Muh Bhar Rupaiya मुंह भर रुपैया

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By admin

रमेश और सुरेश दो भाई नौकरी के लिए हैदराबाद पहुंचे वहाँ की मिल मालिक श्रीमती जैन से मिले और बोले हम लोग दूर गाँव के हैं और यहाँ पर नौकरी तलाश कर रहे हैं श्रीमती सरोज जैन ने कहा “तुम क्या काम करोगे” यही घर के कार्य करूंगा । क्या रोज लेते हो ? इन लोगों ने कहा कि हम दो रुपये रोज लेते हैं। नहीं, श्रीमती जैन ने कहा मैं तो एक रुपया रोज दूंगी । यदि कोई नौकरी छोड़ देता है तो उतने दिन की मजदूरी देकर उसे Muh Bhar Rupaiya मुंह भर रुपैया भी दे दूंगी।

इन दोनों ने सोचा ठीक है, ऐसा करें, पहले तो काम करें। बाद में पैसे ले लेंगे और मुह भर रुपये भी मिलेंगे, मुह भर के लिए दोनों लोग तैयार हो गये। श्रीमती जैन से पूछा काम क्या है ? तो उन्होंने कहा कि यह पानी का कूलर भरना है ये भैंस है इस भैंस को चराने में ऐतलानी मत करना ।

ठीक है ! कार्य के लिए रमेश ने कूलर में पानी भरना स्वीकार किया और सुरेश ने भैंस चराना स्वीकार कर अपना अपना कार्य शुरु किया। रमेश ने कूलर में पानी भरा तो सबेरे से शाम हो गई वो कूलर पूरा नहीं भरा। सुरेश भैंस लेकर गए तो वह भैंस शहर के पास तक तो आराम से गई और शहर के बाहर वह बड़ी जोर से भागी। और इसे खचोरे-खचोरे फिरी, जिससे सुरेश का बदन छुल गया और तमाम जगह खून झलक आया। किन्तु उसने यही कहा भैंस बहुत सीधी है । आराम से रहती है।

रमेश ने भी कहा जरा सा कूलर है । केवल तीन फेरो में भर जाता है। दूसरे दिन रमेश भैंस लेकर चराने गये और सुरेश के अनुसार यह एक चार पाई भी आराम करने की दृष्टि में साथ में ले गये। सुरेश ने पानी भरने का काम किया और सवेरे से शाम तक पानी भरते रहे। सुरेश का चेहरा पीला पढ़ गया। रमेश ने खटिया पीठ पर बाँध रखी थी और भैंसे की डोर पकड़े बड़े ही आराम से चल दिये मन मैं खुश थे कि अब दिन भर पानी भरेगा तब नानी याद आयेगी।

भैस शहर के बाहर हुई तब रंग लाई रमेश को माँ का दूध याद आया । भैंस की प्रथम पड़पड़ी में ही मजबूत बंधी चारपाई सुख देने के बजाय चारपाई टूट गई लेकिन मजबूत बंधी होने के कारण नीचे उसके लटके हुए अंग में कभी मिचवा कभी सीरा रमेश के कभी सर में, कभी पीठ पर, बाजे-बजाते हुये ” दर्शकों का मनोरंजन बन गया था । भैंस की डोर छोड नही सकते थे बड़ी ही गम्भीर समस्या में उलझे रहे । खून बहाते हुये घर पर शाम को भैंस लेकर आये और सुरेश भी पानी को भरते हुए परेशान हो गये।

पुनः आपस में एक दूसरे पर डीग मारते हैं एक बार को दोषी ठहराते हैं एक दूसरे को देखते हैं । अपने आपको कोई भी नहीं देखता । अत: ये दोनों मिलजुल कर इस उददेश्य पर पहुंचे कि मिल मालिक श्रीमती जैन अत्यधिक चालाक हैं। अत: इन दोनों ने मालिक जैन से कहा कि हमारे घर पर आज कथा है इसलिये हम लोग घर जायेंगे, मालिक जैन ने कहा कि ठीक है तुम लोग कथा के बाद तो आ जाओगे, दोनों ने कहा हाँ क्यों नहीं आयेंगे, हम लोग अवश्य ही आयेंगे ! तो ठीक है फिर तुम लोग अपनी दो दिन की मजदूरी दो-दो रुपया लेते जाओ।

दोनों ने कहा-नहीं मैं तो अभी ही मुह भर रुपये लूगा दो-दो रुपये बाद में लूगा। मालिक जैन बहुत सावधान थी, इन लोगों से जैन ने कहा, ठीक है । जैसी आप लोगों की इच्छा हो, आप बैठिये मैं रुपयों की थैली निकाल कर लाती हूं वह अन्दर से रुपयों की थैली लाती है ।श्रीमती जैन आती हैं और कहती हैं कि मैं ये  रुपयों की थैली लाई हूं। अब तुम में से पहले एक आदमी अन्दर आओ, मजदूरी लेकर जाओ।

तुरन्त ही रमेश मुह भर रू. लेने जाता है। जैन अन्दर का फाटक लगा देती हैं। सुरेश फाटक से चिपक कर आवाज सुन रहा था। श्रीमती जैन ने कहा कि सीधे लेट जाओ। मुह थोड़ा सा खोलो मैं इन रु० की थैली तुम्हारे मुह में खोल दूं। जैसे ही मुह खोला बुढ़िया ने थैली उसके आँखों के सामने करते ही एक लुड़िया जोर से  उसके मुह पर मारी और उसके बत्तीसों दाँत मुह में इकट्ठे हो गये । वह बुरी तरह घबड़ा गया और कपड़े से मुह दबाय बाहर आया तो सुरेश पूछता है मुह भर रुपये ले आया  वह इशारे से कहता है कि हम ले आये ‘, अब तुम भी ले आओ।

मिल मालिक श्रीमती जैन कहती है आप भी लेगे, सुरेश कहता है क्यों नहीं अवश्य ही लूंगा , पहुचते ही जैन ने कहा सीधा लेट जाओ मालिक जैन रुपये की थैली उसके भी आँखों के सामने कर बड़ा मुह फैलाने को कहती है वो जैसे ही मुह बड़ा फैलाता है। जैन, पुनः इसके मुह पर लुड़िया का बड़े जोर से प्रहार करती है।

अब रमेश एवं सुरेश आपस में सिर हिलाकर इशारे से पुनः एक दूसरे पर अपनी अपनी गल्तियाँ मड़ते हैं अंत में कहते हैं हम ही अकेले होशयार नहीं है इस दुनिया में एक से एक बढ़े हैं हमारी ही भूल से हमारी यह गति हुई है। कहावत भी सही है कि अब पछताये का होत है जब चिड़िया चून गई खेत।

मानव को सही सलाह उसका अंतःकरण ही देता है अंतःकरण ठोस और गम्भीर होता है, किन्तु मन रुपी माया का चक्र अपने अन्दर देखने  ही नहीं देता है वह तो अंहकार से बाहरी नाशवान शक्तियों में ही उलझा रहता है।

बुन्देली झलक (बुन्देलखण्ड की लोक कला, संस्कृति और साहित्य)

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