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Shri Ram Ki Agni Pariksha श्री राम की अग्नि परीक्षा

वरिष्ठ कवि साहित्यकार हिन्दी -बुन्देली के मर्मज्ञ  डॉ. सुरेश “पराग” जी द्वारा रचित ‘श्री राम की अग्नि परीक्षा’ Shri Ram Ki Agni Pariksha पुस्तक के विषय में पद्मश्री डॉ अवध किशोर जड़िया जी  एवं रामप्रकाश त्रिपाठी ‘रामायणी’ जी के विचार ।

पद्मश्री डॉ अवध किशोर जड़िया जी के विचार प्रस्तुत हैं
मनोविज्ञान की सूक्ष्मतम तरंगों को रूपायित करती लेखनी, पात्रों के द्वारा संवेदना की प्रखर प्रस्तुतियों से शब्दायित होते सात्विक सनातनी और शुचिता के प्रसंग अपने नए संदर्भों में उपस्थित होते हैं। पाठक, लेखक के बहु आयामी और सहज तर्कों को अपने मन मानस के अनुकूल पाता है और कथ्य की विवेचना को गहराई से आत्मसात करता है फलतः लेखक की मार्मिकता को अंगीकार करता चलता है।

डॉ ‘पराग’ भावुक और संवेदना के व्यक्ति हैं उनकी अभियक्ति भी उसी के समानान्तर होती है वे मन मानस के प्रसंग, परिस्थिति और द्रश्यों में डूब जाते हैं इसी कारण पूरा नाट्य प्रसंग साकार और सजीव हो उठता है। रस अपने चरमोत्कर्ष पर हो जाता है और कथ्य अभीप्सित लक्ष्य पर डेरा दाल देता है जिसका प्रभाव इतना व्यापक होता है कि पाठक कई दिनों तक झकझोरे गए मन के अधीन बना रहता है।

यही डॉ ‘पराग’ का जादू है। यही उनकी विशेषता है। यही उनकी बेवाक शैली का सत्य है। वे शब्दों के उचित चयन के सिरमौर हैं। उनकी सफलता का मर्म उनके चिंतन मनन शीलता का गाम्भीर्य, उनका अध्ययन ही उनके लेखन कर्म का सहचर्य है।

परम प्रभु के लीलाधाम में अवतरण के पश्चात उनके मानवीय आदर्शों को डॉ ‘पराग’ ने अपनेपम के नए तार्किक मूल्यों के अनुसार इस नाट्यकृति को गढ़ने और उन्हीं की तरह पढ़ने, देखने के लिए पाठक को विवश कर रखा है। यह उनकी अनूठी लेखन काला का आकर्ण्य है। पूरी कृति आदर्श के उन्नत भावों को सँजोकर रखती है तो करुणा से आप्लावित भी है। कारुण्य के अपरिहार्य दृश्य पाठक को गहरे में डुबोते हैं निश्चित ही एक नई अवधारणा नए परिवेश में एक नूतन कलेवर लेकर उपस्थित हुयी है।

उनकी सफलता का द्योतन कृति के द्वितीय संस्कारण के प्रकाशन से सिद्ध होता है। वे आदर्श और साहित्य के संवर्धन से सुपात्र सिद्ध होते हैं। डॉ ‘पराग’ एक सुपरिचित कवि हैं अस्तु उनका गद्य भी काव्यात्मक होना स्वाभाविक है। गदय शर्तें और काव्य के तत्व रस, भाव, अलंकरण का सौंदर्य उनकी नाट्य कृति में सर्वत्र दृष्टव्य है।

इस आदरेय कृति को मैंने तथा मेरे पूरे परिवार ने अनेक बार पढ़ा सुना और द्रवित हुआ। इसका वैशिष्ट्य अन्यतम है। उनके भास्वर भविष्य से गद्य कि तमाम शैलियों के और पद्य के सुगंधित प्रसुनौ कि साहित्याकाश को परिव्याप्त करेगी जिसका आनंद, वातावरण को प्रमुदित और गौरवान्वित मेरी अशेष शुभकामनाये।

                                                            पद्मश्री डॉ अवध किशोर जड़िया

रामप्रकाश त्रिपाठी ‘रामायणी’ उचेहरा, सतना के विचार प्रस्तुत हैं

अभिन्न हृदय श्री ‘पराग’
‘श्री राम की अग्नि परीक्षा’ अद्भुत पुस्तिका को पढ़ने पर कवि हृदय से उत्पन्न रस निर्झर ने मुझ जैसे प्रस्तर हृदय को द्रवीभूत कर दिव्यलोक में पहुँचा दिया।

मेरे जीवन में विशुद्ध वैचारिक आयाम की प्रधानता है। करुणार्द्र हेतु सदैव प्रभु से प्रार्थना करता रहा। श्री ‘पराग’ जी द्वारा प्रदत्त प्रणीत मधुर सुधा प्रवर्षणी लेखनी उद्भूत भाव सुधा संसिक्त शब्दावलियों से गुम्फित उक्त भावमयी पुस्तक को मैं प्रभु कृपा रूप स्वीकार कर अतिशय आह्लादित हो रहा हूँ।

सचमुच प्रभु के निमित्त सच्चे करुणा का सुखद परिवेश मुझे अप्राप्त था। यद्यपि देश के विभिन्न मानस सम्मेलन के मंचों में झूठी सम्वेदना, कोरी भावुकता, करुणा का प्रदर्शन रोने का अभिनय करने वाले रुदन सम्प्रदाय सम्वद्ध मानस मनीषियों के प्रवचन वर्तन से करुणा के स्थान पर हास्य तथा रौद्र रस की उत्पत्ति होती थी किन्तु सच्चे अर्थों में मुझे जिस अभीप्सित रस की अभिलाषा थी- उसे ‘श्री राम की अग्निपरीक्षा’ पुस्तक ने पूर्ण किया जिसके लिए आपको कोटिशः साधुवाद एवम् मंगल कामनाएँ।

श्री राम की अग्निपरीक्षा केवल भावना की ही कसौटी पर खरी ना उतर कर रमणीयता की कसौटी पर भी खरी उतरी है। प्रसादिगुण, अपूर्व, सरस, मधुर, वरेण्य, सुखावह एवम् गुणबोधक कृति में अत्यंत पवित्र उज्वल रस, वियोग अवस्था का सजीव वर्णन सा हृदय को उद्वेलित कर रहा है।

कलात्मक कमनीय कलेवर वर्णित विषय वस्तु भाव पूरक है। पुस्तक का पाठ आरंभ करने पर पूर्ण करके ही विश्राम लेना पड़ता है। यह वैशिष्ट्य अन्यत्र दुर्लभ है। बिन्दु में सिंधु समाहित उक्त भाव- वैदयूश युक्त पुस्तक जहाँ एक ओर साहित्यन्वेषकों के लिए आदर्श प्रस्तुति है वहीं दूसरी ओर अनुरागियों और धर्म प्रवण जिज्ञासुओं की चूणामणि।

राज धर्म का जीवंत स्वरूप जन मानस के समक्ष प्रस्तुत कर भगवान श्री राम के प्रति जो आक्रोश सीता निर्वासन से भावुक जनों में व्याप्त था एवम् धोबी के विरुद्ध भिन्न मानसिकता जो जन्म ले चुकी थी उसका गहन मेधा शक्ति से नाट्य परिसम्वाद द्वारा सच्चे अर्थों में उन्मूलन शमन किया गया। कृति से जिस रूप में भावना विवृत्त हुई वह कवि-लेखक के समन्वयी महद व्यक्तित्व का सुखद परिणाम है। अंत में बहु आयामी प्रतिभा के धनी युवा कवि-लेखक श्री ‘पराग’ प्रणीत ‘श्री राम की अग्नि परीक्षा’ रामायण जगत एवम् जन मानस के समक्ष एक मानक ग्रंथ में पहचानी जाएगी ऐसा निर्भ्रात विचार है।

                                                रामप्रकाश त्रिपाठी ‘रामायणी’ उचेहरा, सतना

बुन्देली आँगन 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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