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Jaise Ko Taisa जैसे को तैसा-बुन्देली लोक कथा

एक माताराम हतीं  बाको एकई मोड़ा हतो । जब मोड़ा बड़ो हो गओ तो माताराम ने मोड़ा को धूमधाम से व्याव कर दओ ।  माताराम ने मोड़ा के लाने किराने की दुकान भी खुलबा दई। बढ़िया दुकान चले, काय से गाँओं में एकई दुकान हती । बा से घर को खरचा चले।

मनो भाग से बहु भोत तेज निकरी ? मोड़ा जब दुकान पे जाए बहु माताराम खों  भोतई परेसान करबे । कुल मिलाके जित्ती जादा सास की आतमा दुख सके बा उत्तो दुख पोहचाए । माताराम इत्ती समझदार थी कि बा मोड़ा सें  कछु नई बताए ।

माताराम ने सोची अगर में मोड़ा हे बताहों  तो बेकार की असान्ति हुईये । ऐसी सोच के जा बात खों मन मेंई  रखे। मोड़ा बड़ो समझदार हतो  माताराम खों  अनमनी देखके जा जरूर समझ गओ की कछु गड़बड़ है। एक दिन का भओ, बहु ने सास से कई, मेंने तोहे मुण्डी ने करबा दई तो में अपने बाप की ओलाद नई ।  ऐसी बहु ने जिद्द ठान लई । सास ने भी बहु से कई, “ऐसे केसे मुण्डी करबाहे देख लेहों  तोय  ।

एक दिना  बहु ने भोत नाटक- नोटंकी रची। बाने अपनी तबियत खराब को बहानो कर लओ ओर खटिया पे पड़ गई। बा न कोई से बोल रई न चाल रई, न हल रई न डुल रई, खाबो- पीबो भी बन्द कर दओ । गाँओं भर में बीमारी को हल्ला मच गओ । धीरे-धीरे करके गाँओं के सब लोग जुड़ गए।

एक दादा ने पूछी बहु कैसी तबियत हे ? बहु मरी-सी आबाज में बोली, “मेरी तबियत भोतई खराब हे, मेरे प्राण निकर जैहें ।” अब पूरे गाँओं बारे परेसान, खूब दबा-दारू करबा रए हैं पर बहु ठीकई नई भई । इत्ते में गाँओं को सबसे बूढो आदमी आओ । बाने कई,  बहु जा बताओ ऐसी तबियत पहले कभऊँ खराब भई ती ?  बहु ने कई, “दादा हमरी तबियत तो पहली बार खराब भई है । पर हमये  गाँओं में एक बहु की तबियत बिलकुल हमाई  जैसी बिगड़ी ती । बा बहु की सास के बारन  को मुण्डन करबाके और उन बारन खों पुटरिया में रखके बिनने बहु के ऊपर से पाँच बेर  उतारके नदी में सिराए, तब जाके बा ठीक भई थी।

बूढ़े दादा बड़े ध्यान से सुन रए  ते  बिनने कई, बहु की जान बच जाए जोई करो । बिचारी माताराम चुपचाप सब तमासो देख रई थी। अब जल्दी से नाई खों  बुलबाओ ओर माताराम को मुण्डन करबाओ। बारन खों पुटरिया में रखके बहु के ऊपर से पाँच बार उतार कें नदिया में सिरा दए । बहु तो नाटक करई रई ती  बा तुरतई बिलकुल अच्छी हो गई।

रात के समय मोड़ा सहर से दुकान को सामान लेके लोटो, तो बाहे सब बात पता चली। बो समझ गओ भोत दिक्कत हो गई है। मगर मोड़ा बड़ो समझदार बो कछु नई बोलो। बाने सोची जब बखत आहे तब देख हों  ।जाको बदला जरूर ले हों ।

मोड़ा दुकान पे जाए तो बहु चकिया लेके बेठे ओर कछु भी पीसबे  रख ले । चकिया चलात जाए ओर गात जाए, “मैंने ऐसी टेक निभाई मेरी सास की मूड़  मुड़ाई, मैंने ऐसी टेक निभाई.. ।” जो गीत सुनके माताराम बड़ी दुखी होए, भोत परेसान रहे। फिर भी जा बात माताराम ने अपने मोड़ा हे नई बताई।

एक दिन का भओ की, मोड़ा दुकान बन्द करके दुफेर मेई घर आओ । जेंसई घर के भीतर घुसो बाने देखो, बहु चकिया चला रई हे ओर बोई गीत गा रई हे, “मैंने ऐसी टेक निभाई मेरी सास की मूढ़ मुड़ाई, मेंने ऐसी टेक निभाई… ।” मोड़ा गुस्सा आई | पर बने सोची में ईंट को जबाब पथ्थर से देहों ।

अब मोड़ा सीधो अपनी सुसरार पोहचो । पोहचतेई से जोर-जोर से रोन लगो । बाके सुसर सास, सारे सब घबरा गए की लालाजी खों  का हो गओ ? का घर में कछु बुरो हो गओ ? सुसर ने पूछी, लालाजी बताओ तो का बात है, का तकलीफ हे ? लालाजी रोत-रोत बोले, “तुमरी मोड़ी की तबियत कछु दिना से भोतई खराब है। हमने बाको भोत इलाज कराओ मनो बाहे कछु आराम नई पड़ रओ । एक गुनिया ने बताओ के  बाय  भोतई खतरनाक प्रेत बाधा लगी है। अगर बा बाधा दूर नई भई तो तुमई  मोड़ी खतम।

बाखतम भई तो हमाई  माताराम खतम हो  जै हैं और बिनके बाद में हम खतम हो जेहूँ ! बाके बाद तुमरे घर भी ऐसई हुए। एक-एक करके सब मर जेहें । सब सत्यानास हो जेहे।”

सबरे बड़े परेसान अब का करें ? सुसर ने पूछी, “लालाजी गुनिया ने प्रेत बाधा दूर करबे  काजे कछु उपाओ बताओ है की नई ?” लालाजी बोले, “जा बाधा ने गुनिया से कई है के मोड़ी खों  तबई छोड़हों , जब जाके सबरे मायके बारे मोड़ा मोड़ी से लेके डुकरा-डुकरिया तक, अपनो मुण्डन करबाके सबरे बाल एक पुटरिया में रखके मोहे दे दे।

सबने सूद सला करी, सोची मुण्डन करबाबे से जा बला टर  रई है  तो बा में कछु हरज नई । तुरतई गाँओं के सबरे नाइयों हे बुलबाओ । परबार के सबरे लोग आँगन में लाइन लगाके बेठ गए, बड़ो परबार हटो  पचास- साठ लोगों को । नाइयों ने सबको जल्दी -जल्दी मुण्डन करो । मुंडन  के बार  एक पुटरिया में बाँध कैं  लालाजी ने कई, “में घोड़ा गाड़ी से गाँओं निकर रओ हों । आप लोग अपने-अपने साधनों से गाँओं पोहचियो ।

मोड़ी सबकी लाड़ली थी जाके मारे सबरे मायके बारे अपने-अपने साधनों से बाहे देखने चल दए । उते मोड़ी चकिया चलात-चलात डुकरिया हे चिड़ाबे लगी थी, “मैंने ऐसी टेक निभाई मेरी सास की मूढ़ मुड़ाई, मैंने ऐसी टेक निभाई… ।” मोड़ा जब घर में घुसो तो बई के पीछे-पीछे मोड़ी के मायके बारे भी आ गए। मोड़ा ने घरबारी से आँगन की तरफ इसारा करके कई, “देख उते।”

ओर बो गान लगो, “मेंने ऐसी टेक निभाई मुण्डों की लेन लगाई, मैंने ऐसी टेक निभाई… ।” मोड़ी ने आँगन के दरबज्जे पे देखो तो धक्क से रह गई। सबरे ‘मायके बारे खड़े हैं – सबके सब मुण्डे ! बा समझ गई – Jaise Ko Taisa हओ गओ जो जेंसो रहे बो बेंसो भरहे।

संदर्भ
मिजबान बुंदेलखंडी लोक कथाओं का संकलन
पुनर्लेखन-  संपादन प्रदीप चौबे महेश बसेड़िया
एकलव्य प्रकाशन भोपाल

बुन्देली लोक कथा परंपरा 

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