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Nari Ko Charitra नारी कौ चरित्र-बुन्देली लोक कथा

सई कत Nari Ko Charitra सबकी समज में नई आत । रमसाँई भइया गाँव के अच्छे खाते पीते भले आदमी हते। उन्ने अपनी मैंनत के बल पै अपनी गिरस्ती जोरी ती। पूरौ परिवार दिन रात मैनत कर करकै खूब रूपइया कमाऊत तो। उनके घर में जित्ते खाबे बारे ते उत्तई करबे वारे हते। सूदौ सादौ खाबो पीबो उर पैरबों ओढ़बौ। पूरौ परवार कमाऊत तो सौ रुपइया रोज उर खर्च हतो पचास रुपइया कौ। हराँ-हराँ परवार कौ दालुद्दुर दूर होन लगो, उर गाँव के अच्छे खासे लोगन में गिनती होन लगी।

फटे पुराने उन्ना पैर कै मजूरी करें उर सबके संगै रूखौ खाकै सुख की नींद सोऊत ते। ना ऊधो कौ लैंने उर ना माधो कौ दैने। बड़ौ सुखी जीवन हतो उन औरन कौ। गनेशपुरा के अच्छे आदमियँन में गिनती हती रमसाँई की। अकेलै उनकी घरवारी चाल चलन उर लच्छनन की भौतई अच्छी हती रामगढ़वारी मैदा बाई। उयैं दुनिया के ऐल फदालन सैं कोनऊ मतलब नई हतो। अपने काम सै काम उर बाल बच्चन खौं समय पै भोजन। कोंनऊ जान बुजक्कर ने ऊकौ नाँव सोस समज कैं साँसौ धरो तो। जैसो नाँव हतो ऊसऊ रूप रंग।

एक दिना रमसाँई खौ कोनऊ काम सैं आन गाँव जाने परो। उर घरैं अकेली रै गई मैदाबाई। उर उदनई पर गओ, बरा बरसात कौ त्योहार। उदनाँ तनक सज धज कै सिंग्गार करकैं अच्छी रंगीन सारी पैरकैं, हाँत में पूजा कौ थार लैकै गाँव में हुन कड़ी। अच्छे उन्नन उर गानें गुस्ते सै उनकी शोबा चौगुनी बढ़ गईती। देखबें बारन की नियत में बट्टो होन लगो तो। पैलऊ पैल ऊपै गाँव के मुखिया की, नजर परी देखतनई उनें झमा सौ आगओ।

तनक समर कै देखौ सोऊ जान गये कै अरे जातौ रमसांई की घरवारी मैदाबाई आय। आज उनकी समज में आई कै पैरे ओढ़े सैं औरत की सुन्दरता में चार चाँद लग जात। मुखिया जी बोले कैं कायरी रामगढ़ वारी तै कितैआं जा रई सज धजकैं। लाला साव का अपुन खौं पतोनइयाँ आज बरा बरसात तौ है। हम बरिया कौ पूजन करबे आ जा रये।

काय रमसाँई भइया कितै गये। दायजू साव, वे तौ अपने भानैज की पक्कयात में रामगढ़ गये हैं। काल तक लौटकै आ पैय। तौ ठीक है व्याई म्याई करकै हम रात कै आ जैय। सुनतई अच्छी सारी उर गानौ गुस्तौ पैरै कैसी नौनी लगरई। ईके सामै तौ सेठानी तकफीकी पर जैंय। उनें अचम्भे में देख कै मैदा तनक ठाँढ़ी होकै रै गई उर कन लगी कै साव जू का अपुन पैचान नई पाये। पैचान तौ लओ रमसाई तौ दिखानई नइयाँ।

साव जू वे एक न्योतै करबे आन गाँव चले गये। का कछू काम है उनसै। उनसै काम का काम तौ तुमसै आ है। अपुन कैसी बातें करत हमतौ सेवा खौ हाजरई ठाँढ़े। तुमाओ करजा दैने उर तुमारई बस्ती में रनें। अपुन सै कटकै काँ जासकत। तौ हम आज तुमाये इतै रात कै आ रये। हओ हमतौ तैयारई ठाँढ़े। इत्ती कैकैं तनक मुस्क्यात सूदी बरिया पूजन चली गई। बड़ी भक्तिभाव सै वरगद देवता कौ पूजन करो उर अपनें ऐवात कौ वरदान माँगकैं हाली फूली घरै चली गई।

घरैं आराम सैं व्याई म्याई करकै पर रई उर मौड़ी मौड़न खौ खोआ पियाकैं सोआ दओ। उर पौर के किवारन की साँकर लगाकर पर रई। आठई नई बज पाये ते कैं उने पौंर के किवार भड़कबे कौ ऐरो सुना परो। मैंदा सब समज गई उर जाकैं किवार खोल दिये उर बाँयरे ठाँढ़े दिखानें मुखिया जू। उनें सिसरयानौ सो देखकैं मैदा कन लगी कैं भीतरै चलवौ होय मुखिया जू इतै बायरैं कायखौ आ ठाँढ़े।

कछू नई पैलाँ जातौ बताव कै आज रमसाँई खौ तौ नई लौटनें। अब कछू कै नई सकत मुखिया जू। चलों भीतरें तौ चलो इतै बायरै गैलारे कछू भलो बुरओ सोसन लगें। तनक मन मसोस कै भीतरैं चले गये। तनक बैठई नई पाये तेकैं इतेकई में किवार भड़कबे की आवाज सुना परी। सुनतनई मुखिया जू के प्रान थर्रा गये। उर मैंदाबाई सैं कन लगे कै परमेंसुरी हम तुमाये पाँव परत उर हाहा करत। हमाई लाज तुमारई हाँत में है। अब बताव हम कितै दुकबै। कुजानें  बायरै कोआ आ गओ।

मुखियाँ जू अपुन चिन्ता नई करो। देखौ जे घर के चारई कोंनन में चार बड़ी बड़ी कुठियां धरी हैं तुम चुप चाप पूरब के कोने की कुठियां में घुसकैं बैठ जाव। उर हम उयै ढाँकै देत। जा बात मुखिया जू के गरें उतर गई उर वे कुठियां में गुढ़या कै बैठ गये। तब उनके प्रानन में प्रान आपाये। उर मैंदाबाई गई उर पौर की साँकर खोली उर देखो कै बायरै किलेदार साव ठाँढ़े ते। देखतनई उनसै राम राम करी उर कन लगी कैं चलबौं होय भीतरैं।

किलेदार साव तनक भीतरै बैठई पाये ते कैं इतेकई में पौर के किवार भड़कबे की आवाज सुनापरी। सुनतनई किलेदार सब अकबका गये उर कन लगे कैं आज तौ भौत फजीहत भई। लगत कैं रमसइयाँ लौट कैं आ गओ। वताव अब कितै दुकत बेइज्जत उर लठ्टामारी होने। मैंदाबाई के गोउ़न पैगिर कैं कन लगे कैं हमने जे कान पकरे हम कबहुँ तुमाई तरपै बुरई नियत सैं नई हेरैं। अबकी दारै तुम हमें माफ कर दो। कितऊ दुकबे की जगा बतादो। मैंदाबाई कन लगी कैं वा जौन कोने में कुठिया है ऊमें घुसकैं बैठ जाव उर हम ऊपर सै उयै ढाँकें देत।

किलेदार की सबरी ठसक बिला गई उर वेऊ कुठिया में गुड़मुड़या कैं बैठ गये। मैदानें जाकै जइसै पौर के किवार खोले सोऊ वायरै पटवारी कक्का ठाँढ़े दिखानें। किवार खुलतनई पटवारी साव भीतरै जाकै खटिया पै विराज गये उनें बैठतनई झेलनई हो पाव पानीयई नईपी पाव तो इतेकई में पौर के किवार भड़कबे की आवाज सुना परी। सुनतनई पटवारी कक्का के सटननारे छूट गये। उन्नें जानी कैं रमसइयाँ आन गाँव सै लौटकैं आ गओ, अब उयै हमाई कुरदच्छना कर दैने।

गाँव भर में करिया मौ हो जाने। अब बताव कियै मौ दिखाँय हम। पटवारी की दशा देख कै मैंदाबाई खौं दया आ गई उर कन लगी कै देखौ तुमऊ कोने की कुठियां में घुस जाव। पटवारी दौरकें कुठिया में घुस गये। रामगढ़ वारी मैंदाने पौर के किवार खोले उर उतै साव कक्का ठाढ़े दिखानें। मैदा बोली कैं चलवौ होय भीतरैं। वे तौ जा चाउतई हते। बड़े मजे से भीतरै पौंच गये। दो चार प्रेम की बातें होई नई पाई ती कै इतेकई में पौर के किवार भड़कबे की आवाज सुना परी।

सुनतनई साव कक्का के प्रान कड़ गये उर अकबका कैं नाँय माँय हेरन लगे उर मैंदाबाई सैं बोले कै हमने तुमाव सबरऊ करजा माफ करो अबकी दार तुम हमाई इज्जत बचा दो। अब हम कबहु इतै आबेकौ नाँव नई लैंय। इत्ती कैकै वे असुआ पोंछत ऊके गोड़नपै गिर परैं। मैंदाबाई ने कई कै जावऊ कोने की कुठियां में बैठ जाव। लगत कैवे आन गाँव सै लौट कैं आ गये हैं। मैंदा ने किवार खोले तौ रमसाँई ठाँढ़े दिखाने। हारे थके उर भूके प्यासे हते सो खापीकै औरये कोठा में सो गये।

उर उतै वे चारई जनें चारई कुठियँनमें पिड़े-पिड़े घबड़ा रये ते। भुन्सराँ कौ पार हो गओ, कुकरां बोलन लगे उर उननने सोसी कैं अब भुन्सराँ बड़ी बेइज्जती होने। ईसैं इँदयारे में इतै सै कड़ चलें। अबै रमसइयाँ घुर्राटे दै रओ है। हराँ कै मुखियाजू, कुठियां में हुन ढूँक कै मैंदाबाई सै विनती करन लगे कै आज हमें कड़ जान दो अब हम कबहुं इतै आबे कौ नाँव नई लैय। मैंदाबाई ने उनें बायरै काड़ो उरवे कान पकरकै उर माफी माँग कैं चले गये।

तनक देर मे किलेदार साव कुलबुलान लगे। मैंदाने उने बायरै काड़ो वे अंसुआ पोंछत मैंदा के गोड़न पै गिरकै थराई विनती करकै मौंगे चाले बायरै कड़ गये। अब पटवारी कक्का की बारी आई वे मई कुठियां में हुन गुर फोरन लगे चिकनी चुपड़ी बाते करकैं बायरै कड़ आये। मैंदाबाई के सामने कान पकर कैं ठाँढ़े हो गये उर कन लगे कैं तुम आज सैं हमाई धरम की बैन हों। जोलौ जियै तुमाओ ऐसान नई भूलें।

मैंदाबाई उनें दोरे नौ पौचा आई वे हराँ-हराँ पाँव दबाकैं कड़ गये। अब रै गये ते अकेलै साव कका। उन्नें रमसाई कौ भौतई ब्याज खाव तो। मैंदाने उनकी कुठिया के लिंगा जाकै कई कै कओ अब का करो जाय तुमाये संगै। वे अबई जगबे वारे है उर बे तुमाई सोंठ सी फोरे देत। वे मई हुन कपन लगे उर बोले कैं तुम हमें कड़ जान दो हम तुमें चार हजार रूपइया पौचा दैय।

इत्ती कैकै वे मौगे चाले मूँढ़ निओरा कै बायरै कड़ गये। देखौ जौ मैंदाबाई की चतुराई कौ खेल हतो कै ऊकी इज्जत बच गई उर हरामियँन खौ दण्ड मिल गओ। वे चारई जनें एक दूसरे के कुकर्मन खौ तौ जानई गये ते। अकेलै काँसे कौ सुर काँसई में बनो रओ। वे चारई जनें एक दूसरे खौ मौ दिखाबे में शरम खान लगे। उर उदनई सै उन औरन ने कुकरम ना करबे की कसम खा लई ती। बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी।

बुन्देली लोक गाथाएं 

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