बिलहरा राज्य का Rani Phoolvati Kissa बहुत मशहूर है बिलहरा राज्य के राजा के चार राजकुमार थे। चारों कुमार विवाह योग्य थे, लेकिन अभी तक उनके विवाह नहीं हुए थे । तालनपुर राजा की चार कन्याएँ थीं उनके भी विवाह नहीं हुए थे दोनों राजाओं की रानियों ने अपने-अपने पतियों से कहा कि हमारे बच्चे सयाने हो गये हैं और आप हैं कि विवाह की फिकर ही नहीं। अपनी रानियों की बात सुनकर दोनों राजा अपने बगों के विवाह के विषय में सोचने लगे। दोनों तरफ से लड़का-लड़की देखने नाई – ब्राह्मण भेजे गये। वे दोनों पक्ष के नाई ब्राह्मण जब एक दूसरे से मिले तो दोनों पक्षों का परिचय हुआ ।
जब विवाह में वर-वधू की खोज की चर्चा चली तो वे बोले कि हमारे राजा के चार कुँवर हैं और तुम्हारे राजा की चार राजकुमारियाँ हैं, हम लोग यहीं बात चलायें तो अच्छा रहेगा। दोनों पक्षों की सहमति पर अंत में बात तय हो गई। उन्होंने वापिस लौटने पर अपने-अपने राजाओं को वर-वधू की जानकारी दी, विचार विमर्श हुआ तो रिश्ता पक्का हो गया । निश्चित तिथि पर बिलहरा राजा के यहाँ से बारात चल पड़ी।
जाने से पूर्व छोटे कुँवर ने कहा कि अगर हम सब बरात में जायेंगे तो हमारा राज्य तो सूना रहेगा, अतः मैं यहाँ रुक जाता हूँ । कुँवर की बात सुनकर बड़े कुमार बोले कि महाराज मैं रुक जाता हूँ, आप सब बारात में जायें । हाँ एक बात याद रखिये कि बारात नागताल पर नहीं रोकना । बारात के प्रस्थान होते समय तक उसमें सम्मिलित राजा-महाराजा, हाथी-घोड़ा, पालकी, बग्गी, गोलंदाज, बाजे-गाजे, पतुरियाँ आदि शामिल हुए तो बारात एक मेलां के जैसी लग रही थी।
बारात राजा के चार-चार कुमारों की थी। तो सामान्य लोगों से तो अनोखी होगी ही । बारात चली तो चलते हुए दिन अस्त हो गया। दिन अस्त हो जाने के कारण बारात नागताल पर रूकवाई गई। अगले दिन भोर में ही बारात चली और साँझ तक तालनपुर पहुँची । वहाँ पहुँचकर राजा बारात का भव्य स्वागत किया । उसके समय तीन दिन तक बारात रुकती थी, तो बारात तीन दिन रुकी। भाँवर पड़ते समय चूँकि बड़े कुँवर बारात में नहीं गये थे, अत: उनकी जगह उनके फैटा-कटारी रखकर भाँवर पड़ी।
बड़ी बहू एवं उनके पिता को कुछ संदेह हुआ कि बड़ा लड़का क्यों नहीं आया, लेकिन बारातियों के कहने पर कि बड़े कुँवर चारों में सबसे सुन्दर तथा बुद्धिमान हैं, उन्हें मन में संतोष हुआ। बारात की विदाई हुई, राजा ने बहुतेरा दान दहेज दिया था, बाराती एवं राजा बहुत प्रसन्न थे। बारात चलते हुए नागताल पर ठहरी । साँझ हो गई थी इसलिए बारात को ठहरना जरूरी था। उस नागताल पर वासुकि नाग का निवास था। समस्त बाराती दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर भोजन करके सो गये । थकान के कारण वे गहरी नींद में सोये थे ।
रात का पहला प्रहर लगा तो वासुकि नाग उठकर वहाँ पहुँचे। पहुँचकर वे ऊँची आवाज में बोले- कोई जागता है कि सब सो रहे हैं, बड़ी बहू जाग रही थी, वह बोली कि मैं जाग रही हूँ। नाग वहाँ से चला गया, दूसरे पहर में फिर आया और अपनी बात दोहराई। उसे बड़ी बहू ने वही जवाब दिया । इस तरह से तीसरे प्रहर में भी वही हुआ। जब चौथा प्रहर आया तो वासुकि ने आकर अपनी मुरली बजाना शुरू किया। उस धुन को सुनकर वहाँ हजारों नाग एकत्रित हो गये, पूरी बारात नागों से घिर गई। तत्पश्चात् नागराज ने अपना फन फैलाकर बारात के ऊपर छत्र सा कर दिया। इतने समय में बाराती जाग गये, इतने साँपों को देखकर वे घबराने लगे।
राजा को बड़े कुँवर की बात याद आई कि बारात नागताल पर नहीं रूकवाना। लेकिन राजा विचार करने लगे कि अगर आदमी हों तो उनसे लड़ा-झगड़ा जा सकता है, इन सर्पों से कैसे निपटें? राजा को भयभीत देखकर वासुकि नाग ने कहा कि- हे राजन् ! आप मन में किसी प्रकार की चिन्ता न करें। आप हमारे स्थान पर रूके हैं, तो उसका कुछ दण्ड देना पड़ेगा, वह दण्ड इस प्रकार से है कि आप हमें अपना बड़ा लड़का – बड़ी बहू दे दें ।
राजा ने नागराज की शर्त सुनकर कहा कि देखो नागराज अभी यहाँ पर मेरा बड़ा लड़का नहीं है, अतः आप मुझे छह महीने की मोहलत दे दें। छह महीने बीतने पर मैं आपको अपना बड़ा बेटा, बड़ी बहू दे दूँगा। अभी आप अपना पहरा हटा लें, जिससे बारात वापिस जा सके। नागराज ने राजा की बात का भरोसा करके पहरा हटा लिया, जिससे राजा की बारात वापिस जा सकती थी । जाते समय राजा ने सभी बारातियों से निवेदन किया कि नागराज वाली बात आप लोग किसी से न करना, न घर में, न ही बाहर । बारातियों ने राजा को आश्वस्त किया कि वे यह चर्चा किसी न करेंगे।
इतना कहकर बारात अपने नगर को चली। बड़े कुँवर को बारात के आने का समाचार मिला तो वे बारात की अगवानी के लिए घोड़े पर सवार होकर आये । गाँव के बाहर आकर उन्होंने बारात का अभिनंदन किया। उस समय बड़ी रानी को दासियों द्वारा यह जानकारी मिली कि यही उनके पति हैं। यह जानकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई कि उसका पति बाकी भाईयों में सर्वश्रेष्ठ है।
बारात की अगवानी के समय बड़े कुँवर को ऐसा लगा कि महाराज दुखी हैं। तो उन्होंने महाराज से इसका कारण पूछा। इस पर महाराज ने कह दिया कि बारात की साज सजावट में मुझे थकान हो गई है, इसलिए तुम्हें ऐसा समझ में आता होगा। लेकिन मैं तो उदास नहीं हूँ, मैं तो बड़ा प्रसन्न हूँ। राजा की बात पर कुँवर को संतुष्टि नहीं हुई, वे अपने पिता को भली-भाँति जानते थे, इसलिए उन्हें पिता की उदासी खटक रही थी । इसकी पुष्टि के लिए बड़े कुँवर ने बारातियों से पूछा, लेकिन किसी ने कुछ न बताया।
उस दिन रात्रि में कुँवर घोड़े पर बैठकर पूरे नगर में चक्कर लगाते रहे कि कोई बारात संबंधी बात करता मिले, लेकिन कोई भी नहीं मिला। वे वापिस आ रहे थे कि देखते हैं एक धोबी अपनी स्त्री से विवाह संबंधी बात कर रहा था । कुँवर वहीं रूककर चुपके से उसकी बात सुनने लगे, वह कह रहा था बाकी तो सब ठीक रहा, लेकिन… वह चुप हो गया। उसे चुप देख धोबिन ने पूछा कि आखिर में क्या हुआ। बोला- कुछ नहीं, अब तू सो जा ।
लेकिन धोबिन तो बात पूरी सुनना चाहती थी। धोबी बोला कि देख मैं तुझे बताऊँगा, लेकिन तुझे मेरी कसम है जो किसी से कहे, तो धोबिन ने अपने कान पकड़े और कहा कि मैं यह बात किसी से नहीं कहूँगी । धोबी बोला कि आते समय बारात नागताल पर रूकी थी, वहाँ नागराज आये उन्होंने राजा से बड़े कुँवर तथा बड़ी बहुरानी उन्हें देने को कहा। राजा ने विवश होकर उन्हें वचन दिया है कि छह महीने में हम आपको अपना बड़ा बेटा और बड़ी बहू देंगे।
हम सब यह सुनकर उदास हैं। देखो अगर बड़े बहू बेटे न रहे तो राजा का राज्य किस काम का? उनका तो जीवन ही अधूरा हो जाएगा ! बड़े कुँवर ने पूरी बात सुनकर अपने पिता की उदासी का कारण जान लिया। वे घर आये और सुबह उन्होंने अपना घोड़ा सजाया, उसकी पीठ पर हाथ फेरकर बोले-
घोड़ा तोरे भरोसें गर्जत हों, तेंई मताई तेंई बाप ।
मोरे ऊपर बिपदा परी, साँकरे में होव सहाय जू ।।
घोड़ा बोला – लै भग जैहों इन्द्रासन खों, फोर पतालें जाऊँ ।
कुँवर बोले – घोरा तोरो भलो हो जाय, नें लै जैये इन्द्रासन खों।
ने फोर पताले जाब, अबै तो लै चल नागताल खों।
देखों कैसो वासुकी नाग, दो-दो बातें ऊसें कर लऊँ। करज सें अदा हो जाऊँ।
कुँवर ने घोड़े को ऐड़ लगाई और सीधे नागताल पहुँच गये। नागताल पर पहुँचकर उन्होंने नागराज को आवाज लगाई, लेकिन किसी ने उत्तर नहीं दिया । वे पुनः नागराज से बोले कि नागराज मैं तुम्हारे द्वार आ गया हूँ, बाहर आओ ! नागराज बाहर आये? कुँवर से आने का कारण पूछा। कुँवर बोले कि मेरे पिता महाराज से तुमने मुझे मांगा है, मैं आ गया हूँ ।
नागराज बोले कि छह महीने बाद आना। कुँवर बोले कि मैं आज ही आ गया हूँ । नागराज बोले मेरी बात सुनो – अगर तुम राजा रनधीर की बेटी फूलवती को मेरे पास ले आये तो मैं तुम्हें तथा तुम्हारी पत्नी को छोड़ दूँगा। नागराज की बात सुनकर कुँवर घोड़े पर बैठकर उत्तराखण्ड की तरफ जाते हैं, वहाँ राजा रनधीर सिंह का राज्य था। चलते-चलते उन्हें रास्ते में एक व्यक्ति सोया हुआ दिखा। वह तालाब के किनारे सोया था, लेकिन पानी के लिए चिल्ला रहा था ।
कुँवर बोले कि तुम स्वयं उठकर पानी पी लो। वह बोला कि मैं बड़ा आलसी हूँ, उठकर पानी नहीं पी सकता। आप पानी पिला दें तो अच्छा होगा। कुँवर ने घोड़े से उतरकर उसे पानी पिला दिया । वह आलसी बड़ा खुश हुआ। कुँवर से बोला कि आप कहाँ जा रहे हैं, कुंवर बोले कि मैं फूलवती को लेने जा रहा हूँ, आलसी बोला कि मुझे साथ ले लो मैं आपके काम आऊँगा । कुँवर बोले कि तुम आलसी हो मेरा काम कैसे करोगे? लेकिन वह बोला कि आप भरोसा रखें, मैं आपकी मदद करूँगा।
कुँवर ने उसे अपने साथ ले लिया। वे थोड़ा आगे चले तो क्या देखते हैं कि एक व्यक्ति लेटा है, वह आकाश की तरफ टकटकी लगाकर देख रहा है। कुँवर ने पूछा कि तुम क्या देख रहे हो? वह बोला कि मैंने एक बाज को तीर मारा है, मेरा तीर उसे लगा भी है वह नीचे गिरे मैं उसी को देख रहा हूँ। और थोड़ी देर में बाज नीचे गिरा । उस तीरंदाज ने कुँवर से पूछा- भैया आप कहाँ जाते हैं? कुँवर बोले कि फूलवती को लेने जा रहा हूँ।
वह बोला कि मुझे साथ ले लो, मैं आपकी मदद करूँगा। कुँवर ने उसे भी साथ ले लिया। आगे जाने पर क्या देखते हैं कि एक आदमी बामीं में घुसा हुआ है, वह नीचे कुछ देख रहा है । कुँवर ने उससे पूछा कि ‘तुम क्या देख रहे हो? वह बोला कि पाताल में राजा बलि यज्ञ कर रहे हैं, सो मैं वह देख रहा हूँ । कुँवर को बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह यहाँ से पाताल में कैसे देख सकता है? वह बोला कि तुम्हें भरोसा न हो तो आकर स्वयं ही देख लो? कुँवर ने उतरकर देखा तो सच में पातालपुरी में यज्ञ चल रहा है, वहाँ समस्त देवता भोजन कर रहे हैं। राजा बली कह रहे थे कि देखो पृथ्वी लोक से चार लोग हमें देख रहे हैं, उन्हें भी भोजन पहुँचा दो और वहाँ भोजन आ गया।
इन चारों ने भोजन किया, फिर वह व्यक्ति भी कुँवर के साथ चला। आगे चलने पर कुँवर ने देखा कि एक नदी के किनारे की जमीन फट रही थी, उसमें चीटियों का बिल था। जमीन के फटने से मिट्टी के ढेले नदी में गिर रहे थे, जिनमें चीटियाँ भी थीं, वे पानी में बह रही थीं। कुंवर ने सोचा कि लाखों चीटियाँ मर जायेंगी, इसलिए वे मिट्टी के ढेले ऊपर फैकने लगे। चीटियाँ बच गईं। चीटियों ने कुँवर से कहा कि तुमने हमारा जीवन बचाया है, तुम्हें जब हमारी आवश्यकता हो हमें याद करोगे तो हम तुम्हारे पास आ जायेंगे।
इतना करने के पश्चात् कुंवर सीधे राजा रनधीर के किले में पहुँच जाते हैं, उनके साथ उनके तीनों साथी भी थे । फाटक पर पहुँचकर संतरी ने उनसे पूछा कि आपका कैसे आना हुआ ? कुँवर बोले कि हम फूलवती से विवाह करना चाहते हैं, उसी उद्देश्य से हम आये हैं। संतरी ने उन्हें ठहरने को कहा और वह राजा के समक्ष जाकर आगन्तुकों की जानकारी देता है। राजा ने कहा कि अतिथियों को अतिथिशाला में रूकवा दो, उन्हें भोजन करवाओ। उनके भोजन करने पर राजा वहाँ आये।
कुँवर से मिलकर सब जानकारी ली। राजा बोले कि देखो कुँवर जी मेरे द्वार पर यह लोहे का खम्बा गड़ा है, जो इस खम्भे को लकड़ी की कुल्हाड़ी से एक ही बार में काट देगा, तो हम उससे फूलवती का विवाह कर देंगे । कुँवर ने राजा की शर्त सुनी तो वे विचारमग्न हुए। उनका आलसी साथी बोला कि देखो भाई आज तो हम आराम से रहें, कल खम्भा काटने का काम करेंगे। कुँवर ने कहा कि यह काम इतना आसान नहीं है ।
अरे! जरा सोचो कि लोहे को लकड़ी से कैसे काटा जा सकता है? आलसी बोला कि राजा की बेटी के सोने के बाल हैं जो भी व्यक्ति उसका बाल लाकर खम्भे में बाँधकर उस स्थान पर कुल्हाड़ी से वार करेगा, तो वह खंभा कट जायेगा। कुँवर ने पूछा कि उसके सिर का बाल कैसे आयेगा? आलसी ने कहा कि अभी राजा की बेटी जाग रही है, वह सो जाये तो मैं वह काम करूँगा और रात्रि में आलसी राजा की बेटी का बाल ले आया, उसे खंभे पर बाँध दिया। कुँवर से कहा कि तुम्हें इसी स्थान पर चोट करनी होगी।
सुबह राजा उनके पास आये। कुँवर बोले कि चलिये मैं आपकी शर्त पूरी करता हूँ । कुँवर ने लकड़ी की कुल्हाड़ी का वार उसी स्थान पर किया तो वह लोहे का खंभा कट गया । राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा बोले कि विवाह के लिए एक शर्त और है ? कुँवर ने पूछा कि कौन-सी शर्त है? राजा बोले कि हमने खेत में पाँच मन राई बोई है, वह एक रात में बीनकर उसे मेरी बेटी के पलंग के नीचे अगर रख सकें, तो विवाह कर दूँगा ।
कुँवर ने हामी भर दी। उन्होंने चीटियों का आव्हान किया, वे तुरन्त आ गई और रातभर में उन्होंने खेत से राई बीनकर बेटी के पलंग के नीचे रख दी। सुबह राजा ने देखा तो उसकी दूसरी शर्त भी पूरी हो गई थी । अब राजा ने कुँवर से कहा कि मेरी बेटी का मौर तथा उनकी जूतियाँ उज्जैन में रखी हैं उन्हें मंगवा दो और विवाह करा लो ।
कुंवर ने अपने साथियों से सलाह की, आलसी मौर तथा जूतियाँ लेने उज्जैन गया । वह ले तो आया, लेकिन रास्ते में सो गया, कुँवर ने देखा कि वह अभी तक नहीं आया तो उसका साथी दूर का देख लेता था । उसने देखकर कहा कि वह एक वृक्ष के नीचे सोया हुआ है उसने काम तो कर दिया है, लेकिन आलसी जो ठहरा। अरे! हॉ वह जिस पेड़ के नीचे सोया है, उस पेड़ से एक सर्प नीचे उतर रहा है ।
अगर उसने आलसी को डँस लिया, हमारा काम बिगड़ सकता है I उसके तीरंदाज साथी ने कहा कि सर्प को मैं मार सकता हॅू और उसने उस स्थान पर तीर मारा तो वह साँप को लगा। तीर लगते ही साँप आलसी के ऊपर गिरा, जिससे उसकी नींद खुल गई। वह उठकर चल देता है और सुबह यहाँ पहुँच गया। राजा की शर्तें पूरी हुईं, तो उन्होंने फूलवती का विवाह कुँवर से कर दिया।
कुछ समय पश्चात् कुँवर फूलवती को लेकर नागताल पहुँचे, उन्होंने नागराज को बुलाकर कहा कि देखो मैं फूलवती को ले आया हूँ । इन्हें ले लो और हमें छोड़ दो। कुँवर की बात सुनकर फूलवती रोने लगी। उनके रोने से फूल झड़ने लगे, यह देख नागराज वासुकि प्रसन्न हुए तथा कुँवर से बोले कि मैं तुम्हारी बहादुरी से प्रसन्न हूँ, जो कुछ मांगना है वह मांग लो, मैं तुम्हें इच्छित वस्तु दूँगा।
कुँवर ने कहा कि हमारी फूलवती हमें दे दो और तुम अपनी शर्त उसे भी वापिस ले लो। नागराज ने कुँवर की दोनों बातें मान लीं । कुँवर अपने साथियों के साथ तथा फूलवती को लेकर अपने राज्य में पहुँचे, उन्हें आया देख राज्य में खुशियाँ मनाई जाने लगीं । कुँवर के अभी तक विवाह की शेष रस्में नहीं हुई थीं, अब दो-दो वधुओं का मौचायना (मुँह दिखाई) होनी थी, दोनों ने श्रृंगार किया :
हाँती दाँत की ककई लई, गोरी ऊँछे लछारे बार।
बारन-बार मुतियाँ गुहें, मिड़ियों हीरा लाल ।।
हीरा दमके छाती पै, जैसे ऊगे दूसरे भान ।
ऐसें सजी मानो उर्वशी, इन्द्र अखाड़े खों जाय ।।
विवाह के समस्त नेगचार हुए, सब खुशी से रहने लगे।