Teen Bhai तीन भाई- बुन्देलखण्ड की लोक कथा

Teen Bhai तीन भाई- बुन्देलखण्ड की लोक कथा

एक समय की बात है कि एक शहर मे तीन भाई Teen Bhai रहते थे और उसे शहर में एक  जादूगरनी थी। वह रोज रात को बाज का रूप धरकर एक मंदिर की खिड़कियाँ तोड़ डाला करती थी। उसी गाँव में तीन भाई भी रहते थे और उन्होंने यह ठान लिया था कि जिस प्रकार भी हो, वे उस आतताई बाज को मारकर ही छोड़ेंगे।

पहरा देने की मेहनत दो भाईयों की वृथा ही गई, क्योंकि ज्यों ही बाज आकर ऊपर आकाश में मंडराता, त्यों ही वे घोर निद्रा के वश में हो जाते और खिड़कियों के टूटकर गिरने की आवाज से ही उनकी नींद खुलती।

तब छोटे भाई ने खिड़कियों की रक्षा का भार अपने ऊपर लिया और बहुत से कांटे उसने अपनी बेड़ी के नीचे इसलिये लगा लिये कि यदि निद्रा के वश हो उसका सिर झुके तो कांटों के गड़ने से उसकी नींद खुल जाये। ऐसी निर्मल चाँदनी छिटक रही थी मानो दुपहरिया चल रही हो। इतने में उसे भारी कोलाहल सुनाई दिया और उसी समय उसे नींद ने बड़े जोर से दबाया।

उसकी आँखें झपक गईं और उसका सिर झुकने लगा। त्यों ही जोरों से कांटे चुभे, उनकी पीड़ा से उसकी नींद खुल गई। उसने बाज को मंदिर की ओर टूटते देखा और क्षणमात्र में अपनी बन्दूक सम्भाल कर बाज पर चला दी। दाहिने पैर में जख्मी होकर बाज एक बड़ी शिला की बगल में गिर पड़ा। उसे देखने के लिये जब वह युवक दौड़कर वहाँ पहुँचा तो उसने देखा कि वहाँ पर तो एक बड़ा गहरा गढ़ा हो गया है।

वह तुरन्त जाकर अपने भाईयों को लिवा लाया और उनकी सहायता से एक रस्सी के छोर में घास का बड़ा सा पूला बांधा और उसमें आग लगाकर उसे धीरे-धीरे उस गर्त में उतारा पर उसमें इतना अंधेरा था कि उनको गर्त की पाषाणी दीवालों के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं देता था।

छोटा भाई उसकी थाह लेने की ठान कर, रस्से के सहारे उस गर्त में उतर गया। उसके तले में पहुँचकर उसने देखा कि वहाँ पर हरी दूब का एक विशाल मैदान है, जिस पर अनेक हरे-भरे पेड़ लगे हैं और सुगन्धित सुन्दर फूलों की झाड़ियाँ हैं।

इस विशाल मैदान के बीचों बीच पाषाण का भारी दुर्ग बना हुआ था। उसका फाटक लोहे का और था वह खुला हुआ। दुर्ग में सभी वस्तुएँ तांबे की बनी मालूम देती थीं। एक युवती के अतिरिक्त उसे उस दुर्ग में कोई प्राणी दिखाई नहीं दिया। वह अपने लम्बे नागिन से काले केशों को ऊँछ रही थी। ध्यान से निहारने पर युवक को मालूम हुआ कि वह गौरी और कमल सी कोमल है, उसके कजरारे, खंजन से सुन्दर और चमकीले नेत्र देखते ही बनते थे और उसकी लम्बी घुंघराली काली लटें पीठ पर लहराती हुई हठात् हृदय को खींचे लेती थी।

उसे देखते ही युवक जी-जान से उस पर निछावर हो गया और उसके सामने घुटने टेक कर उससे अपने साथ विवाह कर लेने के लिये विनती करने लगा। उस सुन्दरी युवती ने सहर्ष उसकी विनती स्वीकार कर ली, पर साथ ही साथ उसने बताया कि जब तक उसकी जादूगरनी वृद्धा माँ जीवित है, तब तक वह उसके साथ पृथ्वी पर नहीं जा सकती। फिर उसने यह भी बताया कि दुर्ग में जो एक तलवार रखी है, उससे ही वह वृद्धा मारी जा सकती है, पर वह तलवार, इतनी भारी है कि किसी की सामर्थ्य नहीं कि उसे उठा सके।

फिर युवक एक दूसरे कमरे में गया। वहाँ पर सब वस्तुएँ चाँदी की थी और वहाँ उसे एक दूसरी सुन्दरी मिली। वह इसकी विवाहिता की बहिन थी। वह भी अपने सुन्दर कृष्ण वर्ण लछारे केशों को ऊँछ रही थी। उसने युवक को वह तलवार दी, पर हजार कोशिश करने पर भी वह उसे उठा न सका। फिर तीसरी बहिन भी उसके पास आ गई। उसने उसे कुछ पीने के लिये दिया, जिसके पीने से, उसने बताया कि उसमें तलवार उठाने योग्य शक्ति आ जायेगी।

युवक ने एक घूँट पिया, पर तब भी वह तलवार को न उठा सका। दूसरा घूँट पीने पर वह तलवार को कुछ हिला सका और तीसरा घूँट पीते ही वह सरलता से तलवार को उठाकर घुमाने फिराने लगा। फिर वह छिपकर वृद्धा जादूगरनी की बाट जोहने लगा। अंधेरा होते-होते वह आ पहुँची। आते ही वह एक सेव के विशाल वृक्ष पर झपटी और कुछ सुनहले सेव गिरा लेने के बाद वह धरती पर आन उतरी।

ज्यों ही उसके पाँव धरती पर लगे, त्यों ही वह बाज का रूप छोड़कर स्त्री बन गई। उसी क्षण की युवक बाट जोह रहा था। तलवार के एक ही भरपूर वार में उसने जादूगरनी का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसकी कटी गर्दन में से लहू की पिचकारी ने किले की दीवालें तर कर दीं।

अब निर्भय होकर युवक ने किले में सारा धन बड़े-बड़े सन्दूकों में बन्द कर अपने भाईयों को संकेत किया कि उनको उस गर्त में से ऊपर खींच ले। पहले तो धन-रत्न युवक ने रस्से से बांधा और फिर उन तीन युवतियों को। अब सब ऊपर पहुँच गये और वह स्वयं ही अकेला नीचे रह गया। उसे अपने भाईयों पर सन्देह था। अतः उसने बड़ा भारी पत्थर रस्से से बांधकर उनको ऊपर खींचने का संकेत दिया। पहले तो उन्होंने दम लगाकर उसे खींचा; पर जब वह अधबीच पहुँचा, तब उन्होंने उसे छोड़ दिया। सो, वह तले में गिरकर चूर-चूर हो गया।

यह देख युवक ने खिन्न होकर कहा-‘यदि मैंने कहीं उन पर विश्वास किया होता तो मेरी हड्डियों का भी यह हाल होता।’ तब वह दुःखी हो फूट-फूटकर रोने लगा। धन के लिये नहीं; किन्तु उस सुन्दरी युवती के लिये, जिसके लम्बे, घुंघराले केश थे और थी उसकी सुराही सी सुन्दर ग्रीवा। बहुत दिनों तक वह उस सुन्दर पाताल देश में विचरता रहा।

एक दिन उसकी भेंट एक जादूगर से हुई। उसने उसके दुःखी होने का कारण पूछा। युवक ने ओर से छोर तक अपनी बीती सुनाई। जादूगर ने युवक को आश्वासन देते हुये कहा-‘हे युवक! यदि तुम उस सुनहले सेव के वृक्ष में छिपाये हुये, बालकों की रक्षा करो तो मैं चुटकियों में तुम्हें पृथ्वी पर पहुँचा दूँगा।

दूसरा जादूगर जो कि इसी देश में रहता है, मेरे बच्चों  को खा जाया करता है। उनको मैंने पृथ्वी के गर्भ में छिपाया, दुर्ग के तहखानों में छिपाया पर उनकी रक्षा करने के मेरे सभी प्रयास बेकार  हुए। अबकी बार मैंने उन्हे  सेव के वृक्ष में छिपाया है। तुम भी वहाँ जा छिपो। आधी रात को मेरा शत्रु आयेगा।

युवक उस वृक्ष पर चढ़ गया और कुछ सुन्दर सुनहले सेव तोड़कर उसने उनकी ब्यालू की। आधी रात के समय जोरों से हवा चलने लगी और वृक्ष की जड़ में सरसराहट की आवाज आने लगी। युवक ने वृक्ष के नीचे देखा तो उसे एक बड़ा भारी सर्प वृक्ष पर चढ़ता हुआ दिखाई दिया।

 वह वृक्ष के तने में लपेटे लगाकर धीरे-धीरे वृक्ष पर चढ़ने लगा। वह अपना सिर, जिसमें कि उसकी भयानक आँखें मसाल-सी जल रही थी, वृक्ष की टहनियों के बीच, बालकों की खोज में, घूमाने लगा। बालक बिचारे उस भयानक सर्प को देखकर, थर-थर काँपते हुये, पत्तों के नीचे छिपकर, उससे बचने का प्रयत्न करने लगे।

तब युवक ने तलवार का एक ऐसा हाथ मारा कि सर्प का सिर भुंटिया-सा धरती पर जा गिरा। फिर सर्प के धड़ के छोटे-छोटे टुकड़े करके चारों दिशाओं में फेंक दिये। रक्षित बालकों का पिता शत्रु के नाश हो जाने से इतना प्रसन्न हुआ कि उसने युवक को अपनी पीठ पर चढ़ाकर उसे पृथ्वी पर आँख झपते पहुँचा दिया।

लम्बे डगें धरता हुआ वह प्रसन्न चित्त अपने भाईयों के घर पहुँचा और धड़धड़ाता हुआ उस कमरें में पहुँचा, जहाँ कि सब जनें जमा थे, पर कोई उसे पहचान न सका। केवल उसकी पत्नी, जो कि अपनी बहिनों को भोजन परोस रही थी, अपने पति को देखते ही  पहचान गई।

उसके भाई, जो कि उसे मरा हुआ समझ बैठे थे, फौरन उसका धन उसे सौंप और भयभीत हो घर छोड़ भागे। किन्तु उस भले युवक ने उनके सारे अपराधों को क्षमा कर दिया और धन का हिस्सा करके आपस में बांट लिया। फिर उसने अपने लिये एक विशाल दुर्ग बांधा, जिसकी खिड़कियाँ सोने की थीं और उसमें वह घुंघराले काले केशों वाली अपनी मृगनयनी पत्नी के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करने लगा।

गहनई लोक गाथा – बुन्देली ( बनाफ़री ) 

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