ब्रज की रीत प्रीत गति न्यारी।। टेक।।
कहि न सकत महिमा गुन सेसहु, शारद सकुचि समझि पचिहारी।। 1।।
अगम निगम पढ़ि थके अगोचर, गावत ग्रन्थन विविध विचारी।
पावत नहि परमारथ की गति, स्वारथ लागि सकल संसारी।।2।।
यह तो कथा पुनित पुरातन, प्रगट कही शुक व्यास पुकारी।
प्रेम भक्ति गोपिन की महिमा, लिखी भागवतिहिं अधिकारी।।3।।
राम अखंड सदा वृन्दावन, होत न भंग अभंग सुखकारी।
सो सुख विधि हरिहर नहिं जाने, सो ‘मकुन्द’ बिलसे ब्रज- नारी।। 4।।
(सभी छन्द डॉ. अश्विनी कुमार दुबे, पन्ना के सौजन्य से)
ब्रज का कैसे वर्णन करूँ ? ब्रज की रीति-रिवाज, रहन-सहन और प्रीति भी अनन्य अनुपम अलौकिक है वह त्रिलोक से भिन्न है। उसकी महिमा का वर्णन शेष शायी नारायण और शारदे भी करने में सकुचाती हैं। वेद और पुराणों ने उस परम तत्व (पूर्ण ब्रह्म) की बहुत खोज की, अंत में हार कर उसे अगम, निगम, अगोचर संज्ञा से अभिभूत कर दिया।
यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मायावी स्वार्थ से आच्छादित है, उस पूर्ण ब्रह्म की गति को किसी ने भी नहीं जाना। यह कथा (ब्रज में गोपि कृष्ण का अवतरण) बड़ी पवित्र पुनीत और पुरातन है। शुक और व्यास जैसे ऋषियों ने गोपियों की माधुर्यमयी अनन्य प्रेम भक्ति की महिमा का एक कण-मात्र ही भागवत में वर्णन किया है।
गोपी कृष्ण प्रेम की महिमा तो अवर्णनीय है। सच्चिदानन्द पूर्ण ब्रह्म श्री कृष्ण रास बिहारी की रास क्रीड़ा इस क्षय संसार में भिन्न चौदह लोकों से परे अखंड (जो महाप्रलय में नष्ट न हो) वृन्दावन में सदा सर्वदा अविरल गति से आज भी हो रही है वह अखंड शाश्वत है उसका क्रम कभी नहीं टूटता। मुकुन्द स्वामी कहते हैं कि उस अखंड वृन्दावन की रास क्रीड़ा का रसानन्द ब्रज वनिताओं ने प्राप्त किया है, जिसे त्रिदेव; ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी नहीं जानते।
रचनाकार – श्री मुकुंद स्वामी का जीवन परिचय