जनम मोरौ असुवा ढारत गव ।
विधाता जानें का कर रव ।।
घाव लगे साँमें छाती में जे सब हैं अपनन के ।
महल खड़ैरा हो गय ओजू ।
सोचे भय सपनन के ।
विपता में दिन कटे अबैलों चैन कभउँ न भव
जनम मोरौ असुवा ढारत गव ।।
फूल जान के हात लगाऔ काँटे कैसे कसके ।
जीखों कण्ठ लगाऔ अपने रए न मोरे बस के ।।
दगा दऔ है ऐन अनी पै- गतकौ सौ लग गव ।
जनम मोरौ असुवा ढारत गव ।।
बन गए बोझ जिन्दगी ढोबे औ हम बने लदोरा ।
रै गय मों उपकाँय करें का ।।
हो गव सम्पट सोरा ।।
सुक्खन की हम आस करें दुक्ख – राम नें दव।
जन्म मोरौ असुवा ढारत गव ।।
लूट लऔ किस्मत ने मोखों पीछे परी गिरानी ।
बुझ गया दिया आस के अपरस जोति समेत सिरानी ।।
खुशियँन से नातौ टूटो अब कोंड़ौ सौ रगरव ।
जनम मोरौ असुवा ढारत गव ।।
तफलत रात दरद् के मारें पर गइ धार अचीती ।
परचत नइयाँ चूलौ घर में डरी घिनौची रीती ।।
निगरय अनजानी गैलन में
ककरा सौ गड़रव
जनम मोरौ असुवा ढारत गव ।।
रचनाकार – रतिभान तिवारी “कंज”