बुन्देलखण्ड की एक कहावत है Ghee Detan Bamun Narryat घी देतन बामुन नर्रयात सो आज हम बताउत जा कें पीछाई का किस्सा है । एक गाँव में एक पंडित जी रतते। उनके कैऊ जजमान हते। उने अपने जजमानन सैं जो कछू आटौ दार चाँवर उर पइसा टका मिल जात तो ओई सैं उनकी गुजर बसर चलत रत ती। वे अपनौ पोथी पत्तरा लये गाँव-गाँव में घूमतई रतते। कभऊँ काऊ के गिरा बादरा उर कभऊँ काऊ कौ शगुन बिचारतई रतते। जीसै उने मन मुक्ती आमदानी हती। पंडितानी अपने जजमानन की दई धुतियाँ पैर-पैर कैं खुशी रत तीं।
उनके सिन्दूकन में तराँ-तराँ की धोती उर ब्लाऊज धरे रतते। जेऊ हाल पंडित जी के उन्नन कौ हतो। सैकरन धोती-कुर्त्ता तौलियाँ सिन्दूकन में सितीं धरी तीं। जेऊ हाल बासनन कौ हतो। टाठीं, गढ़ई, कटुरियाँ की तौ कछू गिन्तिअई नई हतीं। दो प्रानी उर दो लरका बिटिया उर गिरस्ती अल्ल-पल्ल। पंडित जी अपनी घुरिया लयें गाँवन में फेरी लगाउतई रत ते। जितै हुन कड़ जाँय, दण्डौतन के तौ ढेरई लग जात ते।
उनके जजमान उनके सामैं पैंड़ भर-भर कैं गोड़न पै गिर परत ते। पंडित जी के मौपै तौ चौबीसई घंटी सरसुती विराजी रत तीं। जीसैं जो कै दई ऊकौ काम कैसऊ पूरौ होबे मैं नई रूक सकत तो। जब देखौ जब उनके सामैं विन्तवार ठाँढ़ई रत ते। उर पंडित जी सबकी आशा पूरी करत ते।
उनके हर जजमान के मन में रत ती कै पंडित जी मराज, हमाये घरै पधारे। वे एक तरा कौ सगुन साधकैं जाँ मन में आई सोऊ चले जात ते। उनकी घुरिया आबे जाबे के लाने तैयारई ठाँढ़ी रतती। पंडित जी ऊ घुरिया की सेवा खुशामद में कोनऊ कमी नई राखत ते। ऊके लानें बढ़िया रातब उर खुजोरे के लानें एक अलग आदमी लगो रततो।
एक दिनाँ पंडित जी कौ अपने एक प्यारे चेला के नाँ जाबे कौ बिचार बनो। उर वे अपनी घुरिया पै बैठकैं चल दये। चलत-चलत वे अपने एक जजमान के घरैं पौंचे। जातनई नीम के घुल्ला सै उन्नें अपनी घुरिया बाँद दई उर पौर के किवारन की साँकर खट खटाई। भीतर सैं एक औरत के आवाज आई हओ खोल रये किवार। वा जल्दी-जल्दी आई उर-ऊने पौर के किवार खोले। पंडित जी खौ देखतनई घूँघट घाल कैं कन लई कै मराज बिलात दिनन में चक्कर लगो अवाई होय।
पंडित जी बोले का बताँय कैऊ बिबूचने रतीं। बड़े गाँव वारन के नाँ पुरान बाँचबे चले गये ते। उर फिर उनई के परोसी के नाँ पुरान बाचो। ऐसई ऐसैं मईनाक लग गओ तो। उर फिर कछू जजमानन के छै सात ठौवा ब्याव हते। का बताय हमें भौतई बिबूचन रत। उर जा तौ बताव कै हमाओ जजमान रामलाल कितै गओ। मराज वे भुन्सरई सैं हारैं कड़ गये। बिलात दिना सैं अपुन की बाठ हेरै ते। उने एक कुआँ गुनवाबने हतो। पुराने कुआँ में कछू पानी की कमी सी होन लगी।
मराज अब जो हुइयै सो सब देखी जैय। अपुन हारे थके आये हुइयौ। जा चौंतरा पै खाट बिछी। मैं भीतर सैं दरी लयें आऊत। तनक आराम करो। जोलौं मैं भोजन कौ इंतजाम करें देत। इत्ती कैकैं ऊनें गकरियाँ बनाबे के लाने कंडन की भटी लगा दई। आटो, भटा, टमाटर, घी, शक्कर लिआ कैं धर दओ। उर मराज सै विनती करीकैं मराज, भोजन बना लये जाँय।
पंडित जी उठे उर चून माँड़कैं अच्छी दस बारा गकरियाँ बनाई। भटा, टमाटर कौ अच्छौ भर्ता बनाव। खूब घी डारकैं गकरियाँ घी में मो लई। फिर हाँत, धोकैं भगवान खौं भोग लगाव। दो ठऊ गकरियाँ परसाद के रूप में जजमान की घरवारी नौ पौंचाकैं बड़े प्रेम सैं भोजन करे। खूब संतोषी सैं जल पियो उर मजे सैं घुरिया खौं रातब दओ उन फिर ओई खटिया पै आराम सैं लेट गये।
तनक हारे थके तौ हतेई। परतनई उनें झबकी लग गई। उर ऐसे वे भूल सोये कैं दो तीन घंटा हो गये ते। वे तौ खूबई घुर्राटों दये सो रये ते। सोऊत में उनकौ मौ खुलो तो उर वे खूबई घुर्राटे दै रये ते। दुपर होतनई रामलाल खौं भूख सी लग आई उर वे घामैं में स्वापी बाँधैं सूदे अपने घर खौं सुटत आये। आऊतनई उन्नें नीम के घुल्लासैं बाबा जू की घुरिया बँधी देखी।
देखतनई जान गये कैं गुरू मराज आये हुइयै। कित्तै दिना सै वाठ हेरै ते बिलात दिनन में आये। कुजाने कब के आये हुइयै उर वातौ कोरी मूरख आ धरी। कुजाने का कैसी सेवा खुशामद करी हुइयैं। वे इकदम उकतात से पौर में पौंचे। उतै तौ पंडित जी खा पीकैं घुर्राटों दयें सो रये ते। उनें घुर्राटन देखकैं वे भीतर जाकैं बोले। कायरी, मराज कब के आये हैं वा कनलई कै मराज तो आठई बजे आ गये ते। तौ तैने मोय बुलबाव काय नइयाँ।
का बताँय, इतै कोऊ दिखानौ नई। उर कजन मैंई चली जाती तौ इतै उनकी टैलटाल खौं को हतो। मैं कित्ती दिना सैं तौ उनकी वाठ हैरैं। तैने उनें कछू ढंग कौ खुबाव पियाव है। मैंने तौ भटी लगा दई ती उर सब सामान घर दओ तो। वे तौ अच्छी तरा सैं खा-पीकैं आराम कर रये हैं। आराम का बदमासन, लगत कै उनें तौ लपट सी लग गई हैं। उल्टी साँस सी चलन लगी। तैने उनें तनक बड़याव घी दओ है? हओ घी उर शक्कर सबई कछू दओ।
तैं तौ लोबन आ धरी। तोय जीसैं घी कैसे छूट सकत। कजन मराज खौं कछू हो गओ तौ लैंने के दैने पर जैंय। लिआ एक कटोरी में भरकैं घी लेआ उर इयै आगी में तातौ करो। उर एक उन्ना सैं कटोरी पकरकैं मराज के मौमें जौ घी डारे देत। तबई उनकी हालत ठीक हुइयै।
रामलाल ने वौ गरम घी उनके मौ में डार दओ सोऊ मराज तड़फड़ा कैं उतै सैं चिल्लयात भगे। घुरिया उतै छोड़कैं उतै सैं नर्रयात भगत गये। उने नर्रयातन देखकैं रामलाल खौं बड़ों अचम्भौ भओ उर वौ सोसन लगो कै जौ कैसो बामुन आय जो घी देतन में नर्रया रओ है। उदनई सै जा कहावत चल गई कैं ‘घी देतन बामुन नर्रयात’ Ghee Detan Bamun Narryat ।