Hamare Lamtera Ki Tan हमारे लमटेरा की तान, समझ लो तीरथ कौ प्रस्थान

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लमटेरा की तान

हमारे लमटेरा की तान,
समझ लो तीरथ कौ प्रस्थान,
जात हैं बूढ़े-बारे ज्वान,
जहाँ पै लाल धुजा फहराय।
नग-नग देह फरकबै भइया,
जो दीवाली गाय।।

दिवारी आई है,
उमंगै लाई है।

आज दिवारी के दिन नौनी लगै रात अँधियारी,

/> मानों स्याम बरन बिटिया नैं पैरी जरी की सारी।

मौनियाँ नचै छुटक कैं खोर,
कि जैसें बनमें नाचैं मोर,

दिवारी गाबैं क-कर सोर, कि भइया बिन बछड़ा की गाय।
बिन भइया की बहिन बिचारी गली बिसूरत जाय।।

भाई दौज आई है,
कि टीका लाई है।
आन लगे दिन ललित बसन्ती फाग काउ नैं गाई।
ढुलक नगड़िया बजी, समझ लओ कै अब होरी आई।।

बजाबैं झाँजैं, झैला, चंग,
नचत नर-नारी मिलकें संग,

रँगे तन रंग, गए हैं मन रंग, कहरवा जब रमसइँयाँ गाय।
पतरी कम्मर बूँदावारी, सपनन मोय दिखाय।।

अ र र र र होरी है,
स र र र र होरी है।

गाई चैतुअन नैं बिलवाई, चैत् काटबे जाबैं।
सौंने-चाँदी को नदिया-सी पिसी जबा लहराबैं।।

दिखाबैं अम्मन ऊपर मौर,
मौर पर गुंजारत हैं भौंर,

कि मानौ तने सुनहरे चौंर, मौर की सुन्दर छटा दिखाय।।
चलत लहरिया बाव चुनरिया, उड़-उड़ तन सैं जाय।।

गुलेलें ना मारौ
लँयँ का तुमहारौ!

गायँ बुँदेला देसा के हो, ब्याह की बेला आई।
ब्याहन आए जनक जू के घर, तिरियन गारी गाई।।

करे कन्या के पीरे हाँत,
कि मामा लैकें आए भात,

बराती हो गए सकल सनात, बिदा की बेला नीर बहाय,
छूट चले बाबुल तोरे आँगन, दूर परी हौं जाय।।

खबर मोरी लैयँ रइयो,
भूल मोय ना जइयो।

बरसन लागे कारे बदरा, आन लगो चौमासौ।
बाबुल के घर दूर बसत हैं, जी मैं लगो घुनासौ।।

उमड़ो भाई-बहिन कौ प्यार,
कि बिटिया छोड़ चलीं ससुरार।

है आ गओ सावन कौ त्यौहार कि भइया राखी लेव बँदाय।
माँगैं भाबी देव, नौरता खाँ फिर लियो बुलाय।।

और कछु नइँ चानैं,
हमें इतनइँ कानैं।

 

संतोष सिंह बुंदेला का जीवन परिचय 

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