Jane Kaun Baj Din Khai जानै कौन बाज दिन खाई, मित्र न देत दिखाई

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By admin

जानै कौन बाज दिन खाई, मित्र न देत दिखाई।
दीनी छोड़ लाज परिजन की, कुल की शान गमाई।
सास-ससुर छोड़े ससुरे में, चली मायके आई।
बरै भाग कोऊ अपनो न भओ, भुगतौ मौत सवाई।
का दिन अपने आए ईसुर, कोऊ न होत सहाई।

नैयां कोउ को कोउ सहाई, सब दुनिया मजयाई।
गीता

अर्थ कृष्ण कर लाने, पिता सो जाने माई।
जा दई देह आपदा अपने, कीखों पीर पराई ।
विपत परे में एक राम बिन, कोउ न होत सहाई।
अपने मरैं बिना ना ईसुर, देवै सुरग दिखाई।

ऐसो अवगुन करो न मैने, खबर बिसारी तैने।
सारी बुरी मरे के ऊपर, सब लोगन की कैंने।
जस अपजस की बांध पुटरिया, ऐई हाथ में रैने।
माता उठ आमाता दोहैं, दाता दया अदैनें।
इस बस्ती में बसे ईसुरी, कुमत-सुमत दोऊ बैनें।

महाकवि ईसुरी  ने अपनी नायिका को विश्वास दिलाते हुए कहा है कि उसने अपने जीवन में तुम्हारे (रजऊ) बिना किसी और का ख्याल भी अपने मन में नहीं आने दिया है। तुम्हारे लिये ये जीवन है और तुम्हारे लिए ही जान दे देने का प्रण है…। 

महाकवि ईसुरी की वियोग शृंगारिक फागें 

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