संस्कार एवं भाग्य शक्ति मातृका हैं । बुन्देलखण्ड में प्रसव पीड़ा के समय घर की बुजुर्ग महिलाएँ कुलदेव, इष्टदेवी को मनाने के साथ ही Vaimata वैमाता मैया की मनौती मानती हैं। इस पूजा में चलनी में जौ भर दिया जाता है और आड़ा-काड़ा एक प्रकार का यंत्र किया जाता है, फिर बालक के जन्म लेने के उपरान्त छठी की रात को छठी के सामने अनार की कलम रख दी जाती है, जिससे माता मैया बच्चे का भाग्य लिख सकें और रात्रि जागरण करते हुए वैमाता के गीत गाये जाते हैं । एक गीत निम्नवत है-
मेरो नगर इन्दर पुर गाँव वैमाता है मेरो नाव।
जूरी को बाँधो संयोग करनी करै सो पावै
मो लेखनी ने असुर संहारे पाँचो पंडहि जारे वारे
मो लेखनी तें खाहर कौन चार लाख चौरासी जौन
शोर में जब नवजात शिशु हँसता – मुस्कराता है, तो बड़े बुजुर्ग ऐसा कहते हैं कि- देखो वैमाता कैसी खिलखिला रही हैं, उनका यह मानना है कि वैमाता ही उसे हँसाने वाली हैं। वही उसे रूलाने वाली है, क्योंकि वे ही तो उसके सुख-दुःख का निर्धारण करने वाली उसका भाग्य लिखने वाली होती हैं।