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Ka Karfen Kaiso Karon का करौं कैसो करों – बुन्देली लोक कथा

पूतगुलाखरी पटैल बब्बा सें पूछवे गये के बब्बा एक महल में जनी मारी डरी ती और आदमी जोर-जोर से चिल्या रये हतें Ka Karfen Kaiso Karon ‘का करों, कैसो करों’ । पूतगुलाखरी को  पटैल बब्बा ने किस्सा बताकें अटका सुरजा दओ । कौनऊ नगर में एक बनिया राततो । ओके घर में ओकी घरवारी और एक मोंड़ा हतो ।

जब बो मोंड़ा दस बरस को भओ ऊ साल उतै ऐसी प्लेग की बीमारी फैली कै ऊमें हजारों आदमी सरगे गये। ओई ससरे प्लेग में ओ लरका के मताई- – बाप चले गये हते । लरका को नाव शरद हतो । अब ओ नादान के पलवे – पुरावे की बड़ी दिक्कत हती। अपन कान लगत हैं कें ‘भगवान भरोसें’ सो उनकेई भरोसें पुरा-परौसियों ने जा पालवे की जिम्मेवारी अपने मूंड़ पै ले लई ।

शरद बड़ो हिम्मत वारौ हतो, जब ऊने हौंस समारी सो मताई – बाप की छोरी जाजत में काम चलत रओ, जब कछु ने बचो तो शरद ने सोची के ऐसे काम ने सटहे कछु रुजगार करो चइये। शरद अन्जानी जगह चले गये। चलत-चलत दिन डूबें जब वे खूब हार गये सो सामने एक पेड़ो देखकें सोरये। आदक रात भई हुईये के उतै कछु डाकू आये उन्ने शरद को सबकछु नग्यालऔ अब बेटा लुट तो गयेई ह आदी राते नींद सोई ने आ रईती ।

इन्ने सोची कै रूख पे चढ़ा जाये नातर कोनऊ जानवर टोड़ खेहे सो वे ओ रूख पै चढ़ा गये।अब भैया वे का देखत हैं के कछु समय बीतवे पै उते चार भूत आ गये। वे बताओ करन लगे। एक ने कई कै गजनी देश को राजा की बिटिया बड़ी खपसूरत है, अरबो सुसरो अपनी मौढ़ी को ब्याव एक बूढ़े सें कर रये हैं ।

दूसरो भूत बोलो कै बा मोड़ी ओसे ब्याव नई करो चाहत। तीसरो भूत बोलो कै अरकऊँ कौनऊ शरीर धारी मनुष्य होतो तो ऊ मोंड़ी की मदत हो जाती। बिचारी को जीवन सुदर जातो । अरे हमोंरो ने पैले जनम में उल्टे-सूदे काम करेते सो भूत बने, अब कछु अच्छो करहें तो करनी सुधर जैहे ।

हम तो भूत हैं सो हमाव शरीर कछू काम को नईयाँ। अब जा समझ में नई आ रई कै ओकी कैसे मदत करी जाय ? शरद ने भूतों की बातें सुनी तो वो रूख पै से उतरकें उनसें बोलो देखो बीरनहरों हमने तुमोरों की सबरी बातें सुनीहें सो हम मदत करवे तैयार हैं, मनो हम तो खाली हांत हैं? भूतों ने ऊकी बात सुनकें कई, देखो बेटा तुमने भौत अच्छो सोचो मनो हमाई पैली बात गांठ में बांद लेओ कै अपन खाँ जा चरचा कभहूँ काऊ से नई करनें अगर इत्तो हो सके तो बताओ हम तुमे आंगे की गैल धरैंहें ।

शरद ने कई कै हम तुम ओ की जा बात काऊसें कभऊ न कैबी । आप लोगन खाँ हम कौल करकें कत हैं। उन चारई भूतों ने शरद की बात को भरोसो करकें ऊसें कई के चलों हम तुमे मिहल बताय दैरये और वे शरद खाँ लैके मिहल में पौच गये । भूतों ने शरद खाँ राजा के उन्नां कपड़ा पैरबा दये हते। उतै मिहल में ब्याव की सारतार लगीती । शरद ने देखो कै राजकुमारी रेखा अकेली बैठी है वा इत्ती दुखी दिखा रईती कै जैसे उनको कोऊ मर गओ होय । शरद की पैली नजर जब ऊपे परी तौ जो तो ओपै फिदा हो गओ ।

उते रेखा ने जब शरद खाँ देखो तो देखई रै गई वो सोई बड़ो खपसूरत हतो वे एक दूसरे के होई से गये हते । राजकुमारी ने शरद से आवे को कारण पूछो शरद नें उन्हें सब बता दओ, अपनो नाम पता और जो सोई बता दओ कै हम तुमें बूढ़े से ब्याव करवे सें बचाव चाहत हैं। हमने जा सुनी हती कै तुमने प्रन करो है कै अरकऊँ राजा जबरन बूढे सें ब्याव करहें तो तुम जिहर खाकें मर जैहों । ईसें हम तुमाव जीवन बचाव चाहत हैं। राजकुमारी रेखा खाँ शरद को मसौदा परसंद आ गव अब वे शरद के संगे जावे की सोचन लगीं ।

प्रेतन  की मदत से शरद उने उड़न बछेरा पै बैठारकें अपने देश लै गओ । वे अपने घरे आये रेखा ने देखों कै जो तो गरीब गुरवा को घर आय? अबका करें वे घर देखकें कछु उदास सी हो गईं। शरद सब समज गये। उनने प्रेतों से कई कै अब कौन उपाय करें? प्रेतों ने कै दई कै तुम बेचिन्त रओ रातखों सब ठीक हो जैहे।

प्रेतन  की माया से भैया उतै सतखंडा मिहल बन गव, ओमें नौकर चाकर सोई हते। रेखा ने भुन्सरां उठकें देखो तो उने बड़ो अचरज भव । रेखा ने शरद से पूंछी कै जा बताव कै जो सब कैसे हो गव? शरद ओ टेम पै प्रेतन  खाँ दये वचन की बात भूल गओ उनने रेखा खाँ सब बता दओ। शरद ने बात खतम करी तो भैया उनकी रेखा रानी मर गई ।

शरद ने उने ऐसी हालत में देखों तो बो अकबका गओ अरे राम मोसें इत्ती बड़ी भूल हो गई । रेखा की तरपै रेखकैं शरद जोर-जोर से चिल्या रये हतें Ka Karfen Kaiso Karon ‘का करों, कैसो करों’ । शरद खों चिल्यात देखकें पूतगुलाखरी पटैल बब्बा सें पूछवे गयेते सो उन्ने अटका सुरजा दओ हतो ।

 क्या करूँ कैसे करूँ (भावार्थ )

किसी नगर एक ‘वैश्य रहता था । उसके घर में पत्नी के अलावा एक लड़का भी था, जब लड़के की उम्र दस वर्ष की थी, उस समय नगर में प्लेग की महामारी फैली, जिसमें हजारों आदमियों की मृत्यु हो गई । उसी प्लेग से वैश्य दम्पति भी ईश्वर को प्यारे हो गये। इस दस वर्षीय शरद का पालन-पोषण पड़ोसियों ने किया ।

इस तरह की परिस्थिति में ईश्वर भी मदद करते हैं। शरद के साथ भी यही हुआ, वह बड़ा साहसी तथा गंभीर प्रकृति का था। पहले तो उसका गुजारा माता-पिता द्वारा अर्जित सम्पत्ति से हुआ, लेकिन जब शरद अठारह-बीस वर्ष का हुआ तो उसने कोई रोजगार करने का मन बनाया।

वह अपना घरबार छोड़कर परदेश चला गया। उसने सोचा कि यहाँ कोई रोजगार नहीं है तो बाहर तो कोई न कोई मिल ही जायेगा । शरद पूरे दिन पैदल चलता रहा था इसलिए दिन ढलने तक उसको बहुत थकान हो गई । वह एक वृक्ष के तले बैठकर विश्राम करने लगा। उस समय शीतल वायु के चलने से उसे नींद आ गई और वह सो गया। कुछ समय उपरान्त वहाँ डाकुओं का एक गिरोह आया, जो उसे लूट ले गया। शरद का सब कुछ लुट ही गया था, उस समय ज्यादा रात हो गई थी।

उसने सोचा कि पेड़ पर चढ़ जायें, वरना कोई जंगली जानवर आ गया तो जान से हाथ धोना पड़ेगा । वह पेड़ पर चढ़ गया। आधी रात के समय उस वृक्ष के नीचे कुछ भूत आकर एकत्रित हुए, वे आपस में बातें कर रहे थे। पहला भूत बोला कि साथियों गजनी देश के राजा की लड़की जिसका नाम रेखा है, वह बहुत खूबसूरत है, उसका पिता उसका विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर रहा है। एक अन्य भूत बोला कि रेखा उस व्यक्ति से विवाह ही नहीं करना चाहती।

तीसरा भूत बोला कि भाईयो हम अगर उसकी कोई मदद कर सकें तो बड़ा पुण्य का काम हो, पूर्व जन्म में कर्मों के फलस्वरूप हमें यह प्रेत योनी मिली है । अगर हम कोई अच्छा काम कर लें तो शायद इस देह से मुक्ति मिल जाये। वे चारों प्रेत रेखा की मदद करना चाहते थे, लेकिन उनके सामने यह समस्या थी कि उनके कोई देह नहीं थी। वे सोचने लगे कि कोई देहधारी पुरुष मिल जाता तो उसके माध्यम से रेखा की मदद की जा सकती थी ।

शरद उन प्रेतों की बात ध्यान से सुन रहा था, वह साहस करके पेड़ से नीचे उतरा तथा प्रेतों से बोला कि मैं आपकी बात ध्यान से सुन रहा हूँ। मैं राजकुमारी रेखा की मदद करने को तैयार हूँ, अगर आप लोग मेरी सहायता करें तो । प्रेतों ने उसकी बात सुनी तो वे बोले कि हमारी एक शर्त है कि तुम यह बात किसी को नहीं बताओगे कि तुम प्रेतों की मदद से राजकुमारी की रक्षा कर रहे हो, क्योंकि अगर तुमने किसी के सामने हमारा नाम लिया या चर्चा की तो उसी समय राजकुमारी रेखा तुरन्त मर जायेगी ।

शरद ने उन प्रेतों को आश्वासन दिया कि मैं कभी भी किसी के सामने आप लोगों की कोई बात न करूँगा । शरद द्वारा आश्वासन मिलने पर वे प्रेत शरद को लेकर थोड़े समय में राजकुमारी के महल में पहुँच जाते हैं । प्रेतों ने शरद को राजसी वेष धारण करवा दिया था। राजमहल में विवाह की तैयारियाँ चल रही थीं ।

रेखा अपने कक्ष में बिल्कुल अकेली उदास बैठी थी। शरद ने राजकुमारी को देखा तो वह उसके रूप पर सम्मोहित सा हो गया, उसे बिना पलक झपकाये देखता ही रहा। राजकुमारी रेखा ने आगन्तुक को देखा तो पूछने लगी कि यहाँ क्यों आये हो, तुम कौन हो, कहाँ से आये हो?

शरद ने कहा कि मैं राजनगर से आया हूँ। मेरा नाम शरद है तथा हे राजकुमारी ! मैं आपकी मदद करने के उद्देश्य से आया हूँ। राजकुमारी ने पूछा कि तुम क्या मदद कर सकते हो और क्यों ? शरद बोला कि आपके पिता आपका विवाह किसी अधेड़ उम्र के व्यक्ति से करना चाहते हैं, जिसके कारण आप अपना जीवन समाप्त कर लेंगी। मैं चाहता हूँ कि आपका जीवन बचा रहे और आपका उससे विवाह भी न हो सके। अगर आप उचित समझें तो आप मेरे साथ चलें।

राजकुमारी ने सरद  की तरफ पहली बार गौर से देखा तो वह बड़े आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था, उसको देखने के उपरांत राजकुमारी उससे प्रभावित हुई तथा उसे अपना जीवन साथी बनाने का फैसला भी कर लिया । राजकुमारी की सहमति पर शरद उन्हें अपने साथ आने का कहते हैं, वे उन्हें घोड़े पर बैठाकर आकाश मार्ग से ले जाने लगे। प्रेतों ने उन्हें आशीर्वाद दिया तथा कहा कि जाओ दोनों अपना सुखी जीवन व्यतीत करना ।

राजकुमारी जब शरद के साधारण घर में आई तो वह बड़ी उदास हो गई । कहाँ इतने बड़े महल में रहने वाली, दास-दासियों में घिरी रहने वाली राजकुमारी और कहाँ इस साधारण घर में वह आ गई। शरद ने उन्हें उदास देखा तो वह कारण समझ गया फिर वह उसी वृक्ष के नीचे आया तथा प्रेतों से मिलकर राजकुमारी के विषय में कह दिया। प्रेतों ने कहा कि तुम अभी अपने घर जाओ, सुबह को सब ठीक हो जायेगा। सुबह जैसे ही शरद तथा रेखा की आँख खुली तो उन्होंने अपने आपको एक आलीशान महल में पाया। राजकुमारी बड़ी हैरान थी कि यह क्या चमत्कार हुआ?

उन्होंने अपने पति से पूछा कि यह सब कुछ कैसे हो गया? अपनी पत्नी के द्वारा पूछे जाने पर शरद भूतों को दिये आश्वासन को भूल जाता है और उसने प्रेतों द्वारा की गई मदद की समस्त दास्तान राजकुमारी को कह सुनाई। पूरी दास्तान सुनने के उपरांत राजकुमारी की मृत्यु हो गई । अपनी पत्नी की आकस्मिक, असमय मृत्यु होने पर शरद बौखला गया और जोर-जोर से चिल्ला रहा था, ‘कि क्या करूँ, कैसे करूँ’ । पटेल जी ने अटका सुलझा दिया।

डॉ ओमप्रकाश चौबे का जीवन परिचय 

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