Homeबुन्देलखण्ड की लोक संस्कृतिबुन्देलखंड के आभूषणBundeli Balkon ke Abhushan बुन्देली बालकों के आभूषण

Bundeli Balkon ke Abhushan बुन्देली बालकों के आभूषण

बुंदेलखंड की परंपरा के अनुसार जिस प्रकार स्त्रियों एवं पुरुषों के आभूषण होते हैं। उसी प्रकार बच्चों के आभूषण होते हैं। Bundeli Balkon ke Abhushan का अपना सौंदर्य होता है। बुंदेलखंड में विभिन्न प्रकार के गहनों Jewelry का प्रचलन आदि काल से चला आ रहा है।

बुन्देलखंड के बालकों के आभूषण
Children’s Jewelry of Bundelkhand

 
पैर के आभूषण
Bundeli Balkon ke Abhushan में चूरा और तोड़ा ही पहले पहने जाते थे। नवजात शिशु के ‘पथ’ के रुप में अब तोड़ा के स्थान पर पायल दी जाती है । तुलसी ने बालक राम को ‘पैजनियाँ’ पहने चित्रित किया है-ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियाँ ।” वे नूपुर भी पहने हुए हैं ।

                 

कमर के आभूषण

Bundeli Balkon ke Abhushan में छोटी करधौनी प्रमुख है। एक या दो लर की सादा करधौनी डोरा कहलाती है। तुलसी ने किंकिणी और मेखला दोनों, बालक राम के लिए लिखी हैं। किंकिणी में ककरा डले बोरा लगे होते हैं, जिनसे मधुर ध्वनि निकलती है । बड़े होने पर मेखला पहनी जाती है। दोनों का विवरण पहले दिया जा चुका है।

 

हाथ के आभूषण
इनमें कड़ा, चूरा और पहुँचियाँ (पौंचियाँ-कौंचियाँ) हाथ के कौंचा के और अनंतियाँ बाजू के बालकों द्वारा पहने जाते हैं। तुलसी ने बालक राम के लिए कंकन और पहुँची लिखा है। इन सभी के विवरण दिये जा चुके हैं, परंतु बालक उनके लघु आकारीय रुप का ही प्रयोग करते हैं।


इसे भी देखिये : स्त्रियों के हाथ के आभूषण

गले के आभूषण
इनमें कठुला या कठुली, तबिजियों-ढुलनियों का गजरा, चंदा, बघनखा और हायचंद्रमा हैं । बच्चों के गले की वह माला, जिसमें चाँदी या ताँबे की तबिजियाँ, ढुलनियाँ, हाय, चंद्रमा या चंदा, बजरबट्टू, बघनखा आदि काले डोरा में पुबे रहते हैं।हाय और चंद्रमा में चाँदी के गोलाकर कल्दारनुमा पत्ते पर ‘हा’ और दोज का चंद्रमा बना होता है । बघनखा में चाँदी के चौकोर ताबीजनुमा खोल में बाघ के नाखून रहते हैं ।


इसे भी देखिये :स्त्रियों के कमर के आभूषण

कान के आभूषण
सामान्यत: बालक कानों में बारियाँ या लोंगें कुछ वर्षों पहले तक पहनते रहे हैं । बारियों का एक भेद दुरबच्ची है और तुलसीकृत ‘गीतावली’ में उल्लिखित नगफनियाँ भी बारी की एक बनक मालूम पड़ती है । सभी के विवरण दिये जा चुके हैं ।


इसे भी देखिये :स्त्रियों के पैर के आभूषण

नाक के आभूषण
इस जनपद में बालक नाक नहीं छिदाते और न आभूषण पहनते हैं । जिनकी मनौदी होती है, वही नाक छिदाकर बारी पहनते हैं । तुलसीकृत ‘गीतावली’ में ‘ललित नासिका लसति नथुनियाँ’ से बालक राम का नथुनियाँ पहनना स्पष्ट है, जिससे उस समय नथुनियाँ के प्रचलन का पता चलता है।


संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल
admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!