Utho Mai Dev Dachchhana उठो माई देव दच्छना-बुन्देली लोक कथा

Utho Mai Dev Dachchhana उठो माई देव दच्छना-बुन्देली लोक कथा

गाँव में माँगनों फिरतरात,  चिल्लातरात Utho Mai Dev Dachchhana ‘उठो माई देव दच्छना’। कौनऊ शिहर में एक मुखिया जू हते, उनकी पूरे इलाके में भौत चलती हती । मनो उनकी घरवारी उनकी नाक में दम करें रातती । कायसें कै वा कुलच्छनयाऊ हती । जब मुखिया नें होवे सो अपने आशकों के संगे मजा- मौज करें। मुखिया जू खां इनके चाल-चलन की खबर हती मनों वे अपनी इज्जत के मारें कछू ने कै पावें ।

वे अपनी लुगाई पै नजर रखतते। उन्ने सोची कै दारी कबऊं तो आवरे में फसलें, ओई दिनां अपने मन की कर लेंहें । बा लुगाई रोज-रोज सपर खोरकें मंदर जाबू करे अर भैया घंटों ऊ मंदर के बहाने लडूरों से बतयात रये । गाँव के सोचें कै जा तो गजबई कर रयी मनों मुखिया जू को मौ देखकें चिमाने रखें। एक दिनां जब वा मंदर गई सो मुखिया धीरें सें ऊके पाछें लग गव ।

मंदर पौंचकें जा देवी जी के सामने ठाँड़ी हो गयी अर कन लगी जै मोरी सत्त की साँची देवी मोरे आदमी खों आंदरो कर दियो कायेसें कै जो मोय फूटी आँखों नयीं पुसाय । मुखिया ने देवी की आवाज बनाकें कई कै तें ऊखां अच्छो-अच्छो बनाय खुवाय गये सो ऊंकी आँखें फूट जेंहें तोरे मन को हो जैहें । ऊ दिनां बा घरे आई अर मुखिया सें बोली देखो तो तुम कैसे होत जा रये हो हम तुमाव ध्यानई नई दै, पांय मनो आजसें हम तुमें अच्छो खवाहें वा रोज अच्छो बनावै अर जबजस्ती खुवावैं ।

कछु दिनों में मुखिया केन लगे कै मोय कम दिखान लगो । ऊंकी बात सुनकें जा बड़ी खुश हती मनों बा बोली तुम फिकर ने करो जल्दी सुदरे जात हो । दसक दिनों में मुखिया बोले ऐरी मोय तो अब कछु नहीं दिखाय – सुजाय । जा मन में बड़ी खुश भई सोची ससरे को अच्छो भवो । ओने गाँव में अपने मिलवे बारों सें कई कै मोरो आदमी आंधरो हो गवओ ओकी खुशी में हम सबको नेवतो कर रये हैं सबरे हमाये घरे अईयो । दूसरे दिनां ओने अच्छी रसोई बनाई, खीर बनाई मुखिया ने निछक्के देखकें खीर में जिहर डार दओ । सबने भोजन करे खीर खाई सो वे उतई लुढ़क गये ।

जा तो परसवे लगीती सोईने कछू ने खावतो । जब देखो कै सबरे मर गये सो जा घबरान लगी। अबका करें इन नासके मिटों खां कैसे मिकवांय ? ईकी रात नींद ने लगी। तरा ऊंगे ऊके दरवाजे एक मांगनो आव बो बोलों ‘उठो माई देव दच्छना’ ।

ईने दरवाजो खोलके देखो सो भैया वो मांगनो मुस्टंडा सो हतो। ईने सोची कै मांगने में कछू बूजकें देखें। मांगने से कई कै भैया अरकऊ तुम मोरे घर सें एक लास खों गाँव के बाहर मेंक देंहो तो हम तुमें मों माँगी कीमत देंहें। मांगो लोबी बगरततो सो वो झाँसे में आ गव । ओने लास उठायी अर घूरे पै मैंक दई ।

वो जैसई वापस आव सो जा कन लगी कै तुम जीखां मैंककें आयेते वो फिर कऊंआ गव । वो मांगनो ऊखां लै गव सो ईने फिर बोई बहानों बना दओ होत-करत ओसें सबरों खां मिकवाकें ऊंने दरवाजे पैतारो लगाव अर चली गई। मांगनों लौटकें आव सो दोरे में ठांड़ो होके कै रओ है कै ‘उठो माई देव दच्छना’।

उठो माई देव दक्षिणा-भावार्थ 

किसी नगर में एक मुखिया परिवार रहता था, उस मुखिया की बात नगर का हर व्यक्ति तो मानता ही था, बल्कि आसपास के गाँवों में भी उसकी अच्छी साख थी। उस मुखिया की पत्नी चरित्रहीन थी। वह अपने पति के पीठ पीछे अपने यारों से मिलती रहती । मुखिया को अपनी पत्नी के चरित्र की जानकारी थी, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था ।

वह सोचा करता कि ईश्वर ने सब कुछ दिया, लेकिन मुझे कुल्टा स्त्री क्यों दी? वह किसी ऐसे मौके की तलाश में था, जब वह अपनी पत्नी को रंगे हाथों पकड़ सके। मुखिया की पत्नी हर रोज स्नान करके देवी दर्शनों को मन्दिर जाती थी। इस काम में उसे बड़ा समय लगता, क्योंकि इसी दौरान वह अपने यारों से मिलकर अपनी योजना बना लेती। एक दिन वह जब देवी मंदिर जा रही थी, तो मुखिया ने सोचा कि देखें तो वह क्या करती है ?

वह चुपचाप पत्नी के पीछे चला गया। पत्नी ने देवी का पूजन किया, उनके समक्ष हाथ जोड़कर आँखें बंद करके बोली – हे माता ! तू मेरे पति को अंधा कर दे, क्योंकि वह मेरे हरेक कार्य पर नजर रखता है । मैं स्वतंत्र रहना चाहती हूँ । माँ तू तो जानती ही है कि मैं तेरी कितनी पूजा करती हूँ, तू मेरा यह छोटा-सा काम कर दे तो मेरा जीवन सँवर जाये। मुखिया यह सब सुन रहा था । उसने अपनी आवाज बदलकर कहा कि- बेटी ! तू अपने पति को आज से अच्छी-अच्छी चीजें खिलाना – पिलाना शुरू कर दे तो वह शीघ्र ही अंधा हो जायेगा ।

उसने इसे देवी की भविष्यवाणी मानकर अपने पति को अच्छा खिलाती – पिलाती और उसका ध्यान रखने लगी। कुछ दिनों में पति कहने लगा कि मुझे कम दिखाई देने लगा है? पति की बात सुनकर वह मन ही मन बहुत खुश थी। थोड़े ही दिनों में उसका पति (मुखिया) बोला कि अब मुझे कुछ नहीं दिखता? वह अंधों जैसा रहने लगा।

उसकी पत्नी ने अपने मित्रों से कह दिया कि अब तुम लोग कभी भी आ जा सकते हो, क्योंकि मेरा पति अंधा हो गया है, हाँ आवाज नहीं होना चाहिये क्योंकि वह सुन तो सकता है। उसके यारों ने एक योजना बनाई, कहा कि तुम्हारे पति के अंधा होने की खुशी में एक बड़ी दावत होनी चाहिये, समय तय हुआ । उस रोज मुखिया की पत्नी ने पकवान बनाये तथा खीर बनाई। मुखिया ने मौका देखकर उसमें जहर मिला दिया।

उसे खाकर उसके सब यार स्वर्गवासी हो गये । उन्हें इस हालत में देखकर वह स्त्री घबरा गई, चूँकि उसने खीर नहीं खाई थी, इसलिए वह जीवित थी। वह सोचने लगी कि ये सब तो चल बसे, लेकिन मैं अब इनका क्या करूँ, कैसे इन्हें ठिकाने लगाऊँ? उसे बहुत सोचने के बाद भी कोई युक्ति न सूझी। सारी रात जागते में ही बीती । सुबह बड़े भोर एक फकीर आया, वह इसके द्वार पर आकर आवाज लगाता है – ‘उठो माई देव दच्छना’।

उस फकीर की आवाज सुनकर इसे एक तरकीब सूझी वह बाहर आकर फकीर से बोली कि बाबा मेरी एक मदद कर दो। मेरे घर में एक मृतक पड़ा है, आप उसे ले जाकर बाहर फैंक दें, तो मैं आपको मालामाल कर दूँगी। फकीर ने सोचा कि अभी अंधेरा है, सो यह काम आसानी से किया जा सकता है।

उसने लोभ में आकर उस स्त्री की बात मान ली। वह मृतक को फेंककर आया, तब तक उस स्त्री ने दूसरी लाश रख दी और कहा कि तुम जिसे फेंककर आये थे, वह तो फिर यहाँ आ गया और उसने दूसरे को भी ठिकाने लगवा दिया। इस तरह से सबको फिकवाकर वह बाहर से ताला लगाकर वहाँ से चम्पत हो गई। फकीर मुर्दे को फेंककर आया और वह द्वार पर खड़ा होकर आवाज देता है- ‘उठो माई देव दक्षिणा’।

डॉ ओमप्रकाश चौबे का जीवन परिचय 

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