Karam Ko Likho Nai Tare करम को लिखो नई टरे- बुन्देली लोक कथा 

Karam Ko Likho Nai Tare करम को लिखो नई टरे

ऐसई – ऐसे एक राजा हते। उनके राज में एक बड़ो चतुर पंडत रेततो । वो पंडत जेको ह देखकें जो कछू बतावै सो बोई होबे । ऊ पंडत की विद्या की बात राजा के कानों तक पौंच गई। एक दिनां राजा ने ऊ पंडत खों बुलवाव, ऊखों अपनों हांत दिखाव । पंडत ने राजा को हांत देखकें कई कै राजा साब सब कछु ठीक है पे Karam Ko Likho Nai Tare

राजा ने सुनी सो उहें ऐसी समज में आई कै जो पंडत कछू छुपा रओ है। राजा ने पूंछी महराज तुम कछु छुपा रये हो । पंडत बोलो नई महाराज, राजा खों ऊंकी बात पै भरोसो ने भव सो बो घुरया – घुरया के पंडत सें बूजन लगे। पंडत ने सोची कै कयें सो फाँसी लगत ऊर नई कयें सो जो मानई नई रओ । ऊने सोची कै हमों का हम तो साँची बताये देत । अर भैया वो राजा सें बोलो महाराज तुमाये हांत की लकीरें जा बताऊत हैं कै तुमाये हांत सें बामन की हत्या हुईये, सो मोरी मानों तो कओ ?

राजा बोले जो कछू उपाव – दाव होय सो बताओ, हम तुमायी बात जरूर मानहें। पंडत बोलो कै मालक तुम अब शिकार खेलवे नें जईयो, अरकऊँ जाने परे तो सुपेत घुरवा पै ने बैठियो कायेसें कै तुम शिकार खेलवे सुपेत घुरवा पै जैहो सो तुमें शिकार ने मिल, उते एक खपसूरत मोंड़ी मिलहे, तुम ऊंसे ब्याव कर हो अरकऊं ब्याव करवे के फेर में परे तो तुमायी गत हो जैहें । ऐसें दद्दा मोरी बात अपने चित्त में राखियो ।

राजा ने कई कै पंडत जू अपन बेचिन्त रओ हम ऐसी गैलई नें धरहें जेमें अड़चन होय । राजा नें शिकार खों जावो बंद कर दओ। जब बरसों बितीत हो गई सो राजा भूल-भाल गये । एक दिनां उनके घर उनके सारे आये वे गोंतरी करन लगे। एक दिना वे पावने राजा सें बोले कै चलो जीजा आज शिकार खेल आंय ।

राजा केन लगे अरे पावने हम का करमगत कयें कै एक बामन की बातों में आकें हमनें शिकार खेलवे जावो बंद कर दओ है। सारे केन लगे कै बातो भौत पुरानी बात हो गई । अब अरकऊँ राजई शिकार खेलवो छोड़ दये तो रईयत का करहै ? सो जीजा तुम जुवानी मेई सादू ने बनों, चलो आज हमाये संगे चलनेई परहें।

राजा ने सोची कै चलो आज पावनों को मन रेजेहें । सो वे सुपेत घुरवा पै बैठकें शिकार खेलवे चले गये। उन दोईयन खों पूरी दुफैरी मूंड़ पै निकर गई मनो शिकार नें मिलो। राजा खों बड़ी चंढ़ाली चढ़ी सो वे अपने पांवनों खों छोड़कें आंगे निकर गये । चलत-चलत प्यासों के मारें इनको गरो सूकन लगो । इनने सोची कै अब पैले पानू तलाशें फिर शिकार । वे आंगे का देखत हैं कै बड़ो उजेरो सो दिखा रओ, आंगे गये तो उतै एक खपसूरत मौंड़ी ठांड़ीती ।

जे ओकें जरों गये सो ऊंखों देखकें जे तो सब कछु भूल गये के जे राजा आंय । वा मोड़ी सोई बिना पलक लटकांये इनें देख रयीती। भैया राजा तो गाफल हो गये । उन्ने अपनी जिन्दगानी में ऐसीं नोंनी लोगजनी ने देखीती। जब जे ओके जरों पौंचे तो इनोरों की सेनाकानी होन लगी फिर दोस्ती हो गई ।

तनकई देर में जे दोई ऐंसे बतया रयेते कै जैसे हल्केई सें वे एक दूसरे खों जानत होंय । अब बात इत्ती आंगे बड़ गई कै जे दोई ब्याव करवे तैयार हो गये । राजा बिल्कुई बिसर गये कै पंडत ने उर्ने हटकौ है। राजा ने ब्याव की हांमी भर दई । वा मोड़ी राजा सें बोली कै ब्याव के पैलें तुमें जग्ग कराऊने पर हे?

राजा जग्ग करावे तैयार हो गये। लौटते में राजा ऊखों अपने अपने संगे लियाये हते । इतें जग्ग की सारतार लगन लगी। एक सियाने चतुर सें पंडत खों बुलवाकें राजा ने जग्ग की जानकारी लै लई। दो दिनों की सारतार में जग्ग कौ इंतजाम भव ।

अब राजा खों तो ब्याव की उलात हती, सो उलात में घरी सुदवाकें वे जग्ग के पंडत की बाठ हेर रयेते, उन्ने देखों कै जग्ग करावे खों हल्के मौड़ा पौंचा दये सो जे भड़क परे उन बामनों पै । पैलऊ तो सबरो सामान मिकवा दबो अर उन लरकों ने उजर करी सो इन्ने तरवार निकारकें एक बामन की घींच में हन दई। ऊकीं घींच कटकें एक तरपै गिरी अर रकत की नरैया सी बै गई ।

जब राजा ने ओ तरपै देखो सो वे पगलया से गये । उहें पंडत की बताई सबरी बातें ध्यान आ गई। अब वे ब्याव करवावे बारी रन्डो रूपोस हो गई । वे राजा सोचन लगे कै पंडत ने शिकार खेलवे की मना करीती, अर कईती कै दद्दा तुम शिकार खों जाव तो सुपेत घुरवा पैने बैठियों, अरकऊं बैठनेई परे सो लुगाई की बात ने मानियो, अर बात मान लेव तो जग्ग ने करैयो।

राजा ने बिचारी कै अब तो सब कछू हो गवो, उहें बड़ी हिरदंग लगी अर उनको दिमाग घुम गवो। अब वे जाई चिचियाकें कै रये हते कै Karam Ko Likho Nai Tare करमों को लिखो नई टरे । पूतगुलाखरी तुमने ओई राजा खों देखो हतो।

भाग्य का लिखा नहीं टलता -भावार्थ 

किसी राजा के राज्य में एक विद्वान पंडित रहते थे । उन्हें शास्त्रार्थ के अलावा हस्तरेखा का बहुत अच्छा ज्ञान था। उस विद्वान पंडित की जानकारी राजा को लगी तो राजा ने उसे बुलवाकर उससे अपना भविष्य पूछा। पंडित ने कहा कि सबकुछ ठीक है Karam Ko Likho Nai Tare। राजा को लगा कि यह कुछ छिपा रहा है। राजा ने कहा कि देखो भाई जो कुछ भी तुम्हें समझ में आता है, वह स्पष्ट बताओ।

पंडित ने कहा कि – हे राजन! आप आगे चलकर कोई ब्रह्म हत्या करेंगे । राजा ने उसका परिमार्जन पूछा तो पंडित बोला कि आप आज से शिकार खेलना बंद कर दें, क्योंकि उसी से आपका शाप फलित होगा। राजा ने स्पष्ट जानना चाहा तो पंडित ने कहा कि आप शिकार खेलने जायेंगे और सफेद घोड़ा पर आपको शिकार नहीं मिलेगा। आप आगे जायेंगे तो वहाँ एक सुन्दर स्त्री मिलेगी, वह आपको विवाह के लिए बाध्य करेगी और आप उसकी बात मानेंगे। अंत में आपके हाथ से ब्राह्मण की हत्या होगी, अतः आप शिकार पर जाने की बात मानकर शिकार पर जाना बंद कर दें ।

वर्षों उपरांत एक बार उनके साले आते हैं, उनके आग्रह करने पर राजा सफेद घोड़े पर बैठकर शिकार करने गये। वहाँ उन्हें शिकार नहीं मिला, एक सुन्दर स्त्री मिली। राजा से उसने विवाह का प्रस्ताव रखा तो वे राजी हो गये । उस सुन्दरी को अपने साथ ले आये । विवाह के पूर्व उसने यज्ञ की शर्त रखी। यज्ञ की तैयारियाँ हुईं। जिस दिन यज्ञ प्रारम्भ होना था, उस दिन बुजुर्ग पंडित के स्थान पर युवा ब्राह्मण आये, उन्हें देखकर राजा को क्रोध आया और उन्होंने ब्राह्मण की हत्या कर दी Karam Ko Likho Nai Tare । ब्राह्मण का शाप फलित हुआ ।

बुन्देली लोक कथा परंपरा 

admin

Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *