Nag Nagin नाग-नागन बुन्देली लोक कथा 

Nag Nagin नाग-नागन बुन्देली लोक कथा 

पूतगुलाखरी ने देखो कै एक लरका अपने गरे में एक मरी नागन डारें है, अर चिचया रओ है कै हाय मोरी नागन तें काँ गई । Nag Nagin के किस्सा भोत सुने ते जो समज में नई आई । इत्तो सुनकें बो पटेल बब्बा के जरों पौचों उनसे कहन लगो के दद्दा कै तो मोरो अटका सुरजा देव नातर मोय जावे की मौलत दे देव ।

पटैल बब्बा ने कई कै अपन पेलैं पेट पूजा कर लयें फिर तुमाव अटका सुरजैंहें । वे खा-पीकें फारग  भये सो पटैल बब्बा केन लगे के हम जो कछु सुनावें सो तुम बड़े ध्यान से सुनियो, हूँका में चूंका ने परे नातर हम कैवो बंद कर देहें ।

सुनो कौनऊ सिहर में एक राजा हते उनकी चार रानियाँ हतीं, मनो चौथोपन आवे के बाद उनकी कौनऊ आस-औलाद ने भई हती । राजा रानियन खाँ ये बात को बड़ो दुख राततो । एक दिनाँ राजा बड़े फजर में अपने मिहल में घूम रयेते । उतईं एक सफाई करवे वारी झाडू लगा रईती। ऊने राजा की तरपें देखो तो थूक दओ । राजा ने देखों उने बड़ो बुरओ लगो ।

ओ बाई नें पूरो काम कर लओ तो राजा ने ओसें पूछी कायेरी तेने मोरी तरपै देखकें काय थूको तो? व कान लगी के महराज झारा-बहोरी करत में धूरा उड़त है अर व मोरे मों में चली जात है सो मैंने थूक दओ हतो। राजा बोले तुम सरासर झूट बोल रईं हो, साँची – साँची बताओ कै का बात है?

व कान लगी कै सिरकार हमने ऐसो सुनो है कै भुन्सरां जे कोऊ बंजुआ को मों देख लेत है तो ऊए पूरे दिना खावे नई मिले। सो सिरकार गलती की माफी चाहत हों । राजा ने कई कै आज तुम काम से फारग होंकें इतईं रोटी खईयो, उनने अपने नौकर चाकरों खाँ समझादओ कै इखों इतई भोजन करवा दइयो ।

काम पूरो होबे पैव आ गई सो बाखों पातर डार दई गयी । जब बा खावे के लाने पैलोई कौर उठान लगी तो कुजानें काँसें दो कुत्ता लरत आ गये, उनने पूरी पातर खराब कर दई । बा उठ बैठी इतै राजा देखई रय हते सो उनने दूसरी पातर परसवादई । फिर जैसेई बा खावे बैठी सो ऊपरे आकास में एक चील मरो साँप लयें उड़ रईती सो वो साँप ऊकी पतरी पै पट्ट से गिरो । बा घबरा कै भगी।

ओई टेम उको घरवारो आ गओ अर ऊ सें कहन लगो कै कायरी राँड तें अबै इतईं बैठी है? ते सबरे मौड़ी-मौड़ा भूखों के मारे चिचया रये हैं अब उनखाँ का तोरो बाप खुबाहे? बा राजासें बोली सिरकार हम घरेई लै जाकें खा लेंहे सो अपन हमें जाबे की मोलत दे देव । राजा नें ऊके खावे के लानें बंदवा दओ अर अपने नौकरों से कै दई के देखो रे तुम ऊके घर जाओ अर देखियो कै उने कछु खाओ कै नईं खाओ फिर हमें जरूर बतईयो ।

राजा के नौकरों ने देखो कै बा घरे गई तो अपने मौड़ा-मौड़ियों को बनाओ खुवाओ इत्ते मेंई दिन डूब गओ हतो, बा खूब हार गई हती सो डार बिछौना सो गई। राजा नै सुनों तो वे सोचन लगे कै देखो हम कित्ते खराब हैं कै जेकोऊ हमें सबेरे देख लयें तो ऊको पूरा दिना नशा जात है । जा सोचकें राजा बड़े दुखी हते उनने सोची कै अब हमें ई राजपाट खाँ छोड़कै पहार में भगवान को नाव लेवे चले जाओ चईये।

राजा की रानियन खाँ जब राजा के जावे की बात पता चली तो वे सोचन लगीं कै इने काऊ हिकमत सें रोको चईये। उनने सलाय करकें राजा सें कैदई के बड़ी रानी पेट सें हैं सो अबै ने जाओ। राजा ने सुनी तो उने बड़ी प्रसन्नता भई अर वे रूक गये। जब नौ-दस मईना भये तो रानियों ने राजा खों खबर करवा दई कै कुँवर भये हैं, मनो पंडतों ने बताई है कै कुँवर जब बारा बसर के हुइयें अर जब उनको ब्याव हुईये ओई समय राजा उनको मों देख सकत हैं अर कऊं पैलें मों देखो तो कछु खुटपाँय जरूर हो जैहे ।

राजा ने सोची कै बारा साल में ब्याव हुइये जबई देख लेहें। भैया जैसे तैसे बारा बरसें बीतीं कुँवर के ब्याव को समओ आ गव । ब्याव पक्को भव अर बरात जान लगी तो रानियों ने डोला में कुँवर को पुतरा बनवाकें धरवा दओ । रानियों ने सोची कै अब भगवान जानें का करैंया है अब तो हमोरों की पोल खुल जैहे सो ऐसे अचछो तो मर जावो हे। रानियों ने सोची कै बरात लौटवे के पैले अपन जिहर खाकें मर जेबू ।

बरात चली तो जहाँ दिन डूबो उतई बरात रूकवा दई। बरात जहाँ रूकीती उतै एक भौत बड़ो अखेबर को पेड़ो हतो । ओ पेड़े में एक इच्छाधारी नाग को जोड़ा रैततो। वो नाग अपनी नागन सें बोलो देखो जो राजा कित्तो अभागो है कै जेखों जोई पता नैयाँ कैं उनको कुँवर है कै नई, बिना दूला की बरात आय जा रयी।

सोचो नागन कै जब ईखाँ पता चलहे कै बेटा की जगाँ पुतरा बैठार दओ है कागत हुइये, हमें तो सोचकें बड़ो दुःख हो रओ। अर कऊँ तुम कहो तौ हम कछू दिनन खाँ कुँवर बन जावें इनको मन रे जैहे अर ब्याव हो जैहे। आँगें जो कछू होय सो निपरत रये हमें का ।

नागन ने कई कै चले जाव मनो आवे में उलात करियो। फिर नाग ने कुँवर को भेष धरकें डोला में बैठ गये। भैया बरात गई बड़ो अच्छ ब्याव हो गव इते रानियों खाँ सब पता चल गई वे सोचन लगी के जो भगवान को करो धरो है नातर का होतो? बरात लौट कें आ गई सबरे नेंगजोग भये । सब कुँवर खाँ देखकें खुशी भये । अब भैया जों नाग राजकुमार के भेष में हतो अर ओने नागन से कछु दिनन की मोहलत मांगीती, मनो वो इते आकें भूल गवो कै हमें जाने है ।

नागन ने ऊकी बाट हेरी मनों वे जब ने आव तो नागन गुस्सा में उते पौंची । वा उतै पौंच गई जिते कुँवर रानी के संगे सोरयेते। नागन ने देखो कै दोईयन की कित्ती अच्छी जोड़ी है अगर हम रानी खों काटत हैं तो जोड़ी बिछड़त है अर नाग खों काटहें तो हमायी सोई जोड़ी बिछड़ जेहे । जा सोचत-सोचत नागन पलका के चक्कर लगाउन लगी, फिर जब कछू समज में ने आई तो ओने पलका की पाटी में अपनी मूँड़ मारी और मर गई । जब कुँवर उठे उनने मरी नागन देखी तो ऊखों गरे में डारकें चिचया रये हैं कै ‘हाय मोरी नागन तै कहाँ चली गई ।

नाग-नागिन का किस्सा (भावार्थ )

गंगाराम पटेल और पूतगुलाखरी को चलते-चलते सांझ हुई तो पटेल बब्वा कहा कि आगे एक गाँव दिख रहा है, हम उसके बाहर रूकेंगे, तुम घोड़े को एक स्थान पर बांध देना तथा गाँव में जाकर घोड़े को दाना-पानी तथा अपने लिए राशन लेकर आ जाना। हम रात्रि में इसी गाँव के बाहर विश्राम करेंगे।

पूतगुलाखरी गाँव के समीप घोड़े को बांधकर पटेल बब्बा से पैसे लेकर गाँव में सामान लेने जाता है । वह एक दुकान पर पहुँचकर क्या देखता है कि एक युवक अपने गले में मरी हुई नागिन डाले हुए है और पागलों की तरह चिल्लाता है कि ‘हाय मेरी नागिन तू कहाँ गई’।

यह अजूबा देखकर वह तुरन्त वापिस आ जाता है तथा पटेल बब्बा से बोला कि मेरा अटका सुलझा दो, नहीं तो मैं वापिस जा रहा हूँ । पटेल बब्बा ने कहा कि देखो तुम्हारा अटका मैं सुलझा दूँगा, लेकिन तुम राशन-पानी लाओ, हम भोजन बनाकर खायेंगे फिर रात्रि में तुम्हारा अटका सुलझा देंगे।

भोजन पानी से निवृत्त होकर पटेल बब्बा बोले कि – हे, पूतगुलाखरी ! ध्यान देकर सुनो – किसी नगर में एक राजा राज्य करता था, वह इतना न्याय प्रिय तथा प्रजा को पुत्रवत् मानने वाला था कि उसके राज्य की जनता उसे भगवान मानती थी । उसके राज्य में बड़ी खुशहाली थी ।

राजा की उमर का चौथापन शुरू हो गया था, लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। राजा अपनी चार रानियों के सहित इसी कमी से बड़े दुखी रहते थे । एक समय जब सुबह-सुबह अपने महल चहलकदमी कर रहे थे, उसी समय वहाँ राजा की तरफ देखा तो उन्हें देखकर वह एक स्त्री सफाई कर रही थी ।

झाडू लगाते उसने जैसे ही थूक देती है। राजा ने उसकी यह हरकत देखी तो वे आश्चर्यचकित रह गये, सोचने लगे कि इसने ऐसा क्यों किया? जैसे ही सफाई करने वाली महिला का काम पूरा हुआ तो वे उसके समीप गये, उससे पूछा कि तुमने मुझे देखकर क्यों थूक दिया?

राजा का प्रश्न सुनकर वह पहले तो घबरा गई, लेकिन फिर वह बोली कि अन्नदाता ! मैं झाडू लगा रही थी, उस समय धूल उड़कर मेरे मुँह में आ गई थी, इसीलिए मैंने थँका था । उसकी बात पर राजा को भरोसा नहीं हुआ तो वे सख्ती से पूछने लगे, उससे कहा कि तुम मुझसे झूठ न बोलो जो भी कारण हो उसकी सच्चाई को मैं जानना चाहता हूँ। वह स्त्री बोली कि हुजूर जान की अमान मिले तो कुछ कहूँ?

राजा ने कहा कि सच बोलो जो कुछ भी हो, मैं तुम्हें कोई नुकसान न पहुंचाऊँगा । वह स्त्री बोली कि सरकार मैंने ऐसा सुना है कि सुबह-सुबह अगर किसी निपूते का मुँह देख लो खाना नसीब नहीं होता। राजा को उसकी बात में सगाई लगी । लेकिन वे इसका परीक्षण करना चाहते थे। इसलिए उन्होने राज्य कर्मचारियों से कह दिया कि आज इसे यहीं भोजन करवा देना, मैं भी इस बात की गहराई तक जाना चाहता हूँ, और हाँ इसके भोजन करने पर मुझे सूचित करना ।

उसका काम पूरा हुआ तो उसे भोजन परोसा गया, लेकिन जैसे ही वह भोजन करने बैठी तो पता नहीं कहाँ से दो कुत्ते लड़ते हुए आये और उसका भोजन बिखरा दिया। राजा यह सब देख रहे थे, उन्होंने कहा कि इसे दूसरी पत्तल में भोजन लाओ । दूसरी पत्तल डाली गई। लेकिन जैसे ही वह भोजन करने बैठी तो आकाश में एक चील मरा हुआ सर्प लेकर उड़ रही थी और वह मरा सर्प अकस्मात् उसकी पत्तल पर गिरा तो वह हड़बड़ा कर उठ गई ।

उसी समय उसका पति उसे गालियाँ देता हुआ आ जाता है कि तू अभी तक यहाँ है और वहाँ घर में बच्चे भूखे बैठे हैं। उसकी बात सुनकर वह राजा से बोली कि महाराज मैं यह भोजन अपने साथ घर ले जाती हूँ, वहीं खा लूँगी। राजा ने उसका भोजन रखवा दिया तथा सिपाहियों को हिदायत दी कि तुम उसके घर जाकर देखना कि उसने खाना खाया कि नहीं।

राजा के सैनिक उसके पीछे-पीछे गये और उन्होंने देखा कि वह स्त्री जैसे ही घर में पहुँची तो उसके पति ने उसे मारा-पीटा, वह रोती रही फिर सबको खाना खिलाया और वह बिना खाना खाये ही सो गई। सिपाहियों ने वापिस आकर राजा को यह बात बतला दी। सुनकर राजा बड़े दुखी हुए।

वे अपने मन में विचार करने लगे कि देखो मेरा चेहरा कितना मनहूस है कि अगर सुबह कोई देख ले तो उसे भोजन नहीं मिलता, सोचकर राजा को स्वयं से ही घृणा होने लगी। एक तो संतान के न होने का दुख, दूसरा अपने को मनहूस समझना ! राजा ने सोचा कि यहाँ से मैं वन में चला जाऊँगा, वहाँ भगवत, भजन में अपना शेष जीवन बिता दूँगा ।

राजा ने अपनी मन की बात रानियों को बतला दी । रानियाँ अपने मन में सोचने लगीं कि अगर महाराज जाते हैं, तो इस राज्य का और हमारा क्या होगा? किसी न किसी तरकीब से उन्हें रोकना ही होगा। उन्होंने आपस में सलाह करके एक निर्णय लिया । वे राजा के समक्ष जाकर कहने लगीं कि महाराज बड़ी रानी गर्भ से है, इसलिए आप पुत्र के जन्म तक रूक जायें। यह समाचार सुनकर राजा को अपार खुशी हुई, उन्हें तो जैसे जीवन दान मिल गया हो और वे वन जाने का विचार त्याग देते हैं।

जैसे-तैसे वह समय आया जब बालक का जन्म होना था । उस समय रानियों ने कह दिया कि महाराज हमारी रानी ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया है, लेकिन उसके ग्रह नक्षत्र कुछ ऐसे हैं कि उसे बारह वर्ष तक कोई न देखे । बारह वर्ष में उसका विवाह होगा, तब ही हम सब उसे देख सकते हैं। राजा ने सुना तो अपने मन पर काबू करके प्रतीक्षा करने लगे कि किसी तरह से यह लम्बी अवधि निकले । इन्तजार वह भी बारह बर्ष तक का जबकि इस स्थिति में एक-एक पल बीतना बड़ा दुष्कर होता है, लेकिन मजबूरी थी ।

इधर रानियाँ भी तो पसोपेश में थीं कि अब क्या होगा, उन्हें इस बात का संतोष था कि महाराज इसी बहाने रूक गये हैं। किसी तरह ‘वह समय भी आया, जब बारह वर्ष की अवधि पूर्ण होने को आई। रानियों ने यह घोषणा करवा दी कि इसी बीच कुँवर का विवाह होना है। एक पड़ोसी राज्य के राजा के यहाँ से रिश्ता आया, तय भी हो गया।

बारात जाने के समय पर रानियों ने कुँवर का पुतला बनवाया और डोले में रख दिया गया। किसी को भी कुँवर को देखने की अनुमति नहीं थी। बारात प्रस्थान करती है तो इधर रानियों के दिल की धड़कन बढ़ जाती है। उन्होंने यह तय कर लिया कि हमारे रहस्य खुलने के पहले हम अपनी जीवन लीला खत्म कर लेंगीं। इसके लिए उन चारों ने अपनी अँगूठियों में विष रख लिया था। बारात प्रस्थान के पूर्व रानियों ने अपने गुप्तचरों से कह दिया कि हमें बारात की हर तरह की सूचना देते रहना। बारात चली और रास्ते में जहाँ साँझ हुई तो वहीं बारात का पड़ाव हुआ।

उस स्थान पर जहाँ बारात ठहरी ‘एक विशाल वट वृक्ष था । कुँवर का डोला उतारा गया, बारात ने वहीं रात्रि विश्राम किया। उसी वट वृक्ष में एक इच्छाधारी नाग-नागिन का जोड़ा रहता था । नाग-नागिन से बोला कि देखो प्रिय, यह राजा कितना अभागा है जो पुत्र की आस में जी रहा है, वे रानियाँ भी कितनी अभागी हैं, जो राजा के लिए झूठी दिलासा दे रही हैं, जब सच्चाई का पता चलेगा, तब क्या होगा?

दोनों विचारमग्न थे, नाग ने कहा कि अगर तुम कहो तो मैं कुछ समय के लिए इनका कुँवर बन जाऊँ, विवाह हो जाने पर मैं वापिस आ जाऊँगा । नागिन ने कहा कि तुम विवाह होने के पश्चात् बारात के वापिस लौटने तथा वहाँ रानियों से मिलकर यहाँ वापिस आ जाना। नागिन की स्वीकृति पर वह इच्छाधारी नाग एक सुन्दर युवक का रूप बनाकर डोले में बैठ गया। बारात नियत स्थान पर पहुँची, वहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ ।

कुँवर को देखकर राजा तथा उनकी प्रजा को अपार हर्ष हुआ । कन्या पक्ष के लोग भी ऐसे रूपवान वर की प्रशंसा करते थे । इधर रानियों को अपने गुप्तचरों द्वारा विवाह की सूचना मिल गई थी, वे अपने मन में ईश्वर का चमत्कार समझकर प्रसन्न थीं। बारात की विदाई हुई, बहुतेरा दान-दहेज दिया गया । वापिस आने पर पुनः बारात उसी वट वृक्ष के नीचे रूकी। नाग अपनी नागिन से मिला, नागिन को भी उसके इस कार्य से खुशी हुई। बारात के वापिस पहुँचने पर राज्य में यह एक बड़े उत्सव के रूप में मनाया गया।

वर-वधू के समस्त नेगाचार हुए। इस तरह से राज्य में खुशियों की वृद्धि हो रही थी और इधर नागिन-नाग के वापिस लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी । अच्छा समय बड़े जल्दी बीत जाता है। किसी को अहसास ही नहीं हो जाता । कुँवर बने नाग को उस परिवार से मिले अपनत्व तथा पत्नी के प्रेम ने अपनी वास्तविकता की ओर लौटने की अवधि को भुला दिया था ।

नागिन ने एक समय तक तो उसकी प्रतीक्षा की और जब वह नहीं आया तो नागिन ने वहाँ जाने का फैसला किया। नागिन वहाँ पहुँची तो देखती है कि कुँवर रूपी नाग अपनी पत्नी के साथ सो रहा है, उन दोनों को देख नागिन के मन में दया आई, देखो कैसी सुन्दर जोड़ी है तथा क्रोध भी आया कि नाग ने मुझे धोखा दिया ? क्रोध की अधिकता में वह पलंग के चक्कर काटती रही, उसने सोचा कि वधू को डस लूँ, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी। सोचा कि नाग को ही डयूँ लेकिन वह भी नहीं कर पाई।

अंत में उसने पलंग से अपना सिर मारा और खत्म हो गई। सुबह कुँवर उठे तो मरी नागिन को देख विलाप करने लगे । वे उसे अपने गले में लपेटकर जोर-जोर से चिल्लाते हैं कि हाय मेरी नागिन तू कहाँ गई । सो – हे पूतगुलाखरी ! यह वही इच्छाधारी नाग है, जिसे तुम देखकर आये हो, अब आराम करो सुबह हमें आगे की यात्रा करना है।

कार्तिक स्नान – बुन्देली लोक पर्व 

admin

Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.

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