Kanjoos Sahukar कंजूस साहूकार-बुन्देली लोक कथा

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जा कहानी एक ऐसे Kanjoos Sahukar की आय बाकी जान चाय चली जाए पे एक चुवन्नी ना जाए, मईं  एक गाँव में एक गरीबला सौ बामुन रत्तो। पढ़ो-लिखो तौ पूरौ हतो अकेलै घर में पइसा टका की हमेशा तंगी बनी रत्ती। अपनें बाल बच्चन कौ पालवौ मुश्कल हो रओतो। कन लगत कैं सरसुती उर लच्छमी कभऊँ एक जगाँ नई रती। जितै लच्छमी हैं उतै सरसुती कौ नाँव निशान नई हो सकत उर जितै सरसुती हैं उतै लच्छमी तौ ढूँकई नई सकत। ऐई कारन सैं बामुन देवता हते तौ विद्वान अकेलैं हमेशई पइसा टका की तंगी बनी रत्ती।

एक दिनाँ उन्ने  सोसी कै उतै घरै बैठे बैठेका करे कछू पइसा टका कमाबे कौ उपाय करन दो। उन्ने एक कागज के चुटका पै लिखो-
पिता लोभी, माँ ममता की
होते की बहिन, अनहोते कौ भइया,
पइसा होबै हाथ, जोरू रैबै साथ,
झुन झुनी शहर, सोबै सो खोबैं, जागैं सो पाबैं।

ऐसौ लिखकैं उन्नें सोसी कै उयै बेंचकैं कछू रुपइया मिल जैय, जिनसैं कछू दिना कौ काम चलैं। ऐसी सोसकैं वे वौ परचा हाँथ में लैकैं बजार में बेंचबै खौं फिरन लगे। अकेलैं कोऊ नई हेरो उनके ऊ परचा कुदाऊँ। बिचारे गेरऊ फिरत-फिरत हार गये उर मन मारकैं मौगे चाले उतै एक चौतरा पै मूँढ़ झुका कैं बैठ गये।

जौ सब तमाशौ उतै बैठो एक साहूकार कौ लरका देख रओ तौं ऊने सोसी कैं ऊ कागद में कछू काम की बात जरूर लिखी हुइयै। तबई तौ जौ बामुन उयै पच्चीस रुपइया में बेचबे खौं फिर रओ। जा सोसकै ऊ लरका ने पच्चीस रुपइया में वौ कागद कौ परचा खरीद कैं धर लओ। जौ सब तमाशौ उतै बैठौ एक परोसी दुकानदार देख रओ तौ।

इते कई में ऊ लरका कौ बाप अपनी दुकान पै आ गओ। ऊ परोसी दुकानदार ने ऊके बाप सैं शिकात कर दई कैं तुमाओ लरका बड़ों मिटौनिया है। बताव तौ ऊनें एक हल्के से कागज के पुरजा खौं पच्चीस रूपइया में खरीद लओ। ऐसई ऐसै तौ वौ पूरियई गिरस्ती चौपट कर डारैं। सुनतनई सेठ जी आग बबूला हो गये। कंजूस तौ भौत हतेई वे। पच्चीस रुपइया का गये उनके तौ प्रानई से कड़ गये।

उन्नें गुस्सा में आकैं लरका सैं कै दई कै तै आज सै ई घर में मौ नई दिखाइयै। अब हम तोरी सूरत नई देखन चाऊत। लरका सोऊ बड़ों कड़ाचून हतो। वौ वेऊ कागद को पुरजा लैकै घर सैं बायरै कड़ गओ। ऊकी मताई ने देखौ कैं हमाओ लरका घर छोड़कैं परदेशैं जा रओ है। वा दौर कैं ऊके लिंगा कन लगी कैं बेटा तुम तनक ठैरियौ, मैं घरै होकै अब्बई आ रई हों।

मताई की बात मान के लरका उतई तनक ठैर गओ। मताई जल्दी-जल्दी घरैं भगत रई उर जल्दी सै चार लडुवन में चार ठौवा लाल खोस कैं ऊके लिंगा लै गई उर कन लगी कै बेटा गैल के कलेवा के लानें जे लडुवा लेत जाव। गैल में जितै भूक लगे सौ एक-एक खाकैं पानी पियत जइयौ। इत्ती कै कै असुवा पोंछत मताई घरै लौट गई।

लरका नें अपनी जेब में सै वौ बामुन कौ दओ पुरजा काड़कैं पढ़ो सो ऊमें पैलां लिखो तौ कैं ‘पिता लोभी माँ ममता की’ पढ़तनई जा बात ऊके हिरदे में बैठ गई। ऊनें सोसी कै देखौ जाऊँ बामुन की बात तौ सोरा आना साँसी कड़ी। भली हमें परदेश जानें आ रओ, अकेलैं जीवन के लाने सबसै बड़ों मंत्र मिल गओ। अब आगे चलो। ऊने सोसी कै इतै पास के गाँव में हमाई बैन रत। चलो ओई सैं मिलत जाँय।

वौ चलत-चलत ओई बाग में जितै बैंन के घरैं जातन में ठैरत तो। ऊनें बगीचा में जा कैं मालिन सैं कई कैं तुम हमाई बैन खौं जाकैं खबर कर दो कैं तुमाओ भइया बाग में ठैरो है।
उयै फटे हाल देखकैं मालिन कन लई कैं हम नई जात जा खबर दैबे। तुम ऊके भइया होई नई सकत। उनके भइया तौ इतै बड़े ठाट-बाट सैं आऊत ते। तुम तौ कोनऊ भिकारी कंगीरा से दिखात हों। लरका बोलौं कैं जातौ सही हमाई बैन चम्पा खौ हमाओ नाव बता दिइयै कै तोरौ हल्कौ भइया रमेश आव है।

मालिन गई, उर ऊकी बैंन चम्पा सैं कई कैं तुमाओ भइया रमेश बगीचा में ठैरो है, उर भूकौ है उयै दो ठौवा रोटी खाबे खौं लै चल। वा बोली कै हमाओ भइया तौ कभऊँ इतै भूको प्यासौ नई आ सकत। कोऊ और हुइयै तै हमाई भइया की हँसी तौ नोई कर रई। लै जे दो रोटी लै जा उर उयै खाबे खौ दै दिइयै। मालिन रोटी ल्आई उर ऐसअई कैकै बे दो रोटी ऊके हाँत में गुआ दई। लरका नें दोई रोटी ओई पेड़ैं के नैचें गड्ढा खोदकैं गाड़ दई उर जेव सैं पर्चा काड़कैं पढ़ो जीमें लिखो तो होते की बहिन। जा तीसरी बात पंडित की साँसी हो गई।

ऐसी सोसकैं वौ आगे खौं चल दओ। सोसन लगो कैं कजन हम नौ पइसा हो तौ, तौ हमाई बैन दौरके हम सै मिलवे आउती। कन लगतकैं छूँछे तुमै कोउने नई पूँछे। वौ लरका उतै से चलकैं सूदौ अपनी ससुरार के सिहिर में पोचौ। ऊकी घरवारी तौ मायकई में हती। उतै पौंचत-पौंचत रात हो गई ती। ऊनें सोसी कै रातकैं काऊके घरै जाबौ ठीक नइयाँ। भुन्सराँ मौका परे तौ देखी जैय।

अकेलै ऐसे फटे हाल ससुरार में जाकै का करें वे बड़े आदमी है। हमाये जाये सैं उनकी तौहीनी हुइयैं। ऐसी सोसत बिचारत आदी रात हो गई। हारे थके मजल के मारे उर भूके प्यासे तौ हतेई। भड़भेरी खात-खात भड़भूँजा की दुकान में पौंच कैं ओई की भटिया नौं जा डरें। भूके प्यासे हते बैसै नींद तौ आई नई ती।

इतेकई में क्याऊँ सैं गस्त देत ऊ सिहिर के कोतवाल साव एक हल्की सी गठरिया लयें ओई दुकान में कोआ परो है। सेठ कौ लरका बोलो कैं मालक मैं एक गैलारो आव। आदीरात हो गई उर क्याऊँ ठौर नई मिलो सो रात काटबे इतै आ डरो। कोतवाल बोलौ कैं कजन ई दुकान की चोरी हो जैय, तौ बड़े भुन्सराँ तैंई पकरो जैय।

लरका बोलौ कै मालक अब आदीराते हम कितै जाँय। कोतवाल ने कई कै अब तुमें कितऊ नई जानें। जा गठरिया लैकैं तुम अब हमाये संगै चलौ। अब वौ करई का सकत तो गठरिया लैकैं कोतवाल के पाछैं-पाछैं चलो गओ।

कोतवाल गाँव के सेठ के मिहिल के दौरें ठाँढ़ो होकैं छिड़ियँन- छिड़ियँन एक अटापै चढ़त गओ उर पाछै-पाछैं गठरिया लै कैं वौ सेठ कौ लरका चलो गओ। अटा खौं देखतनई पैचान गओ कैं जौतौ हमाई ससुरार कौ घर आय। ऊनें देखो कैं ई अटा पै ऊकी घरवारी कौ डेरा है। उर वा ई कोतवाल सैं प्यार करत है। उर जौ आदीराते ओई सैं मिलबे आ जा रओ। हमाई घरवारी तौ वज्र छिनार हो गई। अब वा हमाये का काम की रई।

कछू देर छिड़ियन पै ठाँढ़े-ठाँढ़े उन दोइयंन के प्यार मुहब्बत की बातें सुनत रये उर फिर बायरैं कड़कैं अपनो सो मौ लैकै रुआयदे से उतै सै लौट आये। उर बायरैं बैठकै वौ पर्चा काड़ कैं पढ़ो। ऊमें लिखो तौ ‘पइसा होबै हाथ जोरू दैबे साथ।’ हमनौं पइसा नइयाँ सो हमाई घरवारी ने हमाओ साथ छोड़कै कोतवाल के संगै रँगरेलियाँ मना रई है। बामुन देवता की जा बात सोरा आना साँसी कड़ी।

ऐसी सोसत भुन्सारे पारैं भूके-प्यासे गिरत उठत आगे खौं चल दये। चलत-चलत वे झुनझुनी सिहिर में पौंचे। उन्नें सोसी कैं इतै कोनऊ खास बात हुइयैं ऊनें जेब में सै वौ पुरजा काड़कै पढ़ो। ऊमें  लिखो तो कैं-‘जो जागैं सो पाबैं उर जो सोबैं से खोबैं। परचा पढतनई वौ मन ई-मन सतर्क हो गओ ऊ सिहिर सैं।

वो उतै जाकै एक धरमशाला में ठैर गओ। झुनझुनी सिहिर के राजा की एक खूबसूरत राजकुमारी हती। रात कैं पैरो दैबे खौ रोज एक आदमी पौंचाव जात तों ऊ राजकुमारी के पेट सैं आदी रातें एक साँप निकरत्तो। पैरे वारौ उतै जा कै सो जात तो उर साँप निकरत्तो। उर साँप उयै डस लेत तो। ऐसई ऐसै सैकरन आदमी मर गये तें उतै। कोऊ आदमी उतै जाबे तैयार नई होत तौं। तुमें पैरो देंबे जानें। ऊ रात खौं सिपाइयँन ने उयै जगा कैं कई कैं देखौ, तुमे पैरे देने हैं। आज वे करई का सकत ते?

मौगे चाले पैरो दैबे खौं तैयार हो गये, राजा की आज्ञा खौं  वे कैसे टार सकत ते। उन्ने परचा तौ पैल पढ़ई लओ तो जो सोबै सो खोबै। वे सूदे राजकुमारी के मिहिल में जाकै मौगे चाले चिमा कैं पर रये उर सोसन लगे कैं देखौं आज रात कैं का होत? उर इतै रात कैं आदमी काय मर जात।

एक तरवार लैकैं दूर एक बगल में पर रये उन्ने देखों कैं आदी राते राजकुमारी के पेट सैं एक साँप कड़ो उर वौ सूदौ लफरयात इन कु दाँऊ खौं झपटो। वे तौ जगई रयेते उन्नें अपनी तरवार सैं साँप के टुकड़ा करकै ढाल तरे ढाँक कैं धर दओ उर फिर वेफिकर होकै सो गये।

बड़े मुन्सरा मरे आदमी के उठाबे के लाने मैंतर आउत तें उतै पौंचत नई जमादार सन्न होकै रै गये। अरे आज कौ आदमी तौ मरऊ नइयाँ वौ तौ आराम सै सो रओ। उनन नें दौर के राजा खौ खबर दई राजा दौरत-दौरत उतै पौंचे। उयै सोऊतन देख कै सनाकौ खाकैं रै गये सोसन लगे कै इयै तौ मर जाव चइये जौ कैसे जियत रओ?

राजा ने उयै जगा कैं कई कै भइया साँसी बताव तुम कैसें बचे रयें वौ बोलो कैं हम रात भर जगकैं सोसत रये कैं इतै आदमी कैसे मर जात? एक साँप पेट सैं कड़ कैं जई से हमाई तरफ झपटो सो हमतौ जगई रये तें सोऊ हमने तलवार सैं उयै काट कैं ढाल तरे ढाँक कै धर दओ। राजा ने ढाल उगार कै देखो सो उतै मरो साँप देख कैं पूरौं-पूरौं विश्वास हो गओ।

राजकुमारी कौ ब्याव सेठके लरका संगै कर दओ उर उयै अपनौ आदौ राज दै दओ। कछू दिना तौ वे दोई जनें उतै आराम सै रये। एक दिना ऊनें अपनी रानी सैं कई कैं अब इतै रत-रत बिलात दिना हो गये। हम अपने घरै जान चाऊत। राजा ने प्रेम सै फौज पल्टन उर कुल्लन कर्ता काम दारन के संगै बाजे गाजे सैं अपनी बिटिया की विदा कर दई। सबसै पैलाँ वौ लरका फौज फाँटे सैं अपनी ससुरार में पौंचो।

सास-ससुर उर सारन नें सुनी सो वे बड़ी आब भगत सै अपने घरै लोआ गये। उन्ने उनकी खूब खातरदारी करी। वे उतै दो तीन दिनाँ रूके उर कन लगे कै देख रेख करवे के लानें एक कोतवाल की जरूरत है। सो अपने सिहिर के कोतवाल साव खौं हमाये संगै पौंचा देव। बोले कैं लाला साव जौ कौन बड़ी बात है। कोतवाल साव की फूँद में हुन कड़ गई। ऊनें सोसी कैं जब साहूकार की बिटिया इतैं सैं जा रई तौ हम इतै अकेले रैकैं का करें। उतै ऊके संगै छक्के पंजे उड़ैं।

सास-ससुर नें अच्छे बाजे-गाजे सैं दामाद के संगैं बिटिया की विदा कर दई। वे बड़ी शान सैं उतै सैं चलत-चलत अपनी बैन के गाँव में पौंचे उर अपने दल-बल के संगै ओई बगीचा में जा ठैरे। उन्नें ओई मालन सैं कई कैं जाव तुम हमाई बैन चम्पा सैं कइयौ कै तुमाव भइया फौज पल्टन के संगै बगीचा में ठैरो है। जई सैं ऊनें सुनी कैं हमाव भइया बड़े ठाट सैं अपने गाँव में आ गओ है। ऊनें बड़ी हाल फूल सैं अपनी देवरानी उर जिठानी खौं लोआ कैं अपने भइया सैं मिलवे खौं दौर परी।

उतै जाकैं भइया उर दोई भौजाइयँन सैं खूब मिला भेंटी भई उर फिर राजी-खुशी की बातें होन लगीं तनक देर में भइया ने हँसिकै ऊ पेड़ैं तरैं गड़ी रोटी उखार कैं दिखाई उर कन लगे कैं देख जब हम कंगाली में हते उर इतै आये तौ तैनें मालिन के हाँत सैं जे दो रोटी पौचाई तीं। उर आज हमनौ मन मुक्ती धन संपत्ति है सो तैं इतै हम सैं मिल कैं छाये फाए कर रई है। तैं तौ होते की है। तोरौ प्रेम तौ अपने भइया सैं स्वारथई कौ रै गओ।

सुनतनई चम्पा कौ मौं उतर गओ। उर वा शरम के मारैं अपने भइया सैं कछू नई कै पाई। उर मौगी चाली अपने घरैं लौट गई। फिर वौ लरका अपनौ फौज फांटो लैकैं अपने घर कुदाऊ खौं बढ़ो। चलत-चलत जब वौ सिहिर के लिंगा पौंचो सों खूबई बाजे बजवाये उर हल्ला कराव। जब उतै के साहूकार खौं  पतो परो कैं कोनऊ राजा हमाये सिहिर पै चढ़ाई करबे आ गओ है। सो वौ साहूकार भेंट लैकैं ऊसैं मिलबे खौं गाँव के बायरैं पौंचो।

उयै आऊतन देखकैं दूर सैं ऊनें चीन लओ कैं जे तौ हमाये पिताजी आँय। जई सैं वे लिंगा पौंचे सोऊ वौ दौर कैं उनके गोड़न पै गिरो। दोई बऊयें अपने ससुर के पाँवन पै गिरी। साहूकार अपने लरका कौ ठाट-बाट देख कैं झेंप कै रै गओ। उर अपनी गल्ती पै पसतान लगे।

फिर तनक देर में ऊनें कोतवाल खौं बुला कैं कई कैं कोतवाल साव हमाई तुम पै उधारी डरी है। उदना रात कैं हम तुमाई गठरिया लैकैं गये ते उर तुमनें हमें लिखकैं दई ती कैं हम तुमें एक धेला मजूरी दैय। उर कजन हम नई दै पैय, तौ दिन दूनौ उर रात चौगुनौ तुमाव ब्याज चुकायें। देखौ जौ परचा तुमाई हाँत कौ लिखो आय।

सुनतनई उन कोतवाल साव उर पैली घरवारी के होश उड़ गये। उर वे दोई जनें छत्त पै सैं कूँद-कूँद कैं मर गये। उन दोई जनन खौं अपने कुकरमन की सजा अपने आप मिल गई। उयै कछू करने नई आव। अब वौ साहूकार कौ लरका उर राजकुमारी ठाट सैं अपने घरै रन लगे। उनके मार्ग कौ कंटक उन औरन के सामैं सैं अपने आप टर गओ। कुकरम कौ फल कभऊँ अच्छौ नई होत। बाढ़ईनें बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी।

बुन्देली लोक कथा परंपरा 

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