कुण्डलियाँ
ढपला रमतूला तुरइ, अलगोजा की टेक।
मिलके बजै कसावरी, सब बाजन में एक।।
सब बाजन में एक पालकी पीनस आवै ।
गांव के नायकन कीनों सुख सम्बन्द ।।
थोरौ थोरौ सबइ बहत को रूप दिखावै ।
सानैयां संग ढोल झाँझ सगै हो ठोकी ।
बजे सुबा औ सांज सूहावन रोसनचौकी।
जितने हैं सामान सूनत साजन में साजे ।
चलन चाल चल गई चहत अंग्रेजी बाजे ।
गांव में परवीन एज रंडी को डेरा।
रथ के सगे बहल चाहिये मिल कर बेरा ।
गाड़ी पन्द्रा-बीस भार बरदारी एती।
मिहरबानगी होय सदा मोऊ पै जेती ।
एक थार में खांय एकसैएक बिरादर।
ऐसौ आवौ चहत होय मंडप में आदर ।
इससे जुदे नतैत होंय हेती बेबारी।
ईसे बाहर होंय लोग सब खिजमतगारी ।
फूखन की फुल वाद अजूबा आतिसबाजी।
तेज मसालौ घलत लगै सबऊ खां साजी ।
जगर मगर हो रहे जरब जेबर की जोतें।
रवि से मारें होड़ होत भोरइ के होते।