Kandariya Mahadev Mandir कन्दारिया महादेव मन्दिर

Kandariya Mahadev Mandir कन्दारिया महादेव मन्दिर

मध्य प्रदेश में बुन्देलखण्ड के खजुराहो में स्थित Kandariya Mahadev Mandir एक विशिष्ठ दर्शनीय स्थल है । इसका निर्माण महाराजा विद्याधर ने जब मुहम्मद गजनी को दूसरी बार परास्त किया एवं मुहम्मद गजनी को भगाने में सफल हुए तब उन्होंने इसे भगवान शिव की कृपा माना। इसके बाद लगभग 1065 ई. महाराजा  विद्याधर द्वारा कन्दरिया महादेव मन्दिर का निर्माण किया। भगवान शिव का यह विशाल मन्दिर 117 फुट ऊंचा, 117 फुट लम्बा एवं 66 फुट चौड़ा है।

Kandariya Mahadev Temple

मध्य युगीन यह मन्दिर अपनी शिल्प कला एवं स्थापत्य एवं कला का उत्कृष्टतम् उदाहरण है जिसे कला पारखी निहारते ही रहते हैं। दूर से इस मन्दिर को अवलोकन करने पर ऐसा लगता है जैसे कोई विशाल पर्वत खड़ा हो। इसका प्रवेश द्वार ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी कन्दरा अथवा गुफा का द्वार हो । इसलिए इस विशाल मन्दिर का नाम कन्दरिया

पड़ा।

सप्तरथ शैली का यह मन्दिर खजुराहो के मन्दिरों में सबसे अधिक विकसित है। इस मन्दिर के गर्भग्रह में संगमरमर की शिवलिंग स्थापित है। लोकमत के अनुसार जोकि अमरनाथ के शिव लिंग का प्रतीक है। सान्धार शैली का यह मन्दिर पांच भागों में विभक्त है। एक ही पत्थर से बना हुआ मकर तारण प्रवेश द्वार के ऊपर शोभायमान है जिसे शुभागमन का प्रतीक मानते हैं। कन्दारिया महादेव मन्दिर अन्य मन्दिरों से विशाल एवं वृहत् है ।

कमरतोरण के ऊपर कई प्रकार की मूर्तियां खुदी हुई हैं। इसमें नाना प्रकार के वाद्ययन्त्र बजाते हुए संगीतकार, देवताओं की मूर्तियां, प्रेमी युगल, युद्ध, नृत्य एवं राग-विराग आदि की मूर्तियाँ देखने को मिलती हैं। इसके बाद महामण्डप आता है और महामण्डप की छत के ऊपर जो कारीगरी की गई है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

यहाँ पर जो नायिकाओं की मूर्तियाँ गढ़ी हैं उनकी तुलना स्वर्ग की अप्सराओं से की जाती है। पैरों के नूपुर, पैजांनिय, तोड़ा कमर कटिबंध, मणि झालर एवं पट्टिका, वक्ष स्थल पर सतलड़ी, मणि माला, हार, हाथों के भुजबन्ध, चूढ़ा, बंगरी, माथे की बिंदया, शशि फूल, सिर के पुष्प, मुकट आदि आभूषणों का चित्रण बड़े ही रोचक ढंग से शिल्पकार ने किया है।

गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर साधुओं को तपस्या करते दिखाया गया है। वेदी के द्वार पर एक घड़ियाल पर गंगा, कछुए पर खड़ी यमुना नदी को देखा जा सकता है। गर्भगृह की बाह्य दीवार पर दो लाइनों में मूर्तियाँ हैं, नीचे की पंक्ति में अष्टदिक्पाल की मूर्तियाँ हैं। मंन्दिर के चारों ओर तीन पंक्तियों में मूर्तियाँ सुसज्जित की गई हैं। इन मूर्तियों में देवी-देवताओं, प्रेमी युगल आदि उस समय के जीवन की झलक प्रस्तुत करते हैं।

मन्दिर के मध्य भाग में मैथुन के दृश्य हैं जिसमें शीर्षासन वाला दृश्य प्रमुख है। एक पुरुष एवं तीन स्त्रियों के साथ दिखाया गया है। उत्तर की ओर मध्य भाग में मैथुन वाली मुद्राओं को नीचे से ऊपर की ओर क्रम से प्रस्तुत किया गया है।

 उपरोक्त कृतियाँ कामसूत्र के द्वितीय अध्याय में वर्णित सिद्धान्त को प्रतिपादित करती हैं कि मैथुन क्रिया के पूर्व आलिंगन एवं चुम्बन द्वारा एक-दूसरे को उत्तेजित करना चाहिए। उत्तर पूर्वी कोने पर एक स्त्री की जंघा पर विच्छू दर्शाया गया है एवं स्त्री को वस्त्र उतारते हुए नग्न अवस्था में दृश्य है। विच्छू काम की इच्छा का प्रतीक है। कामोत्तेजक स्त्रियों की जंघा पर बिच्छू दिखाया जाता है।

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