Mangaldeen Upadhyaay राजापुर के निवासी थे इनका जन्म संवत 1920 माना जाता है। उन्हें साठ वर्ष की आयु प्राप्त हुई थी। वे एक अच्छे फागकार माने जाते थे। उनकी फाग संबंधी रचना ‘फाग रत्नाकर’ मुंबई से प्रकाशित हुई थी। फाग रत्नाकर में कवि की फागों का कथ्य विस्तार मिलता है। बुंदेली का माधुर्य ब्रजभाषा के साथ मिलकर और अधिक आकर्षक बन पड़ा है। श्रृंगार और भक्ति उनकी फागों में मूलरूप से वर्णित है। मंगलदीप होली विषयक फाग रचने में सिद्धहस्त थे। उनकी यह फाग उद्धरणीय हैं-
मारो ना पिचकारी लालन, भीजत सुन्दर सारी ।
यह सारी दामन की भारी, सोहत रुचिर किनारी ।
सासु नन्द लखिके अनखै है, हैं लाखन गारी ।
मंगलदीन विनय सुन मोहन, राखहु लाज हमारी।