लै गई प्रान पराये हरकें, मांग में सेन्दुर भरकें।
एक टिबकिया नैचें दैकें, टिकली तरे उतरकें।
तीके बीच सींक मिल बेंड़ी, कै गई भौंह पकरकें।
ईसुर बूंदा दए रजऊ ने, केसर सुधर समरकें।
सांकर कन्नफूल की होते, इन मोतियन की कोते।
बैठत उठत निगत बेरन में, परे गाल पै सोते।
राते लगे मांग के नैंचें, अंग-अंग सब मोते।
ईसुर इनको देख-देख कें, सबरे जेबर जोते।
जहाँ महाकवि ईसुरी ने अपनी फागों में गहनों को समाहित कर बुन्देली साज-श्रृँगार का उल्लेख किया है, वहीं वस्त्रों के महत्त्व की नारी श्रृँगार में भूमिका का भी बड़ी सिद्दत से चित्रण किया है।