जुबना बीते जात लली के, पर गए हात छली के।
मस्कत रात पुरा पाले में,सरकत जात गली के।
कसे रात चोली के भीतर, जैसे फूल कली के।
कात ईसुरी मसकें मोहन, जैसे कोऊ भली के।
जुबना कड़ आए कर गलियां, बेला कैसी कलियां।
न हम देखे जमत जमी पै, ना माली की बनियां।
सोने कैसे तबक चठे हैं, बरछी कैसी भलियां।
ईसुर हात समारे धरियो, फूट ना जावे गदियां।
जुबना छाती फोर दिखाने, मदन बदन उपजाने।
बड़े कठोर फोर छाती खों, निबुआ से गदराने।
शोभा देत बदन गोरे पै, चोली के बंद ताने।
पोंछ-पोंछ के राखे रोजऊ, बारे बलम के लाने।
ईसुर कात देख लो इनको, फिर भए जात पुराने।
जुबना कौन यार को दइये, अपने मन में कइये।
हैं बड़ भोल गोद गुरदा से, कांलौ देखे रइये ।
जब सारात सेज के ऊपर, पकर मुठी रै जइये।
हात धरत दुख होत ईसुरी, कालौ पीरा सइये।
जुबना धरे ना बांदे राने,ज्वानी में गर्राने।
मस्ती आई इन दोउन पै,टोनन पै साराने।
फैंकें -फैंकें फिरत ओढ़नी, अंगिया नहीं समाने।
मुन्सेलू पा जाने जिदना, पकरत हा-हा खाने।
जांगन में दब जाने ईसुर, राम घरै लौ जानै।
ब न लगत जुबन जे नोने,रजऊ हो आई गौने।
मयके में नीके लागत ते,सुन्दर सुगर सलौने।
बेधरमा ने ऐसे मसके,दए मिटाय निरौने।
चलन लगीं नैचें खां कसियां,हलन लगीं दोई टोने।
सबरे करम करा लए ईसुर, हर के ऐ बिछौने।
जुबना अबै न देती मांगें, पछतेहौ तुम आगें।
कर-कर करुना उदना सोचो, जबै ढरकने लागें।
कछु दिनन में जेई जुबनवां, तुमरौ तन लौ त्यागें।
नाई ना करहौ और जनन खां, सुन-सुन धीरज भागें।
भरन भरी सो इनको ईसुर, उतरी जाती पागें।
जुबना जिय पर हरन जमुरियां, भए ज्वानी की बिरियां।
अब इनके भीतर से लागीं, झिरन दूध की झिरियां।
फौरन चले पताल तरैया, फोरन लगे पसुरियां।
छैल छबीली छुअन ना देती, वे छाती की तिरियां।
जे कोरे मिड़वा कें ईसुर, तनक गम्म खा हिरियां।
छाती लगत जुबनवा नौने, जिनकी कारी टोने।
फारन लगे अबै से फरिया, आंगू कैसो होने।
सीख लली अन्याव अवैसें, कान लगी चल गौने।
करन लगे चिवलौरी चाबै, भर-भर कठिन निरौने।
बचे ईसुरी कांलौ रैइयत, कईइक खौं जो खोने।
जानी हमने तुमने सबने,रजऊ के जुबना जमने।
सोने कलस कुदेरन कैसे, छाती भौंरा भुमने।
जोर करै जब इनकी ज्वानी, किनकी थामी थमने।
निकरत बजैं चैन की बंसी, कईइक पंछी मरने।
जा दिन द्रगन देखबी ईसुर, दान जो देबो बमने।