Mehnat Ko Fal मेहनत को फल-बुन्देली लोक कथा

413
Mehnat Ko Fal मेहनत को फल-बूंदी लोक कथा
Mehnat Ko Fal मेहनत को फल-बूंदी लोक कथा

एक गाँओं में एक किसान रहत तो । बाय Mehnat Ko Fal समझ में आत तो बाके मोडन खों नाईं । बाके तीन मोड़ा हते, तीनई भोत अलाल थे। भओ का हतो, छुटपन मेई मोड़ों की मेहतारी मर गई ती । जासे किसान उनसे भोत प्रेम करत थो। बाने मोड़ों हे खूब आराम दओ तो  जासे मोड़ा हुन अलाल हो गए थे। बिनको छुटपन तो जेसे-तेंसे कट गओ, पर जब बे बड़े हो गए तो किसान हे फिकर होने लगी की मेरे मरने के बाद केंसे इनको जीबन चलहे ?

इनने खेती बाड़ी करबो सीखी नईहे। जेई रंग-ढंग रहे तो जे बरबाद हो जेहें। और अपनों घर बर्बाद कर दे हैं । सब खेती बाड़ी बेंच खेँ हैं । किसान सोचन लगो मोड़ों हे केंसे सही गेल पे लाऊँ? का उपाय करूँ जासे जे मोड़ा सुधर जाएँ ? बाके दिमाक में एक उपाओ आओ ।

एक दिना भुनसारे किसान बेहोंस होके धरती पे गिर गओ ओर तड़फड़ान लगो । तीनई मोड़ा घबराके दोड़े। पिताजी खों बिछोना पे लिटाओ ओर पूछी, का हो गओ पिताजी ? पिताजी बोले, “मेरी छाती में भोत कसके दरद हो रओ हे, लगत हे अब में नई बचूँ। बस तुमरी फिकर में मेरी जान अटकी है। अदि तुम लोग खेती बाड़ी करके कछु कमा-धमा रए होते तो में सुख से मर तो सकत थी । न तुमने मेहनत करबो सीखी न तुम धेला कमा सको। तीनई मोड़ा रोत-रोत बोले, पेले तुम ठीक हो जाओ पिताजी हम मेहनत करबे तइयार हैं।

किसान बोलो, मोहे अपने दादा की एक बात याद आ रई है। बिनने मरत समय मेरे कान में कई थी। बिनने कई थी, अपने जामुन बारे खेत में तीन हण्डा गड़े हैं, बिनमें भोत धन-सम्पत्ति हे। तुम लोग अदि खेत खोदके बे हण्डा निकार लो, तो तुम्हें जीबन भर मेहनत मजूरी करबे  की जरूरत नई पड़है ।

मोड़ों ने पूछी। पिताजी बे हण्डा खेत में से केसे निकारें ? किसान बोलो, तुम लोग कल उठ भुनसारे कुदाली लेके खेत में जइओ ओर सबरो खेत खोदियो । काहे से हण्डा काँ गड़े हैं जा मोहे नई मालुम !

दूसरे दिना उठ भुनसारे तीनई भाई, कुदाली लेके जामुन बारे खेत में गए। दिन भर बिनने खेत खोदो, एक बित्ता धरतीं नईं छोड़ी। पूरो खेत खोद डारो लेकिन हण्डा नई निकरे  । दिन डूबे हारे-थके घर लोटे। बिनने पिताजी से कई, हमने पूरो खेत खोद डारो, लेकिन हण्डा नई निकरे।

पिताजी बोले, “लगत हे हण्डा जमीन में गहरे गड़े हैं? ऐसी करियो कल तुम लोग बक्खर ले जाईयों , पूरो खेत बखरियो। हो सकत है  बक्खर में उरझके हण्डा जमीन के ऊपर आ जाहें । पिताजी ने जेंसी कई थी मोड़ों ने बेंसई करो खेत हे बखरो, पर बिन्हें हण्डा नई मिले। निरास घर लोटे।

पिताजी ने बिनसे कई, कोई बात नई बेटाहरों, इत्ती मेहनत करी हे तो तुम लोगों खों हण्डा जरूर मिलहें । ऐसो करियो खेत में हल ले जइयो, हल जमीन में गहरो जाय । बा में उरझके हण्डा ऊपर आ जाहें। अब इसी मेहनत करहो तो एक काम और करियो, बई में चना की बोनी कर दइओ ।

मोड़ों ने ऐसई करो लेकिन बिन्हें हण्डा नई मिले। बिनने पिताजी से कई । पिता ने बिनकी आस बँधाई, कई, तुम लोग चिंता – फिकर मत करो। हो सकत हे जब फसल कट है, तब हण्डा निकर आएँ खेत में से ।

बिनके खेत में चना की खूब फसल भई । पिताजी ने मोड़न  खों  मण्डी में भेजके चना बिकबा दए । मोड़ाहुन खूब सारे रुपया-पईसा के मण्डी से लोटे । किसान ने बे पईसा तीन हण्डो में भर दए ओर मोड़ों से कई, जे रहे तुमरे धन-दौलत से भरे हण्डा ! का अभहे भी तुम्हें खेत में गड़े हण्डों की जरूरत लग रई हे ? तीनई मोड़ा बोले, हम समझ गए हैं पिताजी, अदि हम खेती में मेहनत करहें तो हर साल धन दोलत से भरे ऐसे कई हण्डा कमा लेहें ।

बुन्देली लोक बरत कथाएं 

संदर्भ
मिजबान बुंदेलखंडी लोक कथाओं का संकलन
पुनर्लेखन-  संपादन प्रदीप चौबे महेश बसेड़िया
एकलव्य प्रकाशन भोपाल