Homeबुन्देलखण्ड का सहित्यबुन्देलखण्ड की लोक कथाएंKaro Aur Karken Na Jano करो अर करकें न जानों-बुन्देली लोक कथा 

Karo Aur Karken Na Jano करो अर करकें न जानों-बुन्देली लोक कथा 

एक बेर की बात है के कौनऊ गाँव चौगड्डा पे एक लुगाई की लास डरी हती। ओकी घींच धड़ के संगे ने हती। दिन डूबे उतई से चार बाईचारें निकरीं वे आपस मेंई बतकाव करन लगीं। एक ने कई कि देख तोरी जा जो मरी डरी है एके बार भौत लम्बे रये हुईयें उनसे बा जादई खबसूरत लगत हुइये। दूसरी बोली के जा पान सोई जादा खाउत रयी है । तीसरी ने कई के ऐखों काजर लगावे को सौक रव हुइये । चौथी बोली कै येने Karo Aur Karken Na Jano करो और करके ने जानो हम होते तो करके बताउते।

इन चारइयों की बातें राजा को एक जासूस सुन रव हतो ओने राजा से चुगल दई राजा केन लगे के जाकैं उन औरों खों हमाये सामने हाजर करो। उनें भैया बुलाव गव राजा ने एक-एक सें पूंछी। पैली ने कई के सरकार हमने कईती के ओके बार जादा लम्में रये हुइये कायसें के ओकी पीठ में नेचे तक तेल के हल्के-हल्के दाग ओंके कपड़ों-लत्तों में दिखा रयेते ।

दूसरी ने कई के हमने पान जादा खावे की ईसें कईती के ओके हांत की उंगरिया में चूना और कत्था के दाग दिखा रयेते। तीसरी बोली- हजूर काजर की मैंने ईसें कईती के कोनऊ बाईचारें जब काजर लगाउत हैं तो कबऊ – कबऊ काजर फैल जात है सो ओखों धोती के छुड्डा सें पोंछ के मिटाव जात है ओ बाई के छुड्डा में काजर लगो तो, सो मैंने कईती के जा काजर जादा लगाउत रयी है।

राजा ने चौथी से पूँछी के तुमने जा कैसे कईती के ईने Karo Aur Karken Na Jano करो और करके ने जानो । हम होते तो करके दिखाउते । चौथी सबमें कम उमर की हती सबसें नोंनी सकल सूरत की हती और सबईसें जादां तेज। राजा से बोली हजूर हमने तो ऊँसई कई हती। राजा ने पूंछी के अपनी बात को मतलब बताव नातर हम समजहें के हमसे झूठ बोल रई हो । वा बोली के हम झूठ कायखों बोलहें कोनऊँ राजा से झूठ बोल सके। राजा ने कई के हम तुमायी बातों में ने आहें। हमें पक्कों भरोसो है कि तुम कछु जरूर छुपा रई हों।

एक बात धियान में धर लेव हमसे बात छिपेहो तो हम जिहलखानें में डरवा देंहें । वा इत्ती अड़ीधक्ककहाई के ओने राजा खों कछू ने बताई । राजा के लानें तो धुन सवार हती के जा का करके बताती । राजा ने ओसें अपनो बियाव करा लव। राजा से बियाव हो जावे पै जे रानी बन गई। जब जे घरे पौचीं तो राजा ने कई के तुम अब करके बताव रानी बोली हमने तो ऊँसई – ऊँसई कई हती। मनो राजा की शक जईं को तईं बनी रयी।

राजा ने एक तरघरा बनबाव जेमें कछू दरवाजे खिड़की ने हती सिरप एक-एक तक्का हतो सो ऊमें से एक बड़ी नसेनी डारकें रानी खों भीतर कर दब । उतई से रोटी-पानी पोंचाव जात हतो । राजा जब उते जातें तो नसेनी से नेंचे उतरें और फिर नसेनी खों ऊपरई से खेंच लई जातती । तरघरा में रानी राजा के सिवाय कोऊ की सूरत ने देख पाऊतती ।

रानी ने सोची के हमें कछू ने कछू तो करनेई परहे। रानी ने देखी के राजा जब रोज दिन ऊंगे इते सें जात हैं तो उनके संगे एक साऊकार को लरका जात है। ओकी और राजा की दोस्ती हती। रानी ओई तक्का में से देखत हती। एक दिनां रानी ने मौका देखकें साऊकार खों एक चिठिया लिखी और एक पथरा में लपेट के ओई तक्का में से फन्नादई, वो पथरा साऊकार के आगे गिरो । ओने सोची होय ने होय कोनऊ बात जरूर है । नातर हमाये जरों जो पथरा काये गिरतो, ओने उठाव देखो के कछु लिखो है ओई बेरां राजा आ गये हते तो साऊकार ने ओ परचा के काजें खींचा में धर लओ फिर घरे जाकें बांचों ।

ओमे लिखो तो के हम माने रानी तुमसें अकेले में मिलो चाहत हैं। अरकऊँ तुमें मिलने होय तो अपने घर से हमाये तरघरा तक की ऐसी गली बनवाव जेमें ऊपर से कोऊ खों कछु समज ने आवे और तुम जो गली से हमसें मिलने के काजें आउत जात रव । जो काम भरोसे के आदमों से करवैयो जेमें कोऊ खों कानों कान खबर ने हो पावे । साऊकार ने पड़ों तो ओको मन रानी से मिलने को होन लगो ।

बीच-बीच में रानी एक दो बेर भीतर से साऊकार खों परचा मेंके। अखीर में साऊकार ने तरघरा की गली बनवाई लई और रानी से मिलने जान लगे। पैले दिन गये तो रानी ने कई के तुम राजा के पांचई उन्नां पैर के राजा की कचेरी में चले जाव, साऊकार घबरान लगो केत काहे के काय भैनी मोरे संगे राजा तोरे लाने फाँसी पे लटकवा देहें ।

रानी ने कई तुम हमसे साँचो प्रेम नई करो। साऊकार ने कई अब जो कछु हुइये सो हो जाय लियाव हम पैर के जात हैं, रानी ने कई के राजा  आवे के पैंले आ जैयो हम जै उन्नां उतई टांग देंहे । साऊकार तियार होकें गये राजा की कचेरी में जांके ठाड़े हो गये राजा ने देखो कै जे तो हमाये उन्नां आंय मनो फिर सोचो के सियात साऊकार के जरों एसई हुइये । साऊकार कछू बातें करके चले गये फिर लौटकें जल्दी से उन्नां देकें अपने घरे चले गये।

दूसरे दिन रानी ने राजा की तरवार उर्ने दई वा लेकें दरबार गये राजा की नजर परी तनक देर में उन्नें वापस आकें टांग दई फिर एक दिनां राजा की पनैयां पैर के गये । जो सब देखकें राजा के मन में आव कै का बात है मनो फिर जा सोचकें के रानी कहां से निकर पाहें और ने साऊकार जा पाहें। एक दिनां तो भैया रानी ने अपनो लरका साऊकार खों पकरा कैदई के राजा के सामने ले जाव वे ले गये राजा देखकें उदक परे मनो का केते भरी कचेरी में उनकी इज्जत जाती ।

होत करत एक दिनां रानी ने साऊकार से कई के भौत दिनों से हम बाहर नई निकरे सो हमें बाहर जाने है दो घोड़ा तैयार कराव अपन दोई शिकार खेलवे चहलें फिर एक दिनां अपन दोई भग चलहें। जे सोई तियार हो गये दूसरेई दिनां रानी और साऊकार बाहर आ गये। घोड़ों पे बैठकें शिकार खेलवे । रानी मरदानी भेस बनायें हतीं ।

रानी ने साऊकार से केदई हती के तुम अपनी जित्ती मिल्कियत होय ओखों बेचकें पैसा सोनों-चांदी, हीरा – जवाहर सब बांदकें ले चलियों नई तो अपन कैसे रेंहे । साऊकार ने सबरी चीजें घोड़ा पे लाद के लियाव तो । चलत- चलत रानी बोली के हमें पियास लगी है सो तुम पानी ले आव उते ऐसे बियावान जंगल में कां पानी धरो । साऊकार को लरका केन लगो आँगे चलकें देखत हैं, रानी बोली हमायी तो जान निकरी जा रई है। तुमें आंगो दिखा रव है तुम तो घोड़ा इत छोड़ो और पानी लियाव कहूं से ।

सो भैया साऊकार पानी लेवे चले रानी ने साऊकार के घोड़ा पेको सामान उतारो अपने घोड़ा पे लादो और ओ घोड़ा के तरवार से गोड़ें काटकें घोड़ा पे बैठकें रूपोस हो गई। अब ओ राजा की सुनो जेने इन खों तरघरा बनबाओ हतो । उने जैसई पता परी के रानी भग गई हैं और लरका खों इतई छोड़ दव है तो राजा ने अपने दिमाक सें ईकों कारण जानों के लास देखकें ईनें कईती के हम होते तो करके बताउते सो होय ने होय ओने जो करके बतादव फिर राजा खों पता परी के साऊकार सोई घरे नैंया अब तो उने पक्को भरोसो हो गव ।

रानी चलत-चलत एक गाँव में पोंची उते उमें एक अदेरक सो नाऊ मिलो जे अपनो मरदानों भेस बनाय हती । कोऊका चीने के जे को आय । रानी की तरप देखो तो रानी ने उनसें कई हम भौत दूर से चले आ रये हैं ईसें हमाय हांत-गोड़े दाब देव, नाऊ ने कई घरे चलो हम उतई तुमायी सेवा करहें रानी ओके संगे घरे चलीं गई नाऊ ने उनकी मालस करी करत-करत वो केत का है के भैया मोय बड़ो अचरज सो हो रव है ।

रानी ने खवास से कई के हम लड़का नोईं हम अकेले हैं आफत के मारे हमाव आगे-पीछे कोऊ नैयां सोच रये हैं के कौनऊ सहारो मिल जातो तो ओके संगे अपनी जिन्दगी तेर कर देते हैं । नाऊ ने कई बाई में सोई रडुवा आहों मोरी लुगाई मर गई है और आगे-पीछे काऊ नैयां इत्ती बड़ी जाजात है हमाये घरे जो आहे सो राज करहे । रानी ने कई के इते को सब बेचकें हमाये संगे कहूं अंत चलो वो तैयार हो गव । सब कुछू बेचों वो रानी ने अपने सामान के संगे बांदो, खवास खों संगे करो और उते से आगे चली गई ।

चलत-चलत एक वियावान जंगल मिलो रानी ने खवास से कई के हमाव गरो सूक रव है कहूं से तनक सो पानी लिया देव। खवास पानी लेवे चलो तो रानी ने तनक देर ठेर के घोड़ा खों दौरा दव खवास उतई रे गव, रानी आगे तो चली गईंतीं । सो आगे उर्ने एक गांव दिखानों, वे उते पौंची गांव के बाहर एक बड़ो सो घर देखकें बाहर घोड़ा बांद दब और भीतर चली गईं उने भीतर एक बब्बा जो अच्छे डील-डौल को हतो बैठो देखो वो अपनी मूछें टे रख हतो । रानी देखीं तो केन लगो आव बाई भीतरई चली आव सुनाव कांसें आवो भव ‘का काम है?

रानी ने बताई के हम बड़ी मंजले करके आ रये हैं सोची कहूं रात बिताहें सो गांव को पैलो घर दिखनो सो चले आये । बब्बा ने उनकी खूब आवभगत करी । बब्बा की बूढ़ी बिहरी हतीं सो कछु सुनाने परी के का बात हो रयी है । उनोरों ने तो रात मैंई भगवे को विचार कर लवतो सो भैया बब्बा ने जो कछू धन जाजात हती सो वा सबरी लेंके रात मेई बुटलव । भियानें भये खों जैस सूरज सामने आव रानी ने बब्बा से कई कै देखो हमाव प्यासों के मारे बुरव हाल हो व है तुम अपनी पुटरिया घोड़ा पे धरदेव और पानी लेवे चले जाव ।

बब्बा छोड़ के पानी लेवे चले गये रानी उतेसें चली गईं। इन सबकी जाजात लेकें वे अपने राज में उतई जहां तरघरा बनो हतो पौंच कई । अब इते की सुनो। वे जैसईं गई राजा ने सोची के रानी के चले जावे से भौत बदनामी हुइये ऐसे जीवे से मर जावो भलो है सो वे गंगा जी में डूबवे चले गये । साऊकार ने सोची के हमें ने रानी मिली ने कछू और सब कछु लुट गव सो वे मरवे खों चले गये। फिर खवास ने सोची के मोय तो कोनऊ भटों में नई पूंछत बिना धन – जाजात के का करहें उननें सोई मरने की गली पकर लई ।

पटैल बब्बा ने सोची के मोरे मों में दांत नैंया पेट में आंत नैयां मोय का सूजी के सब कछु ओखों दे दव अब मोरी कित्ती तोहीन हुइये, ईसें तो मरवोई भलो है उनने गंगा जी की गैल धर लई। उते पौंचवे पे राजा खों पैलें साऊकार मिले फिर धीरे-धीरे सब मिलत गये । राजा ने सोची के अब सबखों दरबार में ले चलें उतई फैसला करहें के का करो जाय । सब पौंच गये राजा खों पता चलो के रानी पैलेई से आ गई हैं राजा उनसे ने मिले, सीदे कचेरी गये सबखों अलग-अलग बुलाकें पूंछी।

पैले साऊकार ने कई के हजूर रानी ने बातें जरूर करी मनो उनसे गलत संबंध नयीं भये बातें जरूर भई हतीं के हम बियाव करहें तो उनने सबकछु ले लव और हमें कंगाल करके छोड़ गई। खवास ने सोई ऐसई बताई । अखीर में पटैल बब्बा ने कई के भैया वा तो मोंसे जरूर केत रई मनों बातेई बातें भईं हैं वे बिल्कुल पवित्र हैं । राजा ने सबकी बात सुनी तो फिर रानी खों बुलाई, रानी से पूंछी रानी ने कई हमायी बात को मतलब समज गये हुइयो के हमने कईती के हम होते तो करके बताउते ।

राजा ने पूंछी के ओ लास खों देखकें का समजीं हतीं। रानी ने कई के बा तुमायी पैली रानी हती और बिल्कुल निर्दोष हती तुमने शक करी और ओखों मरने परो। हमने जो सब करके जा बता दई के हम अरकऊं चाहें तो वो सब कछु कर सकत हैं जो तुम सोच नई सकत। हमनें करके बता दव । राजा ने अपनी गल्ती मानी और रानी से संगे बैखटकें रेन लगे ।

 किया और करके न जाना -भावार्थ 

एक चौराहे पर किसी राजसी स्त्री का शव पड़ा था, उस शव पर शीश नहीं था, अर्थात् उस स्त्री को गर्दन से काटा गया था, उसका बिना सिर वाला शव वहाँ पड़ा था। उसी समय वहाँ से चार स्त्रियाँ निकलीं, उन्होंने उसे देखा तो एक कहती है कि इस स्त्री के बाल बहुत लंबे रहे होंगे, जबकि उसके बाल उस धड़ पर थे ही नहीं। दूसरी बोली कि इस स्त्री को काजल लगाने का बड़ा शौक रहा होगा। तीसरी बोली कि यह पान खाने की आदी होगी । चौथी स्त्री जो सबसे कम उम्र की थी, वह बोली कि – देखो बहनों ! Karo Aur Karken Na Jano इसने किया और करके ना जाना, अरे! मैं होती तो करके दिखाती।

इन चारों की बातें राजा के गुप्तचर सुन रहे थे, उन्होंने राजा को उनकी जानकारी दे दी। राजा ने सुना तो उन चारों को तत्काल बुलवा लिया। उनसे पूछा कि तुम जो कुछ कह रहीं थीं, उसके विषय में बताओ। राजा ने पहली स्त्री से पूछा कि तुम बिना देखे किस आधार पर कह रहीं थीं कि इसके बाल लम्बे रहे होंगे? वह स्त्री बोली कि – हे महाराज ! जिस स्त्री के बाल लम्बे होते हैं तो उनके निशान पींठ पर तथा उसके वस्त्रों पर दिखते हैं, मैंने देखा था कि उसके ब्लाऊज के भी नीचे तक तेल के निशान थे, उनके आधार पर मेरा अनुमान था कि उसके बाल लंबे रहे होंगे।

दूसरी स्त्री से राजा ने पूछा कि उसका चेहरा तुमने नहीं देखा और काजल लगाने की बात कैसे की ? वह स्त्री बोली कि सरकार जो काजल लगाने की शौकीन होती हैं तो जब उनकी आँख का काजल फैल जाये तो वे उसे अपनी साड़ी के पल्लू से पौंछती हैं। मैंने देखा कि उसकी साड़ी के पल्लू में काजल के कई निशान थे, इसी आधार पर मैंने कहा था।

तीसरी से पान खाने की बात पूछी तो उसने कहा कि महाराज जो स्त्रियाँ ज्यादा पान खातीं हैं तो उनकी अंगुलियों में कत्था – चूना के दाग लग जाते हैं, उन्हें देखकर ही मैंने उसके पान खाने के विषय में कहा था, वरन् मुझे कैसे पता चलता।

मैंने उसे देखा भी नहीं था । राजा ने चौथी जो कि अवयस्क तथा कुँवारी थी, से पूछा कि तुमने कहा था कि इसने करके नहीं जाना तो यह बात किस आधार पर की थी? पहले तो राजा की बात सुनकर वह सकपका गई, लेकिन फिर संयत होकर बोली- महाराज मैंने तो यूँ ही कह दिया था मैं क्या जानूँ?

राजा ने उसके तेवर देखे तो उन्हें कुछ दाल में काला नजर आया। वह युवती उन्हें बड़ी रहस्मयी तथा समस्त राज को परखने वाली लगी थी । राजा बड़े हैरान थे। वे कुछ-कुछ समझ भी रहे थे, लेकिन उनका पूरा ध्यान उस स्त्री पर ही केन्द्रित था ।

राजा ने बहुत सोच-विचार करके एक निर्णय लिया, जिसने सबको अचंभित कर दिया। राजा ने उस स्त्री से विवाह कर लिया। वे उससे नित्यप्रति पूछते कि तुमने कहा था कि मैं करके दिखा देती, अब करके दिखाओ तो तुम्हें जानूँ? पहले तो वह अर्थात् छोटी रानी टालती रही, लेकिन फिर उसने राजा को सबक सिखाने की ठान ही ली।

राजा ने जब उससे विवाह किया था, तो उसका रहस्य जानने के उद्देश्य से किया था। इसलिए वे उसे एक ऐसे महल में रखते थे, जिसमें बड़े-बड़े पहरे लगे थे, जब वे उससे मिलने जाते तो सीढ़ी लगवाकर नीचे तलघरे में जाते थे । आने पर वह सीढ़ी खींच ली जाती थी। राजा का उद्देश्य कुछ और ही जानने का था।

कुछ समय बीतने पर उस स्त्री ने यह जानकारी ली थी कि राजा हर दिन सुबह अपने एक साहूकार मित्र के साथ घूमने जाते हैं । एक दिन उसने साहूकार के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें उसने लिखा था कि मैं तुमसे मिलने की इच्छा रखती हूँ, अगर मिलना चाहो तो सूचित करो। वह पत्र एक पत्थर में लपेटकर रानी ने उस समय खिड़की के बाहर फेंका, जब राजा साहूकार मित्र के साथ घूमने जा रहे थे । पत्र पर नजर पड़ी तो उसने चुपचाप उसे अपनी जेब में रख लिया।

वापिस घर जाकर देखा तो वह रानी का पत्र था । उसे रानी की जानकारी तो थी ही कि वह बहुत सुन्दर है। अत: वह उनसे मिलने के मंसूबे बनाने लगा। एक दिन उसने भी पत्र लिखा और खिड़की के रास्ते फेंक दिया, वह पत्र रानी ने पढ़ा, जिसमें लिखा था कि मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ। इस तरह से दोनों के बीच पत्राचार शुरू हुआ। एक दिन रानी ने लिखा कि अगर मिलना चाहो तो तुम अपने विश्वसनीय आदमियों से अपने घर से यहाँ तक की सुरंग बनवा लो। साहूकार ने सुरंग बनवाई और रानी से मिलने जाने लगा।

पहले दिन जाने पर रानी ने कहा कि आज तुम राजा के पाँचों कपड़े पहनकर उनके दरबार में जाओ और घूमकर वापिस आ जाना, राजा तुम्हें देख ले। साहूकार घबराया, रानी ने कहा कि घबराने की जरूरत नहीं। वह राजा के कपड़े पहनकर दरबार में घूमकर वापिस आ गया। राजा ने देखा तो बड़े अचंभित हुए उन्होंने विचार किया कि मेरे ये कपड़े तो नयी रानी के महल में हैं, यह उन्हें कैसे पहन सकता है?

असंभव, फिर राजा ने सोचा कि इसने अपने लिए वैसे ही कपड़े शायद बनवाये हों। दूसरे दिन रानी ने साहूकार को राजा की तलवार दी और कहा कि आज इसे लेकर जाओ। वह तलवार लेकर चला गया, राजा तो हैरत में थे । इसी तरह से यह एक दिन राजा के जूते पहनकर गया।

एक दिन तो रानी के कहने पर साहूकार ने राजा के कुँवर को गोद में उठाकर राजा के समक्ष ले गया । अब तो राजा का दिमाग चकराने लगा । अगर उससे बच्चों के बारे में पूछता है तो बेइज्जती होगी, अब क्या करें, यही सोचकर वह परेशान था । एक दिन रानी उसके साथ शिकार खेलने गयी । साहूकार तो रानी के हाथ की कठपुतली बना था ।

रानी ने कहा कि तुम अपना सबकुछ बेचकर मेरे साथ भाग चलो, हम अपना जीवन आराम से बितायेंगे। साहूकार ने सब बेचकर रूपया-पैसा, सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात इकट्ठे किये और रानी के साथ भाग चला। दोनों घोड़ों पर सवार होकर गये थे । चलते-चलते रानी ने उससे कहा कि मुझे बड़े जोर की प्यास लगी है, कहीं से पानी लाओ।

साहूकार ने घोड़ा रोका उसके पास की गठरी रानी को दी और पानी लेने चला, रानी ने उसके घोड़े के पाँव अपनी तलवार से काटे और उसकी गठरी घोड़े पर रखकर चल दी। राजा रात्रि में वापिस आये तो देखा कि रानी नहीं हैं, उनका छोटा बेटा बैठा-बैठा रो रहा है ।

यह देख राजा को बड़ा गुस्सा आया, वे साहूकार के घर गये तो वह भी नदारद था। राजा समझ गये कि दोनों भाग गये हैं । रानी चलते-चलते एक गाँव के समीप पहुँची, उसे एक घर दिखा तो रानी उसमें गई । वह एक नाई का घर था, रानी ने कहा कि मैं थक गया हूँ, मेरी मालिश कर दो।

चूँकि वह तो मर्दाने वेश में थी, इसलिए वह अपने को पुरुष का संबोधन दे रही थी । नाई उसकी मालिश करने लगा। मालिश करते समय उसे पता चल गया कि यह पुरुष नहीं है। रानी ने कहा कि मैं अकेली हूँ सोचती हूँ कि अगर कोई मिल जाता तो मैं उसके साथ जीवन बिता देती । नाई बोला कि मैं भी अकेला हूँ जो मेरे घर आयेगी, वह रानी बनकर रहेगी।

रानी ने कहा कि अगर मेरे साथ रहना चाहो तो सब कुछ बेचकर चलो । नाई मालदार था उसने बेचा – बाँचा, रूपये लिये और रानी के साथ चल दिया। चलते-चलते एक बियावान जंगल में रानी ने खवास से कहा कि मुझे बड़े जोरों की प्यास लगी है, कहीं से पानी ले आओ । खवास पानी लेने गये, रानी ने उनकी पोटली सम्भाली और घोड़े को ऐड़ लगाकर चल दी।

आगे चलते हुए जब साँझ हुई तो रानी को सामने एक गाँव नजर आया, उसमें बड़ा सा घर देखकर रानी उस घर में पहुँचीं। उस घर में उन्हें एक बूढ़ा व्यक्ति जो कि अच्छे डील-डौल का था दिखा। वह अपनी मूंछों पर ताव दे रहा था । उसने रानी को देखा मुस्कराकर उनसे कहा- आईये ।

रानी ने कहा कि मैं बड़ी दूर से आ रही हूँ, सोचा कि इस गाँव में रात्रि विश्राम करूँ। बुड्ढे दादा ने उनकी बड़ी आवभगत की । उसकी पत्नी बहरी थी। रानी ने उस बुजुर्ग का मन्तव्य जानकर उससे अपने संग भाग चलने की सलाह दी । वह तुरंत राजी हो गया और बड़े भोर में दोनों चल दिये। इन्हें चलते-चलते रानी ने वही पानी का बहाना करके उसका माल लेकर चम्पत हो गई। इन सबका माल लेकर रानी वापिस अपने महल में पहुँच गई।

तो इधर राजा ने सोचा कि देखो इस रानी ने मेरे साथ धोखा किया है, अब अगर किसी से कहो तो बदनामी और न कहो तो किसी तरह पता तो चल ही जायेगा, इससे अच्छा कि चुपचाप कहीं डूब मरें। गंगा जी में डूबना अच्छा रहेगा और वे गंगा जी की तरफ चल देते हैं। साहूकार के बेटे ने भी सोचा कि मैंने अपना सब बेच दिया। राजा के साथ धोखा किया और रानी मेरी नहीं हुई इससे गंगा में डूबकर जान दे दूँ। वह भी गंगा के रास्ते चला । नाई और बूढ़ा भी यही सोचकर जाने लगे। ये सब चलते हुए देवयोग से वहीं अर्थात् गंगाघाट पर मिल जाते हैं।

राजा ने सोचा कि सब वापिस चलें और दरबार में विचार विमर्श करने पर इसका फैसला करेंगे। जब राजा पहुँचे तो उन्हें पता चला कि रानी भी पहुँच गई हैं। राजा ने सबसे पहले साहूकार को बुलाया – उससे पूछा तो उसने कह दिया कि रानी की बातों में आकर मैंने ऐसा किया है। बाकी मेरे उनसे किसी भी प्रकार के संबंध नहीं बने। इसी तरह सबने इस बात को स्वीकार किया कि रानी ने धोखा जरूर दिया है लेकिन वे पवित्र हैं। रानी को बुलवाया गया तो रानी ने उन सबों की पोटलियाँ उन्हें सौंप दी।

फिर राजा से बोलीं कि – हे स्वामी! मैंने जो बात विवाह से पूर्व कही थी, वह मैंने करके दिखा दी और आप तथा इतने लोग मेरा कुछ भी न कर सके ? आपने अपनी पहली पत्नी की हत्या शक के आधार पर की, जबकि वह निर्दोष थी । मैंने यही जानकर वह बात कही कि उसने किया और करके न जाना। मैं होती तो करके दिखाती । राजा ने अपनी भूल स्वीकार की। उन सबको अपनी- अपनी दौलत मिल ही गई थी । राजा-रानी पुनः साथ-साथ रहने लगे।

बुन्देली लोक कथा परंपरा 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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