Raja Parimal Ka Vivah राजा परिमाल का विवाह (आल्हा )

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चद्रवंशी राजाओं की राजधानी सिरसागढ़ थी। किले का नाम कालिंजर था। चंद्रवंशी क्षत्रिय अब चंदेले कहलाते थे। उनकी राजधानी को चंदेरी भी कहा जाता था। चंदेले राजा कीर्ति राय का प्रतापी पुत्र था परिमाल रायRaja Parimal Rai Ka Vivah   राजा वासुदेव की पुत्री मल्हना से हुआ।  यह बारहवीं शताब्दी की घटना है। उन दिनों महोबा में राजा वासुदेव का शासन था। उनके दो पुत्र थे—माहिल और भोपति। तीन पुत्रियाँ थीं— मल्हना, दिवला और तिलका।

Raja Parimal Ka Vivah राजा परिमाल का विवाह

 

ऋद्धि सिद्धि निधि चमरडला * सुरगण हाथ बाँधि रहि जॉय ॥

मैं अज्ञान मोहवश निशिदिन * केहि विधि रटौं तुम्हारो नाम ॥

दास आपनो जानि मोहिं प्रभु * पूरन करहु नित्य सब काम ॥

बरणों शाखा आल्हाखंड की * दहिने होउ शारदा माय ॥

बड़े बड़े क्षत्री जग में उपजे * सुनि सुनि नाम जीव हुलसाय ॥

करनी सुनि सुनि कॅपै करेजा * धनिघनि भूमि लिये औतार ॥

सतयुग हिरण्यक्ष हिरणाकुश * जिनके बलको नाहिं सम्हार ॥

त्रेता महि राम अरु लक्ष्मण * अंगद और बीर हनुमान ॥

परशुराम को महा पराक्रम * जिनको जानत सकल जहान ॥

द्वापर प्रगटे कौरव पांडव * जिन भारत में युद्ध रचाय ॥

जन्म धारिके पुनि कलियुग में * आल्हा ऊदन नाम धराय ॥

सिंह रूप हुइ जग में प्रगटे * जीते बड़े बड़े उमराय ॥

बावन गढ़ में शाखो कीन्हों * भई सहाय शारदा माय ॥

 

 

 परिमल का विवाह  ॥ महोबे की पहिली लड़ाई ॥

                     सुमिरन-आल्हा।

 

सुमिरन करिये महादेव को * जिनके श्रीगणेश से कुमार ॥

विधन विनाश करत भक्तन के * भूले अक्षर देत सम्हार ॥

सहज वानि है दया सिन्धु की * थोड़े प्रेम मग्न हुइ जात ॥

ऐसे प्रभु को भजन छोड़िके * केहिको और जपै दिन रात ॥

गुरू यखानों अमरनाथ से * जिनकी विद्या अगम अपार ॥

खाँडा बखानों परिमाले को * थे जो चन्द्र वंश सरदार ॥

सिगरे राजा तिन अपनाये * जीते बड़े बड़े मुरदार ॥

मानी आज्ञा अमर गुरू की * खाँडा सागर धरेउ पसार ॥

चुगुल बखानों उरई वारो * जाको नाम महिल परिहार ॥

करिकरि चुगुली परिमाले की * कोन्हों नाश क्षत्रियन क्यार ॥

राजा वासुदेव महुवे को * ताको पुत्र महिल परिहार ॥

भारी राजा वासुदेव तहँ * रण में एक शूर सरदार ॥

ताकी वेगे मल्हना कहिये * सो महुवे की राजकुमारि ॥

खबरि उड़ानी देश देश में * बहुत सुघर मल्हन दे नारि ॥

तेज विराजे अंग अंग में * जाको रूप न बरनो जाय ॥

सुनो हाल अव तेहि मल्हना का * व्याहे पाय चन्देले राय ॥

 

भूप चंदेला चन्देलो का * जाको नाम रजा परिमाल ॥

योधा जितने भारत खंड के * सो लडि लड़ि कीन्ह पामाला ॥

सुनी खबरि जब गढ़महुवे की  * सुन्दर कुवंरि महोवे क्यारि ॥

ऐसी सुन्दर कोउ नाही जग * जैसी सुघर मल्हनदे नारि

सुनते मोहित भये चन्देले * जो नर नाह रजा परिमाल ॥

तुरत बुलायो चिंतातमणि का * मंत्रो सुनो चित्त को हाल ॥

एक तो मंत्री तुम हमरे हो  * दुजे पंडित राज समाज ॥

ऐसो सम्मति हमहिं बताया * जाते होय सिद्धि यह काज ॥

सुनते बोले चिन्तामणि तब * मनकी बात कही महराज ॥

कौन अंदेशा है तुम्हरे मन * हुईहै सहि तुम्हारो काज ॥

बोले राजा चिन्तामणि से * पंडित सुनौ हमारी वात ॥

राजा बासुदेव महुबे को * कन्या जासु जगतविख्यात ॥

रूपकी अगरीसुनि कन्या वह * हमरे मन में गई समाय ॥

सगुन बताय देउ जल्दी से * श्री यह ब्याह देउ रचवाय ॥

सुनतै पंडित सगुन बनायो * नीकी सायति दई बताय॥

कूच कराय देउ महुबे को * तुम्हरो काम सिद्धि हुइजाय ॥

 

सुनतै खुशी भये चन्देले * तुरत नगड़ची लियो बुलाय॥

कड़ा सोबरन का डरवायो * अवहीं डंका देउ बजाय ॥

बाजो डंका तब फौजन में * क्षत्री सबै भये हुशियार ॥

पहले तो सबै सजाई * औ धरनी में धरी निकार ॥

बड़ि २ तो अष्टधातु की * सो चरखिन पर दई धराय ॥

गोला भराय दिये छकड़न में * श्रौ आगे को दियो जोताय ॥

हाथी सजाये सकल फौज के * शोभा कछू  कही ना जाय ॥

जरकस वाली झुलै डारी * औ अंबारी दई घराय ॥

कलश सोवरन के धरवायो * शोभा कछू कही ना जाय ॥

साजे घोडा हैं सबरंगी * तंग दुरंगा खिचे वनाय ॥

ऊँट सजाये बहुत भाँतिके * सुन्दर गजरथ लिये सजाया ॥

जितना गहना रजपूती का * ज्वानन पहिरि लीन्ह हरषाय ॥

सजी फौज देखी मुन्शी ने * कूदि के घोड़ा भयो सवार ॥

जायके पहुंचो परिमाले ढिग * रानै खबरि सुनाई जाय ॥

सुनी हकीकति परिमाल ने * जौं  यह हुक्म दियो फरमाया ॥

गज भरि छाती चन्देले की * अरु नैनन में बरै मसाल ॥

 

रूप अनोखो है राजा को * जिनके तेज बिराजत भाल ॥

पहिर पजामा मिसुरू वाला * जामा पहिर दुदामी क्यार ॥

अगल बगल परदुइ पिस्तौलें * बायें सिंहनि मुठि कटार ॥

पाग बैजनी शिर पर सोहै * कलँगी लगी मोतियन क्यार ॥

बीरभद्र हाथी सजवायो * जो सब हाथिन को सरदार ॥

डारके गद्दा मखमल वालो * सोने को होदा दियो कसाय ॥

सिढी लगाई मलियागिर की * तापर चढ़े चंदेले राय ॥

राजा सजतै सकल साजिगें * शोभा बरण करी ना जाय ॥

चलिभौ हाथी परिमाले को * औ फौजन में पहुँचो जाय ॥

बजो नगाड़ा तव दल साजन * क्षत्री तुरत भये हुशियार ॥

सब्जै बाना सब्ज निशाना * सब्जे झंडी करी तयार ॥ 

सब्जै हाथी सब्जै घोड़ा * सब्जै फौज रजा परिमाल ॥

सब्जी सब्जी सबै दिखावै * हुइ गइ भूमि सजतेहि काल ॥

नौसौ झंडा खड़े सुनहरो * अगणित ध्वजा रहीं फहराय ॥

कूँच को डंका तब बजवायो * लश्कर कूँच दियो करवाय ॥

चलिभौ लश्कर चन्देले को * हाहाकारी शब्द सुनाय ॥

 

मंजिल २ धावा करिके * महुवा धुरो दबायो प्राय ॥ 

जीन उतारि धरे घोड़न के * हाथिन हौदा धरे उतारि ॥

बढ़ी रसोइयाँ उमरायन की * क्षत्री करन लगे असनान ॥

बैठे राजा निज तंबू में * मंत्री जायके लग्यो वतान ॥ 

राय मिलाई तब राजा ने * अपनो कलमदान मँगवाय ॥

लैंके कागद कल्पी वालो * हाथ लेखनी  लई उठाय ॥

पहिले लिखि के सरनामा को * पीछे राम जोहार सलाम ॥

ताके पीछे लिखी हकीकति * राजा बासुदेव के नाम ॥

चंद्र वंश में मैं उपजो हौं * नगर चंदेली धाम हमार ॥

तुम्हरी बेटी मल्हना कहिये * जाको रूप विदित संसार ॥

ताको व्याहन हम आये हैं * जो परिमाल चंदेली क्यार ॥

हँसी खुशी से व्याह रचावो * कीरति रहै जगत में छाय॥

जो कहूँ मुख से नाही करिहौं * महुनो गर्द दिहौं करवाय ॥

जो इच्छा लडिवे की हो * अपनो खेत वोहारौ आय ॥

इतनी बातें लिखि चिठिया में * श्री धामन काँ दइ पकराय ॥

चलिभो धामन तब फौजन से * श्री महुबे की पकरी राह ॥

 

तीनि घरी केरे अरसा में * प्रौ फाटक पर पहुँचो आय ॥

बोलो धामन दरखानी ते * फाटक जल्द देउ खोलवाय ।।

मुटु बोलो धामन दरबानी से * तुम सुन लीजो कान लगाय ॥

पाती लाये चंदेले की * सो राजा को दीहौं जाय ।।

फाटक खोलो दरवानी ने * धामन चला अगारू जाय ॥

जायके पहुँचो राजभवन ढिग * जहँ दरवार महोबे क्यार ॥

लगी कचहरी वासुदेव की * अजगर लागि रहा दरबार ।।

देखत शोभा राज सभा की * धामन मोहि मोहि रहिजाय ॥

सोने सिंहासन राजा वैठे * ऊपर चौर दुरै गजगाह ॥

सिंह की बैठक क्षत्री बैठे * एक से एक शूर सरदार ॥

छाई लालरी है नैनन में * टिहुना नगिन घरे तरवार ॥

देखत शोभा वा वंगला की * धामन सोचे औ रहिजाय ॥

सात कदम से मुजरा करिके * पाती गद्दी दई चलाय॥

नजर बदलि गई बासुदेव की * तुरतै पाती लई उठाय ॥

तुरत कतरनी से बँद काटे * आँकुइ आँकुनजरि करिजाय ॥

पाती बाँचत परलै हुइ गइ * नैना अग्नि ज्वाल होईजाय ॥

 

दहिने माहिल जे बैठे थे * पूछत हाथ जोरि सिर नाय ॥

कहाँ ते पाती यह पाई है * सो सेवक ते कहो बुझाय ॥

बोले राजा तब माहिल से * बेटा सुनौ ल ते लाल ॥

पाती पाई परिमाले को * व्याहन हेत मल्हनदे क्वॉरि ॥

देर लगबे को दिन नाहीं * महुबे की फौज होय तैयार ॥

इतनी बात कही माहिल ते * नौ फिर कागद लियो उठाय ॥

लई लेखनी कर कञ्चन की * पाती को उत्तर लिखो बनाय ॥

काहे को आयो नगर महोबे * अपनो भरम गमायो प्राय ॥ 

चुप्पै लौटि जाउ चंदेली * नाहितो मूड़ लिहौं कटवाय ॥ 

ब्याह न हुइहै गढ़ महुबे माँ * चाहे कोटि धरो अवतार ॥ 

इतनी बात लिखी चिठिया माँ * सो धामन का दइ पकराय ॥

चलिभो धामन तब महुबे से * नौ लश्कर में पहुँचो जाय ॥ 

पाती दीन्ही चन्देले को * राजा पढ़न लगे तत्काल ॥

बोलि नगड़ची को बीरा दो * औ मंत्री से कहो हवाल ॥

बजो नगाड़ा तब लश्कर में * क्षत्री सबै भये हुशियार ॥

 हाथी चढ़या हाथिन चढिगै* बाँके घोड़न पर असवार ॥

 

ननकी पलकी अरु गजस्थ पर * बड़े २ क्षत्री भये सवार ॥

पैदल फौज चली पीछे से * तो दुरकति चलें श्रगार ॥ 

चलिभौ लश्कर चंदेले को * डंका होत गोल में जाय ॥

हियाँ की बातें हियनै छाँडौ * अब महुवे को सुनौ हवाल ॥

हुक्म पायके माहिल भूपति * लश्कर पहुंचि गये ततकाल ॥

तुरत नगड़ची को बुलवानो * मारू डंका देउ बजाय ॥

वजो नगाड़ा तब महुबे में * क्षत्री उठे भरहरा खाय ॥

वड़ि २ तोड़ें अष्टधातु की * सो चरखिन पर दई चढ़ाय ॥

जितने हाथी हैं महुवे माँ * सो सब जल्दी लेउ सजाय ॥

एक २ हाथी के हौदा में * वैठे चारि चारि असवार ॥

सजिके हाथी सब ठाढ़े भये * शोभा कछु कही ना जाय ॥

जितने घोड़ा थे महुबे के * सो सब जल्द लिये सजवाय ॥

जीन सुनहरे धरि घोड़न पर * रेशम तंग दिये खिंचवाय ॥

तुरतै चलिमे माहिल गकुर * श्री क्षत्रिन दिग पहुचे जाय ॥

हाथ उठाये माहिल वोलें * ज्वानो खवरदार हुइ जाउ ॥

में जितने क्षत्री हैं लश्कर माँ * सार्जें एक साथ वितघाउ ॥

 

हुक्म पाय के सगरे क्षत्री * साजन लगे शुर सरदार ॥

घरी एक केरे अरसा में * सारी फौज भई तैयार ॥

हाथी चढेया हाथिन चढ़िगये * बाँके घोड़न के असवार ।।

में कोई रथ पर कोई ऊँट पर * कोई गजरथ भये सवार ॥

सूर सजीले चढ़े ऊँट पर * कम्मर दुइ बाँधे तरवार ॥

पैदल पल्टन और रिसाला * सव सजिगये महुवियाज्वान ॥

घोसा बाजे तब लश्कर में * घूमन लागे लाल निशान ॥

डंका वाजै तब फौजन में * बारह कोस जाय धधकार ॥

सगरी फौज फॅच कराई * डंका होत गोल में जाय ॥ 

पाँच लाखसे माहिल चलिभै * हाहाकारी शब्द सुनाय ॥

इतते फांजै हैं माहिल की * उतते फौज चंदेले क्यार ।।

वारह जोड़ी वजै नगाड़ा * वीतै दोउ दल हाहाकार ॥

दोऊ सेना दल वादल लौ * पहुँची समर भूमि में आय ॥

कहँ लगिवरणौँमैं फौजनको * कायर देखि २ भय खाय ॥

दोनों फौजन के सन्मुख में * रहिगो श्राध कोस मैदान ॥

हाथी बढ़ायो तब माहिल ने * और यह बोले त्योरी तानि ॥

 

कौन सूरमा चढ़ि पायो है * केहि रजपूत लियो अवतार ॥

कौन सो क्षत्री है तरवरिहा * जिन यह धुरो दवायो पाया ॥

इतनी सुनिके चंदेले ने * अपनो हाथी दो बढ़ाय ॥

बोले राजा तब माहिल से * सुनिये बासुदेव के लाल ॥

देश हमारो चंदेली है * हमरो नाम रजा परिमाल ॥

बहिन तुम्हारी मल्हना कहिये * जो महुबे की राजकुमारि ॥

ताको ब्याह देउ जल्दी से * तो मिटजाय सकल यहारि ॥

बिना बियाहे हम ना जैहैं * चाहे प्राण रहै की जाय ॥

सुनिके वात ये राजा की * नैना अग्निज्वाल हुइजायें ॥

कसे ठाकुर भये तरवरिहा * कबसे बाँधि लिये हथियार ॥

धोखे न रहियौ केहु कायर के * मुंह से बोलौ बात सँभार ॥

ऐसी बातें सुनि माहिल की * तब हँसि कहैं चंदेले राय ॥

जेहि की बेटी नीकी देखें * तेहिकी भाँवरि लेय डराय ॥

डंड बाँधिके वा क्षत्री की * कन्या दान ले. करवाय ॥

सुनिके बातें ये राजा की * माहिल अग्निज्वाल हुइ जाय॥ 

ऐसी बातें ना तुम बोलो * तुम्हरो काल पहुँचो आय ॥

 

माहिल हाथी को लौटायो * अपने लश्कर पहुँचे श्राय ॥

तोप दरोगा को बोल वायो * श्री यह हुक्म दियो फरमाय ॥

दै देउ बत्ती मेरी तोपन माँ * इन पाजिन का देहु उड़ाय ॥

दगे मोरचा तब तोपन,के * कछु तारीफ करी ना जाय ॥

धुआँ उड़ानो पासमान लौ * सूरज रहे धुधि में छाय। ॥

दोउ ओर से दगी सलामी * अब कुछ रहा ठिकाना नायें ॥

से अररर अररर गोला छुट* कहकह करैं अगिनियाँ वान ॥

सन २ सन २ गोली छुटै * चारों ओर होय घमसान ॥

गोला लागै जेहि हाथी के * मानौं चोर सेंध दैजाय ॥

गोला लागै जौन ऊँट के * रण में गिर चकत्ता खाय ॥

जेहि घोड़ा के गोला लागै * सो असवार सहित गिरि जाय।।

एक पहर भरि गोला बरसो * तो लाल वरन हुइ जाय ।

चढ़ी कमनियाँ पानी हुइगहुँ * ज्वानन हाथ धरे ना जायँ ।।

दोनौं फौजें संगम हुइ गई * धूमिके चलन लगी तरवार ॥

खट खट खट खट तेगा वाजै * बोले छपक छपक तलवार ॥

के पैदल के संग पैदल भिरिगै* असवारन से असवार ॥

 

हौदा के संग होदा भिरिग * हाथिन अडो दाँत से दाँत ॥

तेगा चमकै बर्दवान के * कटि २ गिर सुघरुया ज्वान ॥

सात कोस लौ चलें सिरोही * चारो ओर होय घमसान ॥

पैग पैग पर पैदल गिरिग * उनके दुदुइ पैग असवार ॥

कोई रोवत है लड़िकन को * कोई पुरखिन को चिल्लाय ॥

कोई रोवत है तिरियन का * घरमाँ लाये गौनमाँ चार ॥ 

भेड़हा पाये चंदेले के * जिनके चलकीमिलै न थाह ॥ 

भेड़ बकरियन की गिनतीना * जो मनहन को करें अहार ।।

छाँड़ि नौकरी हम माहिलकी * वनकी बेंचि लकड़ियाँ खाएँ ॥

पाँच लाख से माहिल पाये * रहिगये तीन लाख असवार ।।

मुर्चन मुर्चन माहिल धूम * सबसे कहें पुकारि पुकारि ॥

नौकर चाकर तुम नाही हौ * तुम सब भैया लगौ हमार ॥

मागिन जैयो कोइ मोहराते * रखिया धर्म महोबे क्यार ॥

में बढ़े सिपाही महुबे वारे * अपने बैंचि लिये हथियार ॥

मुके सिपाही चंदेले के * रणमें कठिन करें तरवार ॥ 

भजे सिपाहो तब माहिल के * अपने डारि डारि हथियार ॥

 

भजत सिपाही माहिल देखे * मनमें सोचें राजकुमार ॥

सोचि समुझिकेमन अपनेमाँ * तुरतै हाथो दियो बढ़ाय ॥

जहँ पर हाथा चंदेले को * महिल तहाँ पहूँचे जाय ॥

बोले माहिल तब राजा से * तुम सुनि लेउ चंदेले राय ॥

दस दस रुपिया के नौकर हैं * नाहक डरिहौ मूड़ कटाय ॥

हम तुम खेलें समर भूमिमें * दुइ में एक आँकु रहि जाय ॥

यह मन भाय गई राजा के * तुरतै हाथी दियो बढ़ाय ॥

बोले राजा तर माहिल ते * सुनिये बासुदेव के लाल ॥

चोट आपनी पहिली करिलेउ * मन के मेटि लेउ अरमान ।।

में चि सिरोही लै माहिल ने * लैंके कृष्णचन्द्र को नाम ॥

करो झड़ाका परिमालै पर * मन में सुमिरि बहुरि घनश्याम ॥

ढाल उठाई चंदेले ने * राजा लगे चोट बचाय ॥

तीनि सिरोही हनिहनि मारी * खाली मूठ हाथ रहि जाय ॥

माहिल सोचै अपने मनमाँ * है यह बीर चंदेलो राय ॥ 

गुर्ज उठायो फिर माहिल ने * सो राजा पर दियो चलाय॥

वायें से हाथी दहिने हुइगयो * नीचे गुज गिरो अरराय ॥

 

लई कमनियाँ फिर माहिल ने * गुस्सा गई बदन में छाय ॥

बैंचि कमनियाँ भुजदंडन भरि * तीवा मरमर होय कमान ॥

हियरा डाटो परिमाले का * मारो ताकि हृदय में वान ॥

हाथी हटिगो फिरि बायें को * उनका राखिलियो भगवान ॥

साँगि उठाई तब माहिल ने * अपने चित्त बहुत हरपान ॥

है करो धमाका चंदेले पर * मनमें सुमिरि कालिकामाय ॥

से हाथी हटायो फीलवान ने * नीचे साँगि गिरो परराय ।।

तब ललकारो परिमालै ने * माहिल खबरदार हुइ जाउ ॥

चारि उबौनी तुमने कोन्ही * अब यह लीजौगाजहमारि ॥ 

दोनों हाथी यकमिल हुइगै * हौदा से हौदा भिड़ि जाय ॥

लई सिरोही चंदेले ने * गज मस्तक पर दई चलाय ॥

चेहरा मारो तब हाथी को * श्री माहिल काँ लियो बँधाय ॥

माहिल बंधतै परलै हुइ गइ * भूपति गये सनाका खाय ॥

हाथी बढायो तब भूपति ने * औ सन्मुख हुइ कही सुनाय ॥

कोने बाँधो है माहिल को * सो सन्मुख हुइ देइ जवाब ॥

हाथी बदायो चंदेले ने * श्री सन्मुख हुइ कही सुनाय ॥

 

हमने बाँधो है माहिल को * हमरो नाम रजा परिमाल ॥

बहिन तुम्हारी मल्हना कहिये * ताको व्याह देउ करवाय ॥

इतनी सुन के भूपति जरि गये * नैनन रहो लालरी छाय ॥

सम्हरौ ठगकर तुम होदा पर * तुम्हरो काल पहूँचो प्राय

सुमिरन करिके नारायण को * लै बजरंगबली को नाम ॥

लैचि सिरोही लइ भूपति ने * मन में सुमिरि वहुरि घनश्याम ॥

करो झड़ाका चन्देले पर * बायें उठी गैंड़ की ढाल ॥

तोनि सिरोही हनिहनि मारो * खाली मूठ हाथ रहि जाय ॥

टूटि सिरोही गइ भूपति की * तुरतै लीन्हों गुर्ज उठाय ॥

पर वायसे हाथी दहिने हुइगो * नीचे गिरो गुर्ज अरराय ॥

दोनों चोटें खाली परिगइँ * भोपति सोचि २ रहि जाय ॥

हाथी बहायो चन्देले ने * हौदा से हौदा भिड़ि जाय ॥

ढाल कि औझड़ राज मारी * औ हौदा से दियो गिराय ॥

डंडबाँधि लइ तब भूपति की * श्री हौदा माँ दियो कसाय ॥

जितनी लश्कर थी महुबे की * सो सब रेन बेन हुइ जाय ॥

तुरत साँडिया को बलवायो * औ यह लिखी चन्देले राय ॥

 

माहिल भूपति तुम्हरे बेटा * दोनों हमने लियो बंधाय ॥

अवहूँ ब्याहौ मल्हना बेटी * नाहित किला लिहौ छिनवाय ॥

लिखिके पाती परिमालै ने * सो धामन काँ दइ पकराय ॥

चिट्ठी लैंक धामन चलिभौ * श्रौ महुबे में पहुचो जाय ॥

लगी कचहरी वासुदेव की * धामन पहुाँचि गयो हरपाय॥

सात कदम ते करी बन्दगी * पाती गद्दी दई चलाय ॥

पाती बाँचत परलै हुइ गइ * मनमाँ सोचि सोचि रहि जायँ ॥

लौटि जवाब लिखो पातो को * पढ़ियो याहि चन्देले राय॥

धोखे न रहियो केहु गढ़िया के * महुवे ब्याह होन को नायँ ॥

अवह मानो कही हमारी * तुरत लौटि चन्देले जाउ ॥

जो इच्छा लडिवे की होवे * तो तुम खबरदार हुइ जाउ ॥

लिखिके पाती बासुदेव ने * सो धामन का दइ पकराय ॥

लके पाती धामन चलिभी * श्री लश्कर माँ पहुँचो थाय ॥

दैदइ पाती परिमाले को * बाँचन लगे चन्देले राय ॥

पढ़िके पाती चन्देले ने * औ यह हुक्म दियो फरमाय ॥

डंका बाजे मेरे लश्कर माँ * सगरी फौज होय तैयार ॥

 

डंका बाजो तब दल गंजन * साजन लगे शूर सरदार ॥

हियाँ की बात हियनैं छोड़ो * अब महुबे को सुनौ हवाल ॥

बोलि नगड़ची को बीरा दौ * तुरतै बासुदेव नर पाल ॥

कूच कराय दियो तुरतै तब * चलिमये तीनलाख सवार ॥

बजे नगाड़ा मेरे लश्कर में * क्षत्री सबै होय तैयार ॥

बजो नगाड़ा तब लश्कर में * सिगरी फौज भई तैयार ॥

हाथी समर भयंकर साजो * तेहि पर चढ़ा वीर परिहार ॥

इतते फौज बासुदेव की * उतते फौज चन्देले गय ॥

दोनों फौजन के अंतर माँ * रहिगौ पाठ खेत मैदान ॥

हाथी बढ़ायो बासुदेव ने * समरभूमि में जाय तुलान ॥

फिरि ललकारो बासुदेव ने * श्री सन्मुख हुइ कही सुनाय ॥

कोने सूरमाँ चन्देले हैं * जिन यह धुरो दवायोग्राय ॥

कौने बाँधो मेरे लरिकन काँ* सो समुहें हुइ देइ जबाव ॥

इतनी सुनिके चन्देले ने * तुरतै हाथी दियो बढ़ाय ।।

हमने बाँयो है लरिकन काँ * हमरो नाम चन्देले राय ॥

व्याहन पाये हैं मल्हना काँ * जल्दी ब्याह दे करवाय ॥

 

बोले राजा चन्देले से * तम सुनिलेउ रजा परिमाल ॥

कोवा मारे हो बागन के * बराला मारेउ सागर ताल 

जङ्गल चरते हिरना मारेउ * ना शेरन के करेउ शिकार ॥

सुनिके बातें बासुदेव की * बोले तरत चन्देले राय ॥

हिकी बेटी नीकी देख * उजरो रूप राशि करतार ॥

जोरावरि सों ब्याह रचा * हमरे कुला यही ब्योहार ॥

सुनिके बात चन्देले की * औ हुइ गई करेजे पार ॥

जैसे तोप निशाना लागे* गोली निकर जाय वा पार ॥

तैसे वात लगी राजा के * नैनन रही लालरी छाय ॥ 

हुक्म दे दियो बासुदेव ने * तोपन बत्ती देउ लगाय ॥

मारो २ इन पाजिन को * सबकी कटा देउ करवाय ॥

दैदइ वत्ती तब तोपन माँ * धुना रहो स्वर्ग मँडराय ॥

अंधकार लश्कर में छायो * सूरज रहे धुधि माँ छाय॥

चारि घरी भरि गोला बरसो * चुटकिन के गये मास उड़ाय ॥

तो धैं लाल बरन भई * ज्वानन हाथ धरोना जाय।

मारु बंद भइ तब तोपन को * श्री बंदूक लई उठाय ॥

 

सन सन सन सन गोली छूटै * मानो मघा बंद झरिलाय ॥

दोनों दल में यह गति बीत * बूते हाल कहो ना जाय ॥

मारु बंद भइ बंदूकन की * यारौ सुनिये कान लगाय ॥

दोनों फौजें यकमिलि हुइगई * घूमिके चलन लगी तलवार ॥ 

पैदल के संग पैदल अभिरे * श्री असवारन से असवार ॥

ऐसो समर भयो महुबे माँ * तहँ बहि चली रक्तकी धार ॥

दोनों फौज संगम हुइ गई * चारो ओर चलें तरवार ॥

अपन परायो ना पहिचान * क्षत्रिन मारु २ रट लाग ॥

झुके सिपाही चन्देले के * दोनों हाथ कर तरवार ॥ 

भजे सिपाही महुबे वाले * अपने डारि डारि हथियार ॥

भगत सिपाही राजा देखे * सबसे कहैं पुकारि पुकारि ॥

नौकर चाकर तुम नाही हौ * तुम सब भैया लगत हमार ॥

सदा तोरैया ना बन फूलै * यारौ सदा न सावन होय ॥

स्वर्ग मईया सब काहू की * यारौ सदा न जीव कोय ॥

खटिया परि के जो मरिजैहो * कोई न लेह जग में नाम ॥

जो मरिजही रण खेतनमाँ * सीधो मिलै तुम्हें सुरधाम ॥

 

युद्ध जीति के महुबे चलिहौ * दूनी तलब दिहौं बढ़वाय ॥

दो बढ़ावा बासुदेव ने * औ आगे को दो बहाय ॥

झुके सिपाहो दोनों दलके * फिरिकै चलन लगी तरवार ॥ 

बढ़े सिपाही चन्देले के * अंधा धुन्ध करें तलवार ॥

जैसे पान तमोली कतरै * जैसे ग्वेती लुनै किसान ॥

जैसे तोता फलको कृत * त्यों रण काटि रहे सब ज्वान ॥

मारा मारु मची रन भीतर * नाहीं सूझे अपन विरान ॥

फौज भाजि गई महुवे की * रहि गये वासुदेव मैदान ॥

राजा सोचें अपने मन माँ * हा यह कहा करी भगवान ॥

हाथो बढ़ायो बासुदेव ने * औ राजा से कही सुनाय ॥

हम तुम खेल समर भूमि में * दुइमाँ एकु आँकु रहि जाय ॥

दुइ दुइ रुपिया के नौकर हैं * काहे डरिहो मूड कटाय ॥

यह मन भाय गई राजा के * तब हँसि कही चन्देले राय ॥

बात तुम्हारी हमने मानी * सुनिये धीर बीर परिहार ॥

बोले वासुदेव राजा से * सुनिये चन्द्र बंश सरदार ॥

चोट प्रापनी पहिले करिलेउ * मन के सेटि लेउ अरमान ॥

 

कहैं चंदेले तव राजा से * सुनिये बासुदेव वलवान ॥

रीत बाँधो चन्द्र वंश ने * हमरे कुला यही व्यवहार ॥

गऊ ब्राह्मण को ना मारै * ना भागे के परें पिछार ॥

हाथ मेहरियन पर ना डाएँ * हमरो क्षत्री धर्म नसाय ॥

पहिली उचौनी हम ना करिहैं * चाहे प्राण रहै की जाय ॥

सुनिके वात चन्देले की * मन में विहामि पड़ा परिहार ॥

सुमिरन करिकै जगदम्बा को * करसे बैंवि लई तलवार ॥

करो झड़ाका बासुदेव ने * बायें उठी गैंड़ की ढाल ॥

टूटि शिरोही गइ राजा की *औ बचि गए रजा परिमाल ॥

सोचें राजा अपने मन माँ * है यह बीर चन्देला राय ॥

 

 

          * परिमल का विवाह *

 

साँगि उठाई बासुदेव ने * औं राजा पर दई चलाय ॥ 

हठिगा हाथी चन्देले का * बचिगा फेरि चन्देला राय ॥

गुर्ज उठायो बासुदेव ने * गुस्सा गई बदन में छाय ॥

सम्हरो अकुर तुम हौदा में * तुम्हरो काल पहूँचो पाय॥ 

बायें से हाथो दहिने हुइगो * नीचे गुज गिरो अरराय ॥

बचिगे राजा हैं हौदा में * दहिने भई शारदा माय ॥

है बड़ो सूरमाँ यहु लड़िका है * सोचें बासुदेव नर राय ॥ 

कन्या दीन्हीं है ईश्वर ने * हमरो दोन्हों गर्व नशाय ॥

जो ना बेटी हमरे होती * क्यों यह लौतो फौज चाया ॥

ऐसे सोचें बासुदेव नृप * फिरि राजा ते कही सुनाय ॥

संग हमारे जो तुम चलिहौ * कन्या दान दिहौं करवाय ॥

डंड छाडिदेउ मेरे लरिकन की * राजा गंगा लई उठाय ॥

जायके पहुंचे सब महुबे माँ * राजा बासुदेव के धाम ॥

मनमाँ सोचे घटिहा राजा * अब धोखे माँ बनिहै काम ॥

दहक खोदायो बासुदेव ने * तापर पलँग दियो बछवाय ॥

करो इशारा परिमाले को * बैठो प्राय चन्देले राय॥

 

जवहीं राजा बैठन लागे * सन्मुख रही पद्मिनी नार॥

दियो इसारा पति अपने को * बैठो नहीं भूप सरदार ॥

कुरसी पड़ी रहे बँगला में * तापर बैठि गयो हरपाय ॥

सन्मुख देखो जब मल्हना को * मन में बहुत खुशी हुइजाय ॥

मन माँ सोचै रजा चन्देले * केहि विधि वरौं पद्मिनीनार ॥ 

परम सुन्दरी यह नारी है * मोहित भयो चन्द्र सरदार ॥

धीरज धरके चन्देले ने * बासुदेव से कही सुनाय ॥

हमरी मानौ बात भूप अब * मनकी संका देहु गँवाय ॥

है हंसी खुशी से व्याह रचावो * जाते सबै काम बनिजाय ॥

सुनिके बातें ये राजा की * बोले बासुदेव परिहार ॥

तुम्हरी बातें मानी हमने * श्री हमरे मन गई समाय ॥

धीरज राखौ निज जियरा माँ * अवहीं व्याह दिहौं करवाय ॥

तुरत बुलायो फिरि पंडित को * शोधो लग्न महूरत बार ॥

जितनी सखियाँ हैं महुबे की * सो सब करें मंगला चार ॥

आये चन्देले अपने दल माँ * सकल बराती होंय तयार ॥

सजो वगयत चन्देले की * शोभा वरन करी ना जाय ॥

 

चली सवारी चन्देले की * मानहुँ इन्द्र अखाड़े जाय ॥

पहुचीवरायत जब महुबे माँ * देखत नगर खुशी हुइ जाय ॥

सखियाँ बैठो हैं अंटन पर * छजन रही लालरी छाय॥ 

झुकि २ देखें परिमाले को * श्री सब मोहि २ रहि जॉय ॥

यहि विधि देखत नगर महोबा * मोहित करत चन्द्र सरदार ॥ 

जाइके पहुँचे दरवाजे पर * तुरतै भयो दुबारा चार॥

भीतर सखियाँ मंगल गा* शोभा बरण करी ना जाय ।।

जवहीं राजा भीतर पहुँचे * चन्दन चौकी दई डराय ॥

पंडित वेद उचारन लागे * सबके हर्ष न हिये समाय ॥

चितामणि पंडित राजा के * गहने को डब्बा दियो गहाय ॥

तुरत लै आवौ अब बेटी को * भाँवरि समय पहूँचो प्राय ।।

भयो बोलौनां तब नानिको * बेटी के उटवन दयो कराय॥ 

सजिकै मल्हना गइ बेदी पर * मानौं इन्द्र अप्सरा आय ॥

चन्दन चौकी पर वैगरे * औ सव नेग दये करवाय ॥

करि गठिबंधन फिरि पंडित ने * भौरी को त्यारी दई कराय॥ 

फेरन के हित जब मड़ये तर * उठि कै चले चन्द्र सरदार ॥

पंडित बेद उचारन लागे * सखियाँ गावैं  मंगल चार ॥

 

पहिली भाँवरिके परतै खन * माहिल खैंचि लई तरवार ॥

लगे झड़ाका जब समुहें पर * मुंशी जौन चन्द्र सरदार ॥

दुसरी भाँवरि के परत खन * भूपति गही तेग खिसियाय ॥

करो झड़ाका परिमाले पर * चिंतामणि दइ ढाल अड़ाय ॥

सातौ भाँवरि यहि विधि परिगई * बहुतै खुशी चन्देले राय ॥

अनंद बधैया महुबे बाजै * घर २ खुशी रही है छाय॥

फिरि चन्देले बोलन लागे * सुनिये वासुदेव नरराय ॥

करो तयारी तुम बेटी की  * अहीं विदा देउ करवाय ॥

डोला पहुचाय दियो मल्हना को * लश्कर कूँच दियो करवाय ॥

मंजिल २ के चलिबे माँ * अपनो धुरा दवायो आय ॥

यक हरिकारा दौरति आवै * चन्देली में पहुँचो जाय ॥

खबर हुइगई रंग महल माँ * सखियाँ करें मंगला चार ॥

डोला पायो जब द्वारे पर * परछन होन लगी तेहिवार ॥

दगी सलामो चन्देली में * नौ सौ  तोप दई दगवाय ॥

यक दिन मल्हना बोलन लागी * स्वामो सुनो हमारी बात ॥

नगर महोबे को सरिवरिको * जगमें नगर न मोहिं दिखात ॥

 

यातो बसौ चलौ महुवे माँ * नातरु हमैं देव  पहुँचाय॥

बोले राजा तब रानी से * रानी सुनौ हमारी बात ॥

बहुत राज है मेरे बाप को * अरु है पारसमणि विख्यात ॥

ऐसो पत्थर मेरे घर है* लोहा छुवत सोन हुइजाय ।।

कौन बात की याँ कमती है * जासों तेरो चित घबराय ॥

बोली मल्हना तब राजा से * स्वामी सुनौ हमारो वात ॥

राजपाट धन मोहि न चाहिये * याको हमैं नहीं परवाह ॥

मैं तो पास करौं महुबे माँ * नातरुमरौं कनी विष खाय ॥

बोले राजा तब रानो से * प्यारी घोर धरो मनमाहि ॥

करौ चढ़ाई मैं महुबे पर * जीति के लेहों तुरत छिनाय॥

धीरज के रनि मल्हना को * आये सभा चंदेले राय ।।

लै के सम्मति निज मत्री की * औ यह हुक्म दियो करवाय ॥

बजै नगाड़ा मेरे लश्कर में * सगरी फौज होय तैयार ।।

तुरत नगड़त्री को बुलवायो * सोने के कड़ा दये डरवाय ॥

पहिले नगाड़ा भइ जिनबन्दी * दुसरे वाँधि लीन्ह हथियार ॥

वजो नगाड़ा चन्देली में * क्षत्रो उठे भरहरा खाय ॥

 

तिसरे नगाड़ा के वाजत खन * क्षत्री फाँदि भये असवार ॥

चौथे नगाड़ा के वाजत खन * सबने कूच दियो करवाय ॥

देश २ के नृप संग लैके * नौ चलि भये चन्देले राय ॥ 

मंजिल २ के चलिबे माँ * महुवो धुरो दवायो प्राय ।।

तीनि कोस जब महुबो रहिगो * तबहीं डेरा दियो गाय ॥

फेट छुटि गई रजपतन की * घोड़न जीन दिये उतराय ॥

हौदा तरि गये हाथिन के * औ परिगये चन्देले राय ॥

लैके कागद कल्पी वालो * अपनो कलमदान लै हाथ ॥

लिखो हकीकत चन्देले की * पढ़िौ बासुदेव नरराय ॥

अर्द्ध महोबो हमका दैदेउ * श्राधो राज्य देहु बटवाव ॥

जो तुम मुखते नाहीं करिहौ * महुबो गर्द दिही करवाय ॥

किला गिराय दिहौं महुबे को * सारो नगर लिहौं लुटवाय ॥

लिखिकै पाती यह राजा ने * हरिकारा को दई गहाय ॥ 

लैके पाती धामन चलिभौ * औ महुबे माँ पहुँचो जाय ॥

सोने सिंहासन राजा बैठे * ऊपर चवर दुरै गजगाह ॥

सात कदम ते कुन्नस करिके * पाती गद्दी दई चलाय ॥  

 

नजरि बदलि गइ बासुदेव की * तुरतै पातो लई उठाय ॥

खोलि के पाती राजा बाँची* आँकुइयाँकु नजरि करिजाय ॥

पाती बाँचत परलै हुइ गइ * जियरा गयो सनाका खाय ॥

नाम पढ़त ही परिमाले को * मुंह को थूक बंद हुइ जाय ॥

छाय गई मुर्दानी चेहरा पर * ओठन लाली गई सुखाय ॥

पूछ माहिल तब राजा से * दुदुवा हाल देउ बतलाय ॥

कहाँ से पाती यह पाई है * काहे बदन गयो कुम्हिलाय ॥

बोले राजा तब माहिल ते * बेटा हाल कहो ना जाय ॥

पाती आई चन्देले की * माँगत अर्द्ध महोबो ग्राम ॥

आधो राज देउ महुबे को * नातर जाइ करौ संग्राम ॥

इतना सुनते माहिल जरिंगा* अपने लश्कर पहुचो जाय ॥

हुक्म दै दियो तब माहिल ने * सगरी फौज होय तैयार ॥

बजो नगाड़ा तब महुबे माँ * क्षत्री सजन लगे हथियार॥

धामन घायौ तब महुवे से * लश्कर खबरि जनाई थाय ॥

सज सिपाही परिमाले को * सगरी फौज भई तैयार ॥

इतते फौजें हैं महबे को * उतते फौज चंदेले क्यार ॥

 

दोनों पहुँची समर भूमि में * तो चलन लगी ततकाल ॥

मान्ह खण्ड चारि घरी भरि तोफैं बरसी * अंधाधुन्ध मचो तेहि काल  

दोनों फौज संगम हुइ गई * धूमिके चलन लगी तरवार ॥

वारि घरी भरि चली सिरोही * औ वहि चली रक्तकी धार ॥

बड़े लईया चन्देली के * जिनकी मार सही ना जाय ॥

भने सिपाही महुबे वारे * अब कुछ रहा ठिकाना नाय ॥

जीवित पकड़ लियो माहिल को * अरु भोपति को लियो बँधाय।।

यक हरिकारा भाजत प्रावै * औ महुवे माँ पहुँचो श्राय ॥

खबरि सुनाई वासुदेव को * राजा बहुत गयो धवराय ॥

सोचि समुझिके मन अपने माँ * चालभै वासुदेव नृप राय ॥

करी अधीनी वासुदेव ने * जानो मोहिं अपनो दास

डंड खोलि देउ दोउ बेटन की * श्री महुबे माँ करौ निवास ॥

सुनकै बात ये राजा की * महुबे बसे रजापरिमाल ॥

राजा वासुदेव उरई माँ * बसिगै कुटुम सहित ततकाल ॥

दुसरी बेटी वासुदेव की * जाको नाम कमल सुकुमारि॥

वौरीगढ़ के वीरशाह को * व्याही बासुदेव परिहार ॥

 

अगमा व्याही पृथीराज को * जो हैं दिल्ली के चौहान ॥

तिलका दिवला दुइवाकी हैं * तिनका आगे सुनौ हवाल 

कछु दिन बीते वासुदेव नृप * अपनी मृत्यु निकट जिय जानि ।

तुरत बोलायो परिमाले को * औ यह उनसे कही वखान ।।

बड़े सूरमा सव लायक हो * हे महराज चन्देले राय ॥

लड़िका मेरे ये दोनों हैं * तिनको करिओ सदासहाय ॥ 

इतना कहिके बासुदेव ने * दीन्हें प्राण त्यागि ततकाल ॥

उरई राज्य किया माहिल ने * सम्पति दई रजा परिमाल

छोटो भैया जो माहिल को * भूपति नाम जासुकोभाय ।।

नाम दूसरोजगनिक कहिये * जगनेरी माँ दो वसाय ॥

चंद्राकर भाई राजा को * राज चन्देली दिया बसोय ।।

अपनी रानी को बोलवायो * महुबे रहन लगे सुखपाय ॥

बारह व्याह किये राजा ने * एकते एक रूप की खानि ॥

नगर महोबे माँ सुन्दरविधि * भोगें राज रजा परिमाल ॥

 

                 बनाफरों का हाल

 

जितने राजा थे भारत में * सब वश किये चन्देले राय॥

अपनो दुशमन ना  कोइ राखो * बावन गदिया डारी हिलाय ॥

रहा मुकाविल ना कोइ योधा * खाँडा सागर धयो पखार ।।

कसम खाइ लइ श्रमर गुरुकी * अब ना गहौं हाथ हथियार ॥ 

एक दिवस राजा चंदेले * बन माँ खेलन गये शिकार ॥

एक तमाशा तहँ पर देखो * जासों अचरज भयो अपार ॥

डगर संकोच रहीवन भीतर * तहँ पर गये चंदेले राय ॥ 

मस्त जंगली भैंसा तहँ दुइ * लड़ते काल रूप दिखराय ॥

तीनि पहर दोनों को हुइगये * एकौ हटे युद्ध से नायें ॥

देखि हकीकत यह राजा ने * औ ज्वानन से कही सुनाय ॥

जल्द हटावी इन भैसन का * रस्ता साफ देउ करवाय ॥

सुनिके श्राज्ञा यह रोजा की * योधा सोचें नौ रहिजायँ ॥

परै न हिम्मत काहु शूर की * जो भैंसन का देइ हटाय ॥

थोड़ी देर केरे अरसा में * तहँ दुइ बाल पहूँचे श्राय ॥

देखि तमाशा उन भैंसन को * दोऊ पास गये नगिचाय ॥

एक २ को सींग पकरि के * दोउ भैंसन का दियोहटाय ॥

 

रखनी भैंसा दोउ गढ़े थे * नैना रक्त बरण दिखलाय ॥

हो बल करि २ दोउ भैंसा हारे * लड़िकन दोउ दये बिलगाय।।

देखि तमाशा नृपति चंदेले * दाँतन अँगुरी रहे दवाय ॥

सकल शूरमा लज्जित हुइगे* नीचे मुड़ लये लटकाय ॥ 

मन अपने माँ राना सोचें * इन लरिकन का जाउँलिवाय॥

सोवि समझिके मन अपनेमाँ * दोउ लरिकनका लियोबुलाया ॥

राजा पूछ फिरि लड़कन ते * तुम्हरे कहाँ पिता अरुमात ॥

कहा नाम तुम्हरो कहित हैं * सो सब हमैं कहहु तुमतात ॥

सुनिके लड़िका बोलन लागे* जानें नहीं पिता अरु मात ॥

हम दोउ बासी हैं जङ्गल के * भोजन कर फूल फल पात ॥

साधू एक मिले जङ्गल में *जिन यह कही हमहि महराज ॥

नाम तुम्हारो या दुनियाँ में * हुई हैं दस्सराज बछराज ॥

रजा चन्देले यहँ पर ऐहैं * वन में खेलन हेत शिकार ।।

सो तुम दोनों को लै जैहैं * जो हैं महुबे के सर्दार ॥

पुत्र समान पालना करिहैं * यह हम साँची दई बताय ।।

सुनिके बात उन दोउन की * हर्षित भये चन्देले राय ॥

 

वाह पकरिके दोउ लरिकन की * जौं हाथी पैलियो बिठाय ।।

हाथी फेरि दो पीछे को* घोड़न बाग दई मुड़वाय ॥

लोटो लश्कर चंदेले को * श्री महुबे माँ पहुचो जाय ॥

दोनों पुत्रन को सँग लैके * महलन चले चंदेले राय ।।

सुनो खबरिया जब मल्हनाने * महलन पलँग दियो विछवाय ॥

आवत देखो जब स्वामी का * तुरतै उठो हृदय हरषाय ॥

नजर बदल गइ रनिमल्हना की * औ लरकिन घई रही निहार ॥

वोली रानी हाथ जोरि के * बालम पैयाँ परौं तुम्हार ।।

केहि के वालक ये हरिलाये * स्वामी कियो न काम विचार ॥

जैसे जल बिन मछली तड़पै* ज्यों बछरा बिन तड्पै गाय ॥

तसे माता इनकी तड़पै * मनमें रोय २ हि जाय ॥

सुनिके वार्तं ये रानी की *तब हसि कहो चंदेले राय॥

नाहीं बालक हम हरिलाये * ना काहू के लाये छिनाय ।।

हमको बालक दिये साधु ने * इनको पालो नेह लगाय॥

नगर महोबे के मालिक हैं * यह दोउ वीर बनाफर राय ॥

हाथ जोरिक मल्हनो बोली * स्वामी सुनिये कान लगाय ।।

 

वहिनी छोटी दुइ मोरी हैं * तिनसों दोजी ब्याह कराय ॥

ब्याह होन पर इन दोउन का * आधौ दीजौ राज बँटाय ।।

यह मन भाइ गई राजा के * औ हिरदै माँ गई समाय ॥

प्रीति समेत दोऊ लरिकनको * पालन कियो मल्हनदे रानि ।।

दोनौं लरिका स्याने हुइ गे* ओसि खिलई सकल कुलकान

दोनों कसन लगे शस्त्रन को * अरुनित खेलन लगे शिकार ॥

समय २ पर दोनों बालक * नित प्रति जान लगे दरबार।।

समय पाय के महनारानी * यकदिन कहन लगीशिरनाया।

हाथ जोरिके रानी बोलै * स्वामी सुनौ चंदेले राय ॥

दोनों लरिका समरथ हुइगे * मन अपने माँ करौ विचार।।

व्याह रचावौ इन दोउन को * जासों बड़े कुटुम परिवार ।

यह मन भाय गई राजा के * श्री पंडित का लियो बोलाय ।।

खोलि के पत्रा पंडित देखो * लग्न शोधी बारम्बार ।।

शोधि महरत चिंतामणि ने * सुन्दर दिवस दियो बतलाय ।।

ब्याह रचावों दोउ पुत्रन को * तुम्हरे काम सिद्धि हुइजाय ।।

लिखि के पाती परिमाल ने * औ उरई का दई पठाय ॥

 

छोटी बहिनी दुइ मल्हना की * तिनकी ब्याह देउ करवाय ।।

बजै बधाई गढ़ महुबे माँ * सखियाँ करें मंगला चार ।।

एक मँड़ये माँ दोउ लरिका * ब्याहे जाय चन्द्र सरदार ॥

दिवला ब्याही दस्सराज को * तिलका बच्छराज को भाय ।।

मर्जी माहिल की नाहीं थी * तिनको कैदिलियो करवाय ॥

से विदा कराइ लई उरई से * माहिलको दइ कैदि छुड़ाय ।।

मनमाँमाहिलयह प्रण कीन्हों * जान से इनका देहौं मराया।

यहै वैर माहिल सों परिगो * मित्रो सुनियो कान लगाय॥

आई वरायत चन्देले की * नगर महोवे पहुँची आय ॥

जितनी गनी चन्देले की * परछन हेत चली मब धाय ॥

परछन करिके दरवाजे पर * बहुअन भीतर गई लिवाय!!

हार नौलखा मल्हना लीन्हों * श्री देवैका दयो  पहिराय ॥

दुमरो हार लियो रानी ने * सो तिलका का दयो  गहाय ॥

ओरो रानी चन्दले की * तिनहूँ हार दिये पहिनाय ॥

अनन्द बधैया घर २ बाजे * महुबे के नेगी गये अधाय ॥

यक दिन मल्हना   * मन अपने माँ कियो विचार ॥

 

औ फिर कहन लगी राजा से * सुनिये चन्द्र वंश सरदार ।।

स्यानी बहुयें स्याने लाड़का * वालम सुनौ चन्देले राय ॥

नहीं गुजारा इन महलन मां * न्यारे महल देउ बनवाय ।।

यह मन भाय गई राजा के * मनमें सोचि चन्देले राय ॥

महुबे केरे आध कोस पर * दशहर पुरवा दियो बसाया

तहाँ बसायो दोउ भैयन को * जो हैं वीर बनाफर राय।।

सिरसा दीन्हो वच्छराज को * सुन्दर दियो किला बनवाय ॥

न्यारे २ महल बनाये * न्यारो फौज दई करवाय ।।

महा मित्रता दोउ भैयन में * ताते रहत संग हरषाय ॥

नित प्रति आवै नगर महोबे * जहँ दरबार चन्दले राय॥

आज्ञा मान दोउ राजा की * जासों क्षत्री धर्म न जाय ॥

दोनों लड़िका समरथ हुइगै * लागे करन राजको काज ॥

काहू बात की ना कमती है * भौगैं अटल राज परिवार ॥

एक साल को अरसा गुजरो * दिवला दस्सराजको रानि ॥

धर्मराज पाण्डव कुल राजा* आल्हा हुइ जन्मे जगजानि ॥

बच्छराज की तिलका रानी * तहँ मलिखानलिया अवतार ॥

 

पाण्डव कुलका पूर्ण ज्योतिषी* था सहदेव वीर मलिखान ॥

धाँधू जन्मा रनि दिवला से * जो दुश्शासन को अवतार ॥

खाटे ग्रह थे यहि लरिका के * देखत होय पिता कर चार ॥

तासों दै दीन्हों दासी को * पालन लगी ताहि हरषाय ॥

घाट विद्वर गंग तट जानौ * कार्तिक पर्व पंड़ा जब आय

तह ते राजा पृथीराज ने * बालक चोरी लियो कराय ।।

ऐसे पहुँचो यहु दिल्ली में * सो मैं हाल कह्यो समुझाय॥

रानी मल्हना को कुचा से * ब्रह्मा जन्म लियो तेहिवार ॥

वीर शिरोमणि पाण्डवकुलका * अर्जुन पांडव को अवतार ॥

वजी बधाई गढ़ महुबे माँ * उपजा चन्द्रवंश सरदार ॥

अनँद बधैया है महुबे माँ * घर २ होय मंगलाचार ॥

चिंतामणि पंडित राजा के * तिन गृह पुत्रलिया अवतार ॥

बड़ा ज्योतिषी चन्द्रवंश का * ढेवा नाम प्रकट संसार ॥

लाखनि जन्मेगद कनवजमें * जहँ जयचन्द केर- दरबार ॥

बड़ा शुरमा पाण्डव कुलका * नकुले पराडा को अवतार ॥

देव रानी रहीं गर्भ से * ऊदनि रहा गर्भ में प्राय ॥

 

भीमसेन पांडव कुल योधा * सोई प्रकट होयगा पाय ।।

बच्छराज की रनि तिलकाके * आयो गर्भ वीर सुलिखान ॥

घर घर सखियाँ मङ्गल गाः * महुबे बोच होय घमसान ॥

ताला सैय्यद वनरस वाले * जो हैं मित्र चन्देले राय ॥

तिनहिं बुलायो परिमाले ने* भो यह तिनहिकहीसमुझाय।

तुमका सौंपतिहौं लरिकन का * हो तुम मित्र धर्म के भाय ॥

दस्सराज नौ बच्छराज की * दीन्हीं तिनहि बाँहिं पकराया।

बोले सैय्यद तब राजा से * सुनिये मित्र चन्द्र सरदार ॥

गिरै पसीना जहँ लरिकन को * तहँ दे दे रक्त की धार ॥

गंगा कीन्हीं चन्देले ने * सैय्यद लै लइ हाथ कुरान ॥

दोनों मित्रन शपथ खाइ लइ * साक्षी कीन्ह शंभु भगवान॥

दस्सराज अरु बच्छराज संग  * सैयद किये मित्र बर्ताव ॥

सारो गद्दी के मालिक है * सब सूत्रन पर भये नवाव ॥

यहि विधि महुवेशर प्रकट भये * आल्हा ऊदनिौ मलिखान ॥

नितनव मङ्गल होत नगरमें * पावत विष आदि बहु दान ॥

 

                 उड़न बछेड़ा का हाल

 

 पाँच बछेरा इन्द्रराशि के * जैसे भये महोरे ग्राम ॥

 तैसो हाल लिखौं आल्हा में * मनमें सुमिर राम घनश्याम ॥

रानी मल्हना चन्देले को* जोहै अगम रूपकी खानि ॥

एक दिवस ठगदी अंटा पर * नारी सुघर रूप की खानि ।।

गगन पन्धमें सुरपति जावे * औचक दृष्टि परी महरानि ।

रूप देखिके रनि मल्हना को * सुरपति सोचि २ रहिनाय ।।

या नारो सम सुघर सलोनी * कोई देव लोक में नाँय ॥

प्रीति करौं काहू विधि यामों * जासों मिटै हिये को ताप॥

सोचिसमुझके मन अपनेमाँ * पाये इन्द्र महोबे आप ॥

श्रावत देखोजब सुरपति को * उठिके मिले रजा परिमाल ।

श्रद्धं सिंहासन पर बैठायो * औ सब पूछो हाल हवाल ।

देखि संपदा गढ़ महुबे को * सुरपति गयो सनाका खाय ॥

श्यामकरण घोडा इन्दरको *सो शाला में दियो बंधाय॥ 

चितरंजी घोड़ी राजा की * जो अनमोल रूपकी खानि ॥

जोड़ा खाय गई घोड़ा से * यह संयोग लिखा भगवान ||

पाँच वर्ष लौं रही मित्रता * पैनहिं सुरपति भयो सनाथ ॥

 

आवा गमन रहा इन्दरका * पै नहिं लगा समय कोइ हाथ ॥

पाँच वर्ष मे पाँच बछेड़ा * चितरंजा से उपजे आय ॥ 

पाँचो घोड़ा इन्द्र राशि के * जिनके बदन पंख अकुराय ।।

हंसामनि वा घोड़ा करिलिया * प्रथम बछेरा भयो तयार ॥

दुसरी उपजी घोड़ी कबुतरी * जाको जानत सब ससार ॥

हरनागर अरु घोड़ो मनुस्था * उपजे सकल रूपके धाम ॥

पंचम घोड़ा बेंदुला कहिये * रण में दलगंजन जेहिनाम

घोड़ी हिरौंजिनि छोटी राशिको * सोऊ प्रकट भई पुनि श्राय ॥ 

पंच बछेरा अरु दुइ घोड़ी * यहिविधि नगर महोबे पाय॥

घोड़ा पपीहा जोसुरपति को * सोऊ इन्दर दियो गहाय ॥

पीत पिछोरी बीजुल खांडा * सुरपाते दियो चन्देले राय॥

यक पत्रशब्दा हाथी दीन्हा * ताको कहलग करौं बखान ॥

सांकर फेरै जब लश्कर में * बारह कोश करै खरिहान ॥

पांच बरस यहि विधि ते गेते * पायौ समय नहीं सुरराय ॥

 यकदिन अर्द्धनिशा को सुरपति * पायो भेष चन्देले राय ||

काहू विधि सो इन्द्र देव जी * पहुँचे मल्हना के ढिगजाय ॥

 

पहिचानि लियो मल्हनाने * सुरपति बहुतगये खिसियाय ॥

धर्म पतिव्रत की पालनकरि * औ इन्दर से कही सुनाय ।।

मम समान दासी बहुतेरी * देव लोक में हैं सुरराय ॥

तेहिते तुमका समझावति हौ * मानौ कही मोरि सुरराय ॥ 

इच्छा त्यागौ मन अपने को * नहिं रोजाको लिहौंबुलाय ॥

यहना जनिो मनअपनेमाँ * त्यागे अन चंदेले राय ||

खेदिके मरिहैं देव लोक लौं * हूँढे राह न पर दिखाय ।।

सुनिके बातें ये मल्हना की * सुरपति लजित भये बनाय ।।

जायके पहुँचे इन्द्रलोक में * कबहूँ सुरतिकरी फिरिनायें ॥

पाँच बछेरा इन्द्रराशि के * मल्हनामहलन डारे छिपाय ॥

चशब्दा हाथी को लेके * दस्सराज को दियो गहाय ।।

घोड़ा पपीहा बच्छराज को * दोन्हा तुरत चन्देले राय ॥

यह कहि दीन्हीं दोउ लरिकन से * भोगौ राज चित्त हर्षाय ॥

राजनीति बरतौब निशिदिन * करियो काम धर्म के साथ ॥

रीति बाँधि दइ चन्देले ने * जो हैं चन्द्रवंश सरदार ॥

आगे युद्ध लिखौं कनक्जको * जेहि विधि भयोघोर संग्राम ॥

भयो स्वयंवर संयोगिनिको * जहँ है अजयपालको धाम ॥

पृथीराज जयचन्द के मन में * जैसे विछो फूट को जाल ॥

 

 परिमल का विवाह समाप्त

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

 

1 thought on “Raja Parimal Ka Vivah राजा परिमाल का विवाह (आल्हा )”

  1. जय हो
    आपका योगदान सदियों तक याद रहेगा

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