Pai Pai Karat Firo पई-पई करत फिरो-बुन्देली लोक कथा  

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Pai Pai Karat Firo पई-पई करत फिरो-बुन्देली लोक कथा  

ई कहावत कौ सोऊ बुन्देलखण्ड में भौतई प्रयेाग करो जात। Pai -Pai Karat Firo ई कहावत की सोऊ एक हल्की सी कानियाँ है। एक गाँव में एक गरीबला सौ बामुन रत तौ। ऊकी घरवारी उर बाल बच्चा कोऊ नई हतो। वौ तौ कोरौ निगर दम्म हतो। ऐसी कानात कन लगत कैं ‘जितै मिली दो, उतै रये सो’ कमाई तौ कछू हती नई उर ई जुग में बामनन खौं का धरो।

दिन भर दोरन दोरन फिरकैं चुटिकियँन-चुटिकियँन सेरक चूर जुर गओ, सोऊ शाम कैं कोनऊ पथरा पै हुन चून माँड़कै एक डबुलिया में पानी भरकें अगल बगल सें कंडी बीन कैं भटी लगाकैं रोजऊ गकरियाँ सेक लेत ते। उर पानी उर नौंन के संगै गुटककैं अपनौ पेट भर लेत ते। ऐसई ऐसै उन की कैऊ सालैं कड़ गई ती।

एक दिनाँ घूमत फिरत-फिरत ऊकौ सेरक चून जुर गओ, दिन भर कौ भूकौ लाँगो धरो तो। शाम होबे वारी हती। चून माड़बे के लाने ऊनौ कोनऊ टाठी कुपरिया तौ हती नई। जितैं पानी उर चून माँड़बै लाख पथरा मिलजात तो उतै चून माँड़कैं गकरियाँ बना ले ते। उदनाँ उने कितऊँ ढँग कों ठौर-ठिकानौ नई दिखानौ। ऊने सोसी के ई गाँव के बायरे के कुआँ पै अच्छी चिकनी कुआँ की पाट है उर उतै पानी कौ इंतजाम है। जासोसकैं वौ पनिहारन सैं एक डबला में पानी लैकें ओई पाट पै हुन चून माँड़न लगो।

पानी भरबे वारी गाँव की औरतन खौं परेशानी होंन लगी। औरत जईसैं ऊ पाट पै पानी भरे सोऊ ऊसैं कन लगे कैं तनक माई खौं सरकियौ भइया। वौ सरक-सरक कैं हैरान हो गओ। भीर के मारै चून माँड़ई नई पा रओ तो। ऊकी दशा देखकैं कछू औरतन खौं दया आ गई। उनमें सैं एक जनी बोली कैं भइया जौ चून तुम हमें दै दो। हम घरै जाकै तुमें रोटी पै दैंय। तुम उतई आकै रोटी खा लिइयौ।

सुनतनई उयै भौत खुशी भई। ऊनें सोसी कैं ‘नेकी उर पूँछ- पूँछ’ ऊने तुरतई वौ मड़ो मड़ाओ चून ओइयै गुआ दओ। उर वा चून लैकैं चली गई। जातन में वे ऊसैं पतोई ठिकानौ नई पूछ पाये। उनें कछू खबरई नई रई। उर वा औरत मड़ों मड़ाओ आटौ उठाकैं अपने घरैं चली गई। बड़ी देर नौ तौ वे कुआँ की पाट पै बैठे-बैठे बनी बनाई रोटियँन की बाठ हेरै रये। अकेलैं वा औरत उनके लिंगा रोटी लैकै नई पौंची।

वे बैठे-बैठे हार गये उर भूकन के मारे आतें सुड्डी जा रईती। हराँ-हराँ लौलइया लग गई। उन्नें सोसी अब इतै बैठे-बैठे का करे। गाँव में चल फिरकै कछू पतों लगावन दो। ऊकौ नाँव उर घर कौ तौ कछू पतो हतो नई। ऊने सोसी कै गाँव के हर घर के दोरे में ठाँढ़े होकैं तो लगावन दो। क्याऊँ ना क्याऊँ लाग लगई जैय।

वौ हर घर के दोरे में हुन ठाँढ़ो होकै पूछन लगो कैं काय बाई पई, काय बाई पई। ऐसई ऐसे काय बाई पई, काय बाई पई, करत ऊने पूरौ गाँव मजया लओ। अकेलै कोऊ ने नई कई कै हओ हमने पई। अब वौ पूरी तरा सै निराश होकै बैठ गओ। जल्दी-जल्दी में वौ एक घर छोड़ गओ। बैठे-बैठे उयै अचानक खबर आ गई कै अरे हमने ऊ घर मैं तौ पूछई नई पाई।

उर वौ ओई घर के दोरै ठाँढ़ो होकैं पूछन लगो कैं काय बाई पई। भाग से भीतर सें एक जनी बोली कै हओ भइया कबहुँ की रोटी पईधरी उर तुम अबै आ आये। हम कबहुँ की तुमाई बाठ हेरैं। आव अच्छी तरा सै बैठकैं रोटी खालो। ऊनें भरपेट रोटी खाई उर शान्ति सें चलो गओ। उद नई सै जा कानात चल गई कैं पई-पई करत फिरों जिसकौ अर्थ है निराश होकै दर-दर भटकबो। ई कहानी सैं कहावत की सत्यता सिद्ध हो जात है।

गहनई लोक गाथा