लक्ष्मीबाई रासो
कहा न अबला कर सकै, का नई सिन्धु समाय ।
कहा न पावक में जरै, काकों काल न खाय ।
जननी जन्मै भक्त सुत, कै दाता कै सूर ।
नहिं तौ रहै वा बांझ री, क्यों खोवै मुख नूर ।
सदां न फूलै तोरही, सदां न सावन होय ।
सदां न राजा रन पै चड़ै, सदां न जीवै कोय ।
गड़ लंका पै रघुवर चड़ै, श्रीकृष्ण गहै हतयार ।
माई अम्बिका ने जब रन करौ, तहं रक्त बहौ बेपार ।
गड़ दिल्ली में साके पांडव करें, चंदेल महौबे बार ।
झांसी में साके अब बाई साब के, जामे बैगई रक्त की धार
अब कय धांधू भैया, तुम हुकुम देउ फरमाय ।
सोरउ हाती साजै, सबै हौदा लेउ कसाय ।
सबरे पैदर संगें, सब लेउ सवार बुलाय ।
अब सजैं पमार, बुंदेला, रजपूतन देउ जनाय ।
सुनी बाई नें बातें, तब फूला नहीं समाय ।
हुकुम सुना दउ कासीनाथ कौं, भैया फौजें लेउ सजाय ।
इतनी सुन के कासी, जब तुरत उठौ अकुलाय ।
खबर करा दी है फौजन मैं, सूरन नों जहं – तहं जाय ।
बाई लक्ष्मी आजईं रात कें, उर दसरौं पूजन जाय ।
सकल सूरमा सजकें, उर किले द्वार आ जायं ।
अब जब कासीनाथ नें, दीनो हुकुम जनाय ।
साज लगे गज वाज भट, सूर सचिव सुख पाय ।
अब जब ललकारे चुन्नी, उर खुदाबकस में आय।
सिद्धबगस कौं साजौ, गंगापरसाद बुलाय ।
मोती गज अनबेला, अरु सागर हेलन ल्याय ।
ये पाचउ सज हाती, ठाड़े करौ किले नो आय ।
फिर ललकारे बगसी, अलिया वजीर नो जाय ।
अपने हाती हतनी, तुम तुरतहिं लेउ बुलाय ।
जे गनेस परसाद, उर सिद्धकरन बलराय ।
अति उतंग संकर बज उर दुर्गादास मंगाय ।
वीर बहादुर बेड़ा, टेड़ा गेंड़ा को जाय ।
और सकल गज गजनी, तिनको जल्दी लेउ सजाय ।
सुनत खुदाबगसा नें, लउ सिद्धबगस सपराय ।
सजन लगे सब हाती, जिनकी सोभा बरनी न जाय ।
अब कड़ कड़ कें गज सजे, कुम्भन कुलफ लगाय ।
सिर सुवर्ण की श्री लसै भाल चंद्र रयौ छाय ।
अब लगें कंसरा कानन, गुच्छा मोतिन के झार ।
कंठन में श्री सोहै, उर पदक पिरोजा हार ।
सात लरी की सांकर, ताबीज रहै रुरकार ।
आठ पालू चुरियन की माला पै धरी रवार ।
मदन मुहाले साजै, दंतन पै गस रए तार ।
कनक उमैठा दूवर, कलगिन की अजब बहार ।
लगे आकड़ा तिनमैं, खुससे फन्नूस समार ।
पाउं पैजना साजै, तोड़ा दए ढरवां डार ।
पायजेब अर घूंघर, रूलन की हो झनकार ।
झूम-झूम रई बगलन, तहं लटक रये घंटार ।
दुमची पटौ पुठिन पै, रेसम की डोरी डार ।
दूवर डरै दुसाला, फिर हौदा कसौ समार ।
कंचन गलता तामें, कांचन की चमक अपार ।
कोरन कड़े कसीदा, और मोर पपीरा झार ।
ताके बीच में मसनत लागी, तामें धरे बहुत हतयार ।
सात सूरमन के तुरगा सजै, भौंरा से रये भन्नाय ।
सुमन जिनकें धरणी लगें, मानौं उड़े अकासे जायं ।
कछु बाई लक्षमी कौं चंपा, सजौ चुन्नकी कौ अबलख आन ।
टगना बिरा साजौ, कासी को कहौ बखान ।
पवन तेज पन्नैहे, रघुनाथ जरैया जान ।
उड़न तेज रंगकारी, घोंड़ी मधुकर दीमान ।
स्वेत रंग छोटी कद, जो चड़े जवाहर ज्वान ।
कुंवर कंटीली की है जमना घोंड़ी लाल बलवान ।
है सबकै सिर पै कलगी, उर तिलक उये ज्यौ भान ।
हैं मौंरा जरकस कैं, जरतारी डरे पलान ।
कंठ माल भिंडन कीं, केरिन की छब की खान ।
है ताबीज जड़ाऊ, मुहरन कै केइक आन ।
दये पिरौजा चौगुद, उर हार जमुर्दी पान |।
कसे पलेचा पंचरंग, मातिन की दाउदी बान ।
गहब गेंद जोड़ी हैं, पुट्टिन पै सोह्रै सान ।
रथ उपर तौ कलसा सोह रये, झूलन मुतियन कोर ।
बैल सिंगौरी कंचन कीं, घटा बाज रये चह ओर ।
ऊंटन के तौ अरे मौरा सजै, झूमत करैं हमेल ।
कीठी पै है दूवर झालरैं, गरौं करत घूंघरा खेल ।
रचनाकार – मदन मोहन द्विवेदी “मदनेश”