ड की समस्त परम्पराओं का विवेचन है।

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‘Bundelkhand’ बुन्देलखण्ड के विकास के लिए प्रेरित करना तथा अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना बुंदेली झलक” ‘Bundeli Jhalak’ का उद्देश्य है ताकि वे अपने अतीत के वैभव से परिचित होकर इस वैभव की सुरक्षा कर सकें और अपने प्रदेश को प्रगति के पथ पर आगे ले जा सकें। आप के समक्ष बुंदेली झलक” उपस्थित है जो समस्त प्रेरणात्रों की देन है। आशा है इस वेबसाईट का जनता में स्वागत होगा।       

वेबसाईट बुंदेली झलक” www.bundeliijhalak.com के निर्माण में जिन कवियों, लेखकों और साहित्यकारों ने मुझे सहयोग प्रदान कर अनुग्रहीत किया है, उनका मैं हृदय से आभारी हूँ। और हमेशा रहूंगा।

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जी.एस.रंजन
संस्थापक और निदेशक
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