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Chontara Pe Bandi Do Lugai चौंतरा पे बंदी दो लुगाई

पटैल बब्बा के संगेवारों एक गाँव में सौदा सामान लैवे गव सो वो का देखत हे कै एक Chontara Pe Bandi Do Lugai चौतरा पे बंदी दो लुगाई  दोई हतकड़ी -बेड़ियन  सें बंदी है, अर उहें चिनवाबे की तियारी चल रयी हे। ओने ऐसो अचंबो देखो सो उतै सें वो पाछलें पांव आ गव अर पटैल बब्बा से कान लगो- मालक जा डरी तुमाई कुटवारी मैं तो अपने घरे जात हों?

पटैल बब्बा ने कई कायेरे तें कछु बतेहें कै नें बतेहें। अरे मोय सपनों तो नई आव के तोय का हो गव? पूतगुलाखरी ने चौतरा पै जो कछू देखो हतो वो सब सुना दओ। पटैल बब्बा बोले सुन- जिते हम ठेरे हैं उते एक राजा हते उनकी तीन रानियें हतीं । राजा बड़ी रानी खाँ जादा मानतते । वे बड़ी भोरी – भारी हतीं । अब भैया भोरे के भगवान होत हैं सो बड़ी रानी के ऊपर उनकी किरपा भई अर वे गरव से हो गईं ।

जब समव पूरो भव सो वे अपनी दोई लुहरी रानियों सें बोलीं- देखे बिन्ना हरो मोरो तो बड़ों मन घबरात है अब जो कछू होय सो तुमारें जानों मनों मोरी तुमसें बड़ी अरज है कै तुम हमायी मदत करो। बड़ी रानी खों जब पीरें आईं सो वे सुरत हो गईं, उनके कुँवर भये हते । अब इन दोइयन नें विचार करो कै जातो मालकन बन जेहें अर हमें चेरी बना लैहें सो ईको लरका मरवा कें मिकवा देव ।

उनने धानकन सें कई कै ईखों लै जाकें मारकें मेंक देव। वा जब कुँवर खों लै जा रयी हती सो ऊके मन में विचार भवो कै हम ई मौड़ा खों पाल-पोसकें बड़ों करहें । एक मौड़ी है सो वा ईखाँ देखत रेहें । वा वापस लौटकें आई, ओने रानियन खाँ बता दई कै मैंने ऊखाँ माड़ारो अर गाढ़ दव है। इन दोईयन ने ऊखाँ इनाम दई।

 अब भैया राजा ने सुनी कै रानी कै कछु नई भव सो उहें बड़ो अचंभो भव मनो का क सकतते? इतै जो मोड़ा दिन दूनों अर रात चौगनों बड़न लगो । तनक होंस समारी सो वो अपनी बैन सें बोलो कै जिज्जी अब हमें कछु काम करवो चईये । ऊके बाप-मतारी ने हटकों मनो बो ने मानों। वो राजा के राज में हल्को – पतरो काम मांगवे गव । राजा ने देखो कै बड़ों कबूल सूरत मौंड़ा है सो वे ऊंसे बोले- बेटा अबै तुमायी उमर लिलोर है, मनो जब आये हो सो जो कछू बने सो करो अर इतर | लरका राजा के जरों रेन लगो ।

एक दिनां राजा शिकार खेलवे जा रयेते सो जो बोलों कै मालक मोय लुवा चलो। मैं मुमाये पानू-पिंगल की विवस्था करहों अर जो कछू सामने आहे सो कर लेंहो । राजा ने सोची चलो हुईये। उनने ऊखाँ अपने पाछें बैठारकें शिकार खेलवे चले गये । सब दिनां भटकत रये मनों दारी शिकार ने मिली, जे लौटन लगे सो दिन लदकें एक शेर दिखानों । राजा ने देखकें घुरवा लौटालव अर शेर के पांछें लगा दओ । शेर ने ऐरो सुनों सो वो राजा पै टूट परो, राजा ऊखाँ तरवार मारन लगे सो वो बरककें राजा के ऊपर कूदन लगो ।

जो लरका देख रओ हतो सो ईने राजा की बगम निकारकें शेर खों मार दयी। शेर उतईं गिर परो । राजा घुरवा सें कूंदे अर ईखाँ गरे सें लगा लओ। वे सोचन लगे कै इत्ते से मौंड़ा ने आज मोय बचा लओ ? जब वे गरे लगकें मिल रयेते ओई समय मौड़ा को ताबीज टूटकें राजा के कंदा पै गिरो । राजा ताबीज खींचा में धर लओ । घरे आके देखों सोऊ ताबीज में लिखोतो- ‘जो रलका राजा की बड़ी रानी को आय’ । ईखों हमने पालो – पोसो है ।

राज ने पड़कें ओ लरका की जानकारी लेवे अपने जासूस पौचाये उने सबरो बन्ना भेद मिल गव। राजा ने ऊ लरका खाँ कुँवर बना लओ, अर इन दोई रानियन खाँ बांदकें चौगड्डा पै चिनबावे को आडर दै दओ। पूतगुलाखरी को अटका सुरज गओ हतो।

चबूतरे पर बंधी दो स्त्रियाँ- भावार्थ

एक राजा थे, उनकी तीन रानियाँ थीं । राजा बड़ी रानी को ज्यादा चाहते थे, क्योंकि वे बड़ी निश्छल तथा भोले-भाले स्वभाव की थीं। कुछ समय उपरांत वे गर्भवती हुईं। यह जानकर दोनों रानियों ने विचार किया कि राजा तो वैसे ही बड़ी रानी को पसंद करता है, अगर इसके बच्चा हो गया तो फिर हमारी तो कोई पूंछ-परख नहीं होगी ।

बड़ी रानी का जब गर्भकाल निकट आया तो उन्होंने दोनों छोटी रानियों को बुलाकर कहा कि बहिनों तो तुम दोनों के सहारे हूँ, इसलिए तुम्हें मेरी मदद करनी होगी। उन्होंने हामी भर दी । जब इनका प्रसव होने लगा, उस समय इन दोनों ने दाई से कहा कि बच्चे की खबर पहले हमें देना और किसी से कुछ न बताना। थोड़े समय में रानी के कुँवर का जन्म हो गया । इधर इन दोनों ने दाई से कहा कि यह बच्चा तुम ले जाओ और उसे मारकर कहीं गड़वा दो, हम तुम्हें मुँह मांगा इनाम देंगे।

दाई जब बच्चा ले जा रही थी, तो उसके मन में विचार आया कि इसे क्यों मारें, इसका तो कोई दोष नहीं है? उसने घर ले जाकर अपने पति से कह दिया कि हमारी एक बेटी है, हम इसे पालेंगे तो यह बेटा भी हो गया, दोनों राजी हुए। इन दोनों रानियों ने राजा से कह दिया कि रानी के कुछ नहीं हुआ । सुनकर राजा बड़े आश्चर्य चकित थे, लेकिन वे क्या कर सकते थे ?

राजा का कुँवर बड़ा होनहार था । जब वह कुछ बड़ा हुआ तो उसने अपनी बहिन से पूछा कि बहिन आप कहें तो मैं कोई छोटा-मोटा काम कर लूँ । बहिन बोली कि अभी तुम बहुत छोटे हो, लेकिन वह नहीं माने। राजा के पास कोई काम माँगने गये । राजा ने सुन्दर बालक को देखकर उसे किसी काम पर रखवा दिया। एक दिन राजा शिकार खेलने जा रहे थे तो उस बालक ने कहा कि आप मुझे अपने साथ ले चलें, मैं आपकी सहायता करूँगा ।

राजा उसे अपने साथ ले जाते हैं। राजा ने देखा कि एक शेर सामने ही आ रहा है, सो वे उस पर वार नहीं कर पाये और शेर उनके ऊपर टूट पड़ा। पीछे बैठे बालक ने राजा का एक भाला निकालकर शेर पर वार किया, तो शेर खत्म हो गया। उसी समय उस बालक के गले का ताबीज टूटकर गिरा तो राजा ने उसे उठा लिया। राजा को बालक की बहादुरी पर बड़ा गर्व हो रहा था।

उन्होंने सोचा कि एक दुध मुँहे बालक ने उनके जीवन की रक्षा की है । घर पहुँचकर उन्होंने ताबीज देखा तो उस पर लिखा था कि यह लड़का राजा का कुँवर है, इसे हमने पाला है । राजा ने जब पूछताछ कराई तो सच्चाई उनके सामने थी। उन्होंने बड़ी रानी तथा कुँवर को अपना लिया और इन दोनों रानियों को चौराहे पर चिनवाने का आदेश दिया ।

डॉ ओमप्रकाश चौबे का जीवन परिचय 

 

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