Nag Devta नाग देवता-बुन्देली लोक कथा

नाग देख के डर लगत कऊं काट न लेबे  लेकन कछू नाग Nag Devta भी होत । एक गाँव में एक गरीबला सो परिवार रत तो। ऊ परिवार में बिलात दिना नों तो कोनऊँ बाल-बच्चा नई भओ। जीसैं पति-पत्नी खौं भारई चिन्ता बनी रत्ती। सन्तान के लानें उन्नें बारई मढ़ियाँ पूजी ती। भगवान की कृपा सैं उनकें एक बिटिया हो पाई ती वा उनें भौतई लाड़ली हती। मताई बाप ने ऊकौ नाँव धर दओ तो प्यारी बाई। फिर उनके एकऊ सन्तान नई भई। बड़े लाड़-प्यार में बिटिया पली पुसी।ऊनें जो कछू मँगाव बाप नें तुरतई लेआ के धर दओ।

हराँ-हराँ बिन्नू ब्याव लाख हो गई। बाप नें अच्छौ सौ घर लरका देख कैं अच्छों साके कौ ब्याव करो। दान दहेज में कोनऊ कमीं नई राखी। हर तरा कौ सामान उर बन्न बन्न की पठौनी बाँध कैं बिटिया की विदा करी। कछू दिनाँ बिटिया अपने सासरें बनी रई उर फिर पन्द्राक रोज में ऊके नन्ना उयै घरै लुआ कैं आ गये। ऐसऊ क्रम कैऊ साल नौ चलत रओ। ऊके नन्ना बूढ़े तौ होई गये ते और सालक में सुर्ग सिधार गये। अब रै गई अकेली मताई।

जब कभऊँ मौका मिलो सो अपनी मताई नौ चार छै दिना रैकै अपने सासरे चली जात ती। दो चार सालै प्यारी बाई की ऐसई कट गई। मताई कौ शरीर कमजोर उर अचल तौ होई गओ तो। दो तीन दिना उनें ताप चढ़ी उर टैं बोल गई। प्यारीबाई मूँढ़ पटक कैं रै गई। कछू दिना तौ रात दिना रोऊत रई प्यारी बाई। अकेलैं करती का ईसुर की गत पै कीकौ बस है।

सावन कौ मइना आ गओ। भइया अपनी अपनी बैंनन खौं लुआबे जान लगे। बैंने माँउदी रचा कैं अपने भइयँन के आबे की बाठ हेरन लगीं। अब प्यारी बाई का करबै ऊके जिऊ में उखरा बूढ़ी होन लगी। ऊकौ तौ मायकौ पूरी तरा सैं मिटई चुको तो। मताई बाप हते सो बेई चले गये ते। भइया सो हतो नई जो उयै सावन के मईना में लुआबे खौं पौंच जातो।

ऊ रातै तौ उयै नीदई नई आई। रात भर अपने मताई बाप के लानें बिसूर बिसूर कैं रोऊत रई। व्याई करबे तक की इच्छा नई भई। भूकिअई डरी रई। बड़े भुन्सराँ खेप उठाकैं कुंआ पै पानी भरबे खौं पौंची दो चार बऊयें बिटियाँ और जुर आई उतै। फिर का अपने-अपने मायकन की चर्चा होंन लगी। कछू जनी बोली कैं हमाये भइया तौ काल लुआबे खौंआ रये। हम अपनी भइया भौजी उर भतीजन खौं राखी बाँधैं। उर कछू दिना बाल बच्चा अपने मामन कैं रै लैंय।

चर्चा करत करत कछू जनी प्यारी बाई सैं पूछन लगी कैं का बैन, तुमें मायकैं कबै जानें। सुनतनई प्यारी बाई खौं हिलहिली सी भरआई उर वा अपने अंसुअन खौं रोक नई पाई। उर इकदम डिड़या परी उर बोली कैं बैंन, हम तौ एकई देरी के होकैं रै गये। हमाव मायकौ तौ मिटई चुको। मताई बाप हते सो सुर्ग सिधार गये। भइया सो हतो नई। अब बताव हमें को लुआबे आ सकत। इत्ती कैकैं वा फिर कऊँ बिसूर-बिसूर कैं रोवन लगी।

उतै कुंआ की पाट पै एक किनारे एक करिया साँप बैठो-बैठो सब सुन रओ तो। उयै प्यारी बाई कौ बिलखबौ अच्छौ नई लगो। भलेई वौ साँप हतो अकेलैं ऊकौ जिऊ पसीज गओ। उर उयै प्यारी बाई पै दया आ गई। ऊनें प्यारी बाई के लिंगा जाकैं कई कैं बेटा तुम दुःखी नई होव। तुमाव भइया नइयाँ, तुमें लुआ जाबे खौं। आज सै हम तुमाये धरम के मामा हैं। उर तुम हमाई धरम की भानेंजन हों।

हम तुमें अपने संगै लुआँय चलत। सुनतनई प्यारी बाई शांत हो गई उर सोसन लगी कै साँप कौ का ठिकानौ कै वौ कबैं डस लेय। चलों मरने आय तौ मर जैंय। कमसैं कम दूसरी देरी तौ देखबे तौ मिलै। एक जगा रत-रत तौ हमाव मनई ऊब गओ। पुरा परोस की लुगाई ताना मारत रती। सो उनें पतो तौ चलई जैय कैं हमाओ मायकौ सोऊ है। साँप बोलो कैं तुम सोस का रई ठाँढ़ी-ठाँढ़ी। जल्दी घरै खैप धरकै आ जाव, उर अपनी सास सै कइयौ कैं हमाये नाग मामा हमें लुआबे ठाँढ़े हैं। भईयन खौं राखी बाँधकैं हम दो-चार दिना में लौट कैं आ जैंय।

इत्ती सुनकै वा प्यारी बाई घरैं जाकैं अपनी सास खौं बताकै सूदी कुंआ की पाट पै साँप मामा कें लिंगा पौंच गई। साँप नें  कई कै बेटा, हम बामी में हुन जगा बनाऊत जैय, तुम हमाये पाछें चली आइयौ। साँप आँगैं-आँगैं चलो गओ उर प्यारी बाई पाछैं-पाछैं। चलत-चलत नैंचें एक बड़ो सौ मैदान मिलो। उतै नागदेवता कौ घर-परिवार रत्तो। उतैं पौंचतनई प्यारीबाई खौं देखतनई नागिनी उयै खाबे खौं दौरी। नागराज नें जोर सै डाटकैं कई कै देखौ ऊसै नई बोलियौं। वा अपने धरम की भानेंजन आय।

अपने भईयन खौं राखी बाँधबे के लानें हम इयै लुआ ल्आये। उयै अच्छे प्रेंम सैं राखियौ। कोऊ कछू कइयौ नई। सुनतनई नागन शांत होकै बैठ गई। प्यारीबाई कौ नाग उर नागिन नें खूबई स्वागत-सत्कार करों। अच्छौ-अच्छौ ख्आव पिआव। उतै रैकै प्यारी बाई खौं भौतई अच्छौ लगो एक दिना नाग उर नागन खौ बायरे हवा खाबे खौं जानें तो उन्ने प्यारी बाई के खाबे-पीबे को पूरौ इन्तजाम कर दओ उर जाती बेरा नागन नें कई कै देखौं बैनई चुलिया में हमाये सात चैनुवा ढके हैं। इनें ढका नई लगइयो उर अपनौ बनाकै खात पियत रइयौ। इत्ती कैकैं वे नाग उर नागिन घूमबे खौं कड़ गये।

उदनाँ प्यारीबाई नें अपने खाबें खौ चावल दै पसाये। उर ऊने चावल कौ तातौ माड़ नैचें कुड़ेर दओ। वौ तातौ माड़ चैनुवन की चुलियाँ तरे हुनकड़ गओ। जीसै वे चैनवा बूचा बाँड़ा कनुवा उर अंदरा हो गये। दूसरे दिना नागिन लौट कै आई उर ऊनें चैनुवँन की हालत देखी। उर गुस्सा सैं लाल हो गई। नाग बोलो अब का हो सकत ऊसै तौ भूल होई गई। जीखौं हम अपनी भानेंजन मान चुके अब ऊकी गल्ती होई गई। जीखौं हम अपनी भानेंजन मान चुके अब ऊके संगै कैसऊ नुकसान हो जाय। नागिनी गम्म खाकैं रै गई।

प्यारीबाई उतै दो-चार दिना रैके जाबे की तैयारी करन लगीं। नागराज ने खूब हीरा-मोती उर सोनौ दैकैं बड़े प्रेंम सै उनकी बिदा करी। वे हँसत खेलत अपनें घेंर पौंच गई। धनदौलत खौं देख कैं सास-ससुर उर उनके पति खौं भौतई खुशी भई। वो सोसन लगे कैं देखौ दया उर अपने पन के भाव तो साँपन तक में होत है। इतनी अच्छी पठौनी तौ आदमियई नई दै सकत। जैसी हमाई बऊ खौं नागराज ने दई है।

उतनी ईमानदारी उर सत्य आदमी में काँ धरो। हराँ-हराँ वे सातई चेंनुवा नागराज के बड़े हो गये। वे समजदार हो गये उर चलन फिरन लगें। अकेलै हते सबई बाँड़े बूचे कनुवा उर अँदरा। जैसे-जैसे वे बड़े भये सो उनें अपनी अपंगता अखरन लगी। एक दिनाँ उनन ने जुरकैं अपनी मताई सैं पूछी कैं काय मताई हमाई जा हालत कैसे हो गई ? मताई बोली कैं का बताँय भइया तुम औरे ऐसे पेटई सै भये हों।

वे बोले कै जा हम बात नई मान सकत। जिद्दई पै अड़ गये हैं सोऊ पूरी रामकहानी कह सुनाई। सुनतनई वे सातई भइया क्रोध में लाल-पीरे होकै बोले कै वा रामप्यारी कितै रत हम ऊसे बदलों लये बिगर नई छोड़े। जीने हमाई जा दशा कर दई। भौतई समझाव, अकेलै, वे मानें नई। राम प्यारी कौ पतों ठिकानौ पूछ कैं वे सातई अपने बिल सै बायरै कड़ परे। उर सूदे रामप्यारी के घरै पौंच गये। वे चारई घर के चारई कोंनन में दुक कै बैठ गवे। दोठौवा दोई कौरन पै उर एक सूदौ देरी पै बैठ गओ। जितैं सैं आय उतै हम औरे मौका पाकैं उयै डस लेंय।

ऊ बेरा रामप्यारी पानी भरबे खौं गई ती। पनिहारियन ने साँपन खौं ऊके घर कुदाऊँ जातन देख लओ तो। उनन ने जाकै रामप्यारी सै कई कैं तुमाये भइया आ गयें वा खेंप कुंआ पै धर कैं घरै पौचीं उर टेर दैके रोकै उन सबरन सैं मिली। रामप्यारी कौं प्रेंम भाव देखकैं वे सातई साँप अपनौ बेर भूल कै अपनी बैन सै मिले। रामप्यारी

एक कुपरा में दूध उर चावर भर कैं ल्आई उर उनन के सामनें धर दओ। सबरे देर नौं ओई के लिंगा बैठे रये। उर फिर गोड़न सैं लिपट कैं चले गये। जा बात साँसी है कैं साँप तक प्रेम के वशीभूत हो जात है। प्रेम की तौ लीलई न्यारी है। बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमाई किस्सा  निपटी।

बुन्देली लोक कथाएं – परिचय 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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