Homeकविता संग्रहOont Bilaiya Le Gai ऊंट बिलैया ले गई सो हांजू- हांजू कइये

Oont Bilaiya Le Gai ऊंट बिलैया ले गई सो हांजू- हांजू कइये

बुंदेलखण्ड में यह उक्ति किसी सहज कहावत की तरह ही लोकप्रिय है। कवि ने चाटुकार लोगों को शब्द प्रहार करते हुए उनका चरित्र चित्रण किया है , Oont Bilaiya Le Gai तो मान लो सचमुच ऊंट बिलैया ले गई। यही  चाटुकारिता की पराकाष्ठा है । यह बुंदेली कवि श्री जगन्नाथ सुमन ( ग्राम पचवारा, मऊरानीपुर, जिला झाँसी) की कविता की ध्रुवपंक्ति है

ऊँट बिलइया लै गई, सो हाँजू-हाँजू कइये!
जी के राज में रइये, ऊकी ऊसी कइये,
ऊँट बिलइया ले गई, सो हाँजू-हाँजू कइये!
गाय दुदारू चइये, तौ दो लातें भी सइये,
तनक चोट के बदले, फिर घी की चुपरी खइये!
घपूचन्द्र की जनी कंयै, कि सुनलो मोरे संइयाँ,
राजनीति में घुसबौ कौनउ, हाँसी ठट्ठा नइयाँ!
घुसनै होबै कन्त तुमै, तौ चमचा बनलो प्यारे,
जो कोउ दिन खों रात कबै, तौ तुम चमका दो तारे!
हऔ में हऔ मिलाकें,फिर मन चाऔ पद लइये,
ऊँट बिलइया लैगई, सो हाँजू – हाँजू कइये!

बगुला नाईं बदलवौ सीखो, छलो और खुद छलवौ सीखो,
बड़े-बड़ेन में बसबौ सीखो, मौका परै तौ फँसबौ सीखो,
रोबौ सीखो, हँसबो सीखो, भीड़-भाड़ में ठसबौ सीखो,
शीत-घाम औ मेह परै, तौ सेंग सवेरे सइये!
ऊँट बिलइया लैगई, सो हाँजू – हाँजू कइये!

हाँजू सें खुश हैं चपरासी, साहब की मिट जाय उदासी,
पानी प्यादै पूत बिलासी, मालिक की घुरिया है प्यासी!
इमली खौं जो आम बतावैं, अपनी हाँकें और हँकाबैं,
तुम इमली में आम फरादो,उनें आम कौ स्वाद चखादो!
पंड़ित मुल्ला औ बाबा जू, सबई करत हैं हाँजू – हाँजू,
बड़ो मजा है ई हाँजू में, हाँजू सें मिलतई है काजू!
जोऊ खुआवे घरे टेरकें, तौ दचेर कें खइये,
ऊँट बिलइया लैगई, सो हाँजू – हाँजू कइये!

हाँजू कै कें चमके चमचा, बदले उनके ठेला खुमचा,
जो मारत ते मक्खी-मच्छर, लगे खरीदन घोड़ा – खच्चर!
बिगरौ काम संवर जै सबरौ, हाँजू भर कै दइये,
ऊँट बिलइया लैगई, सो हाँजू – हाँजू कइये!
आदरणीय दुखो, चिंताओ 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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