Dr. Chandrika Prasad Dixit डॉ. चंद्रिका प्रसाद दीक्षित “ललित”

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Dr. Chandrika Prasad Dixit का जन्म 14 जुलाई 1942 को ग्राम टीसी, पोस्ट हसवा जिला फतेहपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ । आपके पिता का नाम आचार्य डॉक्टर दीनदयाल दीक्षित एवं मातृश्री श्रीमती देवरती दीक्षित। डॉ चंद्रिका प्रसाद दीक्षित की पत्नी श्रीमती डॉक्टर शशि प्रभा दिक्षित।

शिक्षा- M.A. हिंदी, पीएचडी हिंदी, डिलिट् हिंदी

कार्यक्षेत्र-  निवर्तमान प्रोफेसर अध्यक्ष हिंदी विभाग पंडित जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय बांदा।

संप्रति- राष्ट्रीय निदेशक ,चंद दास साहित्य शोध संस्थान, सिविल लाइंस बांदा उत्तर प्रदेश।

सम्मान एवं पुरस्कार
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा जयशंकर प्रसाद पुरस्कार, अभिशप्त शिला, प्रबंध काव्य पर

/> तीन विश्वविद्यालयों से डी लिट् की मानद उपाधि। 

महाकुंभ मेला प्रयाग के आंखों देखा प्रसारण के लिए कॉमेंटेटर। 

राष्ट्रीय रामायण मेला चित्रकूट के संस्थापक संचालक। 

विश्व हिंदी सम्मेलन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान से अलंकृत। 

भारतीय साहित्यकार संसद द्वारा तुलसी पुरस्कार, अंतर्वेदी साहित्य संस्थान द्वारा राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार। 

राष्ट्रकवि पंडित सोहनलाल द्विवेदी द्वारा अभिनव राष्ट्रकवि सम्मान। 

हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा राष्ट्र गौरव उपाधि तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत। 
कृतित्व
संपादन के क्षेत्र में ऐतिहासिक महान कवि चंदबरदाई से अभिन्न महाकवि चंददास कृत राम विनोद महाकाव्य,

राम जन्म भूमि का साक्ष्य प्रस्तुत करने वाला ऐतिहासिक महाकाव्य

संत लाल दास कृत अवध विलास  महाकाव्य ,

संतकबीर की परंपरा के उत्तर भारत के महान संत,

संत मीता दास कृत मीता ग्रंथावली तथा मुंशी फकीर बख्श विनीत कृत विनीत सतसई आदि ग्रंथों का सटिप्पण संपादन

अभिशप्त शिला , प्रबंध काव्य एवं दर्जनों काव्य कृतियां,  कतिपय विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित है।

राहुल सांकृत्यायन एवं आचार्य पंडित दीनदयाल दीक्षित पितृ श्री से प्रेरणा लेकर हजारों दुर्लभ पांडुलिपियों की खोज। 

जिसमें  हिंदी,संस्कृत ,प्राकृत ,मराठी ,बंगला आदि की साहित्य ,व्याकरण, दर्शन, आयुर्वेद और ज्योतिष के दुर्लभ ग्रंथ हैं जो शोध के और इतिहास लेखन के लिए संदर्भ के रूप में सहायक सिद्ध होते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास कृत युगल ध्यान पद ,सगुन सुमंगल रामायण तथा सूरदास कृत सूरमंजरी , महाकवि चंददास जो चंदबरदाई से अभिन्न हैं ,उनकी पृथ्वीराज रासो के बाद के दर्जनों महाकाव्यों की ऐतिहासिक पांडुलिपियों की खोज, जिनकी चर्चा भारतीय संसद ,दूरदर्शन ,आकाशवाणी केंद्रों तथा बीबीसी के प्रसारण द्वारा की जा चुकी है।

व्यक्तित्व और कृतित्व से संबंधित पीएचडी स्तर का शोध कार्य तीन विश्वविद्यालयों से संपन्न हो चुका है।

चित्रकूट और कालिंजर  टेली फिल्म में शीर्ष गीतों की रचना।

डॉ श्याम सुंदर दुबे का जीवन परिचय 

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