Hardol Ka Vishpan हरदौल का विषपान

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बम-बड़ी-बम बजत नगाड़े हते उत तौ खुसयाली हो रई ती।
इते विष के भोजन थार सजा रानी मन ई मन रो रई ती॥
थारी विष के पकवान भरी लख अंखिया डब-डब-डब रोवै ।
मानौ करए ।पर भावै बे अंसुआ-निर्मल जल से धोवै ॥

मन में वे सोच करै महलों दई बुर औ समऔ अब आन परौ।
राजा ने कठिन परिच्छा को छातो पै पथरा तान धरौ ॥
है इतै बावरी-कुआ उतै विपता में मैं पर गई दैया ।
इत पती-हुकुम उत देवर की हत्या को पाप-मरी मैया ॥

देवरह ऐसे ऊसौ नई-बाँकी सपूत बुन्देला है ।
साचौ सुदेस को सेवक है साक्षात् धरम को हेला है ॥
री कुलदेवी ते बचा-बचा मैं पर गई भारी आफत में ।
नारी की लाज बचावे खौं नारी के तन-मन कोंपत हैं ॥

हिरदो क रऔ है मेरौ तौ जौ पाप कमाऊँ मैं कैसे ।
जौ नई करौ–तौ पतिब्रता को धरम गमाऊँ मैं कैसे ॥
बौ धरम-सती को धरम बड़ी जाके लैं होत हते जौहर ।
जाके लानै मेरी कि तकई मातायें मर गईं कस के कमर ॥

दाऊजू की सु? में कारौंच नहीं पुतवैहौं मैं ।
मर जैहों पै? जू की नई कूख में दाग लगैहौं मैं ॥
आ गऔ छत्रानी खौं छिन में बुन्देलवंस को जोस खरौ।
अंग अंग मैं आभा फूट परी–मुख पै लालामी तेज भरौ ॥

झट उठा लऔ बौ थार हात चड़ चलीं अटा पै छम-छम-छम् ।
हरदौल की मूरत आंखन में आ गई-ठिठक गईं ठम्-ठम्-ठम् ॥
वे लौट परी धर दऔ थार-चौका में धम सैं बैठ गईं।
आँखन के मारग सैं हिरदै हरदौल की मूरत पैठ गई ॥

मन में वे सोच लगीं करने जो कैसौ हुकुम-अजब धुन है।
निरदोषी की हत्या हू है दुनिया मन में का-का गुन है ॥
महराज आज हैं अपनी पै पर गये हैं बे तो गुरगन में ।
घर को सब नास कहा मैं जो मनमानी कर हैं छिन-छिन में ॥

पै ऐसौ हौन न दै हौं मैं चाए लाज जाय सबरी मेरी ।
आ गए ‘जुझार’ कर नेत्र लाल बोले “कैसी हो रई देरी ॥
रानी कंप गईं-लऔ थार उठा चड़ गई महलन पै मन मारे ।
हरदौल उठे-हँस पाँव छिये—रानी के बोल भये भारे ॥

आसीस नई निकरी मौं मैं डब्-डब्-डब् आँखें भर आईं।
‘मेरी भौजी-मेरी भौजी, हरदौल से कैसी निठुराई ॥
आसीस काये नई दई तुमनै मेने कसूर है कौन करौ ।
हो गई देर है लगी भूख तुम लये काये इत थार धरौ ॥

लै लऔ थार रानी कर से भोजन की बिरिया जो आई।
कप–चौंक-रोक रोई रानी चिल्याई पै धुन भर्राई ॥
गिर परी मुर्छा खा के वे हरदौल कयें “मैया।
मैया !!” कछु देर में आंखें खोल उठीं बोली “भैया-मेरौ भैया ॥

हो गई मौन-रुक गऔ बोल छिन छिन पै फिर हिचकी आई।
“बोलौ-बोलौ-कछु बोलौ तौ” हरदौल की आँखें भर आईं ॥
“का विपता पर गई है तुम पै का बात रोक लई मन-आई ।
सेवा में तन-मन हाजिर है कओ साफ काये खौं सकुचाईं ॥

रो-रो रानी नै भरौ गरौ कै दई बिथा अपनी सारी।
बोले हँस के हरदौल “बस्स ! इतनै कौं रोऊत बेचारी ॥
परमात्मा जानत है जौ तौ-तुम मेरी धरम की माता हो ।
तुम मेरी पालन कर्ता हौ-तुन मेरी जीवन-दाता हो ॥

मों तेरी लाज बचावे खौं हौं धन्य आज जो मर जाऊँ।
बुन्देलखण्ड के बुन्देलन को माथी ऊँचौ कर जाऊँ ॥
हरदौल लगे भोजन करने देखतई रै गई भौजाई ।
हात-पाँव भौजी के देवर कौं मूरछा सी आई ॥

बोले हँस के “भौजी तुल नई चिन्ता करियो जो काम हतौ ।
जई में अपने कुल को सबरौ बुन्देल वंस को नाँव हतौ ॥
थक गऔ बोल कह “जय बँदेल” जय-जय भौजी-मेरी भौजी।
उतनई में नैचै मैं ‘जुझार’ की भर्राई बोली गूंजी ॥

“मैं भूल गऔ कोऊ बचा-बचा भइया मैं आऔ भैया मैं।
अब भेद खुलौ है आँख खोल ठाँडो “हाँ तेरौ भैया मैं ॥
आ गई मूर्छा राजा खौं बायन पै लै लये महरानी।
“मेरी रानी-मेरी रा-रा’ टूटी सी निकल परी वानी ॥

हरदौल देह पै दम्पत नै अंसुआ मुकता कर-कर संचय।
खा-खा पछार रो-रो छिन में महलन में मचा दई पिरलय ॥
रो-रो के ओरछे को रैयत के रई ती “रानी की जय हो ।
जय पुन्य भूम बुन्देलखण्ड-हरदौल वीर जय हो जय हो ॥

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