हम पे नाहक रंग न डारौ, घरै न प्रीतम प्यारौ।
फीकी फाग लगत बालम बिन, मन में तुमई बिचारौ।
अतर गुलाब अबीर ना छिरकौ,पिचकारी ना मारौ ।
ईसुर प्रान पति बिन सूझे, सारौ जग अंधियारौ।
तुमरी बिदा न देखी जाने, रो-रो तुम्हें बताने।
कोसक इनके संगे जाने,भटकत पांव पिराने।
पल्ली और गदेली जोरै, नये-नये ठन्ना पाने।
जो कऊं होते दूर तलक वे, सुनी न जाती काने।
रंधे भात जे कहिए ईसुर, कीके पेट समाने।
जो जी बेदर्दिन खां दओ तो, जब मन ऐसो भओ तो।
बिगरी जात पराई बातन, जब तौ फिरत भओ तो
टूटो नेह नाव धरवाओ, निगओ सवई ने कओ तो।
आई नहीं ध्यानतर एकऊ, हर-हर तरा सिकओ तो।
समझ के सुपरस करो ईसुरी, हटक पैल से दओ तो।
विरहन नायिका अपनी व्यथा का किस तरह बखान करती है…..।
रस्ता आधी रात लौ हेरी, छैल बेदरदी तेरी।
तलफत रही पपीहा जैसी, कहां लगाई देरी।
भीतर से बाहर हो आई, दै-दै आई फेरी।
उठ-उठ भगी सेज सूनी से, आंख लगी न मेरी।
तड़प-तड़प सो गई ईसुरी, तीतुर बिना बटेरी।
जो हम विदा होत सुनलैवी, माडारें मर जैबू।
हम देखत को जात लुबे, छुड़ा बीच में लैबू।
अपने ऊके प्रान इकट्ठे, एकई करके रैबू।
ईसुर कात लील को टीका, अपने माथे दैबू।
वियोग श्रृँगार का एक पक्ष ये भी कहा है महाकवि ईसुरी ने कि जिसे हम अपनाना चाहते हैं वह दूर भागता है। हम उसके प्यार के दीवाने हैं और वह हमसे नफरत कर दूर-दूर भागती है। यह कैसा प्यार है, इससे तो नफरत ही उत्पन्न होती है प्यार नहीं। यह संयोग की विपरीत प्रतिक्रिया है।