पाहिल नामक श्रेष्ठी द्वारा 10वीं शताब्दी में Parsvanatha Mandir Khajuraho का निर्माण हुआ था। महामण्डप के प्रवेश द्वार पर लगा हुआ शिलालेख पर वर्णन है कि यह पार्श्वनाथ मन्दिर पाहिल नामक श्रेष्ठी ने लगभग 950 ई0 में बनवाया था। पंचरथ शैली में निर्मित यह मन्दिर जैन समूह में सबसे श्रेष्ठ मन्दिर है।पार्श्वनाथ मन्दिर में युगल चित्रों का अभाव है। विद्वानों के अनुसार यह मन्दिर यहाँ के समस्त मन्दिरों में उत्कृष्ट एवं सुन्दर है ।
Parsvanatha Temple Khajuraho
मन्दिर की आंतरिक संरचना में मण्डप, महामण्डप, गर्भगृह, अन्तराल एवं प्रदक्षिणा पथ दर्शनीय हैं। गर्भगह के प्रवेश द्वार पर तीन लोक का चित्रण है। नव ग्रहों के साथ ही जैन तीर्थकारों को देखा जा सकता है। मन्दिर के आलों में जैन तीर्थकार की प्रतिमाएँ देखने को मिलती हैं। इन्हीं में प्रथम तीर्थकार ऋषभ देव जी की शासन देवी चत्रैश्वरी अष्ट भुजाओं वाली मूर्तिदर्शनीय है जिसमें चत्रेश्वरी देवी – गरुड़ पर विराजमान हैं।
भगवान पार्श्वनाथ 23 वें तीर्थकार की श्याम वर्ण प्रतिमा गर्भग्रह में सन् 1917 में प्रतिष्ठित की गई तभी से यह मन्दिर पार्श्वनाथ मन्दिर कहलाने लगा। बाहरी दीवार पर कुबेर, द्वारपाल, गजारूढ़ एवं अश्वारूढ़ जैन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बहुत सुन्दर ढंग से चित्रित की गई हैं। पद्म पुराण, चक्रेश्वरी एवं धरेणाद्र जैसे जैन ग्रन्थों के कथानकों का चित्रण भी देखने योग्य है। अष्ट दिक्पाल दर्शनीय है। मन्दिर के अन्दर एवं बाहर जो भी मूर्तियाँ गढ़ी गई हैं वह हृदय को स्पर्श करती हैं ऐसा महसूस होता है जैसे सजीव चित्रण मनमोहक है।
देवी-देवता हाथों में ढाल, तलवार, बरछी, तीरकमान आदि हथियार लिये हुए हैं। देवी-देवता अपने वाहनों पर आरूढ़ हैं . जैसे घोड़े, मगरमच्छ, हिरण, शेर, बैल आदि । इस मन्दिर में जितनी मूर्तियाँ है शिल्पकार ने अपनी उच्चतम शिल्प शैली को मूर्तियों को गढ़ने में सर्वथा सफलता पायी है। चाहे वह नायिका की कमनीय देह हो या लचकदार कमर हो अथवा सुन्दरी सिरो भाग की लज्जा व्यक्त कर रही हो।
काजल लगाते हुए मृगनयनी महिला हो । कला की इन अनमोल कृतियों में शीशा देखते हुए नायिका, केश संवारती हुई नायिका, पायल पहनते हुए, आलता लगाते हुए, प्रेम पत्रिका लिखते हुए आदि प्रमुख हैं। स्नेह जनित वात्सल्य माता अपने बच्चे को पुचकारते हुए बच्चे को स्तन पान करा रही है। नृत्यांगना अपने नुपूर को बाँधते हुए दिखाया गया है।
कृष्ण की वंशीवादन एवं नायिका ढोलक बजाते हुए भी दर्शनीय है। इतनी भाव प्रवण मूर्तियों को दर्शक अपलक निहारता रहता है। आँखें ऐसीकृति को देखकर झपकने का नाम नहीं लेती प्रकाश अन्दर जाने के लिए दूसरे मन्दिरों की अपेक्षा झरोखों की बजाय छोटे-छोटे छिद्र बने हुए हैं।