पूजा करें मनुजता की सब
आज हिमालय की छाती में, गतकौ लगौ करारौ ।
जाति धरम को भाव भूल कें, अपनो देश सँमारौ ।।
भारत की माँटी में फूलौ, हरदम भाई चारौ ।
हाड़-माँस तन जीउ एक सौ, नइयाँ कछू न्यारौ ।।
एक बाप के लरका सबरे, अपनों घर सिंगारें ।
एक कुरा एक से जउआ, एक बिरछ की डारें ।।
हिन्दू – मुस्लिम सिक्ख एक, इतिहास सदा साखी है ।
हुमायूं ने लाज हमेशाँ, राखी की राखी है ।।
गुरूनानक में भारत भर में, नेह दिया उजयारौ ।
सिक्ख गुरू गोविन्द सिंह ने, अपनौ तन-मन बारौ ।।
सरदार भगत सिंह ने हँसकें, फाँसी कौ झूला झूलौ ।
देशभक्ति कौ भाव पूत वीर हृदय में फूलौ ।।
गीता रामायन कुरान खों, बाँचें सब संसारी ।
गुरूबानी गूँजी भारत में, दसउ दिशा विस्तारी ।।
मंदिर-मस्जिद गुरूद्वारे मं, माथौ सबइ झुकाबें ।
पूजा करें मनुजता की सब सेवा-भाव जगावें ।।
एक बिरछ के फूला सबरे, एक डार की कोंपें ।
बैर भाव बिसरा सब भइया, नेह भाव खों रोपें ।।
हिल मिलकें रयँ सब आपस में बाँटें पीर – पिरातौ ।
नोंनों लगै सबइ खों ओजू, खुलै नेह कौ खातौ ।।
भाई चारे की बगिया खों, भइया ढारौ सींचौ ।
पानूँ देव जरन खें रोजउँ, बिरछन कोद उलीचौ ।।
छैक करकें उजरा कँउँसें, ईमें घुस न पावै ।
हरौ बाग जौ भारत भरकौ, देखौ उजर ना जाबै ।।
रचनाकार – रतिभान तिवारी “कंज”