Homeबुन्देलखण्ड का सहित्यबुन्देलखण्ड की लोक कथाएंPativita पतिव्रता - बुन्देलखण्ड की लोक कथा 

Pativita पतिव्रता – बुन्देलखण्ड की लोक कथा 

एक पतिव्रता Pativita नारी क्या नहीं कर सकती वो हर असंभव को संभव कर सकती है किसी गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। उसके एक लड़का था। माँ-बाप उसे बहुत प्यार करते थे। बचपन में ही उन्होंने उसका ब्याह कर डाला। लेकिन दुर्भाग्य की बात कि जब लड़के ने होश संभाला, माँ-बाप दोनों परलोक सिधार गये। लड़का अपने भाग्य को रोता और दैव को कोसता अकेला रह गया।

कुछ दिन दुःख में योंही बीत गये। तब पड़ोस के लोगों ने आकर कहा-बेटा ससुराल जाकर अपनी बहू को क्यों नहीं ले आता? उससे तुझे सहारा मिलेगा। एक रोज की बात हो तो कुछ नहीं, रोज-रोज जब उसे पड़ोस के लोगों से यही सीख मिलने लगी तो ब्राह्मण का बेटा अपने कुनबे के नाई के पास गया। बोला-‘दादा, सब कहते हैं कि मेरा ब्याह हो गया है। लेकिन मुझे तो याद नहीं। क्या यह सच है?

नाई ने कहा-हाँ, सच है। तुम तब बहुत छोटे थे। मुझे तो ऐसी याद है कि जैसे कल ही ब्याह हुआ हो। तैयारी कर लो। दो-एक दिन में ही बहू को लेने चलेंगे। तीसरे दिन ब्राह्मण का लड़का नाई को साथ ले ससुराल के लिये रवाना हुआ। चलते-चलते दोपहर को दोनों एक नदी के किनारे पहुँचे और खाना खाने तथा थोड़ी देर आराम करने के लिये रुक गये। पास ही एक पंडित ठहरा था, वह हाथ देखने में बड़ा चतुर था।

बहुत से लोगों ने उसे अपने-अपने हाथ दिखाये। खा-पीकर ब्राह्मण का बेटा भी पंडित के सामने जा बैठा। पंडित जी ने उसका हाथ देखा। चश्मे को नाक के किनारे पर रखकर उसकी ओर देखते हुये पंडित जी बोले-‘पिछले जनम में तुम्हें एक सती ने शाप दिया है कि जब तुम पहली बार अपनी स्त्री को देखोगे या वह तुम्हें देखेगी तो तुम्हारा यह शरीर गधे के रूप में बदल जायेगा। समझे?

पंडित जी की यह बात सुनकर ब्राह्मण का लड़का बहुत परेशान हुआ। पर बेचारा करता क्या ? बात उसके बस के बाहर की थी। पंडित से उसने कहा-‘महाराज, इस विपदा से बचने का कुछ उपाय भी है? पंडित ने सिर हिलाकर कहा- नहीं। सती के शाप को दुनिया में कोई भी नहीं मेंट सकता। जाओ, अपनी करनी का फल भोगो। ब्राह्मण का लड़का दुःखी मन से आगे बढ़ा और संध्या होते-होते ससुराल पहुँच गया।

ससुराल पहुँचने पर दो दिन तो वह पेट के दर्द का बहाना करके चारपाई पर पड़ा रहा। तीसरे दिन उसकी सास ने कहा- उठो, कुछ खाओ-पीओ। दर्द अपने आप बन्द हो जायेगा।ब्राह्मण के लड़के ने सोचा कि यों पड़े रहने से लाभ क्या होगा। जो होना है सो तो होकर ही रहेगा। सो वह उठा और नहा-धोकर भोजन करने के लिये रसोई घर में जा बैठा।

लेकिन ज्यों ही उसने खाना शुरू किया कि उसकी स्त्री ने खिड़की में से झांक कर देखा। उसी समय ब्राह्मण के बेटे ने भी उधर देखा। उसका देखना था वह गधा बन गया और रसोई घर से बाहर आकर अहाते में हरी-हरी घास चरने लगा। सास-ससुर को बड़ा आश्चर्य और दुःख हुआ और स्त्री का तो रंज के मारे बुरा हाल हो गया।

कई दिन तक तो उसने खाना-पीना सब छोड़ दिया। तब उसके माँ-बाप ने उसे समझाया। धीरे-धीरे उसका दुःख कम होने लगा। वह उस गधे की खूब सेवा करती। आखिर था तो वह उसके पति का ही दूसरा रूप। सबसे पहले उसे स्नान कराती। फिर हरी-हरी दूब उसके सामने लाकर डाल देती, तब स्वयं भोजन करती।

कुछ दिनों बाद लड़की ने अपने बाप से कहा-‘पिताजी, आपने तो जो कुछ किया था, अच्छा  ही किया। लेकिन करम की बात कौन जानता है? मैं चाहती हूँ कि इन्हें लेकर मैं कहीं चली जाऊँ। आप मुझे आज्ञा दीजिये।

पिता ने पहले तो मना किया। लेकिन जब उन्होंने देखा कि लड़की बिना जाये मानेगी नहीं तो उन्होंने बहुत-सा धन देकर उसे जाने की अनुमति दे दी। लड़की अपने दुर्भाग्य को साथ लेकर घर से चल दी। वह जिस जगह चरने के लिये हरी दूब और पीने के लिये साफ पानी देखती, वही रुक जाती। कभी किसी-किसी जगह कई दिन रुक जाती। कहीं भी उसका ठिकाना नहीं था।

पहले तो उसके जी में आया कि अपनी ससुराल चली चले। लेकिन उसके जी ने गवाही न दी। फूटा भाग्य लेकर जायेगी तो कौन उसकी बात पूछेगा। लोग उसका तिरस्कार ही करेंगे। यह सोच ससुराल को जाने की बात उसने मन से निकाल दी और इधर-उधर भटकने लगी।

धीरे-धीरे कई बरस बीत गये। पति की सेवा में उसने कभी भी चूक न होने दी। पहले उन्हें स्नान-भोजन कराना, तब पानी की बूंद मुँह में जाने देना, इस नियम में उसने जरा भी भूल न होने दी। घूमते-घूमते एक दिन ब्राह्मण की बेटी एक नगर में पहुँची। वहाँ एक तालाब की खुदाई हो रही थी। बहुत से मजदूर वहाँ रहते थे। जगह अच्छी  देखकर वह भी ठहर गई।

 तालाब की खुदाई बहुत दिनों से हो रही थी, लेकिन उसमें पानी ही न निकलता था। राजा परेशान था। एक रात सपने में उसे देवी ने दर्शन दिये और कहा-‘हे राजन! तुम इतने हैरान क्यों होते हो। लाख जुगत करोगे तो भी इस तालाब में पानी नहीं निकलने का अत्यन्त दुखित हो राजा ने विनय की-‘हे देवी! तुम्हीं कुछ उपाय बताओ।

देवी ने उत्तर दिया-‘यदि कोई पतिव्रता स्त्री इसमें तीन चुल्लू जल डाल दे तो तालाब पानी से भर जायेगा।’ इतना कहकर देवी अन्तर्ध्यान हो गई। अगले दिन राजा ने दरबार किया और सपने की घटना दरबारियों को कह सुनाई। अंत में उन्होंने कहा-‘जो कोई पतिव्रता स्त्री इस काम को पूरा करेगी, उसे एक बहुत बड़ी रकम इनाम में दूँगा।

राजा की इस घोषणा से सारे नगर में हलचल मच गई। राज-पुरोहित ने आकर राजा से प्रार्थना की-‘महाराज, पतिव्रता स्त्री की खोज में दूर जाने की जरूरत नहीं। मेरी स्त्री जो है वही इस काम को पूरा कर देगी। बड़ी पतिव्रता है वह। खूब जी लगाकर मेरी सेवा करती है।

राजा ने कहा-‘इससे बढ़कर और कौन बात हो सकती है। आप फोरन ही उन्हें ले आइये। राजाज्ञा पाकर पुरोहित तुरंत घर पहुँचे और स्त्री को सारा हाल सुनाया। पंडिताइन ने पहले तो कुछ आनाकानी की। लेकिन इनाम की रकम को देखकर उनके मुँह में पानी भर आया और वह तालाब के किनारे पहुँच गई। हजारों आदमियों की भीड़ लगी थी।

 पंडिताइन आगे बढ़ीं। सब लोगों की आँखें उन्हीं पर गड़ी थी। तीन चुल्लू जल लेकर उन्होंने तालाब में डाल दिया। लेकिन उससे कुछ भी नहीं हुआ। पंडिताइन शरम के मारे धरती में गड़ गई। पुरोहित ने कहा- महाराज, सपने की बात कहीं सच होती है?

राजा भी बड़े असमंजस में पड़े। इसके बाद कई स्त्रियों ने आ-आकर तीन-तीन चुल्लू जल उस तालाब में डाला। लेकिन तालाब का भरना तो दूर, एक बूंद पानी भी उसमें न आया। राजा को बड़ी निराशा हुई। वह जानते थे कि देवी की बात झूठ नहीं हो सकती। पर पतिव्रता नारी मिले तो मिले कहाँ से? नगर की अधिकांश स्त्रियाँ परीक्षा दे चुकी थीं और पतिव्रता को ढूँढ निकालने का राजा के पास कोई उपाय ही न था।

रात-दिन इसी चिन्ता में वह रहने लगे। रात को पलंग पर लेट जाते; लेकिन बहुत देर तक नींद न आती। दूर-दूर तक उनका नाम था। तालाब में पानी न निकला तो कितनी बदनामी होगी और क्या उनके इतने बड़े राज्य में एक भी पतिव्रता नहीं बसती?

इस तरह कई दिन बीत गये। तब एक रोज देवी ने फिर उन्हें सपना दिया। कहा-‘राजन्, तुम व्यर्थ की चिंता करते हो। एक पतिव्रता नारी तुम्हारे नगर में ही इस समय है। तालाब के पास ही गधे को लिये जो ब्राह्मणी रहती है, उससे प्रार्थना करो। तुम्हारा काम हो जायेगा।

अगले दिन बड़े तडके अपने मंत्रियों को लेकर राजा उस ब्राह्मणी के सामने उपस्थित हुए। हाथ जोड़ कर बोले- ‘रात देवी ने हमें सपना दिया है। कहा है कि आप पतिव्रता हैं और यदि तीन चुल्लू जल तालाब में जाकर डाल देगीं तो उसमें पानी भर जायेगा। पानी की कमी से प्रजा को भारी कष्ट होता है। लोग आपको दुआ देंगे।

 ब्राह्मण की बेटी ने कहा-महाराज, मैं तो दुर्भाग्य की मारी एक ब्राह्मण की लड़की हूँ। दुखिया हूँ। देवी ने और किसी के लिये कहा होगा। राजा ने विनय की ‘और किसी के लिये नहीं, आप ही के लिये कहा है।

ब्राह्मण की बेटी बोली- आप जरूर भूल करते हैं। फिर भी मैं चली चलती हूँ। राजा ने तुरंत ही पालकी मंगाई और ब्राह्मण की बेटी को उसमे बिठाकर तालाब पर ले गये। सारा नगर उमड़ आया था। नर-नारी तालाब के किनारे लाइन बांधकर खड़े थे। ब्राह्मण की बेटी तालाब के बीच जाकर खड़ी हो गई। राजा ने मंत्री से कहा- एक नाव और एक मल्लाह का प्रबंध और कर दो।

यह सब हो जाने पर ब्राह्मणी ने गंगाजल की झारी उठाई। लोगों के हृदय में उत्सुकता की एक लहर दौड़ गई। उन्होंने प्रार्थना की कि हे भगवान् तालाब जल से भर जाये। ब्राह्मण की बेटी ने मन-ही-मन कहा-‘देवी मेरी लाज रखना और उसने तीन चुल्लू जल ज्यों ही तालाब में डाला कि पानी से वह तालाब भर गया। चारों ओर से झरने फूट निकले और नाव पानी पर तैरने लगी मल्लाह नाव खेकर ब्राह्मण की बेटी को किनारे पर ले आया।

जनता ने जयघोष किया-‘पतिव्रता की जय।’

थोड़ी देर में जब कोलाहल शान्त हुआ तो ब्राह्मण की बेटी ने राजा और वहाँ इकट्ठे लोगों को देखकर कहा-‘जगदम्बा माई की दया से आपका काम पूरा हुआ। अब आपसे मेरी एक विनय है। आप सब लोग मेरी मदद कीजिये। पूरब की ओर मुँह करके जगत के देवता सूर्यनारायण से प्रार्थना कीजिये कि हे सूर्य देव! जिस प्रकार आपने तालाब में जल भरकर एक गरीब ब्राह्मण की बेटी को यश दिया है, उसी प्रकार उसको दुर्भाग्य से छुटकारा दिलाने की कृपा कीजिये।’

राजा और प्रजा ने मिलकर सूर्य भगवान की पूजा की और उस पतिव्रता को दुर्भाग्य से मुक्त करने के लिये प्रार्थना की। प्रार्थना समाप्त होते ही ब्राह्मण के लड़के ने पुनः मनुष्य का रूप धारण कर लिया। ब्राह्मण की बेटी ने उसके चरणों की रज मस्तक पर लगाई। इस अघट घटना को देखकर सब लोग आश्चर्य-चकित रह गये और उस पतिव्रता नारी की सराहना करते हुये अपने-अपने घर चले गये। उस दिन से ब्राह्मण का बेटा अपनी साध्वी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

बुन्देली जन्म संस्कार परिचय 

 

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!