Bhujbal Singh भुजबल सिंह- बुन्देली फाग साहित्यकार

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ठाकुर Bhujbal Singh परिहार का जन्म सन् 1881  तथा देहावसान सन् 1920  है। इनके पिता का नाम ठाकुर फूलसिंह परिहार था । भुजबल सिंह अपने समय के कुशल फागकार थे। इन्होंने चौकड़िया फागों की अपेक्षा छंदयाऊ फागों की रचना ज्यादातर की हैं। ठाकुर भुजबल सिंह की समकालीन फागकारों से फड़बाजी के आधार पर प्रतिस्पर्धा होती रहती थी।

अनेक फागकारों तथा सुधी समीक्षकों का कथन है कि- “ जिस प्रकार रामकथा सम्बन्ध में तुलसीदास जी ने अंतिम बात कह दी है, उसी प्रकार से चौकड़िया के संबंध में ईसुरी तथा छंदयाऊ फाग के सम्बन्ध में भुजबल सिंह ने परवर्ती फाग कवियों के लिए कुछ नहीं छोड़ा।

भुजबल सिंह की उपलब्ध फागों की विवेचना करने से स्पष्ट होता है कि ये भी अपने समय के प्रतिष्ठित फागकार थे तथा समकालीन प्रमुख फागकारों की श्रेणी से अलग नहीं किया जा सकता।बुंदेलखंड के फाग कहने वालों में ईसुरी, गंगाधर, ख्यालीराम और भुजबल सिंह का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है, ईसुरी की भांति भुजबल सिंह संगीत या छंदयाऊ फागों के लिए प्रसिद्ध है।

सैर और लाउनी फाड़ काव्य 

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