रावन दहन होत हर सालै
रावन दहन होत हर सालै, तौऊ रावन बड़रय ।
बैर भाव हिंसा अनीति, मानुश खों ऐंन जकड़रय ।।
पुतरा बड़ौ बनौ रावन कौ मानों बड़ी बुराई ।
हल्कौ पुतरा बनो राम कौ हो गइ हीन भलाई ।।
घोर गर्जना करै दशानन, अंगद – पांव उखड़य ।
रावन दहन होत हर सालै, तौऊ रावन बड़रय ।।
लाखन भुजा भीस अनगिनते लंकापति होगय ।
हिरा गये आदर्श हिसा सें नेह – सांच कउँ सौ गय ।।
हिय कौ रावन मरै न मारें, राम लाज में गड़रय ।
रावन दहन होत हर सालै, तौऊ रावन बड़रय ।।
हतौ एक रावन त्रेता में अब अनगिनते हो गय ।
सीता जू भकरीं सीं बैठीं राम तोइ सों रो रय ।।
मेघनाद लक्ष्मन के आँगे, छाती तान अकड़रय ।
रावन दहन होत हर सालै, तौऊ रावन बड़रय ।।
भइया भरत रिसानें घर में हैंसा बाँट कराबे ।
पुटयाई मात कौसल्या दशरथ लगे मनावे ।।
हो गय राम आज हल्के से घर से अपरस कड़रय ।
रावन दहत हो हर सालै, तौऊ रावन बड़रय ।।
पूजा करें लच्छमी जू की पूजा करें लच्छमी जू की घरै लच्छमी बारें।
घर की लाज आग में जरबैं शेषनाग फुसकारें।।
पूंच उठाये फिरें पवन सुत, हर काऊ से लड़ रय ।
रावन दहत होत हर सालै, तौऊ रावन बड़रय ।।
रचनाकार – रतिभान तिवारी “कंज”