भारत का हृदय स्थल बुन्देलखण्ड और बुन्देलखण्ड के महोबा जिले के अंतर्गत एक प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एतिहासिक रियासत झीलों की नगरी है चरखारी। चरखारी की मनमोहक प्राकृतिक छटा को देखते हुए Charkhari: Bundelkhand Ka Kashmir कहा जाता है।
चरखारी किसी समय मे बुन्देलखण्ड एक अत्यंत वैभवशाली सम्पन्न राजसी क्षेत्र रहा है, इस बात में कोई दोराय नहीं है यही कारण है कि इस क्षेत्र में हजारों साल पुराने किले, गढ़ी , महल, हवेली, कुंए, तालाब, मंदिर इत्यादि हैं। एक ऐसा ही विशालकाय दुर्ग है महोबा जिले की चरखारी में और इससे सटा हुआ एक राजमहल है। इस राजमहल के चारों तरफ नीलकमल से आच्छादित तथा एक दूसरे से आन्तरिक रूप से जुड़े- विजय सागर, मलखान सागर, वंशी सागर, जय सागर, रतन सागर और कोठी ताल नामक झीलें हैं।
चरखारी को वृज का स्वरूप एवं सौन्दर्य बोध कराते हुए भगवान कृष्ण के 108 मन्दिर हैं । इन मंदिरों मे सुदामापुरी का गोपाल बिहारी मन्दिर, रायनपुर का गुमान बिहारी मन्दिर, मंगलगढ़ के मन्दिर, बख्त बिहारी मन्दिर, बाँके बिहारी मन्दिर तथा माडव्य ऋषि की गुफा है। इसके पास ही बुन्देला राजाओं का आखेट स्थल टोला तालाब है। ये सब मिलकर चरखारी की सुन्दरता को मनमोहक बनाते हैं ।
चरखारी का प्रथम उल्लेख चन्देल नरेशों के ताम्र पत्रों में मिलता है। चन्देल राज्य के सैकड़ों वर्ष बाद बुन्देल वीर भूमि पर राजा छत्रसाल के पुत्र जगतराज को चरखारी के एक प्राचीन मुंडिया पर्वत पर एक प्राचीन बीजक की सहायता से चंदेलों का सोने के सिक्कों से भरा कलश मिला। यह धन पृथ्वीराज चौहान से पराजित होने के बाद जब परमाल/ परमर्दिदेव और रानी मल्हना महोबा से कालिंजर के लिए प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होंने चरखारी में छुपा दिया था।
छत्रसाल के निर्देश पर जगतराज ने बीस हजार कन्याओं का कन्यादान किये, बाइस विशाल तालाब बनवाए, चन्देल कालीन मन्दिरों और तालाबों का जीर्णोंद्धार कराया। जगतराज ने ही जमीन से तीन सौ फुट ऊपर चक्रव्यूह के आधार पर एक विशाल किले का निर्माण करवाया था। जिसमें मुख्यत: तीन दरवाजें हैं।
1 – सूपा द्वार- इस द्वार से किले के अंदर रसद ( खाने-पीने की वस्तुएं ) हथियार आदि के आवागमन के लिए था । 2 – ड्योढ़ी दरवाजा- यह दरवाजा राजा रानी के आने-जाने के लिये आरक्षित था। इसके अतिरिक्त एक 3 – हाथी चिघाड़ फाटक ।
विशाल दुर्ग की सुन्दरता देखते ही बनती है इस किले के ऊपर एक साथ सात तालब मौजूद हैं- 1 – बिहारी सागर, 2 – राधा सागर, 3 – सिद्ध बाबा का कुण्ड, 4 – रामकुण्ड, 5 – चौपरा, 6 – महावीर कुण्ड, 7 – बख्त बिहारी कुण्ड।
चरखारी रियासत अपनी अष्टधातु की तोपों के लिये पूरे भारत में प्रसिद्ध रहा है। चरखारी रियासत के कारीगरों द्वारा निर्मित तोपें धरती धड़कन, काली सहाय, कड़क बिजली, सिद्ध बख्शी, गर्भगिरावन तोपें अपने नाम के अनुसार अपनी भयावहता का अहसास कराती हैं। इस समय काली सहाय तोप बची है जिसकी मारक क्षमा 15 किमी है।
चरखारी किले के अंदर बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं जिसमें अनाज भरा रहता था।इन गोदामों को इस प्रकार से डिजाईं किया गया है की यह अनाज कई वर्षों तक खराब नहीं होता था ।यह गोदाम आपातकाल के लिए बनाए गए थे जैसे कई महीनों तक कोई महामारी, या कई वर्षों तक सूखा/आकाल पद जाए युद्ध आदि की स्थिति में जो कई महीने चलता है और उस स्थिति मे बोया-काटा नहीं जा सकता था ।
जगतराज के पश्चात विजयबहादुर सिंहासन पर बैठे। साहित्य प्रेमी विजय बहादुर ने विक्रमविरुदावली की रचना की, मौदहा का किला और राजकीय अतिथिगृह- ताल कोठी का निर्माण कराया। यह कोठी एक झील में बनी है। बहुमंजिला यह कोठी अपनी रचना में नेपाल के किसी राजमहल का आभास देती है। इसकी गणना बुन्देलखण्ड की सर्वाधिक खुबसूरत इमारतों में की जाती है। विजय सागर नामक तालाब पर बनी ताल कोठी सरोवर के चारों ओर फैली प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण अधिक आकर्षक और मनमोहक प्रतीत होती है।
महाराज जयसिंह के काल में नौगाँव के सहायक पोलिटिकल एजेंट मि. थामसन को चरखारी का प्रबन्धक नियुक्त किया गया। इसकी सुन्दरता देखकर थामसन ने इसी तालकोठी को सन 1862 ई. से 1866 ई. तक अपना आवास बनाया था। महाराज विजय बहादुर के पश्चात जय सिंह सिंहासन पर बैठे।
जय सिंह के पश्चात मलखान सिंह चरखारी रियासत के सिंहासन पर आसेन हुए । मलखान सिंह एक श्रेष्ठ कवि थे। उन्होंने गीता का संस्कृत से काव्यानुवाद किया। उनकी पत्नी रुपकुंवरि एक धार्मिक महिला थीं। रामेश्वरम से लेकर चरखारी तक उन्होंने रियासत के मन्दिर बनवाए जो आज भी चरखारी की गौरव गाथा कह रहे हैं। गीत मंजरी, विवाह गीत मंजरी और भजनावली उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
चरखारी का ऐतिहासिक ड्योढ़ी दरवाजा इन्ही मलखान सिंह के कार्यकाल में बना जिसे महाराष्ट्र के अभियन्ता एकनाथ ने बनवाया। राजमहल और सदर बाजार उन्हीं की देन है। आज भी चरखारी के सदर बाज़ार की राजसी बनावट लोगों को अपनी ओर अत्यधिक आकर्षित करती है।
मलखान सिंह को सर्वाधिक प्रसिद्धि 1883 ई. में उनके द्वारा प्रारम्भ किये गए गोवर्धन जू के मेले से मिली । यह मेला उस समय की स्मृति है जब श्री कृष्ण ने इन्द्र से कुपित होकर गोवर्धन पर्वत अपनी अंगुली मे धारण किया था। दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट पूजा से प्रारम्भ होकर यह मेला एक महीने तक चलता है। यह बुन्देलखण्ड का सबसे बड़ा मेला है।
पंचमी के दिन चरखारी के 108 मन्दिरों से देवताओं की प्रतिमाएँ गोवर्धन मेला स्थल पर लाई जाती हैं। इसी दिन सम्पूर्ण देव समाज ने प्रकट होकर श्रीकृष्ण से गोवर्धन पर्वत उतारने की विनती की थी। सप्तमी को इन्द्र की करबद्ध प्रतिमा गोवर्धन जू के मन्दिर में लाई जाती है। इस एक महीने में चरखारी वृन्दावन हो जाती है।
मलखान सिंह के पश्चात जुझार सिंह गद्दी पर बैठे। इनके बाद अरिमर्दन सिंह गद्दी पर आसीन हुए, महाराज अरिमर्दन सिंह ने नेपाल नरेश की पुत्री से विवाह किया और उनके लिये राव बाग महल का निर्माण कराया जिसमें चरखारी का राजपरिवार आज भी रहता है।
अरिमर्दन सिंह के पश्चात जयेन्द्र सिंह शासक हुए। ये चरखारी के अन्तिम शासक थे। इसके पश्चात रियासत का विलय भारत संघ में हुआ। जयेन्द्र सिंह के वंशज महाराज जयन्त सिंह और रानी उर्मिला सिंह राजा छत्रसाल की वंश परम्परा चरखारी में इन्हीं से रोशन है। रानी उर्मिला सिंह सदरे रियासत कश्मीर कर्ण सिंह के खानदान से ताल्लुक रखतीं हैं और कश्मीर के पुंछ सेक्टर की रहने वाली हैं।