स्त्रियाँ महाभारत काल के आख्यान के अनुसार इस व्रत को रखती हैं। उसमें श्रीकृष्ण ने युधिष्ठर को बताया था कि जो स्त्रियाँ रजस्वला स्थिति में गृह कार्य करती रहती हैं उन्हें पाप लगता है। उसकी निवृति हेतु ऋषि पंचमी Rishi Panchami का व्रत रहना आवश्यक है। पूजा से सम्बंधित एक कथा भी है।
सौमित्र नामक एक ब्राम्हण था उसकी पत्नी का नाम जयश्री था। जयश्री रजस्वला स्थिति में गृहकार्य करती रही। इससे दूसरे जन्म में उसे कुतिया का स्वरूप मिला और पति बैल बना। इस योनि में भी वे अपने ही घर रहे। पितृपक्ष में उनकी पुत्रवधू खीर बना रही थी उसमें सर्प गिर गया। कुतिया की योनि में जयश्री ने सोचा यह खीर यदि ब्राम्हणों ने खाई तो उनकी मृत्यु हो सकती है ऐसा सोच उसने खीर गिरा दी।
पुत्र व पुत्रवधू ने क्रोाधित होकर बैल व कुतिया को भोजन नहीं दिया। रात में बैल व कुतिया उसी संदर्भ में बात कर रहे थे जब पुत्रवधू ने सुना तो दुःखी हुईं पश्चाताप हेतु वह गंगातट गई वहाँ पर ऋषियों से भेंट हुई उन्होंने पशु योनि से मुक्ति हेतु भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पंचमी को सप्तऋषि तथा अरून्धती की पूजा का उपाय बताया। इसी कथा और महाभारत के प्रसंग क॑ अनुसार ऋषि पंचमी का व्रतं रखना स्त्रियों के लिये अनिवार्य माना गया है।
ब्रम्हपुराण के अनुसार ऋषि पंचमी का व्रत व्यक्ति को जन्मों के आवागमन से मुक्ति दिलाकर स्वर्गलोक का वासी बनाता है। व्रत में ‘हरछठ’ के समान हल का जोता अन्न नहीं खाया जाता है।
संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त
सांस्कृतिक बुन्देलखण्ड – अयोध्या प्रसाद गुप्त “कुमुद”




