Ulto Bukra उल्टो बुकरा-बुन्देली लोक कथा 

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पूतगुलाखरी ने एक गाँव में एक बुकरा खों उल्टो टंगो देखो तो वो Ulto Bukra एक आँख सें रोउततो अर एक सें हँसततो । ऊने पटैल सें एको रहस पूछो। सुनो बेटा पूतगुलाखरी येई राज में एक राजा रैतते उनको नाव तेजपरताप हतो अर उनको बड़ो पक्के मित्तुर एक सुरेश नाव को खवास हतो। वे रात दिनाँ संगई-संगे रेवें। एक बेर जब जे दोई कहूँ जा रयेते सो ऐसी घटना घटी कै जे दोई ओमें मर गये। राजा के मरवे पै उनके कुँवर राजा बने । अर खवास को मौड़ा कुँवर की दाँयदौंकरी को हतो सो इन दोईयों की सोई पक्की दोस्ती हो गयी ।

एक समय जै दोई शिकार खेलवे गये, दोई अपने-अपने घुरओ पै सवार होकें गये ते। चलत-चलत वे घमोरी में सारे दिना फिरत रये मनो उने कौनऊ शिकार ने मिलो । कुँवर ने देखो कें आँगे एक शेर भगत जा रओ है, सो वे ओको पीछों करन लगे। वो शेर न जाने कहाँ विलागओ, अब इने खूब जोर की प्यास लग आयी पानी कहाँ सें पायें? अर चलत-चलत एक सादू की कुटिया पौंचे, सादू आँखें मूंदे भगवान को नाव जप रये हते ।

कुँवर ने उने अवाज लगाई मनो वे कछु ने बोले । इते कुँवर को गरो सूको जावे उनने देखो के उते एक कमंडल पानी सें भरो रखोतो सो उनने कमंडल खाँ उठाके उ पानी पी लव। वो पानी तो मंत्रों को सिद्ध करो हतो सो इनने जैसई के पानी पियो इने लगन लगो कै ऊ पानी पीवे सें उने काया बदलवे की विद्या मिल गई । उनने सोची कै ई कमंडल में जो पानी बचो है बो अपने संग बारे खवास खों पिवा दयें । उनने बचो भओ पानी ऊखों पिवा दओ ।

अब वे दोई काया पलटवे की विद्या सीक गये । उते सें जे दोई अपने घरे आ गये। कुँवर ने अपनी रानी से कै दई कै हम दोई जनन खाँ काया पलटवे की विद्या मिल गई ईसें हम कौनऊ के शरीर में जा सकत और वापस अपने शरीर में आ सकत हैं। नाऊ के लरका को नाव हरि हतो अर राजा को प्रवीण जो नाऊ को लरका बड़ो औटपाई हतो ऊने जबसें जा विद्या सीकी सो बो ओई दिनाँ से सोचन लगो कै अर कऊं हम राजा बन पावें अर ऐसी रानी मिले तो मजाई आ जाये।

हरि ने एक दिना राजा सें कई के चलो आज घूम-फिर आवें । कुँवर ने ऊकी बात मान लई वे दोई अपने-अपने घुरवों पै बैठकें चले । चलत- चलत हरि कन लगो कै कुँवर साब हमोरोने काया पलटवे की विद्या सीकई लई है मनो अवै तक ऊखाँ अजमा के नई देखो सो आज हम अजमाकें देख लयें का? कुँवर ने हामी भरदई ।

इने आँगे चलकै एक मरो बंदरा दिखानो सो हरि कन लगो के देखो भैया अब हम अजमा के देख सकत कै विद्या साँची है के नई। कुँवर प्रवीन ने झट सें बंदरा के शरीर में अपने आपखों पौंचा दओ । हरि ने देखो कै कुँवर तो बंदरा बन गये सो बो कुँवर के शरीर में पौंच गओ । फिर हरि ने अपनों शरीर तरवार काट डारो । अब हरि राजा बन गये अर राजा बंदरा बने। हरि तरवार लैंके जब बंदरा खों मारन लगो सो ऊ बंदरा पहार खों भग गओ। कुँवर ने नाऊ की मंशा जान लई हती मनो अब का कर सकतते ।

इते भैया जो हरि राजा के भेस में अपने मिहल में पौंच गओ ओने उते पौंचके छत्तीसई गुन बताये। नाऊ के अर कुँवर के सुभाव में बहुत फरक हतो । ऊको चाल-चलन देखकें राजा के मंत्री, नौकर-चाकरों खाँ बड़ो अचरज होवे मनो वे का कर सकत हते । इते रानी के नजर के परतें ई सें उनने समज लई कै कछु दार में कारो है सो वे राजा बने नाऊसें दूर रैन लगे।

हरि ने सोची कै राजा बंदरा बनो है सो ऊने अपने राजके सबरे बंदरा मरवाबो शुरू कर दओ। राज में डौढ़ी पिटवा दई कै जो बंदरा पकर कै ल्याहे ऊको एक मुहर दई जैहे । आदमी बंदरा पकर-पकर के ल्याउन लगे। राजा प्रवीन खाँ नाऊ की सब बातें पता परन लगीं सो वे एक वियाबान जंगल में पौच गये एक दिना एक शिकारी ने जार फैलाकें इने पकर लओ ।

बंदरा बने राजा ने देखो के जो शिकारी तो बड़ो लालची है सो उनने शिकारी से कई कै तुमे हमाये लै जाये सें किततो फायदा हुइये? उने कई कै हमें पाँच मुहरें मिलहें । राजा बोले कै हम तुमे दस मुहरें दिवाहें तुम हमाव संदेशो पौचा देओ । शिकारी ने राजा को संदेशो रानी तक पौचादओ ।

रानी नें ऊखों दस मुहरें इनाम में दैदयीं। अब उने भैया सब बातें पता पर गईं हती सो उनने एक सुआ मंगवालओ वे बंदरा के आवे की बाट देखरईं हतीं। जैसई शिकारी बंदरा खों लैके निकरो कै इनने सुआ की घींच मरोर दई । राजा (बंदरा) देख रयेते सो वे सुआ की काया में पौच गये। रानी ने उने सुआ के पिंजरा मैं बैठा दओ। अब रानी ने राजा सें सलाय करके नाऊ खाँ बुलवाओ, ओके आवे के पेलें रानी ने एक बुकरा मंगवालओ हतो।

जब नाऊ आव रानी कैन लगीं कै देखो राजा साब ईसें दूर-दूर रअत हैं कायसें कै हमें तुमाये ऊपरें शक है। राजा बोलो कै तुम अपने मन मैं जो कछु आये सो हमाई परीक्षा ले लो। रानी ने कई कैहमने सुनीती कै तुम काया बदलकें जानत हों । राजा बोले जानत तो है, रानी ने कई कै हमें तो तबईं भरोसो हुइये जब तुम ई बुकरा के शरीर में जाकें बतेहो । नाऊ रानी की बातों में आ गओ, ऊ रानी सें बोलो कै पैलां तुम बुकरा खाँ मार डारो ।

रानी ने ऊंसई करो सो बे राजा तुरत बुकरा के शरीर में पौंच गये । इते सुआ बने राजा देखई रयेते सो वे राजा के माने अपने शरीर में पौंच गये। अब राजा राजा हो गये अर हरी नाऊ बुकरा । राजा नें ओ बुकरा खों तिगड्डा पै उल्टो टंगवा दओ । सो वो एक आँख से हँसत है कै थोर समय खों सई राजा तो बन गये, अर एक आँख सें रोऊत है कै नाऊ बने रैते तो जा गत तो ने होती । पटैल बब्बा बोले कै बेटा पूतगुलाखरी हमने तुमाव अटका सुरजा दओ ।

उल्टा बकरा (हिन्दी )
गंगाराम पटेल की गंगा यात्रा चल रही थी । चलते हुए उन्हें एक जगह रमणीक स्थल दिखा, तो वे अपने साथी से बोले कि आज हम यहीं रूकेंगे, तुम जल्द ही गाँव जाकर खाने-पीने की व्यवस्था करो, बड़ी जोर की भूख लगी है। उनका साथी उस गाँव में गया तो क्या देखता है कि एक चौराहे पर बड़ी भीड़ लगी है। उसने सोचा कि मैं भी चलकर देखूँ क्या है?

वह उस चौराहे पर गया तो देखता है कि एक बकरा एक खम्बे पर उल्टा लटका है, वह एक आँख से हँसता है और एक से रोता है। यह देखकर वह तुरंत लौट आया और पटेल जी से बोला कि मेरा अटका सुलझाओ, नहीं तो मैं अपने घर जाता हूँ, पटेल जी बोले- सुनो मैं तुम्हें वह दास्तान सुनाता हूँ-

इसी नगर में एक राजा रहता था, जिसका नाम तेजप्रताप था तथा उनका एक विश्वासपात्र नाई रहता था, उसका नाम सुरेश था। राजा उसे अपने साथ रखते तथा उसे अपनी सब बातें बतलाया करते थे। कुछ वर्षों पश्चात् किसी दुर्घटना में राजा तथा नाई की मृत्यु हो गई। राजा का एक प्रवीण नाम का पुत्र था तथा नाई का भी एक पुत्र प्रवीण के बराबर का था, उसका नाम हरि था। इन दोनों में भी बचपन से ही बड़ी मित्रता थी । राजा की मृत्यु के उपरान्त प्रवीण को राजगद्दी मिली। प्रवीण हरी को अपने साथ रखते और उसे अपने मन की बात बताया करते थे ।

एक समय राजा शिकार खेलने गये, साथ में हरि को भी ले गये थे। शिकार की तलाश में दोनों भटक गये, राजा एक साधू की कुटिया पर पहुँचे, उन्हें बड़ी जोर की प्यास लगी थी। पहले तो उन्होंने साधू महाराज को आवाज दी, जब उन्होंने नहीं सुना तो राजा ने उनके कमंडल में रखे पानी को पी लिया, वह पानी तो अभिमंत्रित था । उसके पीते ही राजा को काया बदलने की विद्या प्राप्त हो गई । उस कमंडल में थोड़ा सा पानी शेष था, जिसे वे अपने साथ यह सोचकर ले आये थे कि यह हरी को पिलायेंगे, जिससे उसे भी काया बदलने की विद्या मिल जाये ।

राजा ने हरी को वह पानी पिलाया तो उसे भी वह शक्ति मिल गई । वे दोनों शिकार से वापिस आये तो राजा ने अपनी रानी को उस काया बदलने की विद्या के मिलने की जानकारी दे दी तथा यह भी बतलाया कि मैंने हरी को भी यह विद्या दिलवा दी है। राजा तो बड़े सीधे स्वभाव के थे, लेकिन नाई बड़ा चालाक था, उसने अपने मन में विचार किया कि अगर किसी प्रकार राजा का शरीर मुझे मिल पाता तो मैं अपनी विद्या से राजा बन जाता।

इस तरह से मुझे राजा का पिछलग्गू बनना पसंद नहीं है और एक दिन वह हरी नाई राजा को शिकार के बहाने ले जाता है, उसे अपनी योजना जो क्रियान्वित करनी थी । रास्ते में चलते हुए उन्हें एक मृत बंदर दिखा तो नाई ने कहा कि – हे राजन! हमें तो शक्ति साधू महाराज के जल पीने से मिली है, हम क्यों न आज उसका प्रयोग करके देख लें। राजा ने उसकी बात सहज स्वीकार कर ली और नाई ने देखा कि राजा मृत बंदर के शरीर में प्रविष्ट हो गये । उसी समय वह नाई राजा के शरीर में प्रवेश कर जाता है। उसने अपना शरीर काट दिया।

राजा यह देख रहे थे लेकिन चूंकि वे बंदर के शरीर में प्रविष्ट हो चुके थे, इसलिए कुछ कर नहीं सकते थे । वे नाई की चालाकी को समझ रहे थे, इसलिए जंगल की तरफ भाग गये, नहीं तो नाई उन्हें मार डालता। इधर नाई राजा बन ही चुका था, वह अपने घर पहुँच जाता है राज्य में सब उसे राजा ही समझ रहे थे, लेकिन राजा की रानी को उसके व्यवहार में बदलाव दिख रहा था। दूसरे उन्हें राजा द्वारा विदित हो चुका था कि वे तथा नाई काया बदलने की विद्या जान चुके हैं, इसलिए वे कुछ चिन्तित थीं।

नाई ने अपने सोचे अनुसार राज के कामों में परिवर्तन करने लगा। प्रजा को तथा राज्य के अधिकारियों को इस बदलाव में कुछ कारण जरूर लग रहा था, लेकिन राजा की आज्ञा का उल्लंघन कैसे करें? नाई बने राजा ने सोचा कि असल राजा तो बंदर बना है वह मेरे लिए कभी भी घातक सिद्ध हो सकता है अतः उसका मरना आवश्यक है, इसलिए वह राज्य के बन्दरों को पकड़वा-पकड़वा कर उन्हें मारने का आदेश देने लगा।

कुछ समय बाद उसने राज्य में यह आदेश करवा दिया कि बंदर लाने वालों को इनाम दिया जायेगा । इस तरह से राज्य के निरपराध बंदरों के वध का क्रम चलता रहा । इधर राजा को उसकी गतिविधियों की खबर मिलती थी लेकिन वह मजबूर थे । वे किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचना चाहते थे । राजा बना नाई एक प्रयास करता किसी तरह से रानी के सान्निध्य में रहे, लेकिन रानी उससे दूरी बनाये रखतीं । एक दिन बन्दर बने राजा ने किसी शिकारी द्वारा रानी को संदेशा पहुँचाया, उसमें नाई की करतूत को भी स्पष्ट कर दिया था।

रानी ने एक तोता मंगवा लिया और वह राजा रूपी बंदर के आने की प्रतीक्षा करने लगीं । एक दिन किसी शिकारी ने उसी बन्दर को पकड़ लिया, किसी तरह रानी को यह विदित हुआ तो वे उस बंदर के लाये जाने की प्रतीक्षा करने लगीं। बंदर को लाया गया, जब वह रानी के महल से निकल रहा था तो रानी ने उसी समय तोते की गर्दन मरोड़कर उसे मार डाला तो वह बंदर बना राजा तोते के शरीर में प्रविष्ट हो गया । नाई को इसकी जानकारी नहीं हो पाई। लेकिन वह मृत बंदर को देखकर यह समझ रहा था कि राजा किसी दूसरे शरीर में प्रविष्ट हुआ है।

तोता बना राजा रानी के साथ रहने लगा। रानी तथा तोते ने यह सलाह की कि नाई को सबक सिखाना आवश्यक है । रानी ने एक बकरा मंगवाकर अपने पास रख लिया । एक दिन जब राजा बना नाई उनके समीप आया तो रानी ने कहा कि- हे राजन! मुझे आप पर कुछ शंका हो रही है, अगर मेरी शंका का समाधान हो तो मैं आपको अपना लूँगी। नाई ने कहा कि मैं आपकी हर परीक्षा के लिए तैयार हूँ। रानी ने कहा कि मैंने ऐसा सुना है कि आप कायाकल्प की विद्या जानते हैं, आप मुझे इसका प्रमाण दें।

नाई रानी के बहकावे में आ गया। वह बोला कि आप बतायें कि मुझे क्या करना है? रानी ने बकरे को मार डाला तथा कहा कि अगर आप काया बदलने की विद्या जानते हैं, तो आप इसके शरीर में प्रविष्ट होकर बतायें तो मैं आपको सच्चा मानूँ । नाई ने देखा कि बकरे का मृत शरीर पड़ा है सो वह तुरंत अपनी विद्या से बकरे के मृत शरीर में प्रविष्ट हुआ । उधर तोता बने राजा यह देख ही रहे थे, सो वे तुरन्त अपने अर्थात् राजा के शरीर में प्रविष्ट हो गये । रानी ने तोते का शरीर नष्ट कर दिया। अब नाई बकरा बन गया और राजा-राजा ही बने ।

पटेल बब्बा कहने लगे कि यह बकरा बना वही नाई है, जिसने राजा के साथ छल किया था। वह एक आँख से हँसता है, वह यह सोचकर हँसता है कि मैं कुछ समय राजा बना था और दूसरी आँख से इसलिए रोता है कि वह यह सोचता है कि मैंने अगर षड़यंत्र न रचा होता तो नाई से बकरा तो न बनता ।

डॉ ओमप्रकाश चौबे का जीवन परिचय 

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