Bundeli Aangan ‘बुंदेली आँगन’ पुस्तक की समीक्षा

Bundeli Aangan 'बुंदेली आँगन' पुस्तक की समीक्षा

किताब मिली “बुंदेली आँगन” लेखक – सुमित दुबे, प्रकाशक  – अमित प्रकाशन भोपाल

डॉ राम शंकर भारती जी द्वारा पुस्तक की समीक्षा…
साहित्य अकादमी , मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद एवं मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग भोपाल के सहयोग से प्रकाशित बुंदेली आँगन” Bundeli Aangan लोकसंस्कृति अध्येता, लोकगायक एवं रंगकर्मी मेरे अनुजवत प्रिय सुमित दुबे द्वारा लिखी गई बुंदेलखण्डी लोकसंस्कृति का दिग्दर्शन कराती महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक के माध्यम से हम अपनी बुंदेली लोक संस्कृति के तीज – त्योहारों, लोक परंपराओं, लोकगीतों, रस्मोरिवाजों, खानपान एवं लोकाचारों आदि को भलीभाँति समझ सकते हैं।

अस्सी के दशक में मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में पैदा हुए भाई सुमित दुबे विगत ढाई दशक से बुंदेलखण्ड के पारंपरिक गायन के अतिरिक्त बुंदेली लोकसंस्कृति के शोध विद्वानों में शुमार हैं। बुंदेली संस्कृति के संवर्द्धन के लिए आपको मध्य प्रदेश सरकार के अतिरिक्त अनेक प्रादेशिक व राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।

मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग के सहयोग से प्रकाशित ” बुंदेली आँगन ” पुस्तक के प्रकाशन पर श्रीयुत  सुमित दुबे को हार्दिक बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की  मंगलकामना करता हूँ।

श्री विवेक श्रीवास्तव जी द्वारा पुस्तक की समीक्षा…
पुस्तक ११२ पृष्ठों की है और इसमें जो संकलन है वो बुंदेली आंगन Bundeli Aangan ही नही  बुंदेली  सागर  सा है । एक एक शब्द स्वाभाविक स्वरूप में लिखे हुए हैं और लेखन की गति उसे और अलंकृत करती है । पठनीय रचना है और पढ़ते समय पन्ने पलटने का मन नही होता। हाँ चित्र सहित लेखन होता तो सोने पे सुहागा होता , बधाई प्रकाशक और लेखक दोनो को आनंद आ गया एक पुस्तक हाथ लगी और झटपट हमने पन्ने पलट लिए मेरे  शब्द पुस्तक के लिए। 

पुस्तक  का पहला पक्ष बुंदेली परम्पराओं और उत्सवों  को समाविष्ट करता हुआ है। एकदम सजीव वर्णन। लेखन में परिवेश और वातावरण का इतना सहज समावेश  हुआ है कि पाठक को लगेगा वह उस उत्सव में सम्मिलित हो रहा  जैसे “चीकट , सरे भरवों, झकर उतारबो आदि। लेखन हमें किसी त्योहार या शादी या अपने बचपन  में होने वाली घटनाओं से जीवंतता से जोड़ देता है। लेखक ने शब्दों में लोक बोली की सौंधी सुगंध सहजता से  प्रयोग की है जैसे लडुआ, खोंसना आदि बहुत उम्दा।

पुस्तक के दूसरे पक्ष में बुंदेली शब्दों का  ख़ज़ाना भरा है इनमे उपकरणो , रसोई में प्रयुक्त  युक्तियों, किसानी से सम्बंधित   यंत्रों और ना जाने कितने ही प्रयोग में  आने वाले शब्द का अर्थ और प्रयोग बताया है। पुस्तक का तीसरा भाग बुंदेली पक़वानो की सुगंध समेटे हुए है । इतना शानदार संकलन की पढ़ते पढ़ते अनायासही पकवान से भारी तश्तरी दिखने लगे जैसे बबरा, रसाजें, लहसुन की चटनी, और मीड़ा एक साथ मिल जाए तो क्या बात  वाह सुमित जी

पुस्तक का चौथा पक्ष बहुत ही रोचक है  आभूषण का  एकदम अल्हड़ लेखन और लेखक का  बारीक निरीक्षण दिखेगा बुंदेली आँगन में पाँचवा भाग है बुंदेली कहावतों या  अहाने का आपको पढ़कर ऐसा लगेगा सुदूर बुंदेली गाँव की पंचायत या  घेरे में बैठे बुजुर्गों के बीच बैठे हैं ।

“रूखी-सुखी नौन सी अपनी कएँ कौन से”

पुस्तक के अंतिम भाग में लोक देवी देवता और लोक गीतों में प्रयुक्त ईश नामों का उल्लेख है  ।  एकदम ठेठ बुंदेली अनुभूति बेहतरीन शब्द विन्यास और एकदम  देसी शैली मज़ा आ गया पढ़कर सुमित जी क्या संकलन किया आपने।

आपका पाठक
विवेक श्रीवास्तव इंदौर

सुमित दुबे का जीवन परिचय 

admin

Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.

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