Karam Aur Laxmi करम उर लच्छमी-बुन्देली लोक कथा

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एक दार Karam Aur Laxmi घूमबे खौं कड़परे। वे चारई तरपै घूम फिरकैं लोगन के दुःख दर्द खौं दूर करत रत्ते। कभऊँ कौनऊँ गरीब खौं थोरौ भौत दैकैं ऊकी गरीबी खौं दूर करबे कौ उपाव सोसत रत्ते। कोनऊ रोगी कौ रोग दूर कर दओ उर कभऊँ काऊ की हिरानी चीज ढुड़वा दई।जा बात तौ साँसी आय कै आदमी के करम बिगरे पै तौ उयै कष्ट उठानई आऊत। उर जादाँतर आदमी लच्छमिअई सै दुखी रत। जीपै लच्छमी की कृपा हो जाय तो समजलो कै ऊके दुख तौ अबढारे दूर हो जैय। सो वे दोई जने दुनिया कौ दुःख दूर करबे खौं निकर परे ते। वे चलत चलत एक गाँव के लिंगा हुन कड़े।

जईसै वे गाँव के बायरैं कड़े सो उन्नें एक खेत में एक उगारौ उर दूबरौ पतरौं आदमी देखो। जौ बिचारौ भर दुपरिया में घास खोद रओ तो। ऊकौ शरीर पसीना सैं लथपथ हो रओ तो। उर घामैं में ऊकौ चेहरा करिया पर गओ तो। तोऊ वौ अदनिवरौ अपने काम में जुटो तो। उयै देखतनई लच्छमी जू खौं दया आ गई। वे करम देवता सैं बोली कैं काय मराज, अपनी आज्ञा होय तौ मैं ऊ गरीब आदमी खौं कछू दै आऊँ। काय कै ई बिचारे की दशा भौतई खराब है। देखौ तौ वौ विचारौ भर दुपरिया में घास खोदबे लगो है।

करम बोले कैं जैसी तुमाई इच्छा होय। लच्छमी गई सो उनें दूर सैं देखतनई वौ बिचारौ डरा गओ। ऊनें सोसी कैं कऊ खेत की मालकन तौ नोंई आ रई। सो वौ ठाँढ़ो होकैं अपनी पीठ खुजावन लगो। लच्छमी जू ने जाकैं ऊसैं पूछी कैं काय भइया तुम कितै कै आव उर ऐसी तुम पै का आफत परीकैं भर दुपरिया में घास खोदबे लगे। तनक तुम आरामई कर लेते।

वौ बोलोकैं बाई जी हमाये भाग में आराम काँ धरो। घर में दो दिना सैं तौ चूलो परचो नइयाँ। घर में चार ठौवा मौंड़ी-मौंड़ा भूके-प्यासे बिलख रये। जौ घास बेचकै दसक रुपइया मिल जैय। सोऊ हम उनकौ दो सेर आटौ उर अस्सेरा भर दार लै जाकै रोटी बनवाकैं अपने बाल बच्चन खौं खुआ पैय। बिना करें हमें कितै का धरो।

लच्छमी जी बोली कैं कजन हम तुमाव घर परिवार चलाबे खौं कछू मदद कर दैय, तो तुम फिर घास खोदबे खौं तो नई आब। फिर हमें कायखौं आउने बाई जू। अबै तौ ऐसी किसा हो रई बाई ‘जू कै हाँत ना मुठी उर खुरखुरा उठी’। अबै तौ दो दो दिनाँ की लाँगने हो रई, सो जौ काम करनें आ रओ। जब अपुन दै देव फिर काम काय खौं करनें ।

ऐसी कई जात कै ‘अल्ला देय खाने को तौ कुतका जा कमानै को’। लच्छमी जूनै सब समज लई उर उयै चार ठौवा सोने की मुहरें दैकै कन लगीं कैं देखौ भइया अब ई घामैं में कभऊँ घास खोदबे खौ नई आइयौ। वौ बोलो कै अब कायखौं आवनै। लच्छमी जू उयै मुहरे दैकैं चली गई उर वौ मजूरा चार सोने की मुहरे पाकै फूल कै कुप्पा हो गओ। उर ऊने हाल फूल में उन मुँहरन खौ तौलिया में बांध कै  उयै अपने मूढ़ सै बाँध लई। हारो थको तौ हतोई गैल में एक पेड़े कौ छाँयरौ देखकै वेफिकरी सै उतै परकैं सो गओ। परतनई गैरी नींद आ गई।

जितै वौ परो तो उतै एक चौखरे खौं बमीठौ हतो। ऊमें सैं एक चौखरो कड़ो उर ऊमे सै उन मुहरन की गाँठ खौं कतरकैं अपने बिल में घुस गओ। घन्टाक में ऊकी आँख खुली उर वौ उठकैं हराँ-हराँ अपने घरै पौंचो। घरैं पौंचतनई ऊनें अपनी तौलिया की गाँठ दै देखी उर जेय करकै रै गओ। सबरी हाल फूल माँय बिला गई। अपने ऐरैं कुरकुरात रये, कोऊ सैं का कये। वौ पापी पेट तौ भरनई हतो।

मौंड़ी-मौड़ा भूकी डरे ते। भुन्सरा भओ उर ऊने खुरपी उठाई उर ओई खेत कुदाऊँ चल दओ। कन लगत कैं जीके भाग में गिट गिटे लिखे होंय, उनें को मिटा सकत। सोने की मुहरें मिली उर ऊके भाग में नई हती सो चोंखरे कतर लै गये। उयै तौ गिट गिटे भोगनई हते। फिरकऊ करम उर लच्छमी Karam Aur Laxmi ओई गली हुन दै कड़े। उर उनें बेऊ मजूर उगरारो जाँ कौ ताँ घास खोदत दिखा परो।

उयै देखतनई करम देवता बोले कैं बताव। तुमाई मदद करबे सैं का भओ। वौ तौ जाँ कौ ताँ घास खोदबे लगो है। लच्छमी जू ने ऊके लिंगा जाकैं पूछी कै काय भइया, हमने तुमें काल चार सोने मुहरें दई तीं। सो तुमने वे कितै डारीं। सुनतनई वौ विचारौ सन्नहोकै रै गओ। अब का कबैं। तनक हिम्मत बाँधकैं कन लगो कैं हमाये भाग में तौ घासई खोदवौ लिखो है। उन मुहरन खौं तौ काटकैं चोखरौ अपने दल्ला में घुस गऔ।

ऊ भोरे-भारे की बात सुनकै लच्छमी जू मुस्क्या गई। वे बोले कैं देखौं जे चार सोने की मुहरें और हम तुमें दे रये। इने तुम समार कैं लै जइयौ। नईतर फिर तुमें कभऊँ कछू नई मिले। इत्ती कैं कै उयै उन्ने आठ मुहरें गुआ दई उर उतैं सैं चलती बनीं।

अबकी दारैं ऊने उन मुहरन खौं खुटी में खुर्स लओ उर हालों फूलों अपने घर कुदाऊँ भगो। अबकी दारै उयै गैल में एक तलइया मिलीं। ऊमें अड़ियन सैं पानी भरो तो। उतै हुन कड़बे के लाने जई सै ऊनें अपनी परदनी ऊपर खौं खोसी सोऊ वे आठई मुहरें पानी में टबक गई।

ऊनें भौतई ढूँढाई करी, अकेलै उयै कछू पतो नई चलो उर वौ अपनी मूँढ़ कुका कैं रै गओ। अब करई का सकत तो। वौ दूसरे दिना फिर ओई खेत में घास खोदबे टिक परो। दो दिना कौ भूकौ लाँगौ हतो। वौ घास बैंच कै कछू खाबे कौ इंतजाम करन चाऊत तो। लच्छमी जू तौ ऊकौ हाल चाल देखनई चाऊत ती। वे ओई गैल हुन फिर कऊँ कड़ परीं उर वौ ओई खेत में घास खोदत दिखा परो।

लच्छमी जू ने करम देवता सै कई कैं चलो अबकी दारैं और उयै हम बारा मुहरे दये देत। फिर हम कछू नई दैय। चाय वौ मरे उर चाय वौ जियै। इत्ती कैं कैं फिर वे ऊके लिंगा पौंची उर कन लगी कै काय भइया वे आठ मुहरें कितै डारी सुनतनई ऊनै अपने अंसुवा पोंछत पूरी राम कहानी सुना दई। लच्छमी जू खौं ऊकी दशा देखकैं दया आ गई, उर उन्नें उयै बारा सोनें की मुहरें दैकैं कई कैं अब देखों इनें समार कैं लै जइयौ। गैल में क्याऊँ रुकियौ नई। अबकी दारैं सूदे घरै जइयौ।

ऊने मुहरें लई उर सूदौ अपने घर खौं भगो। अबकी दारैं ऊकी मुहरें बची रई उर ऊने वे बारई मुहरें दैकैं घरवारी सैं कई कैं देखौं तुमें विश्वास नई हुइयैं। ऊ बाई ने जे मुहरें हमें तीसरी दारै आदई। दो दार की तौ गैलई में हिरा गई। अबकी दारैं हम बड़े समर-समर कैं इनें इतैं नौ ल्आ पाये। अब अपने घर कौ गुजारौं अच्छी तरा सैं चलन लगें। मुहरन खौं देखतनई ऊकी घरवारी फूली नई समानी उर उनें ऊनें बड़े समार कैं नौंन के डबला में धर दओ।

उर बेफिकर होकैं घर गिरस्ती के कामन में जुट गई। एक दिनाँ वा रोटी बनाबे के लानें चूँन माड़न लगी। इतेकई में ऊकी परोसिन नौंन माँगबे खौं पौंच गई। घरवारी खौं ध्यानई नई रओ कैं नौंन के डबला में मुहरें धरी हैं। ऊनें अपनी परोसिन सें कै दई कैं बैन, हमाये चूनसै हाँत भिड़ानें है, तुमई डबला में सै नोंन उठा लो। जइसैं परोसिन ने डबला में हात डारो उयै डबला में धरी वे बारई मुहरें दिखा परी। उयै नौंन लैबौ तौ भूलई गओ उर वा वे बारई मुहरें उठाकैं उनें अपनी खुटी में खोंसकै मौगी चाली अपने घरै चली गई।

दूसरे दिना जब घरवारी ने ऊ डबला में मुहरे देखी सोऊ झमा खाकै गिर परी। परोसिन सै पूछबे की हिम्मत नई भई। अपनों करम ठोकत रै गई। रातकैं अपने घरवारै खौं बताई सो वौ भौतई दुखी भओ। उर कन लगो कैं अपन तौ अपने भाग ने मजूरी करबो लिखा कै आये। काऊ के दये सै का होत। भाग में नईं हतो सो चलो गओ। उर इत्ती कै कैं मौंगो सो चलो गओ। भुन्सराँ होतनई वौ अपनी खुरपी

लैकैं ओई खेत में घास खोदबे खौ जुट परो। ऊने सोस लई ती कैं बिना करें अब कछू नई हो सकत। बिना करे कौ मिलत सो वौ तौ ऊसई चलो जात। कन लगत कै ‘पानी कौ धन पानी में उर नाक कटी बेईमानी में।’

 उतई हुन फिर करम उर लच्छमी Karam Aur Laxmi कड़ परे। करम ने कई कैं देखौं लच्छमी जू। तुमने इयै तीन दार मुहरें दई। अकेलै वे ईको कोनऊ कामैं नई आई उर जौ जाँ कौ ताँ घास खोद रओ है। लगत है कैं ईको करम ठीक नइयाँ। देखौ अबकी दारै हम इयै सोरा मुहरें दैकें देखत कै उनकौ का होत लच्छमी बोली कैं हम तौ दै दै कै हार गये। तनक तुमई दैकै देखलो। करम देवता गये उर जाकैं ऊकै हात में सोरा सोने की मुहरें गुआ दई, उर कई कैं अब इनें समार कैं लै जइयौ।

अब का कनें ऊपै करम की कृपा हो गई। वौ घास कौ गट्ठा उर वे सोरई मुहरें लैकैं चलो। तौ गैल में ओई बमीठे के लिंगा हुन दै कड़ो। चौखरन ने बमीठौ पटाकै वे मुहरें बायरैं मैंक दई। जातनई ऊ घसेरौ खौ वे चारई मुहरें मिल गई। वौ उने उठाकैं आगे चलो वा गैल की तलइया सूक गई उर गिलारे में डरी वे आठई मुहरें मिल गई। वौ हँसत कूदत घरै जाकैं घरवारी सैं बोलो कैं अब तौ अपनौ करम जग गओ। हमें तासै सबई हिरानी भई मुहरें मिल गई।

ऊकीपरोसिन तौ कान चढ़ाय बैठिअई हती। ऊने सोसी कै वौ कोनऊ गुनिया सैं पूछकैं आ गओ। अब हमाई पोल खुली जात। सोवा फिरकऊ ओई के नाँ नौन के बहाने गई उर डबला मैं जाँ की ताँ मुहरें डार आई। ई तरा सैं करम की कृपा सै घसेरौ कौ घर मालामाल हो गओ। ईसै अपने बड़े बूढ़े जा साँसी आकन लगत कैं-

करम फले सें सब फले बंज और व्योपार
करम बिना सब आदमी हो जाबै बेकार

जेई बात तुलसी बाबा कै गये हैं –
कर्म प्रधान विश्वकर राखा’ जो जस करई सो तस फल चाखा।
ईसैं भइया अपन खौं हमेशई अच्छे करम करो चइयै।

बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी।
बुन्देलखण्ड के पर्यटन स्थल 

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